झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि तलाक के लिए परित्याग को शारीरिक अलगाव के आधार पर साबित नहीं किया जा सकता। परित्याग तब माना जाएगा, जब किसी पति या पत्नी का इरादा स्थायी रूप से वैवाहिक संबंध खत्म करने का हो, न कि सिर्फ शारीरिक अलगाव हो। इसके साथ ही जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की अदालत ने पुलस अधिकारी अरुण कुमार की याचिका खारिज कर दी।
यह मामला पुलिस अधिकारी अरुण कुमार द्वारा अपनी पत्नी से तलाक की याचिका दायर करने से जुड़ा था। उन्होंने अपनी पत्नी पर क्रूरता और परित्याग के आरोप लगाए थे और तलाक की मांग की थी। उनका आरोप था कि उनकी पत्नी ने 2016 में उन्हें छोड़ दिया था और वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू नहीं किया। वहीं, पत्नी ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि वह अभी भी पति के घर में अपने बच्चों के साथ रह रही है। फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था, क्योंकि अरुण कुमार अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाए थे। इसके बाद, उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि परित्याग के लिए केवल शारीरिक अलगाव नहीं, बल्कि यह भी साबित करना होगा कि एक पक्ष का इरादा विवाह को हमेशा के लिए समाप्त करने का था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि परित्याग के आरोप के लिए केवल अस्थायी क्रोध या नफरत के कारण छोड़ा गया विवाह नहीं माना जा सकता। इसे स्थायी इरादे की आवश्यकता होती है। इस फैसले में, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल शारीरिक अलगाव को तलाक के आधार के रूप में नहीं लिया जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि दोनों में से किसी एक का इरादा वैवाहिक संबंधों को स्थायी रूप से समाप्त करने का था।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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