छाया : टाइम्स ऑफ़ इंडिया
• राकेश दीक्षित
वर्ष 1973 में ऋषिकेश मुख़र्जी के निर्देशन में बनी फिल्म “ अभिमान “ हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में शुमार है। इसका नायक (अमिताभ बच्चन) एक मशहूर मंच –गायक है, नायिका (जया बच्चन लेकिन तब भादुड़ी ) गांव की सीधी सादी लड़की है। उसका गला बेहद सुरीला है ,और उसके गीतों में प्राकृतिक अल्हड़पन की मनोहर आभा है। संयोग से नायक अपनी मौसी से मिलने उस गांव में आता है। वहां लड़की की सुमधुर आवाज़ उसके कानों में पड़ती है। वह चमत्कृत हो जाता है। लड़की की गायकी और सादगी पर रीझा नायक विवाह का प्रस्ताव रखता है जो लड़की के पिता स्वीकार कर लेते हैं।
दोनों शहर आते हैं और जोड़े से मंच पर गाने की शुरुआत करते हैं। कुछ अरसे बाद नायक महसूस करता है कि सुनने वाले उससे ज्यादा उसकी नई ब्याहता पत्नी की गायकी पर मुग्ध हो रहे हैं। कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद पत्नी से ऑटोग्राफ़ लेने वालों की भीड़ इस कदर बढ़ जाती है कि पति बिलकुल उपेक्षित रह जाता है। हर प्रदर्शन के बाद ऐसा होता है जिससे पति के पुरुष अहम् पर लगी चोट गहरी होती जाती है। पत्नी के प्रति उसकी ईर्ष्या बढ़ती जाती है। विवाह विच्छेद की नौबत आ जाती है। रिश्ता बचाने की ख़ातिर पत्नी मंच से गाना न गाने का फैसला करती है। अकेलेपन से जूझते पति को अपने निरर्थक अभिमान का एहसास होता है। दोनों फिर एक हो जाते हैं।
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फिल्म “अभिमान” दो महान संगीतज्ञों के ईर्ष्या जनित वैवाहिक कलह की सच्ची घटना से प्रेरित है। इसमें जो घटा कुछ वैसा ही पिछली सदी के चौथे और पांचवें दशक में शास्त्रीय संगीत की दुनिया में वास्तविक मंच पर भी घटा था। इसमें नायक थे विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पण्डित रविशंकर। नायिका थीं उनकी पत्नी और विलक्षण सुरबहार वादक अन्नपूर्णा देवी। फर्क इतना रहा कि फ़िल्मी कहानी में पति –पत्नी अलगाव के बाद दोबारा मिल जाते हैं लेकिन असली कहानी में ऐसा नहीं हुआ। अन्नपूर्णा देवी ने एक बार जो संगीत की महफ़िल छोड़ने की कसम खाई तो उस पर ताउम्र कायम रहीं। रविशंकर जी से उनका विलगाव भी अंत तक बना रहा।
अन्नपूर्णा देवी (23 अप्रैल 1927-13 अक्टूबर 2018) भारत की एक प्रमुख संगीतकार (musician) थीं। वे मैहर घराने के संस्थापक अलाउद्दीन खान (Allauddin Khan) की बेटी और शिष्या थीं। जाने-माने सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान उनके भाई थे। उन्हें 1977 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके प्रमुख शिष्यों में हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बरोत, सरस्वती शाह (सितार) आदि थे।अन्नपूर्णा देवी का जन्म 23 अप्रैल 1927 को मध्यप्रदेश के मैहर कस्बे में उस्ताद ‘बाबा’ अलाउद्दीन खां और मदीना बेगम के घर में हुआ था। उनका मूल नाम रोशनआरा था और चार भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थीं। उनके पिता अलाउद्दीन खां महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। उन्होंने जब बेटी के जन्म के बारे में दरबार में बताया तो महाराजा ने नवजात बच्ची का नाम अन्नपूर्णा रख दिया।
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पांच साल की उम्र से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा आरम्भ की। 1941 से 1962 तक उनका विवाह सम्बन्ध पण्डित रविशंकर से बना रहा। रविशंकर स्वयं उनके पिता के शिष्य थे। इस विवाह के लिए अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया। उनका एक बेटा शुभेन्द्र (‘शुभो’) शंकर था, जिनका1992 में निधन हो गया था। 21 वर्ष बाद पंडित रविशंकर से विवाह-विच्छेद हो गया, जिसके बाद वे मुम्बई चली गईं। इस घटना के बाद उन्होने सार्वजनिक रूप से कभी भी अपनी कला का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि वे शिक्षण कार्य करने लगीं। वर्ष 1991 में अन्नपूर्णा जी को को संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला। 1982 में उन्होंने अपने शिष्य ऋषिकुमार पण्ड्या से विवाह कर लिया। वर्ष 2013 में पण्ड्या का निधन हो गया,इसके पांच साल बाद 13 अक्टूबर 2018 को प्रातःकाल में 91 वर्ष की आयु में अन्नपूर्णा देवी ने भी इस संसार से विदा ले ली।
असाधारण लम्बा एकाकी जीवन बिताने वाली अन्नपूर्णा देवी के बारे में शास्त्रीय संगीत जानने –समझने वालों में लगभग आम राय रही कि रविशंकर के अहम् ने सुरबहार जैसे कठिन वाद्य की अप्रतिम कलाकार को अपनी महारत दुनिया के सामने पेश करने के वंचित कर दिया। पिछली सदी के चौथे और पांचवे दशक में अन्नपूर्णा देवी अपने पति से कहीं अधिक प्रतिभाशाली समझी जाती थीं। संगीत सभाओं में उनके सुरबहार की धूम थी। रविशंकर तब तक उतने लोकप्रिय नहीं हुए थे। उन्हें विश्व स्तरीय पहचान अमेरिका में बीटल्स के साथ सितार की संगत बिठाने के बाद मिली। पांचवें दशक के मध्य तक रविशंकर, अपने गुरु उस्ताद अलाउद्दीन खां, बड़े भाई और महान बेले नर्तक उदय शंकर और पत्नी अन्नपूर्णा के आभामंडल से बाहर नहीं आ पाए थे। शायद अन्नपूर्णा देवी के साथ संबंधों में बढ़ती खटास की यही एक बड़ी वजह थी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
© मीडियाटिक
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