गौतमा बाई : जिनकी सूझबूझ से शुरुआत हुई होलकर राजवंश की

blog-img

गौतमा बाई : जिनकी सूझबूझ से शुरुआत हुई होलकर राजवंश की

छाया: श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के फ़ेसबुक पेज से 

प्रदेश के इतिहास में होलकर राजवंश का विशेष महत्व है। इस वंश के पुरुष शासक ही नहीं, उनकी रानियाँ भी राजनीतिक सूझ-बूझ रखती थीं और नीति निर्धारण में भी महत्वपूर्ण योगदान देती थीं। होलकर राजवंश के प्रथम राजकुमार मल्हार राव की पहली पत्नी गौतमा बाई ऐसी ही महिला थीं।

गौतमा बाई  के जन्म दिनांक को लेकर मतभेद है। इंडिया फोरम्स डॉट कॉम के अनुसार गौतमा बाई का जन्म 16 जून 1694 को तालोद्या (जिला नंदुरबार, महाराष्ट्र) में हुआ। उनका नामकरण संत गौतमेश्वर के नाम पर किया गया था। उनके पिता भोजराज बाबा बारगल जमींदार थे, उनकी माता का नाम मोहिनी बाई और भाई का नाम नारायण राव था। जमींदार भोजराज अपने भांजे मल्हार राव की परवरिश भी कर रहे थे क्योंकि तीन वर्ष की आयु में ही मल्हार राव के पिता की मृत्यु हो गई थी और उनकी माँ उन्हें लेकर अपने भाई (भोजराज) के पास आ गई थी। इस तरह गौतमा बाई और मल्हार राव दोनों का पालन-पोषण साथ-साथ ही हुआ। मल्हार राव बचपन से ही साहसी और शूरवीर थे। भोजराज बारगल, मराठा सरदार कदम बन्दे के अधीन एक घुड़सवार सेना का सञ्चालन करते थे। उनके कहने पर मल्हार राव भी उनकी टुकड़ी में शामिल हो गए एवं कुछ ही दिनों के बाद उन्हें उस टुकड़ी का प्रभारी बना दिया गया।

माता-पिता ने वर्ष 1717 में गौतमा बाई का विवाह मल्हार राव के साथ कर दिया। वह राजनीतिक अनिश्चितताओं का दौर था। अपने शौर्य और साहस के दम पर मल्हार राव बाजीराव पेशवा (प्रथम) की सेवा में 1720-1740 तक रहे। इस दौरान उन्होंने कई विजय अभियानों में हिस्सा में लिया। उल्लेखनीय है कि तब तक मल्हार राव पेशवा के सूबेदार कहलाते थे। गौतमा बाई के जीवन का पूर्वार्ध प्रायः मल्हार राव के साथ सैन्य शिविरों में ही व्यतीत हुआ।

इंदौर रियासत और खासगी जागीर

3 अक्टूबर 1730 ई. को पेशवा ने छत्रपति शाहू महाराज की आज्ञा से मल्हार राव होलकर को सभी अधिकारों के साथ मालवा के 76 परगनों का सरंजाम सौंप दिया। फिर 22 जून 1732 ई. को पेशवा ने शाहू महाराज की सहमति से मल्हार राव को मालवा के इंदौर, देपालपुर और बेटमा के साथ 28 परगने सैनिक व्यय के लिए और दे दिए। 20 जनवरी 1734 ई. को फिर पेशवा ने मल्हार राव होलकर के परिवार के निजी खर्च के लिए “खासगी जागीर” दी। खासगी और दौलत  की व्यवस्था अलग- अलग थी (स्रोत: हिस्ट्री ऑफ़ भारत डॉट कॉम)। कहते हैं एक बार गौतमा बाई ने पेशवा को शिकायत की, कि महाराज हमेशा युद्ध के लिए बाहर रहते हैं। हमें परिवार का खर्च चलाना मुश्किल होता है। इसके लिए अलग इंतज़ाम किया जाना चाहिए। पेशवा के सामने दुविधा थी कि इनाम दिया तो मल्हारराव के साथ ही शिंदे, गायकवाड़, पंवार और अन्य नाराज़ हो जाएंगे। ऐसे में तय किया गया कि 2,99,0010 रुपए के सालाना लगान वाले गांव खासगी जागीर के तौर पर दे दिए जाएं। इसमें महेश्वर, चौली, हरसौला, सांवेर के समीप बरलाई तलुन, हातोद, महिदपुर, जगोटी, करंजमा इत्यादि मध्यभारत प्रांत के गांव दिए गए। इनका लगान 2.63 लाख रुपए होता था। इसके अलावा दक्षिण में चांदबड़, अंबाड़ा और कोरेगांव थे, जिनसे 36,010 रुपए सालाना लगान मिलता। 

गौतमा बाई को जो उनके निजी खर्च के लिए दिए थे, वे “खासगी जागीर“ परगने कहलाते थे और जो सैनिक व्यय के लिए दिए थे वे “दौलत शाही” परगने  कहलाते थे। गौतमा बाई की इच्छानुसार ही खासगी जागीर होलकर वंश के शासकों की पहली पत्नियों को परंपरानुसार प्राप्त होती गई। खासगी जागीर से जो आय होती थी, वह ज्येष्ठ रानी स्वयं खर्च कर सकती थी। उसके आय-व्यय का ब्यौरा होलकर राज्य के कारखानेदार (मैनेजर) रखते थे। उस समय दौलत शाही और खासगी जागीर की व्यवस्था प्रशासन, कर्मचारी और मोहरें - सभी अलग-अलग होते थे। गौतमा बाई जीवन भर खासगी जागीर की मालिक बनी रहीं और उससे होने वाली आमदनी से उन्होंने कई निर्माण कार्य करवाए। अपनी मृत्यु से पूर्व ही यह अधिकार उन्होंने अहिल्याबाई को दे दिया था। खासगी के अंतर्गत आने वाले मुख्य स्थान थे - महेश्वर, चोली, इंदौर, हर्सोला, देपालपुर, महिदपुर, बरलाई, जागोटी, मक्दोंन, चाँदबड, अम्बाड। गौतमाबाई ने अपनी निजी भूमि के सैकड़ों एकड़ बागों और अफीम के फूलों की खेती के लिए उपयोग किया, जो उस समय मसाले के रूप में उपयोग किए जाते थे।

वास्तव में इंदौर के होलकर राजवंश की स्थापना के साथ इंदौर रियासत की स्थापना भी गौतमा बाई को प्राप्त हुए खासगी जागीर से ही होती है। गौतमा बाई ने कदम-कदम पर पति का साथ दिया। उनकी सूझ-बूझ का मल्हार राव भी सम्मान करते थे एवं मुश्किल घड़ी में उनके सुझाव पर अमल भी करते थे। उल्लेखनीय है कि पुत्रवधू अहिल्या बाई के व्यक्तित्व को निखारने में भी मल्हार राव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कहा जा सकता है कि वे स्त्रियों में निहित प्रतिभाओं का न केवल सम्मान करते थे बल्कि उन्हें विकसित होने के लिए उपयुक्त वातावरण भी देते थे। यही कारण है कि बाद में मल्हार राव ने बाना बाई, द्वारका बाई और हर कुंवर बाई से भी विवाह किया, लेकिन गौतमा बाई का सम्मान सदैव बना रहा।

विवाह के 7 वर्ष बाद गौतमा बाई ने 1725/1723  में विजयादशमी के दिन खांडेराव को जन्म दिया, आगे चलकर जिसका विवाह अहिल्याबाई के साथ हुआ। पिता मल्हार राव एवं पुत्र खांडेराव - दोनों अधिकांशतः युद्ध अभियानों में राज्य से बाहर ही रहते थे। इस दौरान गौतमा बाई अपनी पुत्रवधु को प्रशिक्षण देने के साथ राज्य के महत्वपूर्ण फैसले लेतीं। वर्ष 1729 में गौतमा बाई ने औरंगाबाद स्थित घृष्णेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण भी गौतमा बाई ने अपने जीवन काल में प्रारंभ करवाया था, जिसे अहिल्याबाई ने पूरा करवाया। वर्ष 1754 में पुत्र खांडेराव का एक युद्ध अभियान में मृत्यु हो गयी, द्वारका बाई द्वारा अपने दामाद को उत्तराधिकारी बनाने की अनेक चेष्टाओं के बावजूद गौतमा बाई एवं मल्हार राव सहमत नहीं हुए और उन्होंने तुकोजी राव को गोद ले लिया।

वर्ष 1761 में गौतमा बाई की मृत्यु हो गई और उनकी तमाम जिम्मेदारियां अहिल्या बाई उठाने लगीं। स्वाभाविक रूप से खासगी जागीर भी अहिल्याबाई के पास आ गई और वे जीवन भर उसकी देखरेख करती रहीं, जबकि दौलत शाही की देखभाल तुकोजी राव होलकर करते थे, क्योंकि गौतमाबाई ने उन्हें गोद ले लिया था। हालांकि वे राजा, अहिल्याबाई के देहांत के बाद बने। इस तरह होलकर राजवंश में दो प्रकार के खजानों का विस्तार हुआ, दौलत शाही - जिसके स्वामी राजा होते थे और जिससे सार्वजनिक व्यय किये जाते थे। दूसरा खासगी - जो रानी की मिल्कियत होती थी। खासगी जागीर के माध्यम से गौतमा बाई से लेकर कालांतर में अहिल्या बाई एवं अन्य रानियों ने भी कई मंदिरों, घाटों और सरायों आदि का निर्माण करवाया।

संदर्भ स्रोत- विकिपीडिया, इंडिया फोरम्स डॉट कॉम, पत्रिका डॉट कॉम, भास्कर डॉट कॉम, भारत डिस्कवरी डॉट ओआरजी एवं अन्य पत्र-पत्रिकाएँ

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली छापामार योद्धा रानी राजो
स्वतंत्रता संग्राम में मप्र की महिलाएं

अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली छापामार योद्धा रानी राजो

राजा पारीक्षित को जोरन गढ़ी में जिन्दा जलाए जाने की खबर जैसे ही उनकी रियासत जैतपुर पहुंची तो उनकी रानी राजो ने पति की मौ...

वीरांगना रानी दुर्गावती
डाक टिकटों पर मध्यप्रदेश की महिला विभूतियाँ

वीरांगना रानी दुर्गावती

वीरांगना रानी दुर्गावती, रथ और महोबा के चंदेलवंशी राजा शालीवाहन की पुत्री थीं । उनका विवाह गोंडवाना राज्य के शासक दलपत श...

रानी दुर्गावती जिनके शासन काल में स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों के रूप में भरी जाती थी लगान
मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं

रानी दुर्गावती जिनके शासन काल में स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों के रूप में भरी जाती थी लगान

गढ़ा-मंडला की रानी दुर्गावती ने स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हंसते-हंसते प्राणों की आहूति दी थी। उनके आत्मोत्सर्ग की गौरव...

जातक कथाओं के शिल्पांकन में स्त्री
पुरातत्त्व में नारी पात्र

जातक कथाओं के शिल्पांकन में स्त्री

मध्यप्रदेश ऐसे कई प्राचीन बौद्ध विहार एवं स्तूप हैं जिनकी दीवारों पर जातक कथाएँ उकेरी हुई हैं।

रानी दमयंती जिसे जुए में हार गए थे राजा नल
मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं

रानी दमयंती जिसे जुए में हार गए थे राजा नल

रानी दमयंती-नल दमयंती एक दूसरे के रूप, गुण और पराक्रम के बारे सुनकर ही परस्पर प्रेम करने लगे थे।

रानी अवंती  बाई जिनकी शहादत आज भी है एक राज
स्वतंत्रता संग्राम में मप्र की महिलाएं

रानी अवंती बाई जिनकी शहादत आज भी है एक राज

रामगढ़ की रानी अवंती बाई ने वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह विदेशी सत्ता के विरुद्ध बगावत का झण्डा उठाया और 1857 के प्रथम स्...