छाया :स्पोर्ट्स स्टार
अपने क्षेत्र की पहली महिला
• वंदना दवे
• अंग्रेजी की इस प्रोफ़ेसर को क्रिकेट से था प्यार
• इंदौर में वर्ष 1977 में खेले गए क्रिकेट मैच में सबसे पहली बार की थी कमेंट्री
• इंदौर में महिला क्रिकेट की इन्होंने ही करवाई शुरुआत
कई बार महिलाएं चुपचाप दबे पांव ऐसी जगह दस्तक दे देती हैं, जहां पहले कोई और महिला न गई हो। ऐसी ही एक शख्सियत रही हैं चंद्रा नायडू, जिनका नाम हिन्दी में क्रिकेट कमेंट्री करने के लिए मशहूर है। ये घटना लगभग पैंतालीस बरस पुरानी है जब किसी महिला ने आधिकारिक क्रिकेट में कमेंट्री की। उन्होंने नेशनल चैम्पियंस बॉम्बे और एमसीसी की टीमों के बीच इंदौर में वर्ष 1977 में खेले गए क्रिकेट मैच में पहली बार कमेंट्री की थी। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय और घरेलू क्रिकेट में उनकी आवाज में आंखों देखा हाल रेडियो पर सुनाई देता था। दक्षिण भारतीय परिवार में जन्मी और अंग्रेज़ी की प्रोफ़ेसर होने के बावजूद हिन्दी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
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इंदौर में महिला क्रिकेट की शुरुआत करने का श्रेय भी चंद्रा नायडू को जाता है। सन 1950 में जब वे होलकर कॉलेज में पढ़ती थीं, तब उन्होंने लड़कियों को बैट और बाॅल के जरिए खेल की अहमियत बताई। चूंकि उनके पिता कर्नल सीके नायडू अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के बेहतरीन खिलाड़ी थे, तो स्वाभाविक रूप से क्रिकेट उनके खून में शामिल था। इस खेल के हर पहलू से वे अच्छी तरह वाक़िफ़ थीं। इस तरह 50 और 60 के दशक में उन्होंने इन्दौर की लड़कियों को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया। इन लड़कियों के अभिभावकों को खेल के लिए पुरुषों जैसी पोशाक पहनने पर एतराज़ था, लिहाजा चंद्र जी ने उन लड़कियों को सफेद सलवार सूट में ग्लव्स और पैड बांधकर मैदान में उतारा।
चंद्रा जी का जन्म 5 सितंबर 1934 को इंदौर में ही हुआ था, उनकी मां का नाम गुणवती था। उनकी बहन के पुत्र विजय नायडू – जो स्वयं भी क्रिकेटर रहे हैं, के अनुसार चंद्रा नायडू के दो भाई और पांच बहनें थीं। भाइयों में सीएन बाबजी नायडू होलकर स्टेट और मध्यप्रदेश की तरफ से क्रिकेट खेलने के साथ स्टेट बिलियर्ड्स और स्नूकर चैम्पियन थे।छोटे भाई सी प्रकाश नायडू मप्र में आईपीएस अधिकारी रहे हैं। राष्ट्रपति पदक प्राप्त प्रकाश नायडू जूनियर टेबल टेनिस के राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय चैंपियन थे साथ ही एफ सी क्रिकेट में मध्यप्रदेश की तरफ से खेलते हुए अपने पहले मैच में 50 रन बनाने वाले प्रथम खिलाड़ी भी रहे हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा लिखते हैं कि 1950-60 के दौर में इंदौर की सड़कों पर गिनी चुनी महिलाएं ही कार दौड़ाती नजर आती थीं। उनमें चंद्रा नायडू इसलिए भी शहर में पहचानी जाती थीं कि अपने पिता के स्वस्थ रहने तक वे ही हर कार्यक्रम में उनके साथ रहती थीं। उनकी दिनचर्या से लेकर किससे मिलेंगे, कब, कहां जाएंगे, सब कुछ वे ही तय करती थीं। कर्नल नायडू भी इसीलिए अन्य बच्चों की अपेक्षा चंद्रा जी को अधिक स्नेह करते थे। उनका क्रिकेट भी उनके बाकी बच्चों की अपेक्षा चंद्रा जी ने ही अपनाया। वरिष्ठ खेल पत्रकार और कमेंटेटर सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी बताते हैं कि चंद्रा जी इन्दौर आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज और ओल्ड जीडीसी में अंग्रेजी की प्रोफ़ेसर थीं, लेकिन क्रिकेट के प्रति खासी आकर्षित रहती थीं। उनकी कमेंट्री सुनकर कहा जा सकता था कि उनमें क्रिकेट की बहुत बेहतरीन समझ थी।
वे क्रिकेट की गरिमा, रोमांच और उसके सौन्दर्य से भली भांति परिचित थीं। चतुर्वेदी जी कहते हैं कि मेरा सौभाग्य है कि मैंने उनके साथ ग्वालियर में रणजी ट्रॉफी और सिंधिया ट्रॉफी में साथ साथ आंखों देखा हाल सुनाया। चंद्रा जी बातचीत में अक्सर कर्नल नायडू की समझाइश का ज़िक्र करतीं कि स्वाभिमानी बनो, आक्रामक बनो, हार मत मानो, आखिरी दम तक डटे रहो। अपने पिता की ये गरिमामय खूबियां चंद्रा जी में थी। ग्वालियर में 1984-85 के दौरान कपिल देव आए तो उन्होंने मुझसे कहा कि आगे होकर उनसे मिलो और इंटरव्यू करो, जबकि मैं संकोच कर रहा था। चंद्रा जी ने उनसे मेरा परिचय करवाया और मैंने उनका इंटरव्यू लिया। इसी प्रकार उन्होंने नवाब पटौदी, सलीम दुर्रानी, चेतन शर्मा के इंटरव्यू लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
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मप्र क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अभिलाष खांडेकर कहते हैं कि चंद्रा जी क्रिकेट के हलकों में बहुत लोकप्रिय थी। एक खेल पत्रकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों में, मैं उनसे कई बार मिला था और खेल पर चर्चा की थी। मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि 1975 में जब बहुत कम महिला क्रिकेट होता था, वह डेली कॉलेज में आयोजित रानी झांसी महिला क्रिकेट टूर्नामेंट की कमेंटेटर थीं। चंद्रा नायडू ने महिला क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने के लिए ठोस काम किये। मप्र में उन्होंने 1971 में वार्षिक अंतर-विश्वविद्यालय क्रिकेट टूर्नामेंट शुरू किये। महिला खिलाड़ियों में विश्वास बनाए रखने के लिए वे स्वयं उपस्थित रहती थी और खेल का आंखों देखा हाल ही बताती थीं।
अपने पिता से प्राकृतिक रूप से प्राप्त खिलाड़ी कद काठी और आत्मविश्वास से भरी हुई चंद्रा नायडू ने इंदौर की लड़कियों और महिलाओं को प्रगतिशीलता के असली मायने बताए। उन्हें देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि पढ़ाई के साथ खेलकूद, व्यक्तित्व निर्माण में अहम योगदान देता है। नब्बे के दशक में एक बार मेरा उनसे मिलना हुआ था। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था फैशन कपड़ों से नहीं ,बल्कि आपकी सोच और व्यवहार से ज़ाहिर होना चाहिए। वे लड़कियों को सौंदर्य प्रसाधनों के मकड़जाल से बाहर निकालना चाहती थी।
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इंदौर में उनकी छात्रा रही और वर्तमान में भोपाल के शासकीय कालेज में भूगोल की प्रोफ़ेसर डॉ अल्पना त्रिवेदी कहती हैं कि बेहद सौम्य लेकिन पढ़ाई के लिए अनुशासित नायडू मैडम लड़कियों के खेलने पर विशेष जोर देती थी। उनकी कोशिश रहती थी कि खेल का पीरियड अवश्य हो और उस पीरियड को खाली पीरियड समझकर यूं ही नहीं बिता दिया जाए बल्कि यह सुनिश्चित किया जाए कि लड़कियां अनिवार्य रूप से उसमें हिस्सा लें। इसके अलावा उनका इस बात पर भी बल रहता था कि कोर्स के अलावा लड़कियां अन्य पुस्तकें भी पढ़ें। उनका मानना था कि मानसिक जकड़नों से मुक्ति अलग अलग विषयों की किताबों को पढ़ने से ही संभव है। उस वक़्त इन्दौर में स्कूटर तक चलन में कम थे और वो भी केवल पुरुष ही चलाते थे, ऐसे में उनका कार चलाना हम लड़कियों में साहस और गौरव का अनुभव देता था।
जीडीसी, मोती तबेला में जब चंद्रा नायडू अंग्रेजी की प्रोफ़ेसर थीं तब श्री अशोक कुमट राजनीति शास्त्र के जूनियर प्रोफेसर थे। बाद में जब श्री कुमट दैनिक भास्कर के खेल संपादक बने, तब चंद्र जी अक्सर उनके दफ़्तर आ जातीं। उनकी महीन और मीठी आवाज़ सुनकर, उनका मुस्कुराता चेहरा देखकर व्यक्ति विनम्रता से भर जाता था। मृदुभाषी चंद्रा जी माहौल में मिठास भर देती थीं। कमेंटेटर-पद्मश्री सुशील दोषी कहते हैं कि मेरी कमेंट्री को लेकर चंद्रा जी मुझे प्रोत्साहित करती थी। 1977-78 में कमेंट्री के लिए जब पहली बार ऑस्ट्रेलिया गया तो उन्होंने मेरे मनोबल को बढ़ाने के लिए एक पत्र लिखकर दिया। मुझे उनके साथ रणजी ट्रॉफी में कमेंट्री करने के अनेक अवसर प्राप्त हुए। हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने कमेंट्री करना छोड़ दिया।
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चंद्रा जी ने अपने पिता पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिसका शीर्षक है – ‘अ डॉटर रिमेम्बर्स’। इस किताब में उन्होंने बताया है कि वे अपने पिता से काफी डरती थीं, लेकिन उन्हें गर्व है कि वो एक महान के क्रिकेटर की बेटी है। वे कहती थी कि जब पिता क्रिकेट के पहले कप्तान थे, तो उनकी बेटी को भी क्रिकेट में कुछ ऐसा ही करना था इसलिए मैं पहली क्रिकेट कमेंटेटर बनी। इंग्लैंड के प्रसिद्ध कमेंटेटर और खेल समीक्षक हेनरी ब्लोफेल्ड ने उनके लिए किसी खेल पत्रिका में लिखा था कि सीके की खूबसूरत बेटी भारत की पहली कमेंटेटर है। चंद्रा जी, 1982 में लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान पर भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए स्वर्ण जयंती टेस्ट मैच की गवाह बनीं। वहां उन्होंने लॉर्ड्स पवेलियन – जिसे लाॅंग रूम भी कहा जाता है, में एक कार्यक्रम को संबोधित भी किया था। यह हर भारतीय के लिए गौरव की बात थी, क्योंकि इसके पूर्व किसी महिला को वहां प्रवेश नहीं मिला था।
भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान कर्नल सीके नायडू यूं तो नागपुर के थे, लेकिन उनकी शारीरिक बनावट एथलीट की तरह मजबूत थी। इसी कद-काठी के कारण होलकर राजवंश ने उन्हें अपनी सेना का कैप्टन बनाया था और कर्नल की उपाधि दी थी। इसी कारण उन्हें क्रिकेट की दुनिया में भी कर्नल सी के नायडू संबोधित किया जाता था। सी के नायडू जब इंदौर आए तो यहीं के होकर रह गये। चंद्रा नायडू भी आख़िरी सांस तक इंदौर में रहीं। लम्बी बीमारी के बाद 4 अप्रैल 2021 को 88 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया।
संदर्भ स्रोत : विभिन्न समाचार पत्र तथा श्री विजय नायडू से श्रीमती वंदना दवे की बातचीत
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