एक साथ दस सैटेलाइट संभालती

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एक साथ दस सैटेलाइट संभालती
हैं इसरो वैज्ञानिक प्रभा तोमर

छाया : स्व संप्रेषित 

• सारिका ठाकुर

90 साल से भी ज़्यादा वक़्त बीता, जब स्नातक करने के बाद देश की पहली महिला वैज्ञानिक कमला भागवत सोहोनी ने भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस) में शोध के लिए आवेदन किया था। उस समय संस्थान के निदेशक और नोबल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन ने उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया था। लम्बी जद्दोजहद और शर्तों के बाद उनका आवेदन स्वीकार किया गया। इससे ये जरूर हुआ कि कमला जी के बाद वाली पीढ़ी की लड़कियों के लिए विज्ञान की दुनिया में जाने का रास्ता भी खुल गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) - जिसे आम तौर पर 'इसरो' के नाम से जाना जाता है, जैसी संस्था में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत प्रभा तोमर और उनके जैसी प्रतिभाएं वैज्ञानिक बनने के लिये उत्साहित बच्चियों में उम्मीद जगाती हैं। 

इसरो के भोपाल केंद्र में वैज्ञानिक-इंजीनियर के पद पर कार्यरत प्रभा जी का जन्म 2 नवम्बर को इंदौर में हुआ। उनके पिता मनोहर सिंह तोमर व्यवसायी थे और माँ रामवती एक गृहणी। चूंकि प्रभा जी का कोई मामा नहीं था, इसलिए नाना-नानी की ज़िम्मेदारी भी उनके पिता पर ही थी। नाना लाख की चूड़ियाँ बनाते थे, जब नाना-नानी को सहारे की जरुरत पड़ी तो प्रभा जी के पिता ने नौकरी छोड़कर उनका कारोबार संभाल लिया।
प्रभा जी के घर का वातावरण बहुत ही अनुशासित था। माँ पढ़ाई-लिखाई को बहुत ही महत्व देती थीं। बहनों में तीसरे स्थान पर रहीं प्रभा जी कहती हैं - हम चारों बहनें पढ़ने-लिखने में हमेशा से अच्छी रही हैं। माता-पिता दोनों की यही कोशिश रहती कि बच्चियों का ध्यान पढ़ाई से इधर उधर न भटके। इसलिए हमारे घर में टीवी तक नहीं था।”

स्कूल जाना, घर आकर होमवर्क करना और फिर पिता जी की दुकान पर उनकी मदद करना- यही रोज़ का सिलसिला था। उनके पिता ने स्नातक के दौरान फाइन आर्ट की भी पढ़ाई की थी और माँ भी कलात्मक रूचि रखती थीं। इसलिए दोनों मिलकर चूड़ियों के डिजाईन पर तरह-तरह के प्रयोग करते थे। कभी-कभी कारीगर छुट्टी पर हो या काम ज्यादा हो तो चूड़ियों पर नग बैठाने का काम वे स्वयं भी करती थीं।

प्रभा जी के स्कूल की शिक्षिकाएं कभी-कभी खरीदारी करने दुकान पहुँच जातीं और वहाँ उन्हें काम करते देख हैरान होतीं। लेकिन फिर कक्षा में प्रभा की मिसाल भी दी जाती कि देखो काम करने के साथ-साथ पढ़ाई करती हैं और हमेशा अव्वल आती है।

प्रभा जी की प्रारंभिक शिक्षा शासकीय बाल मंदिर, इंदौर से हुई, उसके बाद श्री केबीपी गुजराती कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल, इंदौर से उन्होंने वर्ष 1993 में हायर सेकेंडरी पास किया। सभी कक्षाओं में अव्वल आने का श्रेय वे अपने परिवार को देती हैं। स्कूल के दिनों की एक घटना साझा करते हुए वे बताती हैं, “मैं सातवीं कक्षा में थी उस समय, वार्षिक परीक्षा का समय था और मेरी फेयर कॉपी गुम हो गयी थी। जब पाठ दोहराने का समय आया तो मेरे पास मेरी कॉपी ही नहीं थी। परीक्षा से एक दिन पहले नई नोटबुक लेकर आई और सारे गणित के सवाल एक दिन में हल कर लिये।”  

ऐसा भी नहीं कि प्रभा जी पढ़ाई के अलावा कुछ और नहीं करती थी। हैरानी की बात है कि पढ़ाई, दुकान में पिता का हाथ बँटाने के अलावा वे स्कूल की सभी प्रतियोगिताओ में  भी बड़े उत्साह से भाग लेती थीं और पुरस्कार भी जीतती थीं। वे एक बहुत अच्छी वक्ता थीं लिहाजा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हमेशा बाजी मार ले जातीं। इसके अलावा वे क्लास मॉनिटर भी थीं। अक्सर ऐसा होता कि शिक्षक के पढ़ाने से पहले ही गणित के सवाल वे हल कर लिया करती थीं। इसलिए बोर्ड पर सवाल हल करके बताने के लिए उन्हें ही कहा जाता। इसी तरह रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला में भी वे सभी छात्राओं को प्रयोग करके बताती थीं। इस तरह की घटनाएं या अवसर उन्हें और भी ज्यादा पढ़ने के लिए उत्प्रेरित करती थीं।  

यह वह दौर था जब समाज में जल्दी ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी और उसके बाद पढ़ने का उन्हें मौक़ा ही नहीं मिलता था। ऐसे समय में प्रभा जी ने सिर्फ अपने करियर बनाने के लक्ष्य को महत्व दिया। गणित में गहरी रुचि रखने वाली प्रभा जी को उज्जैन के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिला। प्रभा जी बताती हैं कि कॉलेज में पढ़ाई का स्तर बहुत ही अच्छा था, फिर भी उनके साथ के बच्चे सिनेमा देखने या घूमने-फिरने निकल ही जाते। मेस में भी टीवी लगा हुआ था, तो छात्र-छात्राएं धारावाहिक देखते हुए खाना खाते, लेकिन कभी भी उस तरफ उनका ध्यान नहीं गया। इसके पीछे कारण यह था कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए समर्पित अपने माता-पिता के त्याग और समर्पण को देखा था। बीई के सभी सेमेस्टर में प्रभा जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होता था। उन्होंने एम. टेक. के लिए गेट (GATE)  की परीक्षा में भी 96.46 परसेंटाइल हासिल किये। इस वक़्त तक वे इसरो में नौकरी के लिए अर्जी दे चुकी थीं ।

प्रभा जी कहती हैं, “नौकरी के लिए मैंने 3 जगह परीक्षा दी थी और तीनों ही जगह चुनी गयी। इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, त्रिवेंद्रम (Vikram Sarabhai Space Centre, Trivandrum) में भी प्रभा जी ने आवेदन किया था। बीटेक के परसेंटेज के आधार पर उन्हें सीधे साक्षात्कार के लिए बुलावा आ गया। उस साक्षात्कार के कुछ सवाल उन्हें आज भी याद हैं। वे कहती हैं, “नौकरी के लिये वह मेरा अंतिम और सर्वश्रेष्ठ साक्षात्कार था।” दो महीने के भीतर ही प्रभा जी को नौकरी के लिये प्रस्ताव पत्र मिल गया। उन्हें पदभार ग्रहण कराने के लिए पिता जी तथा उनके जीजा उनके साथ गये थे। पिता जी ने कारोबार माँ के हवाले कर बेटी के साथ त्रिवेंद्रम रहना तय किया। प्रभा जी के अनुसार उत्तर भारत से इसरो, त्रिवेंद्रम तक पहुँचने वाली उस समय की वे पहली लड़की थीं। 

जून 1999 से लेकर जुलाई 2002 तक उन्होंने वहाँ काम किया। इस बीच उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अपने विभाग में आवेदन कर दिया। उनकी वरिष्ठ अधिकारी एक महिला ही थीं और वे अपने अधीन काम करने वालों के प्रति बहुत ही संवेदनशील थीं। इसरो वैसे भी उच्च शिक्षा के लिए अपने लोगों को प्रोत्साहित करता है। इसलिए प्रभा जी को एम.टेक करने की अनुमति मिल गयी। इधर प्रभा जी के समान ही प्रतिभाशाली उनकी छोटी बहन भावना ने भी 99.81 परसेंटाइल से गेट की परीक्षा पास कर ली। मुंबई आईआईटी में परीक्षा और साक्षात्कार के बाद दोनों बहनों का एक साथ चयन हुआ। हॉस्टल में दोनों को एक-एक कमरा मिला। लेकिन दोनों एक ही कमरे में रहतीं और दूसरे का इस्तेमाल अपनी कम्प्यूटर लैब के तौर पर करतीं। दोनों बहनों के परस्पर प्रेम की मिसाल ये है कि भावना जी - जो एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में प्रोग्राम मैनेजर हैं, ने एक किताब लिखी है और उसे प्रभा जी को समर्पित किया है। 

प्रभा जी की पढ़ाई का खर्च उनका विभाग वेतन सहित वहन कर रहा था जबकि उनकी बहन को टीसीएस से छात्रवृत्ति मिली थी। अब दोनों बहनें साथ पढ़तीं, लैब में प्रक्टिकल करतीं और एक साथ एक दूसरे के प्रोजेक्ट में मदद करतीं, तो उन्हें दोस्ती के लिए किसी और की कभी ज़रुरत ही नहीं पड़ी। दोनों को एक दूसरे का साथ निभाने का अद्भुत मौका मिला। वर्ष 2004 में इसरो का उपग्रह नियंत्रण केंद्र (satellite control center) भोपाल में बन रहा था, तो प्रभा जी ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया। एम.टेक करने के बाद उनका तबादला मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी, हासन में हो गया जहाँ उन्होंने कुछ महीने काम किया, फिर अप्रैल 2005 में मुख्य नियंत्रण सुविधा-इसरो, भोपाल में उनकी पोस्टिंग हो गयी। 

इसरो के वैज्ञानिकों में शामिल होना अपने आप में एक बड़ी बात है। हालांकि गोपनीयता के कड़े नियमों के कारण काम की जानकारी साझा नहीं की जा सकती। प्रभा जी ने इतना ही बताया कि वे मैनेजर, मिशन कम्प्यूटर के पद पर काम कर रही हैं। वे कहती हैं, रॉकेट से अलग होने के तुरंत बाद सैटेलाइट की देखभाल करना एमसीएफ़ की जिम्मेदारी है। वे और उनके साथी एक नवजात शिशु की तरह उपग्रह की निगरानी और नियंत्रण करते हैं। एक उपग्रह पृथ्वी से 36 हज़ार कि.मी. की दूरी पर स्थापित रहता है, उससे प्राप्त डेटा के आधार पर उसका नियंत्रण किया जाता है। यह काम 365 दिन और 24 चौबीस घंटे अलग-अलग पालियों में चलता रहता है। कोई भी दिक्कत आने पर ही कुछ ही मिनटों के भीतर उसे हल करना पड़ता है। 

प्रभा जी के कई शोध पत्र अंतर्केंद्रीय हिन्दी संगोष्ठी में चयनित हुए और सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र के सम्मान से नवाजे गये। इसरो में पच्चीस वर्ष का कार्यकाल पूरा करने पर उन्हें ‘आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट अवार्ड’ भी प्रदान किया गया। 

सन्दर्भ स्रोत : सारिका ठाकुर से प्रभा तोमर की बातचीत पर आधारित 

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