• सारिका ठाकुर
हर मनुष्य अपने भीतर कुछ न कुछ संभावनाओं के बीज लेकर जन्म लेता है। समय पर उन बीजों की पहचान और ज़रूरी खाद-पानी जिसे मिल जाता है वह वास्तव में आगे चलकर वही बनता है जो कि वास्तव में वह है। ऐसा हो पाना भी किसी करिश्मे से कम नहीं होता। चित्रकार और सिरेमिक कलाकर श्रीमती गिरिजा वायंगणकर (Girija Wayangankar) भी ऐसी ही प्रतिभाशाली कलाकार (artist) हैं। उनके पिता श्री तुकाराम हरसुलकर पशु चिकित्सक थे और सरकारी नौकरी में थे। गिरिजा जी की माँ सुलभा जी एक सुशिक्षित गृहणी थीं। उनके पिता (गिरिजा जी के नाना) जाने-माने वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे। घर में पढ़ने के लिए साहित्य-सामग्री की कमी नहीं थी। शादी से पहले और बाद में भी गिरिजा जी का पढ़ने का शौक बरकरार रहा। वे तीन बहनों में सबसे छोटी हैं। माता-पिता ने तीनों बहनों की परवरिश बड़े ही लाड़ प्यार से की। उन्हें पढ़ने-लिखने और कैरियर चुनने की भरपूर छूट दी। यही वजह है कि गिरिजा जी की बड़ी बहन बैंक की बड़ी अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुईं, मंझली बहन अपनी इच्छानुसार शिक्षिका बनीं, जबकि गिरिजा जी ने एक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई।
गिरिजा जी का जन्म 21 जून 1968 में महाराष्ट्र के ज़िला यवतमाल के गांव दिग्रस - जो उनकी ननिहाल है, में हुआ। कुछ समय बाद उनके पिता का तबादला हो गया और वे सपरिवार भोपाल आ गये। गिरिजा जी की 8वीं तक शिक्षा सेंट फ्रांसिस स्कूल, भोपाल में हुई। उन दिनों इच्छित विषय नौवीं में ही चुन लिया जाता था। गिरिजा जी को बचपन से ही चित्र (paintings) बनाने का शौक था। उनकी बड़ी बहन इस बात को जानती थीं। उन्होंने अपने पिता से बात की और नौवीं में उनका दाखिला कमला नेहरु कन्या उच्चतर विद्यालय में हुआ और गिरिजा जी ने बड़ी बहन की मदद से ‘विषय के रूप में ‘चित्रकला’ लिया। वे कहती हैं, “मेरा मन गणित और विज्ञान जैसे विषयों में नहीं लगता था, कॉमर्स मैं पढ़ना नहीं चाहती थी, ऐसे में विषय के रूप में ‘चित्रकला की पढ़ाई करना सचमुच मज़ेदार था। ”हाई स्कूल से ही विभिन्न चित्रकला प्रतियोगिताओं में वे हिस्सा लेने लगीं। उनकी गिनती विद्यालय के प्रतिभाशाली बच्चों में होने लगी। वर्ष 1985 में हायर सेकेण्डरी करने के बाद यह लगभग तय हो गया कि वे फ़ाइन आर्ट लेकर ही आगे की पढ़ाई करेंगी। उनका दाखिला शासकीय ललित कला संस्थान, इंदौर में हो गया।
ललित कला संस्थान (lalit kala sansthan) में उन दिनों 5 साल का डिप्लोमा कोर्स हुआ करता था। कुछ समय मामा के घर रहते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी फिर एक निजी छात्रावास में रहने आ गयीं। इस छात्रावास में ज़्यादातर इंजीनियरिंग की छात्राएँ रहती थीं। गिरिजा जी के साथ रहने वाली छात्रा भी इंजीनियरिंग की ही पढ़ाई कर रही थी। अलग-अलग विषयों की पढ़ाई करते हुए भी दोनों बीच गहरी दोस्ती हो गयी। डिप्लोमा के दौरान कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का भी अवसर मिला। संस्थान का माहौल सहयोगपूर्ण था इसलिए बिना किसी तनाव के जिन्दगी रंगों और कूची के सहारे आगे बढ़ती रही।
श्री हेमंत वायंगणकर (hemant Wayangankar) तब संस्थान के वरिष्ठ छात्र थे। जिस समय गिरिजा जी का दाखिला हुआ तब तक वे वहाँ से पढ़ाई पूरी कर निकल चुके थे लेकिन संस्थान में उनका आना जाना था। संस्थान में ही गिरिजा जी की मुलाकात और दोस्ती हेमंत जी से हुई। कुछ समय बाद दोनों ने साथ जीवन व्यतीत करने का निश्चय किया और दोनों परिवारों की सहमति से वर्ष 1989 में उनकी शादी हो गयी। तब तक हेमंत जी भारत भवन (bharat bhavan) से जुड़ चुके थे और भोपाल में रहते थे जबकि उनके माता-पिता इंदौर में ही रहते थे। गिरिजा जी ने डिप्लोमा की शेष पढ़ाई ससुराल में रहकर ही की और डिप्लोमा (ऑनर्स ) के साथ उत्तीर्ण किया।
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अपनी सासू माँ के बारे में बताते हुए गिरिजा जी कहती हैं, “वे भी पेंटिंग करती थीं और बहुत अच्छा गाती थीं। 60 वर्ष की आयु में उन्होंने तबला सीखा। कला क्षेत्र और कलाकार के मनोभाव को वे बहुत अच्छी तरह पहचानती थीं इसलिए हमेशा वे मेरे साथ खड़ी रहीं।” शादी से पहले ही गिरिजा जी एक बार भोपाल आईं और उन्हें भारत भवन में सिरेमिक कार्यशाला के बारे में पता चला तो वहाँ जाकर उन्होंने सीखा। वे श्री देवीलाल पाटीदार (devilal patidar) को सिरेमिक आर्ट (Ceramic-art) का अपना पहला गुरु मानती हैं। इसके बाद वे पेंटिंग ही करती रहीं, सिरेमिक में हाथ आजमाने का अवसर लम्बे समय तक नहीं मिला। 1990 में परीक्षा देकर वे भोपाल चली आयीं, कुछ समय बाद उनके बेटे का जन्म हुआ। गृहस्थी और पेंटिंग दोनों साथ-साथ चल रही थी लेकिन सिरेमिक की बारी आई लगभग दस-बारह साल बाद जब पाटीदार जी ने उन्हें फिर से प्रोत्साहित किया। उसके बाद लगभग 12 वर्ष भारत भवन के सिरेमिक स्टूडियो में काम किया।
श्री देवीलाल पाटीदार जी के अलावा गिरिजा जी अपने गुरुओं में श्री पी.आर.दरोज का जिक्र भी करती हैं, जिनके मार्गदर्शन में अपनी कला को निखारने में उन्हें मदद मिली। भारत भवन के अलावा वे अपने साथ की सिरेमिक कलाकार निर्मला शर्मा का भी जिक्र करती हैं जिनके घर में स्टूडियो था और वे वहाँ भी काम करती थीं। निर्मला जी के घर में बने स्टूडियो में कई अन्य कलाकार भी जाकर काम करते थे। इधर हेमंत जी भी कला क्षेत्र में नये कीर्तिमान गढ़ रहे थे। इस तरह गिरिजा जी और हेमंत जी दोनों ने साथ-साथ रहते हुए एक दूसरे के सहयोग से अपना रास्ता खुद बनाया। इस बीच गिरिजा जी ने एकल और समूह में कई प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। कुछ पत्रिकाओं में चित्रांकन किया। कई कार्यशालाओं में प्रशिक्षण दिया और कई नयी प्रतिभाओं को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्तमान में वे भोपाल में रह रही हैं, उनके पास अपना सिरेमिक स्टूडियो “माटी मन” है, जिसमें वे मिट्टी को आकार देती हैं। वे स्टूडियो में प्रशिक्षण भी दे रही है। सिरेमिक कला की दुनिया में आज उनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है।
उपलब्धियां
• 2016 -संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन - मध्यप्रदेश राज्य रूपंकर कला का रघुनाथ कृष्णराव फड़के पुरस्कार
• 2017- संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा विजुअल आर्ट 'स्कल्पचर' के लिए सीनियर फेलोशिप
• 2017 - कलानंद संस्था, मुंबई द्वारा मध्यप्रदेश राज्य के लिए प्रफुल्ल डहाणूकर आर्ट फाउंडेशन मेरिट अवॉर्ड
• 2019 - दिल्ली में आयोजित ‘ब्लू स्टूडियो पॉटरी एग्जीबिशन में 21वाँ अखिल भारतीय फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी(AIFACS )अवार्ड
• 2002- प्रथम भारत भवन वार्षिकी का विशेष प्रशस्ति प्रमाण पत्र
सन्दर्भ स्रोत : गिरिजा वायंगणकर से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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