छाया: ट्रैवल ग्लोब माय डॉट कॉम
• डॉ. शम्भुदयाल गुरु
• साधारण परिवार से थी रानी रूपमती
• बाजबहादुर ने अपहरण कर की थी शादी
• इस रानी के लिए बाजबहादुर ने बनवाया रेवा कुंड
• अकबर द्वारा बन्दी बनाए जाने से पहले बाजबहादुर हरम की सभी स्त्रियों को मार देने का दिया था हुक्म
• घायलावस्था में पकड़ी गई थी रूपमती, जहर पीकर दे दी अपनी जान
मालवा की रानी रूपमती और उसके पति सुल्तान बाज बहादुर की प्रणय गाथा आज भी माण्डू दुर्ग के अवशेषों में प्रतिध्वनित होती है। बाज बहादुर का वास्तविक नाम मियां बयाजि़द था। सन 1542 में शेरशाह सूरी ने मालवा सूबे पर कब्जा कर लिया था। उसने शुजात खान को मालवे का सूबेदार नियुक्त किया। उसकी मृत्यु के बाद सन् 1554 में बयाजिद उसका उत्तराधिकारी हुआ और उसने बाज बहादुर की पदवी धारण कर ली। उसने अपने भाईयों को युद्ध में पराजित कर संपूर्ण मालवा पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
इन्हें भी पढ़िये -
एक गाँव को समृद्ध नगर इंदौर में बदल देने वाली रानी अहिल्याबाई
माण्डू के रेवा कुण्ड क्षेत्र में विख्यात जनश्रुति और प्रणय गाथा के अमर नायक नायिका बाज बहादुर और रूपमती के अनेक स्मारक जैसे -महल, कुण्ड तथा झरोखे आज भी दर्शनीय है। मालवा में इस प्रेमी युगल के संदर्भ सहित अनेक जनश्रुतियां तथा लोकगीत प्रचलित हैं। बाज बहादुर बुद्धिमान साहसी और सफल शासक था। उसने रूपमती के अप्रतिम सौन्दर्य की चर्चा सुनी तो वह उसके पिता के निवास को घेर कर रूपमती को बलपूर्वक ले गया। जनश्रुति है कि रूपमती, आजीवन हिन्दू धर्म का पालन करती रही। बाज बहादुर ने कभी भी उसके धार्मिक आचार विचारों में हस्तक्षेप नहीं किया।
इन्हें भी पढ़िये -
रानी दुर्गावती जिनके शासन काल में स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों के रूप में भरी जाती थी लगान
जिस प्रकार ग्वालियर के राजा मानसिंह की प्रिय पत्नी मृगनयनी सांक नदी के जल के बिना नहीं सकती थी, वैसे ही रूपमती भी रेवा याने नर्मदा के जल और उसके दर्शन के बिना नहीं रह सकती थी। रेवा कुण्ड का निर्माण रुपमती के प्रति गहन प्रेम का ही परिणाम था, जिसमें पवित्र नर्मदा का पवित्र जल पहुंचाया गया था। दर्शक उस रेवा कुण्ड से बाज बहादुर के महल में पानी पहुंचाने की जल प्रणाली आज भी देख सकते हैं। बाज बहादुर का महल, माण्डू के महलों में अतीव मनोरम है। अन्य महलों की अपेक्षा यह अधिक परिपूर्ण और भव्य है।
बाज बहादुर के महल से दक्षिणी शिखर से देखी जा सकती एक और महल का शिखर है। इस शिखर पर रूपमती का झरोखा है। यहां हवा के तेज झोंके आते हैं और आनंद का संचार करते हैं। सहज ही कल्पना की जा सकती है कि रूपमती को यह स्थान इतना रूचिकर और मनोरम क्यों लगता रहा होगा। रूपमती झरोखा से नर्मदा की जल धारा खुले मौसम में चांदी की रेखा की तरह बहती हुई साफ दिखायी देती है। कहते हैं रूपमती नित्य यहां से नर्मदा के दर्शन करती थी।
इन्हें भी पढ़िये -
एक गूजर बाला, शादी के बाद जो मशहूर हुई मृगनयनी के नाम से
रूपमती संगीत की पारखी, संगीतकार और कलाप्रेमी थी। बाज बहादुर भाारतीय संगीत के प्रमुख आश्रयदाताओं में माने जाते है। कहते हैं रूपमती के संगीत प्रेम का उस पर प्रभाव था। इसीलिए उसने उदारतापूर्वक संगीत और कला को बढ़ावा दिया। यह भी कहा जाता है कि भूप कल्याण रागिनी की रचना का श्रेय रूपमती को जाता है।
अकबर के शासन काल में एक बड़ी मुगल सेना ने मालवा पर आक्रमण किया। बाज बहादुर ने दिलेरी से शत्रु का सामना किया। परंतु पराजित होकर खानदेश भाग गया। जाने के पहले उसने अपने महल के सरंक्षकों को हिदायत दी कि यदि वह पराजित हो जाये तो उसके हरम की सब महिलाएं मार दी जाये। अकबरनामा में लिखा है कि मालवा के मुसलमानों ने राजपूतों के जौहर का चलन बहुतायत से अपना लिया था। रूपमती को उसके अंगरक्षकों ने घायल कर दिया था परंतु उसे मारने के पहले ही बचा लिया गया।
इन्हें भी पढ़िये -
महाकवि केशवदास ने लोहार की बेटी पुनिया को दिया था रायप्रवीण का नाम
मालवा का नवनियुक्त सूबेदार रूपमती के सौन्दर्य से सम्मोहित था। उसे पाने को लालायित था। अहमद उल ऊमरी ने लिखा है कि रूपमती एक फूल बेचने वाली के रूप में महल से निकल भागी। लेकिन आदम खान ने घुड़सवार भेजकर उसे पकड़वा लिया। रूपमती एक पतिव्रता महिला थी। किसी दूसरे पुरूष का साथ वह सोच भी नहीं सकती थी। इसलिए अपने सतीत्व की रक्षा के लिए उसने विष का प्याला पीकर प्राण त्याग दिये।
लेखक जाने माने इतिहासकार हैं।
© मीडियाटिक
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *