दिल्ली हाईकोर्ट : पत्नी को ससुर के घर में रहने का अधिकार,

blog-img

दिल्ली हाईकोर्ट : पत्नी को ससुर के घर में रहने का अधिकार,
भले ही वह पति के साथ रहने से इनकार करे

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी को अपने ससुर के घर में रहने का अधिकार है, भले ही वह अपने पति के साथ रहने से इनकार कर रही हो। यह फैसला उन सभी महिलाओं के लिए राहत भरा है जो पारिवारिक विवादों के कारण अपने निवास के अधिकार से वंचित हो जाती हैं। 

क्या था मामला? 

मामला तब शुरू हुआ जब एक महिला ने सितंबर 2011 में वैवाहिक विवाद के बाद अपना ससुराल छोड़ दिया। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच कई मुकदमे दायर किए गए, जिनकी संख्या लगभग 60 तक पहुंच गई। इन मुकदमों में से एक महिला द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत दायर किया गया था। इस कार्यवाही के दौरान महिला ने ससुराल की संपत्ति में निवास के अधिकार का दावा किया था, जिसे निचली अदालत ने मान्य ठहराया था। 

निचली अदालत ने क्या फैसला दिया था? 

निचली अदालत ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे ससुराल के घर की पहली मंजिल पर रहने का अधिकार दिया था। इस फैसले को सेशन कोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद ससुर-सास ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। उनका तर्क था कि अगर बहू उनके बेटे के साथ नहीं रहना चाहती, तो उसे घर में रहने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। 

सास-ससुर का मुख्य तर्क यह था कि उनकी बहू उनके बेटे के साथ रहने से इनकार कर रही है और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दायर याचिका का विरोध कर रही है। उनका मानना था कि जब बहू उनके बेटे के साथ नहीं रहना चाहती है, तो उसे उनके घर में रहने का भी अधिकार नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। 

हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?

जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने दंपति (सास-ससुर) की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत निवास का अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ससुराल में रहने का अधिकार वैवाहिक जीवन से संबंधित अन्य कानूनी प्रावधानों से भिन्न है। 

निवास का अधिकार वैवाहिक अधिकारों से अलग 

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक महिला का उसके ससुराल में निवास का अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों के पालन से अलग है। इसका मतलब है कि भले ही महिला अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दे, फिर भी उसे अपने ससुराल में रहने का अधिकार है। यह फैसला महिलाओं के आवास के अधिकार को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

भविष्य के लिए महत्वपूर्ण उदाहरण 

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण साबित होगा। इससे निचली अदालतों को ऐसे मामलों में निर्णय लेने में मार्गदर्शन मिलेगा। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि निवास का अधिकार वैवाहिक अधिकारों से अलग है और इसे स्वतंत्र रूप से देखा जाना चाहिए। इससे न्यायिक प्रणाली में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल , रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता

जस्टिस मनीष निगम ने अपने फैसले में कहा, 'हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत जब शादी विधिवत तरीके से होती है, तो उसका रजिस्ट्रे...

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा
अदालती फैसले

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा , मर्द के साथ रह सकती है महिला

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो उसे ऐसा करने से रोके।

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी , तो पत्नी का गुजारा भत्ता भी बढ़ेगा  

महिला ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजारा भत्ता बढ़ाने की उसकी अपील को खारिज कर दिया गया था।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने , तक भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है पति

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से सक्षम पति को अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना होगा जब तक वह जीवित है भले...

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर , नहीं किया जा सकता हिंदू विवाह को भंग

कोर्ट ने CISF के एक बर्खास्त कांस्टेबल को राहत देने से इनकार कर दिया जिसने पहली शादी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी की थी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता

10 साल से मायके में पत्नी, हाईकोर्ट में तलाक मंजूर