खुद को आजमाने की ज़िद का नाम है कनीज़ ज़ेहरा रज़ावी

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खुद को आजमाने की ज़िद का नाम है कनीज़ ज़ेहरा रज़ावी

छाया : कनीज़ ज़ेहरा रज़ावी के फेसबुक अकाउंट से 

• सारिका ठाकुर

कुछ लोगों की जीवन यात्रा उबड़ खाबड़ रास्तों से होकर गुजरती है, कभी-कभी सभी रास्ते बंद होने पर नये विकल्पों की भी तलाश उन्हें करनी पड़ी, लेकिन कनीज़ ज़ेहरा रज़ावी ऐसी हस्ती हैं जिनके लिए जिन्दगी के सफ़र का अर्थ धरती से लेकर सूरज तक की दूरी मापना या चारों दिशाओं की परिक्रमा करने जैसा रहा। गणित और विज्ञान उनका पसंदीदा विषय रहा लेकिन भाषा पर भी ज़बर्दस्त पकड़ रखती हैं, हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू-इन तीन भाषाओँ में वे अपना दखल रखती हैं। उम्र के अलग अलग पड़ावों अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ने का अवसर मिला, नयी चीजों को सीखते हुए कनीज़ ने सभी ज़िम्मेदारियों को शिद्दत से निभाया।

जेहरा पहले अनुपम खन्ना के नाम से जानी जाती थीं, उनके पिता श्री सुखदेव खन्ना केंद्रीय पर्यटन विभाग, भारत सरकार के पहले महानिदेशक थे। उनकी माता जी श्रीमती इंदिरा परमानन्द खन्ना सुशिक्षित महिला थीं और समाज सेवा से जुड़ीं विभिन्न गतिविधियों से जुड़ी हुई थीं। जेहरा उर्फ़ अनुपम जी का जन्म 1 सितम्बर 1954 में नई दिल्ली में हुआ। दो भाइयों के बीच वे इकलौती बहन थीं। माता-पिता सुशिक्षित और प्रगतिशील विचारधारा के थे इसलिए परिवार में पुत्र-पुत्री में भेदभाव जैसा वातावरण नहीं था बल्कि इकलौती पुत्री होने की वजह से उन्हें माता-पिता एवं भाइयों का प्यार-दुलार भी खूब मिला।

उनकी प्राथमिक शिक्षा एलिजाबेथ गौबा प्रिपरेटरी स्कूल से हुई जो वर्तमान में शिव निकेतन विद्यालय के नाम से जाना जाता है। जब वे 4 वर्ष की थीं तभी उनके पिताजी का तबादला हो गया और वे परिवार सहित अमेरिका आ गये। अनुपम जी की 8वीं तक की शिक्षा वहीं हुई। उनकी माताजी उस समय न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित न्यू स्कूल में व्याख्यान देने जाती थीं। यह बच्चों के लिए नहीं बल्कि बड़ों का विद्यालय था जहाँ व्याख्यान देने के लिए उनकी माता जी को आमंत्रित किया जाता था। इसके अलावा वे ‘वीमेन अराउंड द वर्ल्ड’ नामक संस्था से भी जुडी थीं।  इस तरह उनके व्यक्तित्व का नींव अमेरिका में तैयार हुई। वे कहती हैं, “उस समय अमेरिका में अलग हालात थे, भारत के लिए वहाँ के लोगों के मन में इज्ज़त थी, हमें भी अपने भारतीय होने पर गर्व होता था।"

वर्ष 1966 में उनका परिवार दिल्ली आ गया। हालाँकि पढ़ाई की वजह से उनके सबसे बड़े भाई अमेरिका में ही रह गये। दिल्ली में उनका दाखिला अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल में हुआ, उनकी 12वीं तक की शिक्षा वहीँ से हुई। इस स्कूल में ज़्यादातर राजदूतों के बच्चे पढ़ते थे। इस विद्यालय में पाठ्यक्रम भी अमेरिका का ही अपनाया गया था। बारहवीं तक इस विद्यालय में उन्हें मार्क्स सहित बड़े-बड़े सामाजिक विचारकों को पढ़ने का अवसर मिला। इस तरह शिक्षा और माता-पिता की परवरिश की वजह से भारतीय समाज को लेकर उनके भीतर एक सुन्दर छवि वाली तस्वीर विकसित हुई। वे कहती हैं, “ हम टीवी से चिपकने वाले बच्चे नहीं थे, घर में पढ़ने के लिए ढेर सारी किताबें और पत्रिकाएँ थीं, दूसरी तरफ स्कूल में भी पढ़ाने की शैली ऐसी थी जिसमें ‘रटने’ के लिए कोई जगह नहीं थी। वहाँ जो भी पढ़ा या जो भी सीखा वह आज भी हमारे साथ है।

1971 में 12 करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में स्नातक की उपाधि के लिए उनका दाखिला हुआ। महाविद्यालय की गतिविधियों में भी वे बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थीं, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी आदि में वे हमेशा आगे रहतीं। 1971 में वे मिस मिरांडा रनर अप भी रहीं, 1974 में उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल कर ली। 1973 में वे एक सामाजिक संस्था ‘मोबाइल क्रेसिस’ से जुड़ गयी थीं। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात सुधीर टंडन से हुई जो दूरदर्शन में कार्यरत थे। वे अनुपम जी से लगभग साढ़े नौ साल बड़े थे लेकिन दोनों में धीरे-धीरे दोस्ती हो गयी और 14 नवम्बर 1975 में दोनों ने शादी कर ली। इस शादी की वजह से अनुपम जी का परिचय वास्तविकता से हुआ। उनकी परवरिश बिलकुल अलग माहौल में हुई थी, फिर उन्होंने निर्जला व्रत से लेकर उन सभी नियमों और तौर-तरीकों को अपनाया जिसकी अपेक्षा परम्परावादी हिन्दू परिवार की बहुओं से की जाती है लेकिन वह शादी नहीं चली और 1979 में अनुपम वापस अपने पिता के घर आ गयीं।’

अनुपम जी ने अपने करियर की शुरुआत अपने प्रिय स्कूल से ही की। उन्होंने वर्ष 1972 और 73 में समर डे कैम्प के लिए  ‘अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल’ में बतौर गेम्स रूम कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया। इसके बाद छह महीने के लिए एक निजी स्कूल में बतौर ‘ड्रामा इन्सट्रक्टर भी काम किया। यह उनके लिए ‘खुद की तलाश’ जैसा दौर था जिसमें वे अलग-अलग क्षेत्रों में अपने हुनर को आजमा रही थीं। इसी क्रम में उन्होंने मरक्यूरी ट्रेवेल्स और कॉक्स एंड किंग्स जैसी कंपनियों में भी काम किया। ट्रेवल कंपनियों से करियर की राह मुड़कर वास्तु के क्षेत्र में जा पहुँची और राकेश सैनी एंड एसोसिएट्स कंपनी में एग्जक्यूटिव के पद पर काम करने लगीं। यहाँ उन्होंने 6-7 महीने काम किया। मार्च 1982 में एक बार फिर नये क्षेत्र से जुड़ीं और प्रोडक्शन हाउस टीवीएएनएफ(टेलीविजन न्यूज़ फीचर्स) के लिए फ़िल्में बनाने लगीं।

वर्ष 1982 के अक्टूबर महीने में उनके पिता का देहांत हो गया। वर्ष 1983 में  नौकरी के दौरान उनकी मुलाक़ात सैय्यद क़रार हैदर रज़ावी से हुई, जल्द ही दोनों दोस्त बन गये। यहाँ तक कि अनुपम जी की माँ भी रज़ावी साहब से प्रभावित थीं और उन्हीं के प्रयास से 16 अप्रैल 1984 में दोनों की शादी हो गयी। शादी के बाद अनुपम, कनीज़ जेहरा रज़ावी कहलायीं। दोस्तों में वे कनीज़ के नाम से ही जानी जाती हैं। इसके बाद काम के सिलसिले में दोनों एक साल आसाम में रहे फिर श्री रज़ावी - जिनके घर का नाम इफ्तख़ार था, एक नई नौकरी के सिलसिले में भोपाल आ गये। इधर कनीज़ भी खुद को नये-नये क्षेत्रों में आजमा रही थीं। भोपाल आने के बाद 986 में वे पर्यटन विकास निगम, भोपाल में साल भर के लिए डिप्टी जनरल मैनेजर के तौर पर कार्यरत रहीं। इस तरह उनकी ज़िन्दगी का तार मध्यप्रदेश से जुड़ गया।

कुछ समय बाद वर्ष 1988 नेब उन्होंने भोपाल में स्टेट बैंक की मदद से अपनी स्क्रीन प्रिंटिंग इकाई निसा इंटरप्राइजेज (NISAA Interprises) शुरू की और 2005    तक इसका सफलतापूर्वक संचालन किया। इस दौरान भी वे अलग-अलग तरह के कामों से जुड़ीं रहीं, जैसे - इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ ब्रिटेनिका की वेबसाईट समीक्षक के तौर पर काम किया, भोपाल स्थित क्रिस्प (सेंटर फॉर रिसर्च एंड इंडस्ट्रियल स्टाफ़ परफॉरमेंस) में अंग्रेज़ी, अमरीकी और कॉर्पोरेट संस्कृति की प्रशिक्षक के तौर पर काम किया, ऑल सेंट्स स्कूल, भोपाल में प्रशासनिक अधिकारी और अंग्रेज़ी शिक्षिका के तौर पर काम किया।

2005 में वे नोएडा स्थित प्रकाशक ‘इन्डियन प्रिंटर एंड पब्लिशर’ से जुड़ीं और वहाँ 2009 तक काम किया। भाषा के प्रति उनकी रुचि ने करियर में भी उनका साथ दिया और लम्बे समय तक अलग-अलग प्रकाशकों के साथ उन्होंने काम किया। इस दौरान भोपाल स्थित मंजुल पब्लिकेशन और आदर्श प्रा. लिमिटेड से जुड़कर स्वतंत्र रूप से काम किया। विभिन्न अनुबंधों पर आधारित दायित्वों के तहत शुरुआत में उन्होंने कॉपी एडिटर के तौर काम किया और उसके बाद सीनियर एडिटर बनीं। इन दोनों प्रकाशनों से वे आज भी जुड़ीं हुई हैं और स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं।

उल्लेखनीय सम्पादित पुस्तकें :

• Everyday Psychology : Dr Vinay Mishra

• Touched by Cancer :  Dr Preeti Mishra

• Sopanathatvam : Sulini Nair

• Everyman Guide to imports and exports [ as Anupam ]  Dr SP Chablani [Late Dr Chablani was the joint chief controller of Imports and Exports GOI Min of C ommerce

GraceTrilogy by Ellie Atkinson, Australia

Also as Editor of

• Fiction and Poetry of Poets Choice and Free Spirit Local Office Mumbai

• Crossing Over Geetanjali Mehta

संदर्भ स्रोत :  कनीज़ ज़ेहरा रज़ावी से  सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित 

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