• वेदप्रकाश नगायच
मध्यप्रदेश की धरती पर आज भी अतीत की दुर्लभ स्मृतियाँ दर्ज हैं. इनके माध्यम से हमें बीते हुए कल को समझने में मदद मिलती है. विभिन्न आकार-प्रकार व रंगों वाले शैलचित्रों में उकेरी गयीं स्त्री पात्र अपनी कहानी खुद कहती हुई सी प्रतीत होती हैं.
भीमबैठका
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक संख्या में शैलाश्रय हैं जिनमें भोपाल के निकट भीमबैठका समूह विश्व में सबसे बड़ा है। यहां के एक शैलाश्रय में एक दृश्य में स्त्रियों के एक समूह को अपने बालकों को कंधे से बंधी टोकरी में सुरक्षापूर्वक लटकाए हुए फलोंयुक्त पेड़ों पर यहां से वहां जाते हुए दर्शाया गया है। दूसरे एक दृश्य में कुछ बालक अपनी माँ की गोद में बैठे हैं। लेकिन सबसे मार्मिक दृश्य है बच्चे की मृत्यु पर रोती बिलखती माँ का चित्रण। इन चित्रों का समय लगभग 5 हजार ईसा पूर्व अनुमानित है।
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चुरनागुंडी (होशंगाबाद)
चुरनागुंडी शैलाश्रय चुरना गांव से उत्तर की ओर 3 कि.मी. की दूरी पर आरक्षित वन में है। यहां दो शैलाश्रय हैं। दूसरे शैलाश्रय में एक स्त्री की आकृति का हल्के पीले से पूरक शैली में अंकन किया गया है। स्त्री के हाथों की उंगलियां बहुत स्पष्ट दर्शाई गई हैं। स्त्री सिर पर कुछ रखे हुए जा रही है जिससे उसके दोनों हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं। प्रतीत होता है कि सिर पर कुछ रखकर बिना पकड़े चलने की चेष्टा की जा रही है। चित्र में गतिशीलता है।
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डोरथी द्वीप (होशंगाबाद)
धूपगढ़ रोड पर जम्बूदीप नाले से आगे मांटेरोजा मार्ग से दक्षिण-पूर्व की दिशा में होकर जाने पर नीचे उतरते हुए डोरथी द्वीप की एक गुफा में धनुर्धर पुरुष अपनी स्त्री के साथ जाते हुए चित्रित किया गया है। धनुर्धर के हाथों में धनुष एवं वाण है तथा वह अधोवस्त्र पहने हैं एवं बाल बंधे हुए हैं। वहीं स्त्री के हाथों में पात्र जैसी वस्तु है तथा दूसरा हाथ आधा अंकित है। स्त्री के हाथों के ऊपर का उत्तरीय चन्द्राकार है। स्त्री अधोवस्त्र एवं कटिबंध धारण किए है। इस चित्र में पूर्ण स्वाभाविकता है।
चिब्बड़नाला (मंदसौर)
भानपुरा से 32 कि.मी. उत्तर पूर्व हरिगढ़ गांव के पास चिब्बड़नाला है जिसके एक शैलाश्रय में 14 आकृतियां अंकित हैं। सिरों की जटा के अनुसार ये 7 स्त्रियां एवं 7 पुरुष हैं। खाना पकाने का दृश्य है। बाण लगे एक मृत पशु का मांस 5 पुरुष आकृतियों द्वारा पात्र में संग्रह किया गया है, जिसे एक स्त्री पका रही है। चूल्हे को एक तिपाई के रूप में प्रदर्शित किया गया है जिस पर एक बड़ा पात्र रखा है। दूसरे एक शैलाश्रय में कांवर में बैठे माता-पिता कई बार अंकित किए गए हैं तथा चार मौर्यकालीन ब्राह्मी में अभिलेख भी अंकित है।
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चतुर्भुजनाला (मंदसौर)
गांधी सागर से 6 कि.मी. दूर झील के किनारे चतुर्भुज नाला है। यहां के एक शैलाश्रय में एक नारी का चित्र अंकित है, जिसके विशाल नितम्ब एवं उरोज दर्शाए गए हैं। डॉ. वी.एस. वाकणकर ने इस दुर्लभ चित्र को ‘मदर गॉडेस (मातृदेवी) माना है। यह चित्र मातृपूजा के प्राचीनतम प्रमाणों में से एक है। यहीं एक अन्य मातृदेवी का चित्र है। देखने से स्पष्ट होता है कि मातृदेवी शक्ति की देवी हैं, जो कठिन योगासन की मुद्रा में हैं, उनकी टांगें फैली हुई एवं घुटनों से सीधी मुड़ी हुई हैं। देवी ने दो पट्टों वाला अधोवस्त्र धारण किया है। उनके दोनों हाथ ऊपर की ओर हैं तथा कोहनियों से झुके हुए हैं। बायें हाथ से चार-चार कांटों वाले दो तीर हैं तथा कोहनी से पट्टा लटक रहा है। दायें हाथ में विशेष आयुध है और कोहनी से एक बड़ा पुष्प अलंकरण लटक रहा है।इसी के समीप एक अन्य मातृदेवी का चित्र है, जो नृत्य में रत हैं। देवी के हाथ- पैर छोटे हैं परन्तु अत्यंत पुष्ट एवं बलिष्ठ हैं। उनके उरोज एवं नितम्ब अत्यधिक उन्नत हैं। दोनों हाथ नृत्य की मुद्रा में ऊपर उठे हुए हैं। मातृदेवी तीव्रगति से नृत्य करती प्रतीत होती है।
चतुर्भुजनाला
भोपाल से 85 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में नरसिंहगढ़ स्थित है। इसके पूर्व दिशा की ओर पार्वती नदी के किनारे हरे रंग के शैलचित्र प्रागैतिहासिक काल के हैं। यहां के एक शैलाश्रय में नृत्य दृश्य में स्त्री-पुरुष को सहनृत्य करते हुए अंकित किया गया है। अलंकरण के रूप में मानव सिर पर मुखौटा लगाते थे एवं विभिन्न पक्षियों के पंखों से बालों की सज्जा की जाती थी। ये स्त्री-पुरुष हाथ में लकड़ी लेकर नृत्य एवं वाद्य बजाकर नृत्य करते हुए अंकित है।
लेखक जाने माने पुरातत्वविद हैं।
© मीडियाटिक
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