नृत्य गुरु स्व. सविता गोडबोले

blog-img

नृत्य गुरु स्व. सविता गोडबोले

छाया : स्व संप्रेषित

 

  कलाकार - संगीत एवं नृत्य 

•  लच्छू महाराज की थीं शिष्या

•  उन्हें गुरु बनाने के लिए ठानी ली थी ज़िद

•  सड़क दुर्घटना के बाद नृत्य और घुंघरू से छूटने लगा साथ मगर हिम्मत बनी रही

•  बैठी हुई अवस्था में किये कई मुद्राओं और भाव-भंगिमाओं पर प्रयोग

लखनऊ घराने की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सविता गोडबोले का जन्म 8 जनवरी 1954 को लखनऊ में हुआ था । इनके पिता माधव लक्ष्मण नातू फार्मासिस्ट थे एवं माता अवन्तिका नातू रंगमंच की कलाकार एवं महाराष्ट्र समाज, लखनऊ की संस्थापक सदस्या थीं। माता-पिता दोनों साहित्य एवं कला के मर्मज्ञ थे इसलिए घर के माहौल में साहित्य और रंगमंच रचा-बसा था।

सविता जी की प्रारंभिक शिक्षा सेंट मेरी कान्वेंट, कानपुर में हुई। नृत्य के प्रति बचपन से ही अभिरुचि थी। पांच वर्ष की आयु से श्री के.डी. श्रीवास्तव से सीखना शुरू कर दिया था। नन्हीं सविता की प्रतिभा को देखकर गुरु भी हैरान थे। कुछ ही माह के प्रशिक्षण के बाद उन्होंने मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। जल्द ही माता-पिता भी यह समझ गए कि उनकी बिटिया नृत्य के लिए ही बनी है। नृत्य के साथ अकादमिक शिक्षा भी ज़रुरी थी लिहाजा अभ्यास के साथ-साथ स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई भी चलती रही। दसवीं तक की पढ़ाई लखनऊ में ही शासकीय कन्या विद्यालय से हुई । स्कूली शिक्षा के दौरान ही  गन्धर्व महाविद्यालय से नृत्य प्रभाकर की एवं प्रयाग संगीत समिति से नृत्य विशारद की उपाधि हासिल कर ली। 1972 में लखनऊ महिला महाविद्यालय से इंटर करने के बाद उन्होंने उसी महाविद्यालय से वर्ष 1974 में वनस्पति विज्ञान विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसी दौरान 1971 में 17 वर्ष की आयु में संगीत नाटक अकादमी से ‘वरिष्ठ छात्रवृत्ति’ मिली।

वर्ष 1971 उनकी नृत्य कला के लिए निर्णायक वर्ष सिद्ध हुआ। उसी वर्ष महान तबला वादक एवं नर्तक श्री लच्छू महाराज मुम्बई से लखनऊ आकर रहने लगे थे। सविता जी ने उन्हें अपना गुरु बनाने की ज़िद ठान ली। परिवार में कुछ ख़ास विरोध नहीं हुआ लेकिन आसपास के लोग नाते-रिश्तेदारों ने पुरजोर विरोध किया। प्रायः सभी का यही कहना था कि शौक के लिहाज से तो नृत्य ठीक है, लेकिन अब कॉलेज की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, लड़कियों के लिए यह क्षेत्र ठीक नहीं है, आदि। एक दो बार माता पिता ने भी समझाने की कोशिश की लेकिन सविता जी अपने फैसले पर अडिग रहीं। वे लच्छू महाराज से विधिवत गंडा बंधवा कर उनकी शिष्या बनीं और नृत्य अभ्यास में जुट गईं।

लखनऊ  घराने की ख़ास लास्य अंग विशेषता एवं अभिनय की शैली मांजने में पंडित जी की अहम् भूमिका रही। सविता जी बताती हैं कि पंडित लच्छू महाराज ने उन्हें नौकरी करने से मना किया था क्योंकि उनका मानना था कि इससे कला अशुद्ध होती है। सविता जी ने इस बात की गाँठ बाँध ली और जीवनपर्यंत कला की शुचिता को बरकरार रखने के लिए प्रयत्नशील रहीं। इसके अलावा लखनऊ घराने के तबला वादक ख़लीफ़ा उस्ताद अफाक़ हुसैन के साथ भी उन्हें अभ्यास का अवसर प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध नृत्यांगना सितारा देवी एवं गोपी कृष्ण इनकी गुरु बहन एवं भाई थे। सविता जी के हुनर को निखारने में इन दोनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अलावा मूर्धन्य नृत्यांगना दमयंती जोशी ने भी सविता जी को आगे बढ़ने में काफी मदद की। इसके बाद विभिन्न मंचों पर प्रस्तुतियों का दौर सा चल पड़ा ।

वर्ष 1977 में माता-पिता की पसंद से सांगली (महाराष्ट्र) निवासी श्री उदय कुमार गोडबोले संग परिणय सूत्र में बंध गयीं। उदय जी हॉकी खिलाड़ी एवं चिकित्सक थे। सविता जी के ससुर दिलरुबा (तंतु वाद्य) बजाया करते थे। उदार विचारधारा वाले ससुराल में सविता जी को नृत्य अभ्यास जारी रखने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई। परिवार के प्रोत्साहन से वर्ष 1983 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से प्राइवेट छात्रा के रूप में उन्होंने नृत्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। इस बीच अपन गुरु श्री लच्छू महाराज के सतत संपर्क में रहकर उन्ही के मार्गदर्शन में नृत्य जारी रहा।

सविता जी के पति वर्ष 1972 में ही इंदौर आ गए थे, परन्तु लगभग साल भर के लिए विवाह वर्ष (1977) में पुनः सांगली आ गये। उन्होंने महसूस किया कि उनकी कला के विकास के लिए इंदौर ही उपयुक्त स्थान है इसलिए वापस इंदौर में ही हमेशा के लिए बस गए। परिवार के प्रोत्साहन से वर्ष 1983 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से प्राइवेट छात्रा के रूप में उन्होंने नृत्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की, जिसमें उन्हें स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था। इस बीच उन्होंने लच्छू महाराज के सतत संपर्क और मार्गदर्शन में नृत्य जारी रखा। इसके अलावा इंदौर आने के बाद वह उस्ताद जहांगीर खां साहब के शिष्य पं. शरद खानगोकर के साथ नृत्य अभ्यास करती थीं।

वर्ष 1978 में सविता जी ने गुरु लच्छू महाराज के जन्म दिवस के अवसर पर ‘लयशाला ललित अकादमी’ की स्थापना की। तब से लेकर आज तक कई छात्राएं देश दुनिया में कथक और अपनी गुरु सविता गोडबोले का नाम रोशन कर रही हैं। सविता जी ने कई विषयों पर नृत्य नाटिकाएं तैयार कीं हैं जिन्हें खूब सराहा गया है। उनकी प्रसिद्ध नृत्य नाटिकाएँ हैं –कृष्णायण, समुद्र मंथन, भारतीय नारी की वीरगाथाओं पर आधारित नृत्य नाटिका नारी शक्ति, राधा-उद्धव संवाद(कृष्ण निर्वाण के बाद की कथा) आदि। इसके अलावा गुरु लच्छू महाराज द्वारा रचित ‘दक्ष यज्ञ विध्वंस’ पर आधारित नृत्य नाटिका भी खूब चर्चित हुई थी।

देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित मंचों के अलावा विदेशों में भी इन्होंने कई प्रस्तुतियां दीं। जिनमें यूनेस्को द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय नृत्य सम्मलेन के अलावा फ्रांस, हांगकांग, जर्मनी आदि। सविता जी की विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ ने वर्ष 2001 में उन्हें सम्मानित किया। सम्मान की राशि पति के कहने पर उन्होंने माननीय राज्यपाल महोदय को वापस दे दिया और गुरु पं. लच्छू महाराज के नाम से उदीयमान कलाकारों को छात्रवृत्ति देने का अनुरोध किया। वर्ष 2001 में ही सविता जी को सी.आई.डी.(कौंसिल ऑफ़ इंटरनेशनल डांस, यूनेस्को) की आजीवन सदस्यता प्राप्त हुई। इस ओहदे तक पहुँचने वाली वह देश की एक मात्र नृत्यांगना हैं। अपने देश में विश्व नृत्य दिवस उत्सव मनाने का चलन भी सविता जी ने ही शुरू किया।

सविता जी का जीवन संगीत की सुमधुर लय उस वक़्त थम सी गई जब वर्ष 2008 में लखनऊ जाते समय वे इंदौर-भोपाल मार्ग पर वह दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। उनके शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया और ज़िन्दगी व्हील चेयर पर सरकने लगी। नृत्य और घुंघरू का साथ छूटना किसी सदमे से कम नहीं था। वे अवसाद से घिर गयीं। ऐसे समय में पति ने बैठी हुई अवस्था में भाव-भंगिमा और हस्तमुद्रा को आधार बनाकर कुछ नया करने का सुझाव दिया। हालाँकि लखनऊ घराने की शैली में यह प्रयोग नया नहीं हैं तथापि मात्र इसी के आधार पर  संपूर्ण रूपक की प्रस्तुति अपने आप में नई बात ज़रूर थी। इसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। जीवन फिर पटरी पर लौटने लगी मगर 2013 में उनके पति का देहांत हो गया। इस वेदना से निकलने में दोनों बच्चों और लयशाला के प्रति समर्पण भाव ने मदद की। पुत्री आस्था पुणे में हैं एवं माता से प्राप्त विरासत को आगे बढ़ाने में जुटी हैं। तबला विशारद एवं अभिनेता पुत्र आदित्य गोडबोले इंदौर में ही रहते हैं। सविता जी लम्बे समय से अस्वस्थ रहते हुए भी लयशाला की गतिविधियों के प्रति सजग थीं। 4 सितम्बर 2021 को उनका निधन हो गया।

संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं सविता जी से बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सितार-संतूर की जुगलबंदी का नाम 'वाहने सिस्टर्स'
ज़िन्दगीनामा

सितार-संतूर की जुगलबंदी का नाम 'वाहने सिस्टर्स'

सितार और संतूर की जुगलबंदी के खूबसूरत नमूने पेश करने वाली प्रकृति और संस्कृति मंच पर एक-दूसरे का भरपूर साथ देतीं हैं। वे...

बेसहारा  बुजुर्गों को  'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा
ज़िन्दगीनामा

बेसहारा बुजुर्गों को 'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा

माधुरी जी ने करीब 50 लोगों को काउंसलिंग कर उनके घर वापिस भी पहुंचाया है।

पूर्णिमा राजपुरा : वाद्ययंत्र ही बचपन में जिनके खिलौने थे
ज़िन्दगीनामा

पूर्णिमा राजपुरा : वाद्ययंत्र ही बचपन में जिनके खिलौने थे

पूर्णिमा हारमोनियम, तबला, कांगो, बांगो, ढोलक, माउथ ऑर्गन सहित 18 से 20 तरह के वाद्य बजा लेती हैं।

आदिवासियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध सीमा प्रकाश
ज़िन्दगीनामा

आदिवासियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध सीमा प्रकाश

सीमा ने अपने प्रयासों से खालवा ब्लॉक की लड़कियों को पलायन करने से भी रोका है। स्पन्दन समाज सेवा समिति विलुप्त हो रही कोर...

महिला बैंक के जरिए स्वावलंबन की राह दिखाई आरती ने
ज़िन्दगीनामा

महिला बैंक के जरिए स्वावलंबन की राह दिखाई आरती ने

आरती ने महसूस किया कि अनपढ़ और कमज़ोर वर्ग की महिलाओं के लिए बैंकिंग जटिल प्रक्रिया है। इसे आसान बनाने के मकसद से ही उन्हो...

भाषा और कथ्य की बेजोड़ शिल्पकार वन्दना राग
ज़िन्दगीनामा

भाषा और कथ्य की बेजोड़ शिल्पकार वन्दना राग

2020 के शुरुआत में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनका पहला उपन्यास 'बिसात पर जुगनू' साहित्य जगत में बेहद सराहा गया।