कलकत्ता हाइकोर्ट :भले ही मां साथ ना रहती हों, पर बेटे को भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी होगी

blog-img

कलकत्ता हाइकोर्ट :भले ही मां साथ ना रहती हों, पर बेटे को भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी होगी

कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट की न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भले ही मां बेटे के साथ ना रहती हों, लेकिन वृद्ध मां का भरण-पोषण बेटे को करना होगा. पुत्र इससे इनकार नहीं कर सकता.

यह मामला तब सामने आया, जब एक वृद्ध मां ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता की मां बचपन में ही उसे छोड़कर चली गयी थीं और उसके बाद उन्होंने कभी बेटे की सुध नहीं ली. बेटे का अपनी मां से पिछले 15 साल से कोई संपर्क नहीं है. 

बेटे के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि जिस मां ने उसे जरूरत के वक्त छोड़ दिया और कभी मुड़कर नहीं देखा, उसका अब भरण-पोषण करना उचित नहीं है. वहीं, याचिकाकर्ता मां के वकील ने कोर्ट को बताया कि वह फिलहाल वृद्धाश्रम में रहती हैं और उनकी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने वाला कोई नहीं है. उन्होंने कहा कि उनका बेटा अपनी मां की देखभाल करने में सक्षम है, इसलिए वृद्ध महिला का अनुरोध है कि बेटा अपनी मां के न्यूनतम खर्च का ध्यान रखे.

बेटे के वकील ने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल का अपनी मां से कोई रिश्ता नहीं है, क्योंकि उसकी मां ने उसे बचपन में ही छोड़ दिया था और वह अपने पिता को तलाक दिये बिना चली गयी थी. उन्होंने तर्क दिया कि जब बेटे को अपनी मां की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तो उसने उसे छोड़ दिया.

न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत मां और बेटे के बीच के व्यक्तिगत विवाद पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि बेटे का अपनी मां के प्रति न्यूनतम कर्तव्य है. चूंकि बेटा आर्थिक रूप से संपन्न है और मां को मदद की जरूरत है, इसलिए अदालत का मानना है कि बेटे को मां के भोजन और इलाज का बुनियादी खर्च उठाना चाहिए.

न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि बेटा यह पैसा वृद्धाश्रम चलाने वाली गैर-सरकारी संस्था के बैंक खाते में भेज सकता है, जिससे उसे मां से सीधे संपर्क करने की आवश्यकता नहीं होगी. उन्होंने जोर दिया कि जन्म देने वाली मां की न्यूनतम जिम्मेदारी बेटे को लेनी होगी. बेटे द्वारा मां को कितना रुपया दिया जायेगा, यह अगली सुनवाई पर तय किया जाएगा.

सन्दर्भ स्रोत : प्रभात खबर

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



दिल्ली हाईकोर्ट :  पत्नी-बच्चे को वित्तीय सहायता देने
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट :  पत्नी-बच्चे को वित्तीय सहायता देने , में देरी करना सम्मान से वंचित करने के समान

दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य सम्मान के साथ जीने और भोजन, आश्रय, कपड़े, स्वास्थ्य सेवा...

पटना हाईकोर्ट : तलाक के बाद भी पत्नी
अदालती फैसले

पटना हाईकोर्ट : तलाक के बाद भी पत्नी , कर सकती है भरण-पोषण की मांग

खंडपीठ ने मामला भरण-पोषण की राशि पुनः निर्धारित करने हेतु पारिवारिक न्यायालय, भागलपुर को भेज दिया है। कोर्ट ने तीन माह क...

 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट  पत्नी पर अवैध संबंध के झूठे आरोप मानसिक क्रूरता
अदालती फैसले

 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट  पत्नी पर अवैध संबंध के झूठे आरोप मानसिक क्रूरता

पति की अपील पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, पति ने पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया है।...

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बचपन से खिलवाड़ में माफी
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बचपन से खिलवाड़ में माफी , नहीं, नाबालिग से रेप में हाईकोर्ट की सख्ती

कोर्ट ने कहा, कि, जबरदस्ती का मतलब हर बार चोट नहीं होती, पीड़िता की मानसिक स्थिति और बयान ही काफी हैं।

तेलंगाना हाईकोर्ट  : शादी का वादा कर मुकरना अपराध नहीं
अदालती फैसले

तेलंगाना हाईकोर्ट : शादी का वादा कर मुकरना अपराध नहीं

तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि शादी का वादा तोड़ना धोखा है, लेकिन अपराध नहीं। लेकिन अगर शुरुआत से धोखा देने की मंशा हो और स...