चित्रांकन : ज़ेहरा कागज़ी
• डॉ. शम्भुदयाल गुरु
· लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में इनका नाम है दर्ज
· कार्यकाल में डाक विभाग के विकास व डाक भवनों के निर्माण पर दिया ज़ोर
· सेवा निवृत्ति के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में करती रहीं काम
भारत की प्रथम महिला पोस्ट मास्टर जनरल सुशीला चौरसिया प्रदेश में एक सहृदय तथा सक्षम महिला अधिकारी के रूप में जानी जाती हैं। सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद वे शिक्षा के उन्नयन के लिए काम करने लगीं। इसके अलावा, वे कई महत्वपूर्ण संस्थाओं से भी जुड़ गयीं। जैसे – इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एजुकेटर्स फॉर वर्ल्ड पीस के भारत मुख्यालय में बतौर नेशनल चांसलर, एशियन एकेडमी ऑफ एजुकेशन एण्ड कल्चर की ओर से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा की पत्रिका मिरेकल ऑफ टीचिंग में संपादक के तौर पर, एवं एशियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन राइट्स एजुकेशन तथा वाईएमसीए भोपाल की अध्यक्षा के रूप में।
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पहली नवम्बर,1923 को बीजापुर (कर्नाटक) में जन्मी सुशीलाजी के पिता एस.एल. मैथ्यूज़ एक आर्मी अफिसर थे और मां छिन्नत्मा शिक्षिका। विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक कार्य में रुचि लेने के कारण जबलपुर के जॉनसन गर्ल्स स्कूल की प्राचार्य मि. गर्दे ने उन्हें एक स्कूल की स्थापना का दायित्व सौंपा। यही स्कूल अब एक सुदृढ़ हवा बाग इंटरमीडिएट कॉलेज, जबलपुर के रूप में प्रतिष्ठित है। जबलपुर में स्कूल की पढ़ाई के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए सागर आ गईं और विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। मेधावी सुशीला जी का चयन 1947 में संघ लोक सेवा आयोग में हो गया और उन्होंने भारतीय डाक विभाग में बतौर डाक अधीक्षक नौकरी प्रारंभ की। इसके बाद क्रमश: सहायक पोस्टमास्टर जनरल, असिस्टेंट डायरेक्टर, डायरेक्टर के बाद मध्यप्रांत की पोस्टमास्टर जनरल बनीं। नौकरी के दौरान उन्होंने कई बड़े शहरों में अपनी सेवाएं दी। इनमें जयपुर, मुंबई, रायपुर, जबलपुर, होशंगाबाद के नाम उल्लेखनीय हैं। हर जगह अपने सहयोगियों के साथ समन्वय के जरिए उन्होंने विभाग के विकास और डाक भवनों के निर्माण की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने 1967-68 तक केन्द्रीय सचिवालय में अवर सचिव के पद पर भी रहीं। नौकरी के दौरान ही उनकी मुलाकात शिक्षाविद् गुलाब चौरसिया से हुई। उनके बौद्धिक व्यक्तित्व और सादगी से वे इतनी प्रभावित हुईं कि 1956 में वे परिणय सूत्र में बंध गईं। अपनी कोई संतान न होने के कारण पति-पत्नी दोनों निरंतर सामाजिक दायित्व में अपनी हिस्सेदारी निभाते रहे। वह वर्ष 1983 में सेवानिवृत्त हो गईं।
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3 अक्टूबर,2009 को अचानक प्रो. गुलाब चौरसिया के निधन से उन्हें धक्का लगा। अनेक सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली विदुषी सुशीला चौरसिया ने यह दावा किया था कि वे एशिया की पहली महिला पोस्टमास्टर जनरल (सेवा निवृत्त) हैं। हालांकि लिम्का बुक ऑफ रेकार्ड में वे भारत की पहली महिला पोस्टमास्टर जनरल के रूप में दर्ज है। पत्नी के रूप में पति के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखकर उन्हीं की अगुवाई में शिक्षा के उन्नयन की जो मशाल उन्होंने थामी थी, पति के न रहने पर भी उसी मार्ग पर सतत् अग्रसर रहीं। जून 2018 में 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्होंने उम्र को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वह कभी अपने दैनिक क्रियाकलापों के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहीं बल्कि अंतिम क्षण तक समाजिक हित में कार्य करती रहीं।
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उपलब्धियां
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विश्व शांति के लिए शिक्षकों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था की कुलपति रहीं ।
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मानव अधिकार शिक्षा की एशियाई संस्था की अध्यक्ष पद को सुशोभित किया ।
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यंग मेंस क्रिश्चियन एसोसिएशन, भोपाल की अध्यक्षा रहीं ।
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मप्र राज्य की संयुक्त राष्ट्र सूचना केंद्र की निदेशिका बनीं।
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शिक्षा संस्कृति की एशियाई संस्थान की उपाध्यक्ष बनीं ।
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मानव अधिकार शिक्षा की एशियाई संस्था के मुखपत्र (जनरल) की प्रधान संपादक पद को सम्भाला ।
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अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी शिक्षा प्रशासकों के लिए भी आप सक्रिय रूप से हिस्सा ले चुकी हैं।
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इन्हें लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का पुरस्कार भारतीय पोस्टल सेवा में किए गए अतुलनीय कार्य के लिए प्राप्त हुआ ।
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इन्हें भारत ज्योति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
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14 अक्टूबर 2022 को बेंगलुरु में डॉ.सुशीला चौरसिया पर एक विशेष कवर (प्रथम दिवस आवरण) जारी किया गया।
संदर्भ स्रोत- मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ



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