छाया : निर्मला भुराड़िया के एफबी अकाउंट से
प्रमुख लेखिका
• पूर्णिमा दुबे
कल्याण सारडा एवं कृष्णा सारडा की बेटी निर्मला भुराड़िया का जन्म इंदौर में 1 मई 1960 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा इंदौर क्लॉथ मार्केट कन्या विद्यालय में हुई। सन् 1976 में हायर सेकेंडरी की। होलकर साइंस कॉलेज से बीएससी करने के बाद सन् 1981 में उन्होंने इंदौर वि.वि.से प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान के साथ एमएससी किया।
निर्मला जी जब महज ढाई साल की थीं, तब उनके पिता चल बसे। दादाजी कपड़ा व्यापारी थे, उन्होंने ही परिवार को संभाला। उस जमाने में लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता था। पिता के नहीं रहने के बाद माँ ने पढ़ाई शुरु की। एक सुखद और अनूठा संयोग यह रहा कि निर्मला जी एवं उनकी मां – दोनों एक ही स्कूल में पढ़ीं। मां-बेटी का एक साथ पढ़ना उस समय के लिए एक प्रेरक घटना थी। 6 दिसम्बर सन् 1982 को निर्मला जी का विवाह टेलीकॉम व्यवसायी किशोर भुराड़िया से हुआ। उनका एक बेटा है आशुतोष।
श्रीमती भुराड़िया को बचपन में लेखन या साहित्य का माहौल नहीं मिला, परन्तु किताबें पढ़ने के शौक ने उन्हें धीरे-धीरे लेखन के क्षेत्र में ला दिया। कुछ विचार दिमाग में खलबली मचाना शुरू करते और फिर कलम के जरिये कागज़ पर आकार ले लेते। वे बताती हैं कि उन्हें छोटी उम्र से ही पढ़ने का शौक था, लेकिन किताबें या पत्र-पत्रिकाएं घर में नहीं आती थी। किसी तरह उन्हें पता होता था कि कालोनी में किसके घर में चंदा मामा या नंदन आती है। ख़बर लगते ही वे वहां पहुंच जातीं और उसी जगह बैठकर पढ़ आती थीं। थोड़ी बड़ी हुईं तो खुद खरीदकर पढ़ना शुरु किया। अभी कुछ सालों पहले ही उन्हें पता चला है कि उनके पिताजी लेखन का शौक रखते थे।
निर्मला जी प्रदेश के प्रतिष्ठित अख़बार नईदुनिया में फ़ीचर संपादक व साप्ताहिक स्तम्भकार रही हैं। स्तम्भ ‘अपनी बात’ में तकरीबन 28 साल तक समसामयिक घटनाक्रम पर उन्होंने पैनी कलम चलाई। ख़बर का विश्लेषण वे इतनी बारीकी से करतीं कि हर पाठक घटनाक्रम से खुद को सरलता से जोड़ लेता। पाठकों ने इस स्तम्भ को बहुत पसंद किया। पिछले 20 वर्षों में उनकी कहानियां, कविता, आलेख, समीक्षाएं, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं जैसे इंडिया टुडे, आउटलुक, हंस, कथादेश, जनसत्ता, संडे ऑब्जर्वर, कादम्बिनी आदि में निरंतर प्रकाशित होती रही हैं।
उनकी प्रकाशित पुस्तकों की फ़ेहरिस्त भी काफी लंबी है। उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक कविता संग्रह ‘घास के बीज’ है जिसे मप्र साहित्य परिषद ने सन् 1994 में प्रकाशित किया। विश्व सुंदरी (कविता संग्रह), एक ही कैनवस पर बार-बार, मत हंसो पद्यावती (कहानी संग्रह), कैमरे के पीछे महिलाएं (सिनेमा विश्लेषण), आब्जेक्शन मी लॉर्ड, गुलाम मंडी (उपन्यास) उनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।
उपलब्धियां:
- यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका की सरकार द्वारा उनके प्रतिष्ठित इंटरनेशनल विज़िटर्स प्रोग्राम फॉर ‘फॉरेन ओपिनियन लीडर्स‘ के लिए अमेरिका आमंत्रित किया गया और उन्होंने ट्रैफ़िकिंग इन परसन्स प्रोजेक्ट पर कार्य किया।
- भारत सरकार के आधिकारिक पत्रकार दल में शामिल होकर लंदन विश्व हिन्दी सम्मेलन में शामिल हुई।
- वर्ष 2002 में मप्र लेखक संघ द्वारा काशीबाई मेहता सम्मान
- वर्ष 2002 में सेवा सौरभ द्वारा सेवा सौरभ सम्मान
- वर्ष 2003 में देवी अहिल्या सांस्कृतिक संगठन खरगौन द्वारा अ. भा. अहिल्या सम्मान
- वर्ष 2007 में तूलिका सामाजिक कला एवं संस्कृति संघ द्वारा तूलिका सम्मान
- वर्ष 2009 में राजबहादुर पाठक स्मृति भोपाल द्वारा रक्त सूर्य सम्मान
- वर्ष 2011 में विश्व संवाद केंद्र, मालवा द्वारा सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार
- वर्ष 2011 में राहुल बारपुते स्मृति पत्रकारिता सम्मान महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं।
टीवी चैनल आज तक के लिए रिपोर्टिंग और दूरदर्शन मध्यप्रदेश के लिए साक्षात्कार कार्यक्रमों की एंकरिंग की। कुछ प्राइवेट डाक्यूमेंट्री प्रोड्यूसर्स के लिए स्क्रिप्ट लेखन कार्य किया। दूरदर्शन द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण एवं प्रसारण किया गया।
निर्मला जी वर्तमान में इंदौर में रह रही हैं और वेबदुनिया में संपादकीय सलाहकार हैं। लेखकीय जीवन की विशेषता होती है कि उनकी कलम लगातार चलती रहती है। वे भी अपना अगला उपन्यास लिख रही हैं। फ़ोटोग्राफ़ी का शौक भी रखती हैं और भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीख रही हैं।
लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं ।
© मीडियाटिक
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