छाया : सीमा कपूर के फेसबुक अकाउंट से
• वंदना दवे
सीमा कपूर (Seema Kapoor) कला, साहित्य, रंगमंच फिल्म की मौन साधक हैं। रुपहले पर्दे पर उनकी मौजूदगी लगभग चार दशक से लेखन, निर्देशन, वृत्तचित्र और निर्माता (writing, Directing, Documentaries and Producing) के रूप में दर्ज है। उनके खाते मेंं जहां ग्रामीण महिलाओं पर केंद्रित 'हाट - द वीकली बाज़ार’ (Haat - The Weekly Bazaar) जैसी फ़िल्म है, तो हास्य व्यंग्य से भरपूर 'मिस्टर कबाड़ी' (Mr Kabadi) भी। राष्ट्रीय बाल फ़िल्म पुरस्कार (National Children's Film Awards) से सम्मानित 'अभय' बच्चों की फ़िल्म भी है जिसका लेखन सीमा जी ने किया। इसके अलावा ज़ी टीवी, स्टार टी वी और दूरदर्शन के लिए अनेक धारावाहिकों का लेखन निर्देशन और निर्माण उन्होंने किया और कई वृत्त चित्र बनाए। इस समय दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे ऐतिहासिक धारावाहिक 'अवंतिका' का निर्देशन (Direction of the serial 'Avantika') भी सीमा जी का है।
सीमा जी की आत्मकथा 'यूं गुजरी है अब तलक' (yoon guzari hai ab talak ) इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। दरअसल, यह किताब रंगमंच और फिल्मों में सीमा जी के 40 सालों के अनुभव का ऐसा दस्तावेज है जहां वे स्वयं खामोशी से जूझती हुई एक असल किरदार के रूप में मौजूद हैं। इस किताब में पिता की नाटक कंपनी की अंदरूनी दुश्वारियां और उनसे उपजी अनेक कहानियां भी हैं। किताब से पहले ये कहानियाँ 24 साल तक एक स्तम्भ के रूप में एक पत्रिका में प्रकाशित होती रहीं। मालूम हो कि सीमा जी के पिता मदन कपूर पारसी थियेटर (Madan Kapoor Parsi Theatre) के मालिक थे और मां कमल शबनम कपूर नामचीन शायरा (Kamal Shabnam Kapoor is a famous poetess)। सीमा जी की ज़िंदगी की शुरुआत ही एक नाटक कंपनी चलाने वाले पिता की पहचान के साथ हुई और यही पहचान धीरे-धीरे इन्हें समाज से अलग करने लगी।
मदन कपूर मप्र, राजस्थान और अन्य राज्यों के कस्बों गांवों में नाटकों का मंचन करते थे और इसलिये उन्हें अक्सर घर से दूर रहना पड़ता। बच्चों की पढ़ाई के मद्देनज़र उनका परिवार भोपाल के इतवारा में किराये के मकान में रहता। इन हालातों में अकेले ही परिवार संभालना था इसलिए कमल जी बच्चों को कड़े अनुशासन में रखतीं। कुछ सालों बाद मदन जी की नाटक मंडली का डेरा शिवपुरी में लगा तो उनका परिवार भी वहां चल आया। यहीं सीमा जी की पढ़ाई की शुरुआत हुई और इसके साथ ही उन्हें यह एहसास हुआ कि नाटकों का लुत्फ तो लोग उठाते हैं लेकिन कला और कलाकार का सम्मान करना नहीं जानते। स्कूल में उनकी सहपाठी लड़कियां उनसे बात तो करती थीं लेकिन उनके घर जाने से बचा करतीं। वे कहतीं कि तुम्हारे पापा नाटक कंपनी चलाते हैं। ये काम अच्छा नहीं है। इस बात से सीमा जी का मन दुखता और उनके आत्मविश्वास को भी चोट पहुँचती।
‘यूं गुजरी है अब तलक’ में ऐसी अनेक घटनाओं का ज़िक्र है जो समाज में बिखरी हुई गंदगी को उजागर करती हैं। सीमा जी जब छह साल की थीं तब उनके एक पड़ोसी ने उनके साथ गलत काम करने की कोशिश की। कुछ साल बाद जब उनका परिवार शिवपुरी से जबलपुर आया तो वहां भी उन्हें ऐसी ही गंदी हरकत से दो-चार होना पड़ा। इन बातों ने सीमा जी के व्यक्तित्व पर गहरा असर डाला। असल में अपने लिए होने वाले इन पीड़ादायक व्यवहारों को वो किसी से नहीं कह पा रही थीं। वे बताती हैं कि माली हालात ऐसे थे कि मां-बाबूजी दो जून की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल से कर पा रहे थे। ऐसी जद्दोजहद भरी ज़िंदगी में अपने साथ क्या हो रहा है, सीमा जी ने कभी नहीं बताया।
एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखने वाली मां के लिए नाटक कंपनी के प्रभावों को सहना आसान नहीं था। यहां सिर्फ गरीबी ही नहीं, एक किस्म की छुआछूत भी उनके साथ होती थी। इसलिए कमल जी कभी नहीं चाहती थीं कि उनके बच्चे रंगमंच या फ़िल्मों की तरफ़ जायें। वे उन्हें प्रशासनिक सेवाओं में देखना चाहती थीं। उन्हें ये कतई मंजूर नहीं था कि बच्चे भी तंगहाली में जियें। इसी डर के चलते एक बार ऐसा हुआ कि बचपन में सीमा, भाई के साथ किसी फिल्मी गाने पर डांस कर रही थीं, तभी मां ने देख लिया और गुस्से में दोनों को दो-दो तमाचे जड़ दिये।
मां का भय लाजमी था लेकिन नियति देखिये कि दोनों बड़े भाई रंजीत और अन्नू कपूर, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से ग्रेजुएट होकर आज रंगमंच और फिल्म की दुनिया के नामचीन चेहरे हैं। रंजीत जी द्वारा लिखी गई अविस्मरणीय फिल्म 'जाने भी दो यारों' पारसी थियेटर के असर की वजह से इतनी उम्दा बन पाई। अन्नू जी भी अब किसी परिचय के मोहताज नहीं है। छोटे भाई निखिल भी इसी क्षेत्र से जुड़े हैं। यानी जिस कला ने मजबूरियों में जीने को विवश किया था उसी कला ने मजबूती दी और पैसा और सम्मान दिलाया।
6 दिसंबर 1972 को भोपाल में जन्मीं सीमा जी ने शिवपुरी, जबलपुर, टीकमगढ़ और झालावाड़ से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई के बाद वे अपनी मंजिल तलाशने सीधे दिल्ली पहुंची। वहां आजीविका के लिए एक थियेटर में नौकरी की। मामूली सी तनख्वाह में जैसे तैसे काम चलाया, लेकिन उनका काम भारत सरकार को काफ़ी पसंद आया और उन्हें विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार का जिम्मा सौंप दिया गया। इसके लिए वे रूस, कनाडा, जर्मनी, जापान सहित अन्य देशों में गईं।
वहां के प्रगतिशील लोगों से उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली, लेकिन संघर्ष जारी था। फिर उन्होंने 1986 में दूरदर्शन के लिए धारावाहिक बनाने शुरू किए। इनका लिखा “किले का रहस्य’ धारावाहिक काफी चर्चित हुआ। उसके ज़ी टीवी और स्टार टीवी के लिए कई धारावाहिक बनाए। 2009 में उनकी फ़िल्म “हाट - द वीकली बाज़ार’ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। यहीं से उन्हें फ़िल्म जगत में पहचान मिलना शुरू हुआ। विख्यात निर्देशक हबीब तनवीर, राजेंद्र नाथ, दादी पदमसी, अस्ताद देबू (Habib Tanvir, Rajendra Nath, Dadi Padamsee, Ustad Debu) और रंजीत कपूर के साथ नाटकों के गुर सीखे। पपेट थिएटर के जरिए विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
जब परिवार अत्यधिक गुरबत में जी रहा था यहां तक कि बिजली का बिल भरने के भी पैसे नहीं थे और बिजली कट गई थी तब 14 बरस की सीमा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक बैरंग चिट्ठी लिखकर भेज दी कि आपके बीस सूत्रीय कार्यक्रम में घर-घर बिजली पहुंचाने की बात कही जा रही है और हमारे यहां बिजली काट दी गई। इसके साथ ही पिता का पारसी थियेटर को बचाने का संघर्ष और पढ़ी लिखी मां को नौकरी न मिल पाने से बने हालात का भी ज़िक्र कर दिया। चिट्ठी भेजने के बाद सीमा जी को डर भी लगा कहीं इस बात पर पुलिस पकड़कर न ले जाये। लेकिन पांच माह बाद पता चला कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उनकी चिट्ठी का जवाब आया है जिसमें घर के हालातों के लिए खेद जताया गया है। इसके साथ ही जयपुर प्रशासन से कहकर झालावाड़ के स्कूल में उर्दू शिक्षक का पद बनाया गया और उस पर कमल जी को नियुक्त किया गया।
ओमपुरी (Om Puri) से मुलाकात का किस्सा कुछ यूं है कि जब भाई रंजीत कपूर अपने नाटक बिच्छू के निर्देशन के लिए दिल्ली से मुम्बई आये तो सीमा जी भी अपनी भाभी और भतीजी ग्रुशा कपूर (प्रख्यात अभिनेत्री) के साथ आ गईं। नाटक में मुख्य भूमिका ओमपुरी कर रहे थे। ये बात है 1979 की, जब ओम पुरी बहुचर्चित चेहरा नहीं थे। सीमा जी उनसे मिलीं ज़रूर लेकिन पहली नज़र में प्यार जैसी कोई बात नहीं हुई। उनका परिचय धीरे धीरे दोस्ती में बदला और फिर दोस्ती प्यार में बदली। 11 साल तक यह सिलसिला चलता रहा, फिर 1990 में दोनों ने शादी कर ली। हाल ही में एक इंटरव्यू में सीमा जी ने बताया कि शादी के बंधन में बंधने से ठीक एक दिन पहले ओम पुरी ने एक नौकरानी के साथ अपने प्रेम प्रसंग के बारे में कबूल किया था। बहरहाल, दोनों का वैवाहिक जीवन शुरु में काफ़ी खुशगवार था लेकिन महज एक साल बाद ही ओम पुरी की ज़िंदगी में पत्रकार नंदिता चौधरी (nandita chowdhary) आ गईं। ओम जी उस वक़्त एक अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म 'सिटी ऑफ जॉय' (International Film 'City of Joy') की शूटिंग कलकत्ता में कर रहे थे। इसी दौरान नंदिता उनके संपर्क में आई और बात ओम पुरी और सीमा जी के तलाक तक पहुंच गई।
आपसी कलह से बचने के लिए जिस दिन सीमा जी घर से निकलीं तो खाली हाथ थीं। वे सीधे अपने भाई अन्नू कपूर (annu kapoor) के यहां गई और उनसे झालावाड़ का टिकट करवाने को कहा। अन्नू जी को उन्होंने यह नहीं बताया कि वो घर छोड़कर आ गई हैं। उन्हें डर था कि गुस्सैल मिजाज़ अन्नू जी कहीं ओम पुरी से झगड़ा न कर बैठें। दूसरी तरफ उन्हें ये उम्मीद भी थी कि पेट से होने के कारण ओम जी उन्हें वापस बुला लेंगे। दुर्भाग्य से सीमा जी के झालावाड़ पहुंचने के कुछ ही दिनों बाद ओम पुरी ने उन्हें तलाक का नोटिस भिजवा दिया। अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उसमें तमाम तरह के आरोपों के साथ उन्होंने यह भी एक संगीन आरोप लगा दिया कि जो बच्चा होने वाला है वो उनका नहीं है। सीमा जी इससे बेहद परेशान और दुखी हो गईं। उस स्थिति में उन्होंने अपना संतुलन जैसे तैसे बनाये रखा और अपनी ओर से कोई भी प्रत्युत्तर या प्रतिक्रिया नहीं दी। जबकि परिवार में सभी चाह रहे थे कि ओम पुरी की हरकत का उन्हें माकूल जवाब दिया जाए। उन्होंने सहमति से तलाक ले लिया। हालांकि इस घटना ने सीमा जी को इतना आघात पहुंचाया कि उनका चार माह का गर्भ गिर गया। यह उनके लिये दूसरा बड़ा सदमा था। इस गहन मानसिक पीड़ा से वे धीरे-धीरे बाहर आईं और फिर से अपने काम को जीने लगीं।
जब सीमा जी का ओम पुरी से अलग होने का दौर चल रहा था तब विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) भी उसी तरह की स्थिति से गुजर रहे थे। उन्हीं दिनों दोनों की मुलाकात हुई और दोनों की मित्रता काफ़ी गहरी होती गई। विधु जी ने शादी के बारे में पूछा तो सीमा जी ने शादी से इंकार कर दिया। इधर तलाक के कुछ साल बाद ओमपुरी को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उन्होंने सीमा से माफ़ी मांगी। धीरे-धीरे सीमा जी ने भी उन्हें स्वीकार करना शुरू कर दिया। लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि नंदिता ने न केवल ओम पुरी पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया बल्कि सीमा जी को भी अलग-अलग धाराओं में नामजद करने की कोशिश की।
ज़िंदगी की इस उठापटक के बीच सीमा जी का प्रकृति प्रेम उनका सबसे बड़ा संबल बना रहा। उनके यहां अलग-अलग तरह के पंछी बसेरा करते हैं। एक गिलहरी उनके घर में इधर से उधर भागती रहती है। जब वो छोटी थी तब सीमा जी ने उसे शिकार होने से बचाया था और उसे मां की तरह पाला था।
सीमा जी के प्रमुख कार्य हैं -
• हाट - द वीकली बाजार ( फ़ीचर फ़िल्म), मिस्टर कबाड़ी (हास्य फ़ीचर फ़िल्म), अभय (बाल फ़िल्म)
• किले का रहस्य, ज़िंदगीनामा, पलछिन, रिश्ते, विजय ज्योति, आवाज़ दिल से दिल तक, एकलव्य, मेरा गांव मेरा देश, अवंतिका (धारावाहिक)
• महानदी के किनारे, ओरछा एक अन्तर्यात्रा, नौटंकी एंड पारसी थियेटर अ जर्नी, सॉंग ऑफ द सॉइल (डॉक्यूमेंट्री) आदि
• इनकी लिखी बाल फ़िल्म 'अभय' राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुई। बेस्ट क्रिटिक अवार्ड (थर्ड आई एशियन फेस्टिवल) बेस्ट स्टोरी स्क्रीनप्ले (जागरण इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल) से सम्मानित किया गया। 'हाट - द वीकली बाज़ार' को देश-विदेश में काफ़ी सराहा गया।
सन्दर्भ स्रोत : सीमा कपूर से वंदना दवे की बातचीत पर आधारित
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