प्राचीन गणित के इतिहास की अन्वेषक डॉ. प्रगति जैन

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प्राचीन गणित के इतिहास की अन्वेषक डॉ. प्रगति जैन

छाया : स्व सप्रेषित 

• सारिका ठाकुर

प्रायः गणित और विज्ञान को लड़कों का व कला विषयों को लड़कियों का विषय माना जाता है। इस सम्बन्ध में एक मजबूत-सी सामाजिक धारणा है कि लड़कियाँ गणित और विज्ञान में स्वभावतः कमजोर होती हैं, जिसे तोड़ते हुए डॉ. प्रगति जैन ने न केवल गणित विषय में दक्षता हासिल की बल्कि प्राचीन भारतीय गणित को सामने लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।  

डॉ. प्रगति जैन का जन्म 29 दिसंबर 1975 को इंदौर शहर में हुआ। उनके पिता श्री निर्मल कुमार जी शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े थे, जबकि उनकी माँ श्रीमती प्रेमलता जी सुशिक्षित धार्मिक महिला थीं। बच्चों को अच्छी परवरिश देने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी का अवसर भी छोड़ दिया। डॉ. जैन का पालन-पोषण उज्जैन शहर में हुआ, जहाँ उन्होंने कालिदास स्कूल और लोकमान्य तिलक हायर सेकेण्डरी स्कूल से विद्यालयीन शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने वर्ष 1995 में शासकीय माधव विज्ञान महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि और 1997 में विक्रम विश्वविद्यालय से गणित विषय लेकर स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। गणित के अलावा विद्यालय और महाविद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी वे बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थीं। वे एक उत्कृष्ट वक्ता भी रही हैं। लेखन में रूचि के कारण अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई निबंध प्रतियोगिताएँ भी जीतीं। अपने भीतर इस प्रतिभा को विकसित करने का श्रेय वे अपनी माँ को देती हैं।

डॉ. प्रगति के अभिभावक स्नेहिल होने के साथ अनुशासन के भी पाबंद थे। पुत्र-पुत्री में भेद नहीं था, माता-पिता दोनों ही प्रगतिशील विचारधारा के थे। स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने पीएचडी करने का मन बनाया, इसके साथ ही कैरियर के संभावित विकल्पों के बारे में सोचने लगीं। वर्ष 1997 में प्रगतिजी ने कैरियर की शुरुआत एक टीवी चैनल पर समाचार वाचिका के तौर पर की। उस समय न्यूज़ चैनलों में बहुत कम महिलाएँ हुआ करती थीं। अपना काम खतम करके देर रात घर लौटती थीं। अपने परिवार में नौकरी करने वाली वे पहली लड़की थीं। समाज और परिवार के लोग अक्सर कहने लगे यह काम लड़कियों के लिए ठीक नहीं है, लेकिन प्रगति जी और उनके माता-पिता ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। उनके पिता खुद उन्हें टीवी चैनल लेकर जाते और वापसी पर लेकर आते। इस तरह एक लंबा अरसा गुजर गया । 

 वर्ष 1998 में उनका विवाह श्री विजय कुमार जैन से हो गया। विजय जी सिविल इंजीनियरिंग में बी.ई. आनर्स व फाइनेंस में एम.बी.ए. की उपाधि प्राप्त कर चुके थे। वर्तमान में वे इंदौर की एक प्रतिष्ठित कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हैं। वर्ष 1999 में उनकी पुत्री इशिता का जन्म हुआ। उस समय वे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से पीएचडी कर रही थीं। अपने शोध कार्य के लिये उन्हें दक्षिण भारत के श्रवणबेलगोला की यात्रा भी करनी पड़ी। प्रगति जी के सास-ससुर श्रीमती हीरामणि जी जैन और श्री धर्मचंद जी जैन  प्रगति जी से बहुत स्नेह रखते थे और आगे बढ़ने के लिये उन्हें प्रोत्साहित भी करते थे। फिर भी चुनौतियां कम नहीं थी। नवजात शिशु की देखभाल और पीएचडी, दोनों ही जिम्मेदारी को उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। शोधकार्य के लिए श्रवणबेलगोला की यात्रा और वहाँ से प्राचीन गणित की पांडुलिपि को हासिल करना डॉ. प्रगति के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उनकी यह अद्वितीय खोज भारतीय गणित के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। वर्ष 2007 में उनकी पीएचडी पूरी हुई।

डॉ. प्रगति जैन के शोध का विषय था ‘आचार्य वीरसेन एवं उनका गणितीय अवदान’, जो वर्ष 2007 में पूरा हुआ । 816 ई में आचार्य द्वारा रचित षट्खंडागम की टीका "धवला" में गणित के आधुनिक सिद्धांतों की झलक मिलती है। जैसे सेट थ्योरी, प्रोबेब्लिटी, कांसेप्ट ऑफ़ काउंटेबल, अनकाउन्टेबल एंड इनफाइनाईट नंबर्स,  ख़ास तौर पर लॉगरिथम एट द बेस 2, 3, 4, 5 की अवधारणा आचार्य के ‘धवला टीका’ में मिल जाती है। वर्तमान में लॉगरिथम एट द बेस  e  और 10 प्रचलन में है। आज वैश्विक स्तर पर प्राचीन ग्रंथों की खोज और उनका विश्लेषण किया जा रहा है, ऐसे में डॉ. प्रगति जैन की खोज और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। वह इसलिए कि इस तरह का काम वही कर सकता है जिसे प्राचीन भाषा की समझ, गणित में दक्षता, अवधारणाओं के विश्लेषण और लेखन की क्षमता हो। डॉ. जैन में ये सभी खूबियाँ थीं, जिसकी वजह से वे अपना शोध कार्य पूरा कर पायीं।

इसके बाद भी पढ़ने और डिग्रियाँ हासिल करने की उनकी ललक कम नहीं हुई। उन्होंने वर्ष 2013 में मॉडल थिंकिंग विषय पर सर्टिफाईड लर्निंग कोर्स किया, फिर मिशिगन विश्वविद्यालय से रैखिक बीजगणित विषय पर सर्टिफाइड लर्निंग कोर्स किया। शोध कार्य जारी रखते हुए मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग से परीक्षा उत्तीर्ण कर वे शासकीय महाविद्यालय, मनावर में सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुईं। इसी महाविद्यालय में वे विभागाध्यक्ष भी बनीं। देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय में पीएचडी गाइड के रूप में पंजीकृत हैं। अब तक तीन शोधकर्ताओं को उनके मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ा जा चुका है।

एक प्राध्यापक के रूप में डॉ. प्रगति अपने छात्रों को मात्र गणित के सूत्र सुलझाने में मदद नहीं करतीं बल्कि उनके भीतर छिपी प्रतिभा को भी बाहर निकालने में मदद करती हैं। गणित के विविध पक्षों पर उनकी 8 पुस्तकें प्रकाशित  और प्रशंसित हो चुकी हैं। वे अब तक गणित पर आधारित विभिन्न विषयों पर आधारित 50 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी हैं। उनके नाम दो पेटेंट भी रजिस्टर्ड हैं।  उन्होंने वर्ष 2018 में विज्ञान एवं धर्म पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करवाया था। इंडियन कांसिल ऑफ़ फिलोसॉफिकल रिसर्च, दिल्ली से डॉ. जैन ने 2021 में एक प्रोजेक्ट भी प्राचीन भारतीय गणित पर किया है।

अध्यापन एवं लेखन के अलावा डॉ. प्रगति समाजसेवा में भी रूचि रखती हैं। वे महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की लम्बे समय तक प्रभारी और प्रशिक्षण प्राप्त कोऑर्डिनेटर रही हैं। इस दौरान उनके मार्गदर्शन में अनेक रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता शिविरों के आयोजन के साथ साक्षरता अभियान के लिए रैलियों का आयोजन हुआ।

वर्तमान में डॉ. प्रगति जैन शासकीय महाविद्यालय, मनावर में बतौर विभागाध्यक्ष कार्यरत हैं। उनके छोटे भाई  श्री वैभव कासलीवाल एक प्रतिष्ठित कंपनी के मालिक हैं।  डॉ. जैन की पुत्री इशिता आईआईएम् से स्नातकोत्तर करने के बाद एक प्रतिष्ठित कंपनी में डाटा एनालिस्ट के रूप में कार्यरत है। उनका विवाह पार्थ सोगानी से हुआ, जो लंदन में प्रतिष्ठित कंपनी में एसोसिएट के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा वे इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी, इंडियन सोसायटी ऑफ हिस्ट्री ऑफ मैथमेटिक्स, द इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन आदि अनेक महत्वपूर्ण संस्थाओं की आजीवन सदस्य भी हैं। भारतीय गणित और उसके इतिहास पर उनके अनेक व्याख्यान सोशल मीडिया पर उपलब्ध है।

प्रकाशन

  Mathematics I, NP Publishers and Printers- 2001

• Math Guru-Vol. I, II, III, IV 2008. Published by Telemex,  (It also includes 4 CDs of animations and 22 CDs of class room teaching.)

• Calculus 2008 (Designed and Developed Mathematical Contents for Open Bhoj University, Bhopal)

•  Advanced Abstract Algebra – 2010

•  Partial Differentiation & Mechanics- 2013

•  Advanced Abstract Algebra, Isara Publications- 2017

•  Fundamentals of Matrix Theory & Linear Algebra, Research Foundation of India (2020)

•  भारतीय गणित में आचार्य वीरसेन का योगदान, जे.टी.एस. पब्लिकेशन, दिल्ली -2023

•  Ebook The Power of Pause, Print on demand by Amazon, Flipcart, Pothi online platforms, 2024,

 

पुरस्कार/सम्मान

•  I RISE अवार्ड-2022

•  वीमेंस प्रेस क्लब मप्र द्वारा शक्ति पुरस्कार-2021

•  राष्ट्रीय युवा संगठन, जहाजपुर द्वारा युवा-रत्न पुरस्कार-2020

•  रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा इनोवेटिव रिसर्च अवार्ड-2019

•  गोम्मटेश्वर समिति, बैंगलोर द्वारा लेखन और शोध की श्रेणी में उत्कृष्ट युवा पुरस्कार-2017

•  इंडो ग्लोबल एसएमई चेम्बर्स, इंदौर द्वारा शिक्षा श्रेणी में वीमेन इन बिज़नेस अवार्ड-2017

•  महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य के लिए कुंदकुंद ज्ञानपीठ संस्था, इंदौर द्वारा कुंदकुंद ज्ञानपीठ पुरस्कार-2014

•  समर्पण सेवा समिति, इंदौर द्वारा समाज के प्रति योगदान के लिए समर्पण सेवा पुरस्कार- 2012

•  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्मोग्राफिक रिसर्च, हस्तिनापुर, उप्र द्वारा विद्वत महासंघ पुरस्कार- 2011

•  व्यावसायिक उपलब्धियों की श्रेणी में भास्कर महिला पुरस्कार-2010 (शीर्ष तीन महिलाओं में शामिल)

•  कुआलालंपुर मलेशिया में एशियन मैथमेटिक्स कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व- 2009

•  शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिये अवंती सोसायटी, उज्जैन द्वारा अवंती एजुकेशन अवार्ड-2009

•  शोध-अनुसंधान कार्य के लिये कुंदकुंद ज्ञानपीठ संस्था द्वारा अर्हत-वचन पुरस्कार-2004

•  आईसीडब्ल्यूएम-में गणितज्ञ प्रतिनिधि के रूप शामिल होने पर इंटरनेशनल कांग्रेस द्वारा सम्मानित 2010

संदर्भ स्रोत :  डॉ. प्रगति जैन द्वारा प्रेषित सामग्री एवं उनसे सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित 

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