छाया : प्रज्ञा सोनी के फेसबुक अकाउंट से
• सीमा चौबे
07 नवंबर 1991 को भोपाल में श्री अजय सोनी और श्रीमती उषा सोनी के यहाँ जन्मी प्रज्ञा (pragya-soni) का जन्म से ही मूकबधिर होना न केवल खुद के लिए, बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन बचपन से जिंदगी के कई उतार-चढ़ाव से गुजरी प्रज्ञा ने केवल अपना ही जीवन नहीं संवारा, बल्कि अपने जैसे कई बच्चों की अंधियारी जिंदगी भी रोशन कर रही हैं। अपनी शारीरिक कमी के बावजूद प्रज्ञा ने सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा हासिल की और खेलकूद, नृत्य, चित्रकला सहित अन्य विधाओं में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
साधारण आर्थिक स्थिति वाले सोनी दम्पति की तीन संतानों में सबसे छोटी प्रज्ञा का भाई अंशुल भी जन्म से ही मूक बधिर है। प्रज्ञा के जन्म के बाद परिजन आशंकित थे कि कहीं ये भी अंशुल की तरह ही न हो। इसलिए तीन माह की होने पर रोज़ उसके कान के पास आवाज़ कर देखा जाता कि वह प्रतिक्रया देती है या नहीं। जैसे-जैसे प्रज्ञा बड़ी होती गई अलग-अलग प्रकार के परीक्षण होते रहे। लगभग डेढ़ साल की होने पर भी जब उसने आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया तो इस शंका को बल मिलता गया कि वह भी मूक बधिर हो सकती है। 3 साल की उम्र में प्रज्ञा को जांच के लिये मुंबई में ‘अली यावर जंग श्रवण विकलांग संस्थान’ ले जाया गया, जहां इस बात की पुष्टि हो गई कि वह भी विकलांगता की श्रेणी में है।
परिवार में एक बच्चे के मूक बधिर होने के बाद दूसरी संतान का भी इसी तरह होना, किसी वज्रपात से कम नहीं था। विशेष बच्चों का अभिभावक होना आसान नहीं होता, सोनी दम्पति को अपने बच्चों का भविष्य निखारने के लिए तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ा। उन्होंने बच्चों के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया।
प्रज्ञा के जन्म के समय अजय जी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) अरेरा कॉलोनी, भोपाल शाखा में खजांची के रूप में कार्यरत थे। वे थोड़ा भावुक होते हुए बताते हैं कि ईश्वर के फैसले को स्वीकार करते ही इसे हमने चुनौती के रूप में लिया और मुंबई में ही हमने संकेत भाषा सीखी ताकि बच्चों की बातें समझकर उनकी सही तरीके से परवरिश कर उन्हें पढ़ा-लिखा सकें। वे बताते हैं उस समय तक हमने यह सोचा भी नहीं था कि एक दिन हम प्रज्ञा के माता-पिता के रूप में जाने-पहचाने जायेंगे। अब हमें अहसास भी नहीं होता कि हमारे दोनों बच्चों में कुछ कमी है। दोनों ही अपने-अपने पैरों पर खड़े है और अपने जैसे अन्य लोगों का सहारा बने हुए हैं।
शिक्षा के लिए प्रारम्भ में होशंगाबाद के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में प्रज्ञा का दाखिला करवाया गया और घर पर ही उसे संकेत भाषा व चित्रों के माध्यम से होमवर्क और पढ़ाई करवाई गई। घर पर की गई तैयारी के आधार पर प्रज्ञा नर्सरी से लेकर दूसरी कक्षा तक उत्तीर्ण होती गई, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए प्राचार्य ने मना कर दिया। निराशा से घिरे माता-पिता एक सप्ताह बाद ही इस सोच के साथ बेटी को लेकर भोपाल आ गये कि आशा निकेतन मूक बधिर स्कूल में, जहाँ उनका बेटा रह रहा है, वहीं इसका दाखिला भी करवा देंगे। लेकिन प्रज्ञा के पिछले प्रदर्शन को देखते हुए यहाँ प्रिंसिपल ने प्रज्ञा को सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाने की सलाह दी।
अगले दिन घर के पास ही स्थित अरेरा कॉलोनी के सरस्वती शिशु मंदिर में संपर्क किया गया। यहाँ प्राचार्य ने यह कहते हुए प्रवेश देने से मना कर दिया कि स्कूल स्टाफ को मूक बधिर बच्चों को पढ़ाने का तकनीकी ज्ञान व अनुभव नहीं है, लेकिन अजय जी द्वारा अपनी बच्ची की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी लेने पर उन्होंने इस शर्त के साथ दाखिला दे दिया कि 6 माह में आशातीत परिणाम नहीं आने पर उसका स्कूल से नाम काट दिया जाएगा।
इसी बीच परिवार में दूसरी समस्याएं भी मुंह बाएँ खड़ी थीं। आशा निकेतन स्कूल के नियमों के मुताबिक़ स्थानीय निवासी होने के कारण अब अंशुल होस्टल में नहीं रह सकता था। इस तरह बड़ी बेटी के अलावा अब प्रज्ञा के साथ अंशुल का होमवर्क कराने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी थी। इसी समय अजय जी के वृद्ध पिता को ब्रेन हेमरेज हो गया। प्रज्ञा की मां भी पढ़ी-लिखी (बीएचएससी) थीं, पर वे बच्चों की विकलांगता और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में बंधकर ही रह गईं। प्रज्ञा की पढ़ाई के लिये घर पर अभ्यास कराने के साथ ही एक ‘स्पीच थेरेपिस्ट’ की सेवाएं भी ली गईं, लेकिन उनके द्वारा छोड़े गये विषय और गृह कार्य कराने की जवाबदारी अजय जी और उषा जी पर आ जाती। बहरहाल, कुछ दिक्कतों के साथ शिक्षकों की मदद से प्रज्ञा धीरे-धीरे सारी चीजें सीखती चली गई। पहली छ:माही में प्राप्त परिणाम से स्कूल प्रबंधन प्रज्ञा की प्रगति से संतुष्ट हो गया। वार्षिक परीक्षा परिणाम में वह कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। इसके बाद तो प्रज्ञा की पढ़ाई के प्रति लगन व अभिरुचि ने स्कूल को ऐसा प्रमाण दिया कि पांचवीं की बोर्ड परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया। उसकी बनाई ड्राइंग की विशेष एकल प्रदर्शनी भी स्कूल में लगाई गई। प्रज्ञा ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और अव्वल दर्जे के साथ कक्षा दर कक्षा आगे बढ़ती गयी।
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अजय जी बताते हैं स्कूल में एक बार शिक्षिका ने मासिक परीक्षा में गणित विषय में उसके 2 नंबर काट लिये। वह कॉपी लेकर शिक्षिका के पास पहुंची और उसने यह सिद्ध कर दिया कि दो नंबर गलत काटे गये गये हैं। शिक्षिका ने भूल सुधार करते हुए उसके नंबर बढ़ाये। प्रज्ञा ने इस स्कूल में 7वीं तक अध्ययन किया। इसके बाद प्रज्ञा का दाखिला कोटरा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में कराया गया। यहाँ उसने कक्षा 8वीं से 12वीं तक शिक्षा उच्च अंकों के साथ हासिल की। बताते चलें कि मूक बधिरों को बोलने/ उच्चारण की क्षमता न होने के कारण संस्कृत की जगह चित्रकला विषय लेने की छूट होती है किन्तु प्रज्ञा ने संस्कृत का ही चयन किया। प्रज्ञा ने सभी अनिवार्य विषयों के साथ सामान्य वर्ग में 10वीं बोर्ड की परीक्षा न केवल विद्यालय में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, बल्कि दिव्यांगों की प्रावीण्य सूची में मप्र में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया। प्रज्ञा की इस उपलब्धि पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने विकलांग पंचायत में उसका अभिनंदन करते हुए कहा कि प्रज्ञा जैसी विलक्षण प्रतिभा से आप सभी प्रेरणा लें। इस बच्ची ने शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद न तो कोई शासकीय सहायता का नकद अनुदान प्राप्त किया और न ही शासन द्वारा प्रदान की जाने वाले कठिन विषयों से छूट का विकल्प का लाभ लिया। 11वीं में जब विषय चयन की बात आई तो सभी ने उसे सरल विषय आर्ट्स लेने की सलाह दी, लेकिन प्रज्ञा अपने पिता की तरह बैंक में अपना कैरियर बनाना चाहती थी। इसलिए उसने कॉमर्स विषय का चुनाव किया। बारहवीं कक्षा में वैकल्पिक विषय के रूप में गणित लेकर इस विषय में विशिष्टता हासिल की। इतना ही नहीं दसवीं की तरह बारहवीं बोर्ड में भी उसने मूक बधिर बच्चों की प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
प्रज्ञा सिर्फ पढ़ाई में ही उत्कृष्ट प्रदर्शन करने तक सीमित नहीं रही, खेलकूद सहित अन्य प्रतियोगिताओं में अपना सर्वश्रेष्ठ देकर पुरस्कार अर्जित करती रही। कक्षा पांचवीं में अपनी चोटों के बावजूद उसने ‘मेंढक दौड़’ प्रतियोगिता में भाग लिया और सभी की उम्मीदों के विपरीत प्रथम स्थान हासिल कर यह साबित कर दिया कि वह सामान्य बच्चों से कहीं बेहतर है। प्रज्ञा यहीं नहीं रुकी, वर्ष 2002 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा ‘संभागीय स्तर’ पर आयोजित 200 मीटर ‘सामान्य दौड़’ प्रतियोगिता, महाविद्यालय में आयोजित ‘खो-खो’ प्रतियोगिता के अलावा जिला स्तर, संभाग स्तर, प्रदेश स्तर व राष्ट्रीय स्तर की टीमों (खो-खो) में भाग लेती रही और हमेशा प्रमाण पत्र प्राप्त करती रही। प्रज्ञा के शैक्षणिक विकास के दौरान प्रतियोगिताओं में प्राप्त पुरस्कारों और प्रमाण पत्रों से घर का कोना-कोना भरा पड़ा है।
वर्ष 2003 में दिल्ली में आयोजित एबिलंपिक में भाग लेकर प्रदेश स्तर पर स्वर्ण तथा राष्ट्रीय स्तर पर रजत पदक प्राप्त किया। इस आधार पर प्रज्ञा का अंतर्राष्ट्रीय एबिलंपिक के लिए चयन हुआ जहां 55 देश के प्रतिभागियों ने भाग लिया। अलग-अलग विधाओं की विभिन्न कैटेगरी की प्रतियोगिताओं में प्रज्ञा को कार्टून प्रतियोगिता में भाग लेना था, किन्तु इस प्रतियोगिता में अन्य दो देशों के प्रतिभागी उपस्थित नहीं हुए, लिहाजा उसे सांत्वना पुरस्कार से ही संतोष करना पड़ा।
प्रज्ञा के लिए सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 12वीं बोर्ड में प्रदेश में प्रथम आने पर उच्च अध्ययन के लिए धीरूभाई अंबानी छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। ट्रस्ट द्वारा स्नातक की तीनों वर्ष की फीस स्वीकृत की गई। स्नातक (बीए) के लिए भोपाल के नूतन कॉलेज प्रवेश लिया। इस कॉलेज में वे अकेली मूक बधिर छात्रा थी। स्नातक करने के बाद प्रज्ञा ने एमए (समाजशास्त्र) और कम्प्यूटर एप्लीकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा हासिल किया।
ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष के दौरान ही प्रज्ञा ने यूको व सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की परीक्षा भी दी और उनका चयन ‘यूको बैंक’ में हो गया, लेकिन प्रज्ञा नियमित छात्रा के रूप में ही स्नातक करना चाहती थी। प्रिंसिपल ने उनके पिछले प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें एक शोध कार्य के साथ इसकी अनुमति दे दी। यूको बैंक में उन्होंने वर्ष 2011 से 13 सितंबर 2011 तक कार्य किया। कुछ दिनों बाद ही सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में भी उनका चयन हो गया। यहाँ 19 सितंबर 2011 में उन्होंने ‘अरेरा हिल्स’ भोपाल शाखा में लिपिकीय संवर्ग में कार्य करना शुरू किया। वर्ष 2018 में उनका स्थानांतरण इंदौर हो गया। मई 2023 में उनकी पदोन्नति अधिकारी संवर्ग में ‘सहायक प्रबंधक’ पद पर हो गई।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी प्रज्ञा को फोटोग्राफी का भी शौक है। वे कार भी चलाती हैं। उन्होंने कई मूक बधिर बच्चों को कार चलाना सिखाया है। इतना ही नहीं, विभिन्न शैली के नृत्य (कथक, कालबेलिया, भांगड़ा आदि) करने के अलावा उन्हें चित्रकारी करने में भी दिलचस्पी है। एक बार स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति के बाद प्राचार्य ने उठकर उसे गले से लगा लिया और कहा “इस प्रस्तुति को देखकर कहीं नहीं लगा कि कोई स्पेशल बच्चा नृत्य कर रहा है।”
वर्ष 2017 में प्रज्ञा की शादी इंदौर निवासी इंजीनियर प्रीतिश चतुर्वेदी से हो गई। प्रीतिश भी उन्हीं की तरह मूक बधिर हैं। दोनों की मुलाक़ात नेशनल डेफ यूथ कॉन्फ्रेंस में हुई थी। जहाँ प्रीतिश ने उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया, लेकिन वे उस समय तक संकेत भाषा नहीं जानते थे। प्रीतिश की यह कमज़ोरी प्रज्ञा को अधूरेपन का अहसास करा रही थी, इसलिए उसने शादी का प्रस्ताव टाल दिया। लेकिन प्रीतिश, प्रज्ञा को ही अपना जीवन साथी बनाना चाहते थे तो उन्होंने संकेत भाषा सीखी और इस तरह दोनों विवाह बंधन में बंध गए। प्रज्ञा के पिताजी कहते हैं कि बेटी की काबिलियत ने हमें राजभवन और राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया। हायर सेकंडरी परीक्षा में प्रदेश में प्रथम आने पर महामहिम राज्यपाल बलराम जाखड़ द्वारा राजभवन में आमंत्रित कर अभिनंदन किया गया। वहीं ओलंपिक की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सहभागिता के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन में संध्या भोज’ पर आमंत्रित किया। इस उपलब्धि पर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा भी प्रज्ञा का अभिनंदन किया गया।
प्रज्ञा वर्तमान में सेन्ट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया इंदौर में सहायक प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं। साथ ही मूक बधिर बच्चों को शिक्षा के लिये प्रेरित करती हैं। वे प्रति रविवार आसपास के ऐसे बच्चों को व्यक्तित्व विकास व रोजगार सम्बन्धी जानकारी देकर उनके स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त करती हैं। वे यू-ट्यूब पर भी मूक बधिरों को शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार संबंधी जानकारी देती है। प्रज्ञा और उनके माता-पिता उन अभिभावकों को भी प्रेरित करते हैं, जिनके बच्चे दिव्यांग हैं। दूसरी और प्रीतिश स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग में सब ऑडिटर के पद पर कार्यरत हैं, जबकि भाई अंशुल इग्नू में सहायक कार्यपालक (कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग) के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। उनकी पत्नी प्रीति सोनी भी मूक बधिर हैं। दोनों पति-पत्नी अपनी ही तरह के लोगों को सहयोग करने ‘डेफ कैन फाउन्डेशन’ नाम से एक संस्था भी चला रहे हैं। प्रज्ञा की बड़ी बहन डॉ. प्रियंका सोनी जयपुर में जानी-मानी बाल चिकित्सा रोग विशेषज्ञ (हेमेटोलॉजिस्ट, ऑन्कोलॉजिस्ट और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण) हैं।
उपलब्धियां
• सामान्य बच्चों के साथ 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षा में क्रमश 87.4% , 77.25% अंकों के साथ प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण व माध्यमिक शिक्षा मंडल, मध्यप्रदेश की दिव्यांगों की प्रावीण्य सूची में प्रदेश में 'प्रथम स्थान प्राप्त। इस उपलब्धि पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा दो बार रु. 50 हज़ार का उत्कृष्टता पुरस्कार प्रदान। महामहिम राज्यपाल बलराम जाखड़ तथा तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा अभिनंदन
• 12वीं बोर्ड में प्रदेश में प्रथम आने पर स्नातक की तीनों वर्ष की फीस ‘धीरूभाई अंबानी’ ट्रस्ट द्वारा स्वीकृत
• बी.ए. प्रथम वर्ष 77%, द्वितीय वर्ष 75।63% तथा बी.ए. तृतीय वर्ष की समग्र परीक्षाफल में 72.65% अंक के साथ प्रथम स्थान
• PGDCA 73.10% अंकों के साथ 'प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण
सह शैक्षिक गतिविधियां
• राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में दो बार राज्य की खो-खो टीम का प्रतिनिधित्व
• विकलांगों के ओलंपिक (एबिलंपिक) में राज्य स्तरीय कार्टून प्रतियोगिता में स्वर्ण (2001) तथा राष्ट्रीय स्तरीय कार्टून प्रतियोगिता में रजत पदक (2002)
• मध्यपदेश शासन द्वारा संभागीय स्तर पर आयोजित 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान (2002) तथा मध्यप्रदेश शासन द्वारा विश्वविद्यालय स्तर पर आयोजित जिला स्तरीय सामान्य दौड़ प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान (2003)
• जिला स्तरीय संस्कृत दिवस समारोह में आयोजित चित्रांकन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान (2004)
• सौंदर्य प्रतियोगिता ओजस्विनी 2011 के तहत ‘मिस कॉन्फीडेंट’ अवार्ड
• राष्ट्रीय स्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिता में ‘मिस डीफ इंडिया’ (2014)
• 94.3 एफएम जियो दिल से द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्टार अवार्ड
• विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान दिल्ली द्वारा प्रांतीय स्तर पर आयोजित ‘क्षेत्रीय खेल प्रतियोगिता’ खो-खो में विजेता (2007-08)
• महाविद्यालय में आयोजित ‘लोकनृत्य प्रतियोगिता’ में 'बेस्ट डांसर’ अवार्ड
• भोपाल डेफ़ फ्रेंडशिप क्लब द्वारा आयोजित नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान
• सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग द्वारा गठित राज्य सलाहकार बोर्ड में शामिल
सन्दर्भ स्रोत : श्री अजय सोनी से सीमा चौबे की बातचीत एवं उनके द्वारा प्रेषित सामग्री
© मीडियाटिक
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