छाया : पिनटेरेस्ट डॉट कॉम
• डॉ. शम्भुदयाल गुरु
सिकन्दर बेगम (1844 से 1868)
• राजस्व की वसूली के लिए ठेके की पद्धति को समाप्त किया
• पहली बार अपनी रियासत का सीमांकन करवाया
• अपने शासनकाल में सैनिकों के नियमित वेतन का प्रबंध किया
• रियासत के तीस लाख का कर्ज चुकाया
• प्रशासनिक और अदालती कामकाज के लिए फ़ारसी की जगह उर्दू को जगह दी
नवाब जहांगीर मेाहम्मद खान का 9 दिसम्बर 1844 को निधन हो गया। उसने सेना को शहर के मध्य से हटाकर छोटे तालाब के पास नयी बसाहट जहांगीराबाद में तैनात किया। उसने अपनी वसीयत में अपनी प्रेयसी से जन्में दस्तगीर को उत्तराधिकारी घोषित किया था। परंतु ब्रिटिश सरकार ने इसे नहीं माना और सिकन्दर बेगम की पुत्री शाहजहां बेगम को उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी। यह भी तय किया गया कि उसकी 7 वर्ष की अल्पाायु के कारण शाहजहां बेगम की मां सिकन्दर बेगम, रीजेन्सी का कार्यभार सम्हालेंगी। साथ ही मदद के लिए कुदसिया बेगम के भाई फौजदार मोहम्मद खान मंत्री के रूप में उनकी सहायता करेंगे। इस दोहरी व्यवस्था से प्रशासन में विवाद की स्थिति बनी रही। अत: फौजदार मोहम्म्द को इस्तीफा देना पड़ा और सिकन्दर बेगम ने रीजेन्ट के तौर पर 1847 में प्रशासन का पूरा जिम्मा सम्हाल लिया।
योग्य प्रशासिका
सिकन्दर बेगम ने बड़ी बहादुरी और योग्यता के साथ भोपाल रियासत का प्रशासन सम्हाला। राजस्व की वसूली ठेके की पद्धति से करने की व्यवस्था थी। बेगम ने इसे समाप्त कर दिया और ग्राम प्रमुखों के साथ सीधे बन्दोबस्त किये। व्यापार के एकाधिकार उन्होंने समाप्त कर दिए और चेन पद्धति से जमीन का नाप कराया और रियासत को तीन संभागों और 21 उपसंभागों में विभाजित कर दिया। उन्होंने रियासत का पहली बार सीमांकन कराया और पुनर्गठन किया तथा सैनिकों को नियमित वेतन देने का प्रबंध किया। इससे सैनिकों में नया जज्बा पैदा हुआ। उन्होंने पुलिस संगठन की स्थापना और दूर दराज के स्थानों पर पुलिस थाने बनाये। सिकन्दर बेगम ने इतनी कुशलता से प्रशासन चलाया कि रियासत पर 30 लाख रुपये का जो कर्ज था, उसे पूरी तरह चुका दिया। उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए अथक प्रयास किया। इसके लिए बाहर से विद्वान बुलाये गये। एक बड़ा सुधार यह किया कि प्रशासन तथा अदालतों में फारसी के स्थान पर उर्दू भाषा लागू कर दी। इससे पढऩे लिखने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ।
नामांकित सदन का गठन
सिकन्दर बेगम ने रियासत में एक महत्वपूर्ण सुधार किया। उन्होंने नामांकित सदस्यों की एक सदन (असेम्बली) का गठन किया। उसका नाम था मजलिस-ए-शूरा। उसमें विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों और वर्गों के विशेषज्ञ, बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री नामांकित किये गये। कानूनों पर मजलिस में गंभीर चर्चा होती तभी उन्हें लागू किया जाता। लोगों की सुविधा के लिए उन्होंने भोपाल तथा रियासत के अन्य क्षेत्रों में सड़कें बनवायी। वे स्वयं गांवों का दौरा करतीं और समस्याओं से रूबरू होकर उनका हल निकालती। 1860 में उन्होंने भव्य जामा मस्जिद का निर्माण कराया। यह मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद के अनुरूप है।
1857 की क्रांति में अंग्रेजों का दिया साथ
उनके शासन काल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया, जिसमें देशभक्तों ने अंगे्रजी सत्ता को उखाड़ फेंकने की पुरजोर कोशिश की। देश में अनगिनत वीरों ने शहादत दी। लेकिन उस कठिन घड़ी में भारत के अनेक राजाओं की तरह सिकन्दर बेगम भी पूरी तरह अंगे्रजों के साथ थी। गढ़ी अम्बापानी के जागीदार भाईयों फाजिल मोहम्मद खान तथा आदिल मोहम्मद खान के विद्रोह को उन्होंने सख्ती से कुचला। सीहोर में सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह किया तो अंग्रेजों ने 149 सैनिकों को एक पंक्ति में खड़ा कर गोली से उड़ा दिया। सिकन्दर बेगम ने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की भरपूर सहायता की। यहां एक भी अंग्रेज नहीं मारा गया।
तन-मन-धन से अंग्रेजों की सहायता का सिकन्दर बेगम को पूरा लाभ मिला। शाहजहां बेगम वयस्क होने पर बेगम घोषित होना थी। परंतु शाहजहां ने अपनी मां को नवाब बनाने के लिए अंग्रेजों से निवेदन किया। अंग्रेज भी सन् 1857-58 में सिकन्दर बेगम की निष्ठा से इतने प्रसन्न थे कि उन्हें 1860 में रीजेन्ट के स्थान पर भोपाल का नवाब घोषित कर दिया गया। साथ ही सहायता के पुरस्कार स्वरूप सिकन्दर बेगम को धार से विद्रोह के कारण जब्त किया गया बेरसिया परगना भी भोपाल रियासत को प्रदान किया गया। इसकी सनद् वायसराय लार्ड केनिंग ने, 1861 में,जबलपुर में आयोजित विशेष दरबार में सिकन्दर बेगम को सौंपी।
अक्टूबर 1861 में नवाब सिकन्दर बेगम का निधन हो गया।
लेखक जाने माने इतिहासकार हैं।
© मीडियाटिक
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *