मोहिनी मोघे : जिनके सुझाव पर मध्यप्रदेश

blog-img

मोहिनी मोघे : जिनके सुझाव पर मध्यप्रदेश
के हर संभाग में स्थापित हुए बाल भवन 

छाया : मोहिनी मोघे के फेसबुक अकाउंट से 

• सारिका ठाकुर

हिंदुस्तान का प्रत्येक संगीत घराना वह उपजाऊ भूमि है जहाँ कला पनपती, उपजती है और कलाकारों की पीढ़ियाँ तैयार करती है। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना मोहिनी मोघे (mohini moghe poonchwale) का जन्म भी ऐसी ही के उपजाऊ भूमि में हुआ। उनके दादा श्री राजा भैया  पुंछवाले संगीत के पुंछ घराने से ताल्लुक रखते थे। वे शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकार थे। उन्होंने भातखंडे जी के बंदिशों को एकत्र कर उसका एक दस्तावेज तैयार करवाया जो आज भी संगीत का प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है। उन्होंने ही सन् 1919 में ग्वालियर में माधव संगीत महाविद्यालय की स्थापना करवाई थी। मोहिनी जी के पिता पं. बालासाहेब पुंछवाले भी पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए शास्त्रीय गायक के रूप में स्थापित हुए। उन्होंने कई वर्षों तक प्राचार्य के रूप में महाविद्यालय की जिम्मेदारी संभाली।मोहिनी जी की माँ श्रीमती सुशीला पुंछवाले भी कलाकार थीं, हालाँकि उनका नाता संगीत से नहीं रहा। वे चित्रकार थीं। उन्होंने फड़के स्टूडियो, धार से चित्रकारी की शिक्षा ली। लैंडस्केप के चित्रण में उन्हें महारत हासिल था लेकिन घर गृहस्थी में उनकी कला को विस्तार लेने का अवसर नहीं मिल सका।

पांच बहनों में मोहिनी जी सबसे छोटी हैं। उनकी एक बहन बचपन में ही चल बसी। बाकी सभी बहनें संगीत सीखती थीं लेकिन मोहिनी जी ने खुद के लिए नृत्य चुना। कारण बताते हुए वे कहती हैं, “संगीतकार परिवार में जन्म लेने का यह अर्थ नहीं कि सभी का गला भी अच्छा हो। हम चारों बहनों में से किसी का गला अच्छा नहीं था, फिर भी मेरी बहनें संगीत सीखने जाती थीं, मैंने सोचा कुछ अलग करना है इसलिए नृत्य क्षेत्र में आ गयी।” उनके जीवन का यह ‘कुछ अलग’ करने के बारे में सोचना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने दूसरी कक्षा से नृत्य सीखने जाना शुरू कर दिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा महारुद्र मिडिल स्कूल, ग्वालियर से हुई। संगीत सीखने के लिए वे भारतीय संगीत महाविद्यालय जाती थीं। वहाँ चार सालों का कोर्स ‘नृत्य विद्’ जो उन्होंने छठवीं तक आते-आते पूरा कर लिया। आगे की नृत्य शिक्षा के लिए ग्यारहवीं करना ज़रूरी था, इसलिए सीखने का सिलसिला कुछ समय के लिए रुक गया। नृत्य ऐसी विधा है जिसमें हर दिन का अभ्यास ज़रुरी होता है। यह सिलसिला भी कुछ दिन के बाद टूटने लगा लेकिन नृत्य को लेकर उनका जुनून कम नहीं हुआ। संयोगवश उनके एक पड़ोसी थे, वे भी कलाकार था, एक स्थान पर एक छोटे से कमरे में उनकी कक्षाएँ चलती थीं। उन्होंने अपने संगीत विद्यालय में नृत्य सिखाने का प्रस्ताव मोहिनी जी को दिया। उस समय उनकी उम्र 10-11 साल थी। दिलचस्प बात यह है कि नृत्य सिखाने वाली गुरु मोहिनी जी की आयु उस समय थी 10-11 वर्ष और उनसे सीखने वाली कई शिष्याएं या तो उनकी हमउम्र होतीं या उनसे बड़ी होतीं। वैसे ये बातें उनके लिए महत्वपूर्ण थीं भी नहीं। वे तो इसी बात से खुश थीं कि उनका नृत्य अभ्यास जारी है।

इन्हें भी पढ़िए ...

लता मुंशी

डॉ. विभा दाधीच

नृत्य गुरु स्व. सविता गोडबोले

ग्यारहवीं करने के बाद आगे क्या करना है इस विषय पर चर्चा चल ही रही थी जब उनके पिता के एक शिष्य ने उस्ताद अलाउद्दीन संगीत अकादमी से छात्रवृत्ति के लिए प्रयास करने का सुझाव दिया। उनके पिता ने इधर-उधर से कुछ पता किया और आवेदन करवा दिया। जब वे साक्षात्कार देने पहुंची पता चला पैनल में देश के शीर्ष दस नर्तक उसमें शामिल हैं, जैसे -पं. बिरजू महाराज, मोहनराव कल्याणपुरकर, रायगढ़ घराने के कार्तिक राम आदि।

उल्लेखनीय है कि किसी भी शास्त्रीय नृत्य में तबले के साथ निरंतर अभ्यास जरुरी होता है। नर्तक के साथ एक तबला वादक ऐसा जरूर होता है जिसके साथ लम्बा अभ्यास रहा हो। मोहिनी जी के साथ वह भी नहीं था। चक्रधर नृत्य केंद्र (chakradhar nritya kendra) के ही तबला वादक के साथ मोहिनी जी ने अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने शुरू में ही कह दिया मैं तो ‘ठेके’ पर ही नृत्य करुँगी, मेरे बोल इन्हें (तबला वादक) नहीं आते होंगे। कई सत्रों के साक्षात्कार के बाद मोहिनी जी का चयन छात्रवृत्ति के लिए हो गया। मोहिनी जी कहती हैं, “कई प्रतिभागी थे, कई बहुत अच्छे भी थे, मेरे चयन के पीछे यह कहा गया कि संगीत घराने से आती है तो निभायेगी भी।” दरअसल उस समय लोग छात्रवृत्ति लेने के बाद कठोर अभ्यास से डरकर या किसी भी कारण से बीच में छोड़ देते थे। छात्रवृत्ति की अवधि पूरी भी कर ली तो बाद में विधा को ही छोड़कर किसी और तरफ मुड़ जाते थे।"

मोहिनी जी कहती हैं, “मुझे बुलाकर कहा गया कि तुम्हारे ऊपर बड़ी जिम्मेदारी डाल रहे हैं। जिस बात के लिए तुम्हें छात्रवृत्ति मिल रही है उसे जीवन भर निभाना है। जीवन भर कत्थक की सेवा करनी है तुम्हें।"  इसके बाद वे ग्वालियर से भोपाल आ गयीं।1984 - 1989 सत्र की छात्रवृत्ति मिलने के बाद उनका प्रशिक्षण चक्रधर नृत्य केंद्र में प्रारंभ हुआ। उन्हें रहने में दिक्कत नहीं हुई क्योंकि उनकी बड़ी बहन भोपाल में ही रहती थीं लेकिन उनकी दिनचर्या बहुत ही कठिन थी। सुबह 8 बजे से लेकर दिन के दो बजे तक, फिर शाम साढ़े चार बजे से सात बजे तक उनका अभ्यास चलता। इस दौरान उनके प्रशिक्षकों में कार्तिक राम और रामलाल तो थे ही, उनके अलावा मोहनराव कल्याणपुरकर और रोहिणी भाटे जी जैसे दिग्गज कलाकार भी उन्हें मार्गदर्शन देने आते थे। उस समय चक्रधर केंद्र अपने छात्रों को सिर्फ प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि मंच भी देती थी। इसलिए कुछ ही समय बाद वे मंच पर प्रस्तुतियां देने लगीं।वह भारत-रूस के मैत्री का दौर था जिसमें देश के चुनिंदा कलाकारों को रूस भेजा गया था। अलग अलग राज्यों के प्रतिनिधियों के अलावा भोपाल का लिटिल बैले ट्रूप भी शामिल था, उन्हें कलाकारों की कमी महसूस हुई थी तो चक्रधर नृत्य केंद्र से कलाकारों को चुना गया जिसमें से एक मोहिनी जी भी थीं। उस समय का एक दिलचस्प वाकया याद करते हुए बताती है, कार्यक्रम में आशा भोंसले जी को भी गाना था। उन्हें तानपुरा छेड़ने वाले की जरूरत थी और वहाँ कोई था नहीं। मुझसे पूछा गया तो मैंने हामी भर दी। भले ही मैं नृत्य क्षेत्र में आगे बढ़ी, मेरे घर में तो दिन-रात गायन ही चलता रहता था। इसलिए तानपूरा बजाना मैं जानती थीं। इसके बाद ‘वन्दे मातरम्’की रिकॉर्डिंग हुई जिसमें मैं भी शामिल थी।

छात्रवृत्ति की अवधि पूरी होने के बाद वे ग्वालियर लौट आयीं। एक बार फिर उन्हें तय करना था कि आगे क्या करें क्योंकि नौकरी करने का मन नहीं था। उन्होंने मन ही मन अपना नृत्य केंद्र खोलने और प्रस्तुति देते रहने का मन  इसी उहापोह के दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग से उनके पास किसी का फोन आया कि ‘बाल भवन’ में नृत्य प्रशिक्षक के साक्षात्कार में आप आ जाएं। शर्त यह थी कि रोज़गार दफ़्तर में पंजीयन होना चाहिए, जो उस समय उनके पास नहीं था। पंजीयन करवाने के बाद उन्होंने साक्षात्कार भी दे दिया और भूल गयीं। तब तक शादी की बात भी घर में चलने लगी थी। कुछ समय बाद एक नृत्य समारोह में हिस्सा लेने वे भोपाल आयीं और उनके एक गुरु भाई जो पहले से ही बाल भवन में सिखा रहे थे, ने उन्हें बताया कि उनका चयन हो गया है। अब हाथ आये मौके को छोड़ना भी सही नहीं था, इसलिए उन्होंने बाल भवन की नौकरी स्वीकार कर ली।

इधर उनके पिता की एक शिष्या थी जो किसी छात्रवृत्ति के लिए उनके पिता से ‘टप्पा’ सीखने आती थीं। उसने अनिल मोघे जी से मोहिनी जी के शादी की बात चलाने के लिए कहा। दरअसल मोहिनी की बड़ी बहनें घर गृहस्थी में रम चुकी थीं जबकि मोहिनी कत्थक को अपनी पूजा समझती थीं, इसलिए उनके पिता उनकी शादी ऐसे परिवार में करना चाहते थे जहाँ वे अपनी नृत्य साधना जारी रख सकें। अनिल मोघे जी तबला वादक हैं और उनका परिवार भी संगीत प्रेमी है। इसलिए सन् 1994 में शादी के बाद भी मोहिनी जी के जीवन पर विशेष फर्क नहीं पड़ा। शादी के बाद लगभग तीन सालों तक वे भोपाल में ही रहीं।

इस बीच वर्ष 1996 में उन्हें दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां मिलीं। सर्वप्रथम भारत सरकार की ओर से उन्हें वरिष्ठ छात्रवृत्ति मिली दूसरी 1998 में मंच प्रस्तुति के लिए वे चीन गयीं। उनकी चीन यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले पहले दल की वे हिस्सा बनीं थीं। इससे पहले किसी भारतीय कलाकार को यह यह अवसर नहीं मिला था। वर्ष 1999 में जबलपुर आ गयीं। तब तक बाल भवन मात्र भोपाल में ही संचालित था। इसलिए नौकरी पर बतौर कर्मचारी जाती रहीं, लेकिन कत्थक सिखाने की वहां कोई गुंजाइश नहीं थी। ऐसे में मोहिनी जी ने स्वयं अपने कत्थक केंद्र की स्थापना की जिसमें बच्चे आकर सीखने लगे। हालांकि तब तक लोग उन्हें जानने लगे थे इसलिए वे कार्यक्रमों में प्रस्तुतियां देने भी जाती रहीं।

एक बार की बात है, किसी कार्यक्रम में महिला बाल विकास विभाग की मंत्री महोदया से उनकी भेंट हुई। मोहिनी जी ने उनसे कहा, कि यदि बाल बहन अन्य शहरों में भी हो तो कई बच्चों को सीखने का मौका मिलेगा।“ इसके बाद बात आई गई हो गयी। कुछ समय बाद उन्हें हैरानी हुई कि उनके सुझाव पर प्रक्रिया शुरू हो गयी और हर एक संभाग में एक बाल भवन की स्थापना कुछ समय बाद हो गयी।

वर्तमान में मोहिनी जी जबलपुर में निवास कर रही हैं। उनके पुत्र भी तबला वादक है। बिजनेस मैनेजमेंट करने के बाद वे हैदराबाद में कार्यरत हैं। उनके पति अनिल जी भातखंडे संगीत महाविद्यालय, जबलपुर में प्राचार्य हैं।

 

महत्वपूर्ण प्रस्तुतियां

मोहिनी जी ने राष्ट्रीय स्तर के सभी मंचों पर कत्थक नृत्य की प्रस्तुति दी हैं, जैसे -रायगढ़ का चक्रधर उत्सव, मांडू का मांडव उत्सव, मालवा उत्सव, शरद चन्द्रिका उत्सव दिल्ली, म.प्र. स्थापना दिवस उत्सव, युवा उत्सव साउथ जोन- तिरुपति एवं नागपुर, कथक प्रसंग भोपाल, स्वामी हरिदास सम्मेलन-मुंबई, पचमढ़ी उत्सव-पचमढ़ी,  खजुराहो महोत्सव-खजुराहो, भारत महोत्सव समापन समारोह-मास्को (रूस), आईआरसीसी प्रोग्राम चीन में प्रस्तुति

पुरस्कार/ सम्मान

• वर्ष 1988 में सुर सिंगार संसद द्वारा शृंगार मणि पुरस्कार

• वर्ष 1991 द्वारा संगीत के ग्वालियर घराने द्वारा ग्वालियर गौरव पुरस्कार

• वर्ष 1993 में नेशनल सिविल सर्विसेज द्वारा स्वर्ण पदक

• वर्ष 1996 में मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वरिष्ठ छात्रवृत्ति

• मध्यप्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2022 का शिखर सम्मान

• सुप्रसिद्ध सिने निर्देशक कुमार साहनी की फिल्म ख्याल गाथा में अभिनय

सन्दर्भ स्रोत : श्रीमती मोहिनी मोघे से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



गौरी अरजरिया : लोगों से मिले तानों को
ज़िन्दगीनामा

गौरी अरजरिया : लोगों से मिले तानों को , सफलता में बदलने वाली पर्वतारोही

स्कूल में एवरेस्ट के बारे में पढ़ने के बाद पहाड़ पर चढ़ने की ललक जगी और पर्वतारोही अरुणिमा सिंह के संघर्ष ने उन्हें एक रास...

स्त्री विमर्श की जीती जागती तस्वीर हैं ऋचा साकल्ले
ज़िन्दगीनामा

स्त्री विमर्श की जीती जागती तस्वीर हैं ऋचा साकल्ले

शोध के लिए घरेलू हिंसा विषय पर जब उन्होंने महिलाओं से बातचीत की तो उन्हें कई हैरतअंगेज बातें सुनने को मिलीं जैसे -“पति न...

लहरी बाई : आदिवासी महिला जिसने
ज़िन्दगीनामा

लहरी बाई : आदिवासी महिला जिसने , बनाया दुर्लभ बीजों का बैंक

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुकी बैगा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली लहरी बाई अब अपने नाम से कहीं ज्याद...

गिरिजा वायंगणकर : परिवार के सहयोग ने जिन्हें बनाया बड़ा कलाकार
ज़िन्दगीनामा

गिरिजा वायंगणकर : परिवार के सहयोग ने जिन्हें बनाया बड़ा कलाकार

गिरिजा जी ने  एकल और समूह में  कई प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। कुछ पत्रिकाओं में चित्रांकन किया। कई कार्यशालाओं में प्र...

प्रज्ञा सोनी : हौसलों से भरी कामयाबी की उड़ान
ज़िन्दगीनामा

प्रज्ञा सोनी : हौसलों से भरी कामयाबी की उड़ान

प्रज्ञा मूकबधिर बच्चों को शिक्षा के लिये प्रेरित करती हैं। वे प्रति रविवार आसपास के ऐसे बच्चों को व्यक्तित्व विकास व रोज...