छाया : बाल निकेतन संघ
शिक्षा के लिए समर्पित महिला
शालिनी ताई के नाम से प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं समाजसेवी शालिनी मोघे का जन्म इंदौर में 13 मार्च 1914 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता तात्या सारवटे शिक्षाविद एवं पूर्व सांसद थे। शालिनी ताई ने कराची से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और मॉन्टेसरी एजुकेशन में एक डिप्लोमा भी प्राप्त किया। वहां उन्हें विख्यात शिक्षाविद मारिया मॉन्टेसरी से प्रशिक्षण लेने का मौका मिला था.सरकारी नौकरी में आने से पहले उन्होंने किशोर न्याय और बाल कल्याण में उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
वर्ष 1944 में उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और अपने व्यक्तिगत धन से एक नर्सरी स्कूल खोला। यह शहर का पहला मॉन्टेसरी स्कूल था और शालिनी ताई प्रदेश की पहली मॉन्टेसरी प्रशिक्षित अध्यापिका थीं। तीन सालों तक स्कूल संचालित करने के बाद उन्होंने समान विचारधारा वाले लोगों को जोड़कर 1947 में बाल निकेतन संघ की स्थापना की, जो आदर्श स्कूल के रूप में मशहूर हुआ। इसके अलावा उन्होंने संघ के माध्यम से शहर और उसके आसपास अनेक बाल कल्याण केंद्र, झूला घर, बेसहारा बच्चों के लिए आश्रय स्थल, मेडिकल कैम्प के साथ-साथ गरीब महिलाओं को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई जाती थी।
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1953 में उन्होंने सफाईकर्मियों की बस्ती में नर्सरी स्कूल की शुरुआत की जिसका अत्यधिक विरोध हुआ। तत्पश्चात राज्य सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश राज्य समाज कल्याण बोर्ड की सदस्य के तौर पर नामित किया। वे एकीकृत बाल विकास योजना से जुड़कर झाबुआ और निमाड़ के गांवों में बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने लगीं। झाबुआ में उन्होंने कस्तूरबा कन्या विद्यालय की स्थापना की। 1971 में उन्होंने खिलौना पुस्तकालय की भी स्थापना की, जहां दस वर्ष से कम आयु के बच्चों को शैक्षिक एवं वैज्ञानिक समझ विकसित करने हेतु रचनात्मक खिलौने उपलब्ध करवाए जाते थे।
1979 में सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए उन्होंने वन संपदा की रक्षा के लिए युवा शक्ति को एक लड़का- एक वृक्ष का नारा दिया.ताई बच्चों को केवल किताबी शिक्षा देने के पक्ष में नहीं थीं। वे अपने विद्यार्थियों को ग्रामीण जन-जीवन से परिचित करवाने के लि आसपास के गांवों में ले जाती थीं। वे मूल्य आधारित शिक्षा की हामी थीं इसलिए सारा जोर शिक्षा के साथ संस्कारों पर रहता था। उन्होंने हर महीने के एक शनिवार को बाल सभा शुरू करवाई थी, जिसमें सर्वधर्म प्रार्थना हुआ करती थी।
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बाल निकेतन संघ के तत्वावधान में, उन्होंने एक बीएड कॉलेज की स्थापना की, प्राथमिक शिक्षकों के लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, और दो एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम आयोजित किए, एक इंदौर शहर की झुग्गियों में और दूसरा झाबुआ जिले के आदिवासी कॉलोनी, जोबट में।इन कार्यक्रमों के तहत, उन्होंने 170 केंद्रों की स्थापना की, जिनमें बच्चों के टीकाकरण, प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद की देखभाल, महिलाओं के पोषण, स्वास्थ्य शिक्षा, स्वच्छता देखभाल, पूर्व स्कूली प्रशिक्षण और परिवार नियोजन शामिल थे। लड़कियों के लिए हॉस्टल एक अन्य परियोजना थी जो उन्होंने जोबट में शुरू किया, यहाँ संगीत, योग, कालीन बुनाई, सिलाई, बुनाई, खाना पकाने और स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रशिक्षण भी दिया जाता था।
शालिनी ताई कई सरकारी योजनाओं से भी जुड़ी रहीं। वह कोठारी शिक्षा आयोग में टास्क फ़ोर्स की सदस्य थीं। उन्होंने 1979 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित कार्य समूह में भी अपनी सेवाएं प्रदान कीं. इसके अलावा वह अंतर्राष्ट्रीय सौर खाद्य प्रसंस्करण सम्मेलन 2009 की स्वागत समिति की सदस्य भी थीं। वे बाल विकास हेतु आंगनवाडि़यों, बालवाडि़यों के जरिए गरीब वर्ग के बच्चों और महिलाओं के विकास के लिए जीवन भर जुटी रहीं। अपने करियर में अधिकांश काम उन्होंने निःशुल्क ही किया, अगर थोड़ी बहुत कमाई होती भी थी तो उसे समाज सेवा में ही खर्च कर देती थीं।
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उनका विवाह दादा साहेब मोघे/ मोटेश्वर मोघे से हुआ था जो प्रशासनिक अधिकारी थे। ग़रीब-आदिवासी महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए हमेशा आगे रहने वाली ताई के परिवार में दो लड़के व दो लड़कियां है। सुधीर और विजय मुंबई में रहते हैं, सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं, जबकि दोनों लड़कियाँ मीना फड़के और डॉ नीलिमा अदमणे नागपुर में रहती हैं। पति मोटेश्वर मोघे का स्वर्गवास 17 अक्टूबर 2005 में हुआ था। शालिनी मोधे पागनीसपागा में अपने पोते नंदन हर्डिकर के साथ रहती थीं। 30 जून 2011 को 98 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
उपलब्धियां
- 1968: पद्मश्री
- 1992: जमनालाल बजाज पुरस्कार
- 2009 -10 : नईदुनिया नायिका
- 2011: मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें प्रदेश की ‘गौवरवशाली बेटी’ घोषित किया.
संदर्भ स्रोत- विकिपीडिया
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