प्रीति झा : सृजन से सराबोर रंगयात्रा  

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प्रीति झा : सृजन से सराबोर रंगयात्रा  

छाया : प्रीति झा के फेसबुक अकाउंट से

• सीमा चौबे

4 अगस्त 1978 को बिहार के सीतामढ़ी में श्री ओंकार नाथ झा और श्रीमती विभा झा के घर जन्मी प्रीति ने रंगमंच, अभिनय और निर्देशन के क्षेत्र में अपनी अनोखी पहचान बनाई है। उन्होंने अपने अभिनय जीवन की शुरुआत मैथिली नाटकों से की। लोकभाषा की सादगी से आरंभ हुआ यह सफर धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर के रंगमंच तक पहुँचा। उन्होंने मंच पर न केवल अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी, बल्कि निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी अलग दृष्टि और संवेदना स्थापित की।

उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन वे हमेशा अपने कला के प्रति समर्पित रहीं। उनकी यात्रा न केवल रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय रही है, बल्कि उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को अपनी कला के माध्यम से उजागर किया है। उनके पिता पटना के इंडियन नेशन न्यूज़ में सम्पादक  और माँ गृहिणी थीं। पिता एक अच्छे गायक थे और घर में हर शाम पूजा के समय सभी बहनें भजन और आरती गाती थीं। पांच बहनों में सबसे छोटी प्रीति की आवाज बहुत मधुर थी इस कारण उनके पिता उन्हें संगीत की तालीम दिलाना चाहते थे।

शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई पटना में जारी रखी। उन्होंने बॉटनी (ऑनर्स) में स्नातक (ग्रेजुएशन) किया और बाद में नाट्य कला में मास्टर डिग्री (एम.ए.) प्राप्त की । इस दौरान रंगमंच के प्रति रुचि जागी तो और थियेटर में भी भाग लेना शुरू किया। उनके माता-पिता खासकर उनकी माँ ने हमेशा उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी और उन्हें यह सिखाया कि "किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए पढ़ाई का स्तर ऊंचा होना जरूरी है"।

रंगमंच से जुड़ाव

प्रीति का रंगमंच से जुड़ाव उनकी आवाज़ के कारण हुआ। जब वे कक्षा 9वीं में पढ़ाई कर रही थीं, उनके पड़ोसी जो स्वयं एक रंगकर्मी थे, ने एक नाटक में गायन के लिए उन्हें अवसर दिया। इस नाटक में प्रीति को गाने के साथ-साथ अभिनय का भी मौका मिला। यह उनके जीवन का पहला थियेटर अनुभव था।   इस अनुभव ने उनके करियर की दिशा बदल दी। प्रीति को इस नाटक में अभिनय और गायन दोनों में ही बहुत सराहना मिली। छोटे-छोटे मंचों पर उनका अभिनय सफर जारी रहा। बाद में उन्होंने पटना में रंगमंच पर काम किया। वहां वे पाँच साल तक थियेटर से जुड़ी रहीं ।  इन वर्षों में उन्होंने न केवल अभिनय में अनुभव प्राप्त किया, बल्कि एक पेशेवर थियेटर कलाकार के रूप में खुद को स्थापित भी किया। इस दौरान पढ़ाई और रंगमंच दोनों साथ-साथ चलते रहे।

दिल्ली में रंगमंच का सफ़र

प्रीति की रंगमंच यात्रा में एक अहम मोड़ तब आया, जब सन् 2000 में भारत रंग महोत्सव में उनका नाटक चयनित हुआ। इस महोत्सव से उन्हें एक नई पहचान मिली और उनका आत्मविश्वास और उत्साह - दोनों ही बढ़े। दिल्ली के बड़े ऑडिटोरियम में हुए इस समारोह और वहां का माहौल से प्रीति इस कदर प्रभावित हुई कि उन्होंने दिल्ली में ही अपने अभिनय को निखारने का फैसला किया। ग्रेजुएशन होते ही उन्होंने दिल्ली का रुख किया और श्रीराम सेंटर रंगमंडल में बतौर अभिनेत्री काम करने के बाद राष्ट्रीय नाट्य शाला की रेपर्टरी में शामिल हुईं। एनएसडी में चार वर्ष के दौरान उन्हें दिग्गज निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला। दिल्ली में रहकर प्रीति ने अपनी कला को एक नई दिशा दी। उन्होंने कई महत्वपूर्ण नाटकों में अभिनय किया इतना ही नहीं, उन्हें देश के कई प्रतिष्ठित रंगमंचों दिल्ली, मुंबई, भोपाल, पटना, लखनऊ आदि पर अभिनय का अवसर भी मिला।

निजी जीवन और संघर्ष

दिल्ली  रंगमंच यात्रा के दौरान ही उनकी  मुलाकात चंद्रहास तिवारी से हुई । कुछ समय बाद सन् 2006 में दोनों ने शादी कर ली। लेकिन साल भर बाद ही उनके जीवन में एक बड़ा संकट आया, जब उनके पति चंद्रहास तिवारी के गुर्दे बेकाम हो गये। इस दौरान प्रीति ने पारिवारिक ज़िम्मेदारियां निभाते हुए अपनी पेशेवर जीवन में बदलाव किया। उन्हें भोपाल जाने का निर्णय लेना पड़ा, क्योंकि चंद्रहास जी को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी।

कुछ समय  बाद, प्रीति और चन्द्रहास - दोनों फिर  सक्रिय हुए और "द राइजिंग सोसायटी आर्ट्स ऑफ कल्चर" नामक एक थियेटर ग्रुप की स्थापना की। इस ग्रुप के साथ दोनों ने कई नाटकों का निर्देशन और अभिनय किया। भोपाल में उनके थिएटर ग्रुप का नाम अब पहचान बन चुका था। वे अच्छे मुकाम पर पहुँच रही थीं। इसी बीच, प्रीति दो बच्चों की माँ भी बन गईं। जीवन की गाड़ी बेहतरीन तरीके से आगे बढ़ रही थी, लेकिन दिसंबर 2013 में चन्द्रहास जी के निधन ने उनकी दुनिया ही बदल दी। इस घटना ने प्रीति को भीतर तक तोड़ दिया। लगभग एक साल तक वे बेहद विचलित रहीं। 

कदम-कदम पर साथ देने वाला जीवनसाथी जब साथ नहीं रहा, तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी। बावजूद इसके, उनके सास-ससुर और माता-पिता ने हर पल उनका साथ दिया, उन्हें सहारा दिया और इस कठिन समय से बाहर निकलने में मदद की। इन्हीं अंधेरों के बीच थिएटर ने फिर से उन्हें खड़े होने का हौसला दिया। वे रंगकर्म के जुनून में वापस डूब गईं। पति के न रहने पर पैसों की तंगी भी प्रीति को झेलना पड़ी। यह एक नया संघर्ष था। नाटकों की प्रस्तुतियों के लिए वित्तीय सहायता की कमी, छोटे थिएटरों में सीमित बजट और पेशेवर नाट्य मंडलियों से संबंधित समस्याएं उनके सामने आयीं। बावजूद इसके, उन्होंने इन बाधाओं को अपने काम में कभी आने नहीं दिया और हमेशा अपने अभिनय और निर्देशन में उत्कृष्टता की ओर बढ़ती रहीं।

लाख तनाव के बावजूद जैसे ही वे थिएटर पहुँचती, सब कुछ भूल जातीं। वे रंगमंच का शुक्रिया अदा करते हुए  कहती हैं -"रंगमंच ने मुझे बहुत कुछ दिया है। मैं आज जो कुछ भी हूँ, रंगमंच की बदौलत हूँ।"  प्रीति के लिए रंगमंच एक जुनून है। उन्होंने कभी इसे व्यवसाय के रूप में नहीं देखा। वे कहती हैं जब रंगमंच से जुड़ी थी, तब पैसे या शोहरत का सपना नहीं, सिर्फ अभिनय से मोह था और वही मुझे फिर से जीवन की राह पर ले आया।"

सहयोग और प्रेरणा

प्रीति को भारतीय रंगमंच के अनेक महान रंग निर्देशक श्री प्रसन्ना, मोहन महर्षि, राम गोपाल बजाज, देवेंद्र राज अंकुर, सुरेश शर्मा, चितरंजन त्रिपाठी, त्रिपुरारी शर्मा, चेतन दत्तारे, एम.के. रैना, रोबिन दास, चितरंजन गिरी, बंसी कौल, मुश्ताक काक, अवतार साहनी, विजय कुमार, चंद्रहास तिवारी, के.जी. त्रिवेदी, अनूप जोशी बंटी, गोपाल दुबे, तारिक़ दाद, तानाजी आदि के साथ केवल काम करने का अवसर ही नहीं मिला, बल्कि इन सभी से उन्हें नाट्यशास्त्र, अभिनय शैली, मंच संरचना और दर्शक–संवाद की गहरी समझ भी प्राप्त हुई। 

अभिनय एवं निर्देशन

1992 से मैथिली नाटकों से अभिनय की शुरुआत से अब तक डेढ़ सौ से अधिक मैथिली व हिन्दी नाटकों में अभिनय तथा 12 नाटकों का निर्देशन करने के साथ ही देश के अनेक नाट्य समारोह में बतौर अभिनेत्री सम्मिलित हो चुकी हैं। भोपाल और अन्य स्थानों पर कई नाट्य कार्यशालाएँ भी आयोजित की हैं। उनका नाटक 'सीमा पार' उनके दिल के बेहद करीब है। वे बताती हैं यह जीवन-मृत्यु के अनुभवों और उन परिस्थितियों से जुड़ा है, जिन्हें उन्होंने स्वयं अपने जीवन में महसूस किया है। उनके कई नाटक भारत रंग महोत्सव जैसे बड़े मंचों पर प्रदर्शित हुए हैं। 'सीमा पार' और 'आज़ाद बांसुरी' जैसे नाटक भी बहुत चर्चित हुए। 'आई.एम. सुभाष' के अब तक 8–9 शो मंचित हो चुके हैं। 

फ़िल्में और वेब सीरीज 

हालांकि प्रीति का रुझान शुरुआती दौर में फिल्मों की ओर नहीं था, लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने महारानी, औकात के बाहर और वेट्रोमेट्स वेब सीरीज के अलावा ‘हमारी बा कस्तूरबा' तथा 'सेल्फी' फिल्म में भी अभिनय किया है, जो जल्द ही रिलीज़ होने वाली है।

सिंगल पेरेंट् का संघर्ष 

प्रीति कहती हैं कि बतौर सिंगल पेरेंट् संघर्ष अब भी जारी है। बच्चों के बारे में अकेले निर्णय लेने में डर लगता है, क्योंकि जब दो लोग मिलकर कोई निर्णय लेते हैं, तो स्थिति कुछ अलग होती है। वे यह भी कहती हैं कि लोग आज भी 10 से 5 की नौकरी को आदर्श मानते हैं, जबकि अभिनय जैसे काम को लेकर समाज की सोच अभी भी पीछे है। लोग अक्सर पूछते हैं, "तुम कुछ और क्यों नहीं कर लेती? किसी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ा लेती?" या फिर, "घर का ख़र्च कैसे चलता है? बच्चों को पढ़ा रही हो, लेकिन थियेटर से कितना पैसा मिलता है?" लेकिन हर सवाल का जवाब देना संभव नहीं होता। अब यह समझ में आ गया है कि समाज की सोच बदलने में समय लगेगा, लेकिन जो काम हम कर रहे हैं, वह उतना ही महत्वपूर्ण है। इस संघर्ष के बावजूद, हमें अपनी राह पर कायम रहना है और अपनी मेहनत को पूरी ईमानदारी से आगे बढ़ाना है।

अंत में 

प्रीति वर्तमान में 'राइजिंग सोसाइटी ऑफ़ आर्ट एंड कल्चर'  की निदेशक के रूप में आज भी रंगमंच में सक्रिय हैं। इन दिनों वे ‘आत्मकथा’ नाटक पर काम कर रही हैं, जिसमें वे अभिनय और निर्देशन दोनों कर रही हैं। इसके अलावा, वे बच्चों को अभिनय सिखा रही हैं। उनका लक्ष्य है कि वे अच्छे कलाकारों की एक नई पीढ़ी तैयार करें। प्रीति का मानना है कि थियेटर के क्षेत्र में आने से पहले किसी भी कलाकार को धैर्य और समर्पण के साथ काम करना चाहिए। वे धैर्य  को सबसे अहम मानती हैं, क्योंकि अभिनय में सफलता सिर्फ मेहनत से आती है, समय के साथ इसका फल मिलता है।  

प्रीति अपने बच्चों को कला और संस्कृति के प्रति जागरूक कर रही हैं। बिटिया स्तुति सेंट थेरेसा स्कूल में 12वीं की पढ़ाई कर रही है और 'इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज' जैसे शो में भाग ले चुकी है वहीं 12 वर्ष का उनका बेटा आरंभ सेंट जेवियर स्कूल में सातवीं कक्षा में अध्ययनरत है और वो भी थियेटर में रुचि रखता है। प्रीति के लिए यह गर्व का विषय है कि उनके बच्चे  कला-संस्कृति को समझ रहे हैं और इसमें रुचि रखते हैं। 

उपलब्धियां बतौर डायरेक्टर 

•  'गार्ड साहब की डायरी' - भारत भवन, भोपाल (2008) 

•  'ये आदमी ये चूहे' RISAC, भोपाल (2011)

•  'नाद-कारंत' RISAC, भोपाल (2011)

•  बच्चों का नाटक 'आज़ाद-बांसुरी' बाल भवन, इंदौर (2012)

•  'रंग संगीत' भारत भवन, भोपाल 2024

•  RISAC, भोपाल के साथ  -‘निर्वाण सुतन जातक’/ शिवगंगा (2013),  अंगुलिमाल-2015, कविता यात्रा/ स्वमेव बोध -2016, बौधायन/ सीमापार/ रंग संगीत 2018, मंटो खुद-2018 बुद्धूराम बुद्धिमान-2017 ‘टंट्या भील’-2022, •  मैं हूँ” सुभाष- री-डायरेक्ट, अहमदाबाद 2021  ‘मन की मुनादी’ रंग संगीत/अभ्यास-2021, ‘लाल लिपस्टिक’ 2020/ 2023 'निमन्त्रण' भोजपुरी अकादमी-सारणी

 

अभिनय 

•  श्रीराम सेंटर - ‘बाबूजी’, ‘अरे मायावी सरोवर’, ‘मुझे अमृता चाहिए’, ‘मायंद्रा गोला’

•  नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा – ‘सीमा पार’, ‘जानेमन’, ‘उसका बचपन’, ‘दिमाग हस्ती दिल की बस्ती’, पोशाक. शॉर्टकट, ‘प्लीज़ मत जाओ’, ‘दो कश्ती पे सवार’, ‘एक और ज़िंदगी’, ‘मंटो खुद’  ‘आई एम सुभाष’, ‘फिर आषाढ़ का एक दिन’, ‘वासंसी जीरनानी’, ‘तर्पण’, ‘स्त्री मेरे भीतर’, ‘मजनू लॉन्समेंट’  

 

वर्कशॉप 

•  श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (SRC) नई दिल्ली में समर थिएटर वर्कशॉप  -2012/2013

•  नवोदय विद्यालय, मध्य प्रदेश में थियेट्रिकल वर्कशॉप 2014

 

पुरस्कार और सम्मान

•  प्रीति को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया

•  रंग आधार थिएटर ग्रुप मध्य प्रदेश द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए रंग-आधार पुरस्कार (2013)

•  इफ़्तिख़ार ग्रुप मध्य प्रदेश द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए इफ़्तिख़ार अकादमी पुरस्कार (2009)

•  संगीत नाटक अकादमी द्वारा अभिनय के क्षेत्र में बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार (2018)

•  ऑल इंडिया विमेंस कॉन्फ्रेंस द्वारा थिएटर के क्षेत्र में काम के लिए सम्मानित (2020)

•  भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय द्वारा हिंदी रंग संगीत पर जूनियर फैलोशिप

 

सन्दर्भ स्रोत : प्रीति झा से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

 

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