छाया: विकाश चंदेल, बजरिए संतोष कुमार द्विवेदी
शिक्षा के लिए समर्पित महिला
• अरुण कुमार डनायक
गुलाबवती बैगा (gulabvati-baiga) एक ऐसी लड़की की कहानी है जो बिना खिले ही मुरझा जाती अगर दो प्रेरक व्यक्तित्व उचित समय पर हस्तक्षेप न करते। ये दो व्यक्तित्व हैं उसकी अनपढ़ नानी, हर्रा टोला निवासी भुलरिया बाई बैगा और दूसरे व्यक्ति हैं कोलकाता से घूमते फिरते अमरकंटक पहुंचे डॉ. प्रवीर सरकार (Dr Praveer Sarkar) जो पेशे से होम्योपैथिक चिकित्सक (Homeopathic Physician) थे, स्वभाव से साधु और मन से विवेकानन्द के भक्त। डॉ. सरकार जब 1995 में अमरकंटक आए और यहां के बैगा आदिवासियों की व्यथा, विपन्नता देखी तो फिर यहीं बस गए। पहले लालपुर और फिर पोडकी में उन्होंने एक कच्चे मिट्टी और घास-फूस के घर में दवाख़ाना और बैगा बच्चियों के लिए 1996 में स्कूल खोला। उसमें भर्ती होने को, अपनी नानी के साथ सबसे पहले आई गुलाबवती बैगा, जिसकी मां का बचपन तो बगल के गांव हर्राटोला में बीता पर ब्याह हुआ सलवाझोरी में, जो आजकल छत्तीसगढ़ में है।
ये बच्ची जब 2001 में पांचवीं कक्षा पास करने के बाद जब अपने पितृगृह गई तो पिता ने फ़रमान जारी कर दिया कि बहुत पढ़ लिया,अब चलो सरपंच के पास, तुम्हें कोई नौकरी दिलवाएंगे और तुम्हारा ब्याह करेंगे। बैगा आदिवासियों की बिरादरी में सरपंच या मुखिया की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और अपने टोले या मोहल्ले के निवासियों के जीवन-यापन से जुड़े फ़ैसले वही करता है। अबोध गुलाबवती मन ही मन घुटती, पिता से विरोध में कुछ कह न पाती और मां से अपना दुखड़ा बताती। पर पिता कहां सुनता, वह तो अपने समाज की मर्यादाओं से बंधा था। ईश्वर ने शायद बच्ची की पुकार सुन ली और उसकी नानी अचानक ही वहां पहुंच गई। मां-बेटी ने मिलकर नानी को सब हाल सुनाया और नानी भी अड़ गई कि गुलाब आगे पढ़ेगी। पिता के तमाम तर्क कि ज़्यादा पढ़-लिख जाएगी तो कुलक्षणी हो जाएगी, घर के कामकाज कब सीखेगी, इससे बियाह कौन करेगा, नानी को झुका न सके।
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नानी भी ज़िद कर बैठी कि गुलाब को वह पढ़ाएगी। पिता कहते पढ़ाने-लिखाने रुपया कहां से आएगा, नानी और नातिन कहते बाबूजी यानि डॉक्टर सरकार देंगे। गुलाब के पिता इस पर भी नहीं माने। एक दफ़ा जब वे घर से दूर किसी जंगली झरने पर नहाने गए तो नानी ने मौका देख नातिन से कहा – चल गुलाब मेरे साथ, तुझे मैं आगे पढ़ाऊंगी। पितृगृह से आई बालिका उसके बाद डॉ. सरकार के संरक्षण में रही। उन्होंने भी गुलाब के पिता और गांव के सरपंच को समझाया। थोड़ी धमकाया भी कि बाल विवाह यानी पुलिस, कोर्ट-कचहरी आदि की झंझट। इस पर सब गुस्से में पांव पटकते चले गए और गुलाब भर्ती हो गई पोडकी स्थित शासकीय माध्यमिक विद्यालय में। जहां से वह 2004 में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण हुई। फिर नौवीं और दसवीं की पढ़ाई उसने समीपस्थ ग्राम भेजरी से उत्तीर्ण की और हायर सेकंडरी स्कूल अमरकंटक से बारहवीं 2008 में उत्तीर्ण हो गई।
डॉ. सरकार उसके अभिभावक बने रहे। कपड़े भोजन और पुस्तकों की व्यवस्था उनके द्वारा संचालित श्री रामकृष्ण विवेकानंद सेवाश्रम, पोडकी (Sri Ramakrishna Vivekananda Sevashrama, Podki) करता। गुलाब का काम सिर्फ पढ़ना था। बारहवीं होते-होते अबोध बालिका से किशोरी बन चुकी गुलाब के सपने तो ऊंची उड़ान भरने लगे। वह इस क्षेत्र में स्थापित हो रहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (Indira Gandhi National Tribal University) के निर्माण कार्यों को देखती और वहां पढ़ाते प्राध्यापकों को कभी अमरकंटक में, तो सेवाश्रम में डॉ. सरकार से चर्चा करते देखती। उसने ग्रेजुएट होने का इरादा किया। इस बार डॉक्टर साहब भी उसकी ज़िद के सामने झुके और उसे विश्वविद्यालय ले गए बीए में दाखिला कराने। इस विश्वविद्यालय से गुलाबवती बैगा – नानी के गांव वालों की गुलबिया जब 2011में स्नातक की उपाधि धारण कर बाहर निकली तो वह अमरकंटक क्षेत्र की पहली बीए पास बैगा महिला बनी।
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सरकार ने उसके प्रयासों का सम्मान किया और प्राथमिक शाला धमगढ़ में उसे शिक्षिका बना दिया। 20 जनवरी 2021 को मुख्यमंत्री ने भी सम्मानित किया। नौकरी पश्चात 2012 में विवाहित, 2013 में राजवीर व 2017 में अर्नव बैगा को जन्म देने वाली गुलाबवती जब करीने से तैयार होकर और स्कूटी पर सवार होकर स्कूल पढ़ाने जाती है तो बहुत सी आदिवासी बालिकाएं उसे घेर लेती हैं और उसकी राम कहानी उत्साह से सुनती हैं। उसकी कहानी उन बच्चियों को प्रेरणा देती है क्योंकि गुलाबवती न तो राजकुमारी है और न तो कोई परी, वह तो उन्हीं के समुदाय से बाहर निकली एक बहादुर स्वयंसिद्धा है।
मैंने उससे पूछा तुम तो पढ़ गईं पर बाकी लोगों को क्या सिखाती हो तो वह थोड़ा झिझकते हुए कहती है कि दादा मैं तो बाबूजी की सीख सबको देती हूं कि पढ़ो लिखो, सोच बदलो और परिवर्तन करो। उसका कहना है कि बैगा आदिवासियों में खान-पान को लेकर कई बुराइयां हैं। वे चूहा तक मारकर खा जाते हैं, मद्यपान बहुत करते हैं और पौष्टिक आहार नहीं लेते। शौच वगैरह भी नहीं करते, नहाना धोना तो बहुत कम करते हैं। महिलाओं का पहनावा भी पुरातनपंथी है। यह सब बदलना चाहिए और वह अपने लोगों इन परिवर्तनों को स्वीकार करने को कहती है ।
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मैंने कहा फिर तो उनका बैगापन ही खत्म हो जाएगा तो उसका जवाब है कि बैगापन तो हमारे भोलेपन में है, वह तो गोदने की तरह हमारे तन-मन में व्याप्त है। बैगा संस्कृति को हमें बचाना है पर उन भावनाओं और परम्पराओं को तो त्यागना ही होगा जो हमें डरपोक बनाती है। वह कहती हैं आज भी बैगा मोटरसाइकिल पर अनजान व्यक्ति को देखकर जंगल भाग जाते हैं। बीमार पड़ते हैं तो दवा नहीं करवाते, वरन टोना-टोटका करवाते फिरते हैं। समुदाय के लड़के-लड़कियां पढ़ेंगे-लिखेंगे तो डर खत्म होगा और वे अपनी बात खुलकर कह पाएंगे, स्वच्छता से रहना सीखेंगे तो बीमार नहीं पड़ेंगे। डाक्टर सरकार के लिए उसके मन में अगाध श्रद्धा है, वह कहती है कि बाबूजी ने उसे बस जन्म भर नहीं दिया बाकी उसके मां-बाप तो वही हैं।
मदनलाल शारदा फैमिली फाउंडेशन, पुणे ने गुलाबवती को उसके जज़्बे के लिए सम्मानित किया है।
लेखक स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी और समाजसेवी हैं,भोपाल में निवास करते हैं।
© मीडियाटिक
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