पहला भारतीय एक महिला, नर्मदा घाटी में मिला था मानव जीवाश्म

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पहला भारतीय एक महिला, नर्मदा घाटी में मिला था मानव जीवाश्म

पहला भारतीय कौन है? मतलब पहला मानवीय जीव जो इस धरती पर रहा, जिसे कि आज हम हिन्दुस्तान कहते हैं? जवाब पाने के लिए, आपको अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाना पड़ेंगे, कुछ संचित विज्ञान का आधार और फिर तकरीबन पचास हजार से 2 लाख 50 हजार वर्ष पूर्व के कालखण्ड पर नजरें टिका लेंगे। यानी इस भारतीय उपमहाद्वीप के 6500 वर्ष पूर्व तक की दर्ज ऐतिहासिक सभ्यता, जिसे कि हम सिंधु घाटी सभ्यता कैटेगरी के रूप में शुरू होना मानते हैं- से भी परे चले जाएंगे। उस प्रागैतिहासिक काल जिसके बारे में आधे अधूरे, अनपेक्षित आकारों-कमोबेश तराशे पत्थरों, फॉसिल हड्डियों, तथा अत्यंत सूक्ष्म वीक्षणीय प्राचीन फूलों के अवशेष, जो शताब्दियों से पत्थरों में जमे पड़े थे, के जरिए जानते रहे हैं।

हम उस काल की बात कर रहे हैं, जिसे वैज्ञानिक मध्य पाषाण युग कहते हैं। उस युग में, यह भारतीय उपमहाद्वीप- जैसा कि आज है, से बिल्कुल भिन्न था। इसका अधिकांश इलाका झाड़ियों,  हरी घनी घास के मैदानों से आच्छन्न था, सिवाय उत्तरी पर्वतमालाओं -गबरु हिमालय के। जलवायु गर्म और आद्र पर क्रमिक अंतराल के साथ प्राय: सूखा।

इसी नर्मदा का छार के मैदानी चरागाहों के बीच से विशाल नर्मदा नदी बलखाती दलदली घंसान बनाती बहती है। विश्वास किया जाता है, कि पहला भारतीय यहीं रहा, जो कि भारत में पाए गए उस एक मात्र मानवीय प्रस्तरात्मूत्र्त (फॉसिल) से ज्ञात होता है, जिसे कि मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के पूर्वी हिस्से के नर्मदा नदी के किनारे बसे हथनेरा गांव से प्राप्त किया गया है।

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (जीएसआई) के वैज्ञानिक अरूण सोनकिया यहीं, ऐसे ही एक मानवी खोपड़ी से 5 दिसम्बर 1982 को टकरा गए। इस खोज की वजह से वैज्ञानिक जगत में विश्वव्यापी जिज्ञासा, हलचल मच गई, क्योंकि, हर कोई मान रहे थे, कि भारत में ऐसे असंख्य फॉसिल्स मिले और निरर्थक मान लिए गए हैं। इसलिए कि उनमें प्रागैतिहासिक काल के मानवीय अवशेष की मौजूदगी कतई नहीं रही।जल्द ही इसी क्षेत्र से मानव के दाएं कांधे की पूरी हड्डी मिली। फिर 1997 में भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (एएसआई) के एआर सोनकिया को इसी के पास से बाएं कांधे की हड्डी का टूटा टुकड़ा और बार्इं नवीं पसली का टुकड़ा मिला। इसके पश्चात भारत में कहीं भी और कुछ नहीं मिला। मतलब भारत में  नर्मदा कछार से प्राप्त ये फासिल्स (खोपड़ी) प्रागैतिहासिक काल में मानव की मौजूदगी के एकमात्र प्रमाण है। इन्हीं चार हड्डियों के टुकड़ों तथा क्षेत्र के आसपास से प्राप्त जानवरों वनस्पतियों के जीवाश्म के आधार पर पहले भारतीय मानव की जीवन कथा पुनर्सृजित हुई।

प्रारंभिक विश्लेषण के आधार पर सोनकिया, इस नर्मदा पुरूष (इनका दिया नाम) की उम्र तकरीबन 50,000 वर्ष के आस पास आंकते हैं। कई वैज्ञानिक  उनकी इस धारणा को दो कारणों से गलत मानते हैं, कि हड्डियों के ये टुकड़े महिला के होना साबित हुए हैं और इसकी उम्र 50,000 से 2,50,000 के बीच है जो, कि उत्साही वैज्ञानिक के शुरूआती अनुमान से कहीं कम है।चर्चा करते हुए सोनकिया ने टी.ओ.आई. के्रस्ट को बताया कि प्राप्त मानव मुंड 5 से 6 लाख वर्ष पुराना है। संदर्भ में वे उसी जगह से मिले लम्बी दांत वाले हाथी, बनैले सूअर के फॉसिल्स (प्रस्तरात्मूर्त अस्थि) के चुम्बकीय शोध का हवाला देते हैं। वे कहते है, कि मैं इसके रेडियो मेट्रिक अध्ययन मसलन इलेक्ट्रोन स्पिन रेसोनेन्स (विद्युत चुम्बकीय घूर्णन प्रतिध्वनि) के अध्ययन का काम बढ़ा नहीं पाया, क्योंकि वे जीएसआई से सेवानिवृत हो चुके हंै।

पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के राजीव पटनायक जिन्होंने इन नर्मदा फॉसिल्स पर विस्तृत शोध किया है, टीओआई-क्रेस्ट को बताया कि मुंडअस्थि के इस भाग (कलवरिया) की उम्र के बाबत स्पष्टत: कुछ सुनिश्चित नहीं बताया गया है। यह जीएसआई की सुरक्षा जिम्मे में है और वास्तविक काल निर्धारण के निमित्त अध्ययन के दरमियान इसका कुछ मिलीग्राम हिस्सा नष्ट हो चुका होगा। इस कलवारिया के साथ संबंद्ध दूसरे फॉसिल्स यानी घोड़े आदि मंदबुद्धि जानवरों की अस्थियों की अवधियां निर्धारित की जा चुकी हैं और ये भिन्न-भिन्न कालखंड की स्थितियां बताती है, मानो अलग-अलग युगों की हों और अनेकों बार धरती में दबती, पुन: पुन: दबती रही हों। ऐसा उनका कथन है।अब इन मानवीय जीवाश्मों का वर्गीकरण ‘आर्किक होमोसेपियन’ के रूप में कर लिया गया है। कोरनेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इमेरिटस केनेथ केनेडी, जिन्होंने   जीएसआई के अनुरोध पर 1988 में इस फासिल खोपड़ी की विस्तृत जांच परख, समझने योग्य सम्पूर्ण कंकाल के सांख्यकीय विश्लेषण से निष्पादित की, के अनुसार इस खोपड़ी के भेजे का आकार आज के आधुनिक मानव के भेजे के औसत से 1300 घन सेन्टीमीटर कम है। मस्तिष्क वाला हिस्सा भौहों के उपर से उभरा हुआ नहीं, जैसे कि आज का है- ढलुआं और थोड़ा झुका हुआ । भौंह की कमान अस्पष्ट है, परंतु पूरी तरह लुप्त नहीं है। तात्पर्य यह कि इस नर्मदा मानव का चेहरा पुरापाषाण युग और विकासवादी अवधारणात्मक, अवशेषों का संज्ञान देता है।

उक्त तथ्यपरक विश्लेषण के आधार पर इस नर्मदा महिला की उम्र 25 से 30 के बीच और ऊंचाई 4 फुट 4 इंट (135 से.मी.) रही होगी। उसकी छाती संभवत: 30 से.मी होगी। अपनी पुष्ट देहयष्टि के बावजूद वह बौनी दिखती होगी। कंधे की एक हड्डी में बाई तरफ की चोट का स्पष्ट निशान है जो उसे जीवितावस्था में लगा होगा। संभवत: किसी जानवर के हमले से या वह अपने कांधे के बल गिरी होगी? दूसरे कॉलर बोन में सूजन दिखाई देती है, जो यह इशारा करता है, कि इसका इस्तेमाल अधिक किया गया है। सोनकिया की व्याख्या के मुताबिक यह संकेत है कि यह मानवी, दोनों की बजाय अपने एक हाथ का अधिक उपयोग करती रही। वह पशुओं के शिकार के लिए शिकारियों की तरह रहती थी, मछलियां, पकडऩा, फलों का संग्रह, जड़ या खाने योग्य पेड़-पौधों के अंश इसका भोजन था। केनेडी ने टी.आई.ओ. के्रेस्ट को बताया कि मांसल खाद्य की बहुलता इसके भोजन की विशेषता रही, जैसा कि तत्कालीन समय के उसके द्वारा प्रयुक्त पत्थर के हथियारों और पशु पिंजर के वहां मिले अवशेषों से ज्ञात होता है। वे आग का उपयोग भी शुरू कर चुके होंगे।

नर्मदा समुदाय के आस-पास की चरागाह धरती जीव पशुओं के लिए उर्वर थी, कुछ ह्रिंस कुछ पालतू। वहां एक हाथी भी रहा, लम्बे नोकीले दांत, पेड़ों और झाडिय़ों की पत्तियां चबाने वाला। जंगली सूअर भी थे,वहां प्राचीन नस्ल का घोड़ा दरियायी घोड़ा, जंगली कुत्ते और शुतुरमुर्ग भी  रहे। इन सभी पशुओं के फॉसिल्स (प्रस्तरात्मूर्त अश्म) इस इलाके से उल्खनित हुए हैं।

नर्मदा नदी ‘साइप्रिनिन्ड’ (क्रेप के समान लम्बी जाति की) मछलियों से भरपूर थी)। जिसके परिवार में आज के समय की मीठे पानी की कार्प और गोल्डफिश मछलियां गिनी जाती हैं। इसमें मगरमच्छ भी थे, देह गर्म करने जो नदी के दलदली किनारों तक आ जाते थे । अनेकों प्रकार के गिरगिट-छिपकलियां थी, जो तेज गति से शिलाओं और शाखों की झुरमुट में कूद फांद करती।घास हर जगह थी, पेड़ों और झाडिय़ों को रेखांकित करती। नर्मदा निवासी इन चारागाहों में जानवरों का शिकार करते होंगे। इस समूचे इलाके से पत्थरों के अनगिनत हथियार मिले हैं। हालांकि इनको बनाने का कोई निर्माण स्थल नहीं मिला। जबकि सामान्यत: संसार के विभिन्न हिस्सों में, आदि मानव अपने पत्थरों के हथियार  एक या दो निर्धारित स्थानों पर बनाया करते थे।

ये हथियार एचुलियन कहे जाते थे। दोनों तरफ से धारदार, पत्थर से तराश कर बनाए गए होते थे। ये धारदार फल, कुदाल, छुरा, कटार जैसे हथियार विभिन्न विशेषताओं, ज़रूरतों के हिसाब से बनाए गए थे। वैज्ञानिकों की व्याख्या के मुताबिक विभिन्न प्रकार के ऐसे हथियारों  का आदि मानव द्वारा उपयोग, यह बताता है कि वह साधन की उपलब्धता, काल, पर्यावरण के अनुसार अपने  को बदलता रहा।अब जबकि नर्मदा कछार से आज की तिथि तक भारत में प्राप्त यही ऐसा मानव जीवाश्म है, अत: नर्मदा महिला ही पहली भारतीय ठहरती है। बहरहाल, हमारे इससे भी प्राचीन पूर्वजों के बारे में जानने के सिलसिले में, तलाश जारी है।

• सुबोध वर्मा

लेखक टाईम्स ऑफ इण्डिया के पूर्व संपादक हैं (टाईम्स ऑफ इण्डिया ‘क्रेस्ट’ के प्रथम वर्षगांठ विशेषांक से साभार)

© मीडियाटिक

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