हौसलों के पंख पर उड़ान भरती हैं पूनम श्रोती

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हौसलों के पंख पर उड़ान भरती हैं पूनम श्रोती

छाया: पूनम श्रोती के फेसबुक अकाउंट से

विशिष्ट महिला 

विकलांगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर चुकीं पूनम श्रोती (poonam-shroti) का जन्म मप्र के टीकमगढ़ जिले में 6 फरवरी 1985 को हुआ। पिता राजेन्द्र प्रसाद श्रोती सेना में मेडिकल कोर में पदस्थ थे और माँ कल्पना श्रोती कुशल गृहिणी। तीन भाई बहनों में सबसे छोटी पूनम जन्म से ही ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा बीमारी (osteogenesis imperfecta disease) से ग्रस्त हैं, जिसने उनका शारीरिक कद नहीं बढ़ने दिया। महज ढाई फीट की पूनम ने हालात से समझौता करने के बजाय अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ताक़त बनाया और एक संस्था खड़ी कर अपने जैसे लोगों की जिंदगी संवारने में जुट गईं।

पूनम आज जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुँचने में उन्हें परिवार का भरपूर सहयोग मिला। स्कूल में दाखिले के बाद माँ गोद में स्कूल लेकर जाती और छुट्टी होने तक स्कूल के बाहर ही बैठी रहतीं। पूनम के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए उनके पिता ने सेना से सेवानिवृत्ति ले ली और पूरा ध्यान पूनम की शिक्षा-दीक्षा और स्वास्थ्य पर केंद्रित किया। सौ से अधिक फ्रैक्चर की तकलीफ झेल पूनम अपने दैनंदिन कार्य परिजनों के सहारे ही कर पाती हैं। देश के लिए मिसाल बन चुकी पूनम विकलांगों के लिए आशा की किरण, मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत हैं।

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तमाम परेशानियों के बावजूद पूनम ने सामान्य बच्चों के साथ ही अपनी पढ़ाई पूरी की। भोपाल के केन्द्रीय विद्यालय से 12वीं और बी.कॉम नूतन कॉलेज भोपाल से किया. फाइनेंस में एमबीए करने के बाद पूनम ने डिस्टेंस लर्निंग से मानव संसाधन प्रबंधन की पढ़ाई की। लेकिन जब नौकरी की बारी आई तो सारी योग्यता के बावजूद उन्हें बार-बार खारिज किया गया। कई प्रयासों के बाद उन्हें एक एचआर फर्म में बतौर एग्जीक्यूटिव काम करने का मौका मिला, हालांकि ये उनकी योग्यता के मुताबिक पद नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया। बचपन से अभी तक अपने साथ हुए भेदभाव को लेकर उनके मन में एक चुभन सी बनी रही।

क़रीब 6 साल बाद उन्हें अहसास हुआ कि समाज में उन जैसे और भी लोग होंगे, जिनका मनोबल उनकी तरह ऊंचा नहीं होगा। ऐसे लोगों के लिए कुछ नया करने के इरादे के साथ उन्होंने नौकरी छोड़ दी। अब पूनम के सामने एक ही मिशन था – विकलांग लोगों की मदद करना और समाज में उन्हें समानता का अधिकार दिलाना। इस मिशन को पूरा करने में उनके परिवार के साथ-साथ दोस्तों का भरपूर सहयोग मिला। वर्ष 2013 में पूनम ने उद्दीप नामक सोशल वेलफेयर सोसायटी की नींव रखी और दिव्यांगों के लिए शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य के क्षेत्र में समानता हेतु बदलाव की उम्मीद लिए दोस्तों के साथ मिलकर दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों से काम करना शुरू किया।

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नारी सशक्तिकरण के साथ ही दिव्यांगजनों की शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के लिये कार्य के लिए भी कार्य कर रही हैं। वे प्रशिक्षण और जागरूकता के अनेक कार्यक्रम चला रही हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़ा कार्यक्रम भोपाल के आसपास के ग्रामीण इलाकों में चलाया जा रहा है। वे महिलाओं को शिक्षा और आजीविका के लिए न सिर्फ प्रशिक्षित कर रही हैं, बल्कि उन्हें आजीविका के विकल्प भी उपलब्ध करवा रही हैं साथ ही उन महिलाओं को पढ़ने के लिए भी प्रेरित करती हैं, जिनकी पढ़ाई किन्ही वजहों से बीच में ही छूट जाती है। पूनम गांव के बच्चों की शिक्षा का स्तर उठाने का प्रयास कर रही हैं। इसके जरिये उनको किताबों से मदद करती हैं, उन्हें कम्प्यूटर का ज्ञान भी देती हैं। इसके अलावा स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न गांवों में सफाई अभियान से भी जुड़ी हैं।

पूनम शुरुआत में केवल विकलांगों को नौकरी दिलाने का काम करना चाहती थीं, लेकिन दिव्यांगों में आत्मविश्वास की कमी के चलते पहले उन्होंने प्रशिक्षण के जरिए ऐसे लोगों में आत्मविश्वास जगाने का प्रयास किया। अपनी कोशिशों में वे काफी हद तक सफल भी हुई। अब एक कंपनी ने विकलांगों को नौकरी के लिए पूनम की संस्था से समझौता भी किया है। ‘कैन डू’ नाम से मुहिम चलाकर पूनम लोगों को यह संदेश देती हैं कि विकलांग दया के पात्र नहीं हैं, उनकी जिम्मेदारी उठाने की बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला दें. उनकी जिंदगी का फलसफा है ‘जब मैं सब कुछ कर सकती हूं तो आप क्यों नहीं’।

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समाज में विकलांगता को लेकर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से पूनम स्वयं की संस्था के माध्यम से तो कार्यक्रम आयोजित करती ही हैं, साथ ही विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी विशेष रूप से शामिल होती हैं। समाज में विकलांगता को शामिल करने की अवधारणा को लेकर उद्दीप संस्था (Uddeep Sanstha) ने वर्ष 2016 और 2017 में मध्यप्रदेश की पहली मिनी मैराथन का आयोजन किया,  26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस समारोह में पूनम सामाजिक न्याय विभाग का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

भारत की शीर्ष सौ सशक्त महिलाओं में शामिल (वर्ष 22 जनवरी 2016 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित) पूनम को दबंग वुमेन अवार्ड (2016), भोपाल आइकॉन अवार्ड, नारी शक्ति अवार्ड – 8 मार्च 2018, बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, महू, द्वारा सावित्री बाई फुले पुरस्कार (2020), हेडवे फाउंडेशन, चेन्नई द्वारा इंक्लूसिव चैंपियन (2020), नारी तू नारायणी सम्मान (8 मार्च 2021), महिला एवं बाल विकास विभाग, म.प्र. द्वारा शौर्य पुरस्कार, सशक्त नारी सम्मान, मध्य प्रदेश सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा उत्कृष्ट कार्य करने पर महर्षि दधीचि पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार और सम्मान से नवाज़ा जा चुका है।

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जीवन में आई तमाम तकलीफों का डटकर मुकाबला करने वाली पूनम की ज़िन्दगी में वर्ष 2018 कहर बनकर टूटा। अब उन्हें ब्रेन हेमरेज (brain hemorrhage) जैसी गंभीर बीमारी से भी जूझना था। हालांकि इस बीमारी से तो उबर गईं हैं, पर अब उनके सिर में दर्द रहता है और उनकी आँखों की रोशनी पर भी इसका असर हुआ है, लेकिन अपने लक्ष्य को साधने वे उसी उत्साह और उमंग के साथ फिर से सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में जुट गईं हैं।

संदर्भ स्रोत: स्व संप्रेषित एवं पूनम श्रोती से सीमा चौबे  की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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