• सुधीर जैन, सतना
• डाक टिकटों में मप्र की महिलाएं
• 6 वर्ष की उम्र में ही लिखा हिन्दी में दोहा। देशभक्ति पर लिखीं अनेक कविताएं।
• राष्ट्रीय गीत ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ की रचयिता।
• गांधीजी से थीं प्रभावित। स्वाधीनता आन्दोलनों में भाग लेकर कई बार गईं जेल।
• असहयोग आन्दोलन, सत्याग्रह आन्दोलन तथा झण्डा आन्दोलन में लिया भाग लिया।
• गिरफ्तार होने वाली पहली महिला सत्याग्रही।
• अनेक काव्य एवं कथा संग्रह प्रकाशित।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का तो डाक विभाग ने सम्मान किया ही, साथ ही ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ जैसे राष्ट्रीय गीत की रचयिता सुभद्राकुमारी चौहान की याद में भी एक टिकट 6 अगस्त 1976 को जारी किया गया। सुभद्राजी का जन्म सन् 1904 में इलाहाबाद में तथा विवाह सन् 1919 में खण्डवा निवासी लक्ष्मण सिंह चौहान से हुआ था। सुभद्राजी गांधीजी से बहुत प्रभावित थीं तथा खण्डवा व जबलपुर में स्वाधीनता आन्दोलनों में भाग लेकर कई बार जेल गईं। उनके कई काव्य एवं कथा संग्रह प्रकाशित हुए एवं वे सेक्सरिया पुरस्कार से भी सम्मानित हुई । केवल 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने हिन्दी में दोहा लिखा था । सन् 1920 में उनकी कवितायें हिन्दी के जोशीले सप्ताहिक पत्र ‘कर्मवीर’ में प्रकाशित हुई थीं और तभी से सुभद्रा जी ने प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन में 1920 में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का फैसला किया। वे सत्याग्रह आन्दोलन के लिए चन्दा एकत्र करने के लिये गांव-गांव गईं। इसके बाद झण्डा आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया। वे पहली महिला सत्याग्रही थीं, जिन्होंने अपने आपको गिरफ्तार कराया। उन्होंने ‘‘सेनानी का स्वागत’’, ‘‘वीरों का कैसा हो बसंत’’ और ‘‘झांसी की रानी’’ जैसी अत्यन्त प्रेरणाप्रद और देश भक्ति पूर्ण कवितायें लिखीं। ‘‘झांसी की रानी’’ कविता की गणना हिन्दी साहित्य की उन कविताओं में की जाती है, जो सबसे अधिक पढ़ी गई और गाई गई। वे विधान सभा की सदस्य भी रहीं। 15 फरवरी 1948 को सिवनी के पास एक कार दुर्घटना में उनकी असामयिक मृत्यु हो गई।
लेखक डाक टिकट संग्राहक हैं।
© मीडियाटिक
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