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अपने क्षेत्र की पहली महिला
· ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए जीवनपर्यंत करतीं रहीं काम
· राज्य सभा में बनीं प्रदेश की पहली सदस्य
· अपनी जायदाद जनकल्याण हेतु सरकार को कर दी दान
12 अप्रैल 1901 को रत्नागिरी (महाराष्ट्र) में जन्मी सीता परमानन्द (seeta-parmanand) एक विदुषी महिला थीं। उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा इंडियन गर्ल्स स्कूल, पुणे से उत्तीर्ण की, फिर एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से उच्च शिक्षा हासिल की। ऑक्सफोर्ड वि.वि. लंदन (Oxford University, London) से उन्होंने बार एट लॉ की उपाधि हासिल की। उनका विवाह छिंदवाड़ा में पदस्थ भारतीय नागर सेवा (आई.सी.एस.) के अधिकारी श्री परमानन्द के साथ हुआ और 1952 में वे राज्य सभा की सदस्य चुनी गईं। उनका पहला कार्यकाल 1958 और दूसरा 1964 तक रहा। वे महिलाओं और बच्चों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान के लिए जीवन पर्यन्त काम करती रहीं। श्रीमती परमानन्द सीपी एण्ड बरार में ऑल इण्डिया वुमन काउन्सिल की अध्यक्ष रहीं (President, All India Women's Council in CP & Berar) । इसके अलावा कई अन्य सामाजिक संस्थाओं से भी वे संबद्ध थी। नागपुर विश्वविद्यालय कोर्ट (Nagpur University Court) तथा अकादमिक कौंसिल की वह कार्यकारी सदस्य रहीं। सन् 1929 से 1944 तक वे इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज दिल्ली की प्राचार्य और सन् 1945 से 47 तक दिल्ली विश्वविद्यालय की कुल परिषद की सदस्य रहीं। श्रीमती परमानन्द महिला राष्ट्रीय परिषद की भी सदस्य रहीं । राष्ट्रीय महिला परिषद की सदस्य के रुप में उन्होंने सन् 1926 में लंदन में आयोजित पहले महिला राष्ट्रमंडल सम्मेलन (Women's Commonwealth Conference) में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1937 में उन्होंने लंदन में आयोजित राज्याभिषेक में भी भाग लिया। मध्यप्रदेश की महिलाओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से उन्होंने कई देशों में महिलाओं की शिक्षण संस्थानों को देखा और अध्ययन किया। सामाजिक रूप से हमेशा सक्रिय रहने वाली श्रीमती परमानन्द मध्यप्रदेश की सभी प्रमुख सामाजिक संस्थाओं की सदस्य रहीं। उन्होंने प्राचीन भारत की महिलाओं पर केंद्रित शोध पुस्तक लिखकर बौद्धिक सक्रियता भी दर्शाई। पुस्तक में उन्होंने धर्मशास्त्रों में महिलाओं की भागीदारी, महाकाव्य रामायण, महाभारत में महिला पात्रों के प्रतिनिधित्व पर रोशनी डाली। ग्रामीण एवं शहरी कल्याण, कुटीर उद्योग, महिलाओं, सामाजिक शिक्षा की कानूनी स्थिति और राष्ट्र कल्याण के हर पहलू में उनकी दिलचस्पी थी। पढ़ने और बाग़वानी में भी वे विशेष रुचि लेती थीं। श्रीमती परमानन्द की दिलचस्पी बैंडमिंटन, टेनिस और ताश खेलने में भी थी। अमेरिका, इंग्लैण्ड के अलावा उन्होंने सन् 1937-38 में पूरे विश्व का भ्रमण किया। 23 जनवरी 1980 को श्रीमती परमानन्द का देहावसान हो गया। नि:संतान परमानन्द दंपत्ति ने अपनी सारी संपत्ति जन कल्याण के लिए सरकार को दान कर दी थी।
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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