• सुधीर जैन, सतना
• डाक टिकटों में मप्र की महिलाएं
• विक्रमादित्य सिंह के अस्वस्थ होने पर संभाला शासन।
• अंग्रेजों से एक-एक इंच जमीन वापस लेने की ली प्रतिज्ञा
• 1857 की क्रांति में चार हजार सैनिकों तैयार की सेना
• पहली मुठभेड़ में अंग्रेज सेनापति वाडिंगटन को किया बुरी तरह पराजित।
सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाली वीरांगनाओं में मध्य प्रदेश के मण्डला जिले के रामगढ़ राज्य की रानी अवन्तीबाई का नाम गौरव से लिया जाता है। अवन्तीबाई मनकेड़ी के जागीरदार राव जुझार सिंह की पुत्री थीं। उनका विवाह रामगढ़ नरेश गज सिंह के पौत्र विक्रमादित्य सिंह के साथ हुआ था।
जब विक्रमादित्य सिंह अस्वस्थता के कारण रियासत का काम काज संभालने में असमर्थ हो गये, तब अवन्तीबाई ने शासन संभाला। उनका शासन निष्पक्षता और न्याय पर आधारित था, अत: शीघ्र ही प्रजा उन्हें सम्मान और आदर की दृष्टि से देखने लगी। सन् 1851 में रानी अवन्तीबाई की इच्छा के विरूद्ध अंग्रेजों द्वारा रामगढ़ राज्य की देखभाल के लिए एक अंग्रेज तहसीलदार की नियुक्ति से अपमानित होकर उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक वह अंग्रेजों से एक-एक इंच जमीन नहीं ले लेतीं तक तक वह चैन से नहीं बैठेंगी। इस बीच उनके पति का देहान्त हो गया। 1857 में जब क्रांति का बिगुल बजा तो रानी अवन्तीबाई ने चार हजार सैनिकों की एक सेना खड़ी की और स्वयं ही उसका नेतृत्व संभाला । अंग्रेजों के साथ उनकी पहली मुठभेड़ में अंग्रेज सेनापति वाडिंगटन बुरी तरह पराजित हुआ। वाडिंगटन ने पुन: रामगढ़ पर आक्रमण किया ।
रानी ने रामगढ़ छोडक़र देवहारीगढ़ की पहाड़ी पर घने जंगलो के बीच युद्ध का मोर्चा लगाया। अंग्रेज सेनाओं ने इस पहाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया। चारों ओर से घिर जाने पर जब रानी को यह लगा, कि उनकी पराजय निश्चित है तो उन्होंने बंदी होने की अपेक्षा आत्म बलिदान करना श्रेयकर समझा और 20 मार्च 1858 को अपना बलिदान देकर वे शहीद हो गईं । भारतीय डाक विभाग द्वारा इस वीरांगना के सम्मान में दो डाक टिकट जारी किये। पहला 60 पैसे मूल्य का टिकट उनकी पुण्यतिथि 20 मार्च 1988 को तथा दूसरा चार रूपये का बहुरंगी टिकट 19 सितम्बर 2001 को जारी हुआ।
लेखक डाक टिकट संग्राहक हैं।
© मीडियाटिक
इन्हें भी पढ़िये -
Saleha Bano – 29 Dec, 2022
Thanks for sharing this knowledge with storages we really need to know this