पूजा गर्ग अग्रवाल : दर्द से भी ऊँची है जिनके हौसलों की उड़ान

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पूजा गर्ग अग्रवाल : दर्द से भी ऊँची है जिनके हौसलों की उड़ान

छाया : पूजा गर्ग के फेसबुक अकाउंट से 

• सीमा चौबे

"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।" ये पंक्ति इंदौर की पूजा गर्ग अग्रवाल पर सटीक बैठती हैं। एक बहादुर और समर्पित युवती, जिसने शारीरिक और मानसिक तकलीफों को पछाड़कर न सिर्फ अपने सपने को साकार किया, बल्कि अब समाज में भी बदलाव लाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहीं हैं। 14 सालों तक रीढ़ की हड्डी में चोट और अस्थियों के कैंसर से लड़ते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी और खुद को अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी, प्रेरक व्यक्तित्व और समाजसेवी के रूप में स्थापित कर एक मिसाल कायम की। 

6 दिसंबर 1988 को इंदौर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी पूजा के माता-पिता ने अपनी तीनों बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए हमेशा प्रेरित किया। उनके पिता दिनेश कुमार गर्ग, इलेक्ट्रिशियन थे और माँ रेखा गर्ग, एक प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका। परिवार में तीन बहनों में सबसे बड़ी पूजा को बचपन से ही तकनीकी क्षेत्र में रुचि थी। उनका सपना था कि वह सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बनें, इसके लिए उन्होंने सुशीला देवी बंसल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। 

दुर्घटना से बदला जीवन

वर्ष 2010 में इंजीनियरिंग करने के बाद पूजा अपने सपनों को साकार करने के बेहद करीब थीं, उन्हें दिल्ली की माय मैक्स कंपनी में सेवाएं देने का अवसर मिला, लेकिन नौकरी पर जाने से पहले ही वे सीढ़ियों से गिरकर घायल हो गईं। डॉक्टरी जांच में पता चला कि उन्हें रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट पहुंची है और वे कभी बिस्तर से नहीं उठ सकेंगी। जाहिर है कि इस हाल में उनका सपने को भी झटका लगना ही था। 

पूजा ने तीन साल बिस्तर पर रहकर 13 ऑपरेशन झेले। इस दौरान उन्होंने मानसिक और शारीरिक - दोनों स्तरों पर संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। फिजियोथेरेपी, मेडिटेशन और आत्मविश्वास के साथ उन्होंने खुद को फिर से खड़ा किया। बिस्तर पर बिताये कठिन समय में उन्होंने उन साहसी लोगों की कहानियां पढ़ीं जिन्होंने कठिन संघर्ष के बाद ऊँचाइयों को छुआ था। इन प्रेरणादायक कहानियों ने उन्हें यह सिखाया कि जीवन में कोई भी चुनौती स्थायी नहीं होती, अगर इरादा मजबूत हो तो सफलता मिलना तय है। किताबों ने उनके अंदर यह भावना जगाई कि वे केवल एक सामान्य जीवन नहीं जी सकतीं, बल्कि उन्हें भी दूसरों से अलग कुछ करना है। डॉक्टरों की भविष्यवाणी कि “वे कभी बैठ भी नहीं पायेंगी” को चुनौती देते हुए पूजा ने घर में रस्सियों के सहारे चलने की क्षमता प्राप्त की। वे धीरे-धीरे बैठने और झुकने लगीं। यह उनके लिए एक नई शुरुआत थी। 

खेलों में सफलता 

2017 में उन्होंने वीर शूटिंग अकादमी से शूटिंग का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। प्रारम्भ में, कोच ने उन्हें केवल सीखने के लिए कहा था, लेकिन पूजा ने अपनी मेहनत और समर्पण से कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया। 2017 में पहली बार राज्य चैम्पियनशिप में भाग लिया और स्वर्णिम सफलता प्राप्त की। इसके बाद प्री-नेशनल्स और नेशनल्स में भी उनकी सफलता का सिलसिला जारी रहा। 2018 में उन्होंने त्रिवेंद्रम में नेशनल चैम्पियनशिप में शीर्ष 4 में जगह बनाई। 

वे कहती हैं यह पल मेरे सपनों को नई उड़ान देने वाले थे। ऐसी स्थिति में, जब लोग मुझसे सवाल करते थे कि क्या मैं व्हीलचेयर पर बैठकर किसी भी हालत में खेलों में भाग ले सकती हूँ, तब भी मेरी माँ हमेशा सकारात्मक रहीं। वे कहतीं, "तुम हारो मत, हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।" इन्हीं शब्दों के साथ, मैंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ने का फैसला किया। 

शूटिंग रेंज का संघर्ष और नया रास्ता 

उन्हें शूटिंग रेंज तक पहुंचने में परेशानी हो रही थी, क्योंकि इस खेल में बहुत अधिक खर्च था। शूटिंग रेंज, पिस्तौल, गोलियां और बार-बार दिल्ली जाना - परिवार के लिए यह खर्च उठाना मुश्किल था। इसके अलावा, 8-8 दिन घर से बाहर रहना भी आसान नहीं था। इसी दौरान उन्होंने कयाकिंग और कैनोइंग के बारे में पढ़ा और उन्हें इस खेल में अपने लिये संभावनाएं नजर आईं। वर्ष 2023 में उन्होंने भोपाल में कोच मयंक ठाकुर से संपर्क किया। उन्होंने पूजा के उत्साह को समझा और उनके लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी। उनके मार्गदर्शन में पूजा ने कयाकिंग और कैनोइंग को गंभीरता से अपनाया और उसी साल उन्होंने नेशनल चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर सबको चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कयाकिंग प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उज्बेकिस्तान तथा जापान में सफलता प्राप्त की। 2025 में थाईलैंड में आयोजित एक प्रमुख प्रतियोगिता में उन्होंने कांस्य पदक प्राप्त किया।  

वे बताती हैं भोपाल आने से पहले उनकी अमरनाथ यात्रा 2023 के दौरान, डिस्कवरी चैनल की तरफ से एक डाक्यूमेंट्री बनाई गई है, जो जल्द ही नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली है। इस डाक्यूमेंट्री में स्पाइनल इंजरी के बावजूद उनकी अमरनाथ यात्रा के अनुभवों को विशेष रूप से दर्शाया गया है। 

कैंसर से जंग और नये रिकॉर्ड 

पूजा की जिंदगी में एक और नया दुखद मोड़ तब आया जब 2024 में उन्हें कैंसर का पता चला। हालांकि, उनके लिए यह एक और कठिन दौर था, लेकिन पूजा ने इसे भी अपनी शक्ति बना लिया। उन्होंने न केवल कैंसर से जंग लड़ी, बल्कि इस असाध्य रोग से मुकाबले का संदेश लेकर वे मोटरबाइक से 4500 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नाथूला यात्रा पर भी गई और वहां भारतीय तिरंगा फहराया। यह ऐतिहासिक कार्य करने वाली वे भारत की पहली पैराप्लेजिक महिला बनीं। उनकी इस असाधारण उपलब्धि को 'World Book of Records' में दर्ज किया गया। इतना ही नहीं, भारतीय सेना द्वारा उन्हें विशेष प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। 

समाज सेवा की शुरुआत

पूजा ने अपने जीवन के संघर्षों से सीखा कि जब तक हम दूसरों की भलाई के लिए कुछ नहीं करेंगे, हमारा जीवन अधूरा रहेगा। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2021 में उन्होंने अपने दोस्त गौरव अग्रवाल के साथ मिलकर ‘पंखों की उड़ान’ नामक संस्था की शुरुआत की। उनकी संस्था बच्चों की शिक्षा, सरकारी स्कूलों में 'गुड टच-बैड टच' के बारे में जागरूकता, साइबर क्राइम के प्रति जागरूकता, महिला सशक्तिकरण और कैंसर अवेयरनेस जैसे कई अन्य सामाजिक पहलुओं पर काम करती है। इसके अलावा वे स्वावलंबन की दिशा में भी काम कर रही हैं, जिसमें अपाहिज महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण और बुजुर्गों के लिए मदद शामिल हैं। 

कैंसर काउंसलिंग सेंटर ‘ट्रिपल सी’ 

पूजा ने कैंसर से जूझ रहे मरीजों को मानसिक और भावनात्मक सहयोग देने के लिए ‘ट्रिपल सी’ (कैंसर काउंसलिंग सेंटर) की शुरुआत की। इस केंद्र में मरीजों को मानसिक संघर्ष से उबरने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह पहल लोगों को यह सिखाती है कि कोई भी चुनौती इतनी बड़ी नहीं होती कि उसे पार न किया जा सके। चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों के साथ मिलकर वे अब तक करीब डेढ़ सौ से अधिक मरीजों को परामर्श दे चुकी हैं। 

अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिनिधि 

पूजा न केवल खेलों में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय नीति मंचों पर भी भारत का गौरव बढ़ा रही हैं। वे यूनेस्को के ‘Safeguarding Manual for Sports Advisory Group’ की सदस्य हैं, जहां वे दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए समान अवसर और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए योगदान दे रही हैं। 

दर्द और संघर्ष का सामना 

15 साल पहले एक ऑपरेशन के दौरान पूजा के बाएँ पैर की नस क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके कारण आज भी उन्हें अत्यधिक जलन और दर्द का सामना करना पड़ता है। यह दर्द शारीरिक रूप से असहनीय तो है ही, मानसिक रूप से भी भारी पड़ता है। वे बताती हैं इस दर्द के चलते इन वर्षों में, उन्होंने कभी पूरी रात आराम से नींद नहीं ली है। दवाइयों के सहारे थोड़ी देर के लिये ही राहत मिलती है। इतना ही नहीं, उन्हें अक्सर त्वचा में घाव (बेड सोर्स) भी हो जाते हैं, जिन्हें वे स्वयं ही नियमित रूप से ड्रेसिंग करती हैं।  इसके बावजूद, पूजा ने इस दर्द को अपनी नियति मान लिया है। वे कहती हैं, "यह दर्द मेरे जीवन का साथी बन गया है, लेकिन इससे मुझे एक महत्वपूर्ण सीख भी मिलती है कि मुझे चलते रहना है, हार नहीं माननी है।"

पूजा इस समय कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। उनके दूसरे लक्ष्यों के साथ ही वे शिक्षा विभाग के सहयोग से एक प्लेनेटोरियम प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं, जिसमें सरकारी स्कूलों के बच्चों को सौरमंडल के बारे में जानकारी दी जायेगी। इसके अलावा, वे 'उड़ान टू स्पेस' प्रोजेक्ट पर भी लगातार काम कर रही हैं, जो बच्चों को अंतरिक्ष के बारे में जागरूक करने की दिशा में एक अहम कदम है। इसके साथ ही, पूजा 2026 एशियन गेम्स और 2028 पैरालिंपिक की तैयारी में व्यस्त हैं। वे दिव्यांग एथलीटों को नि:शुल्क व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, जो खेल चयन, प्रशिक्षण योजना, छात्रवृत्ति और प्रायोजन सलाह, और राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स की योजना पर आधारित होता है। 

पूजा सभी को संदेश देना चाहती हैं कि कैंसर पीड़ित और गंभीर बीमारी के मरीजों के लिए जिंदगी कभी आसान नहीं होती, लेकिन परिस्थिति का सामना करना और हर चुनौती को आत्मविश्वास से पार करना संभव है। उनका विश्वास है कि “जब तक हम हार नहीं मानते, तब तक कोई भी हमारी राह रोक नहीं सकता।”

 

उपलब्धियां

•  इंदौर जिला प्रशासन द्वारा 'डिस्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग कमेटी ऑन एकोसिबल इलेक्शन' की सदस्य के रूप में नामांकित

•  यूनेस्को द्वारा 'खेलों के लिए सुरक्षा नियमावली' (Safeguarding Manual for Sports) विकसित करने हेतु गठित सलाहकार समूह (Advisory Group) की सदस्य

•  अद्वितीय साहसिक कार्य के लिए लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज, बनीं विश्व की पहली पैरा महिला 

 

खेलों में उपलब्धियां : राष्ट्रीय

•  प्री-नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप-अहमदाबाद (स्वर्ण पदक 2017)

•  नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप-भोपाल (2017)

•  स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप  -इंदौर (स्वर्ण पदक 2017)

•  नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप-त्रिवेंद्रम (2018 शीर्ष चार में शामिल)

•  नेशनल पैरा कैनो चैंपियनशिप-भोपाल 2023/2024/2025

अंतरराष्ट्रीय 

•  ACC पैरा कैनो और कयाकिंग एशियन चैंपियनशिप (उज्बेकिस्तान- 2023/ जापान – 2024 चौथा स्थान)

•  ACC पैरा कैनो और कयाकिंग एशियन चैंपियनशिप-जापान (2024-चौथा स्थान)

•  एशियन पैरा कैनो चैंपियनशिप-थाईलैंड (200m   VL2 और 500m VL2 में कांस्य पदक 2025)

 

सम्मान

•  भारतीय सेना द्वारा सम्मानित 

•  पैरा-स्पोर्ट्स में शानदार योगदान के लिए केंद्रीय मंत्री -युवा मामले और खेल-डॉ. मनसुख मंडाविया, मुख्यमंत्री मोहन यादव और राज्य खेल मंत्री विश्वास सारंग द्वारा द्वारा सम्मानित

•  लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने पर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा सम्मानित

•  भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा  ‘राष्ट्रीय पुरस्कार 2025’ 

सन्दर्भ स्रोत : पूजा गर्ग सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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