छाया : सीमा चौबे
• सीमा चौबे
आदिवासी बहुल डिंडोरी (dindori) जिले के बजाग (Bajag) विकासखंड में एक छोटा सा गाँव है सिलपीड़ी (Silpidi)। यहाँ रहने वाली 36 वर्षीय लहरी बाई (laharibai) पिछले डेढ़ दशक से एक ऐसा बैंक चला रहीं हैं जहाँ रुपये-पैसे का नहीं, बल्कि विलुप्त हो रहे बीजों का लेनदेन किया जाता है। ख़ास बात यह है इस निरक्षर महिला ने बिना किसी सरकारी मदद के अपने दम पर दुर्लभ प्रजाति के बीजों (मिलेट्स) का देसी बीज बैंक (SeedBank ) तैयार कर एक मिसाल कायम की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुकी बैगा आदिवासी समुदाय (Baiga tribal community) से ताल्लुक रखने वाली लहरी बाई अब अपने नाम से कहीं ज्यादा मिलेट्स क्वीन (MilletsQueen) के नाम से पहचानी जाती हैं। राष्ट्रपति से विशेष पुरस्कार से सम्मानित लहरी बाई के कार्यों की सराहना खुद प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं। उनकी कड़ी मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि उनके देसी बीज बैंक में आज 150 से भी अधिक किस्मों के बीज संरक्षित हैं।
लहरी बाई का जन्म 1 जनवरी 1988 को सिलपीड़ी में श्री सुखराम और श्रीमती चैतीबाई के यहाँ हुआ। उनके पिता दादा-दादी के समय से मिले वनभूमि की जमीन के छोटे से टुकड़े पर बीवर या झूम खेती किया करते थे। कुछ समय बाद वन विभाग ने खेती की इस पध्दति पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिससे धीरे-धीरे मोटे अनाज लगभग विलुप्त हो गये। परिवार में 11 बच्चों (पांच बेटे और छह बेटियों) का लालन-पालन भी बड़ी मुश्किल से होता। सुखराम जंगल से कंद-मूल लाकर जैसे-तैसे परिवार का गुजर बसर करते।
दादी से मिली प्रेरणा
पारंपरिक खेती और मोटे अनाज को सुरक्षित रखने की जानकारी लहरी को दादी से मिली। दादी उन्हें बताती कि कैसे ये अनाज शरीर के लिए पौष्टिक होते हैं। इसके बाद से ही वे बीजों को खोजने और संभालने के काम में लग गई। दरअसल भुखमरी और पोषण के अभाव में परिवार में एक-एक कर 9 बच्चों की मौत होने के बाद जब लहरी बाई बीमार पड़ी तो उन्हें लगा बाकी भाई-बहनों की तरह वे भी मर जायेंगी। दादी उन्हें बतातीं “पहले हम मोटा अनाज खाय रयत, तो कबहीं बीमार न पड़े, अब ऐसो अनाज हम कहाँ खोजी, ज तयूहे खिलाकर बचावे पाएं। हम कोदो, कुटकी, सांवा खाये रही, तो कबहीं सुई न लगाबे के पड़ी।” दादी कहती ये दाना नहीं बचा तो हमारा पूरा बैगा समाज ही धीरे-धीरे ख़तम हो जाएगा। मासूम लहरी कहती, चल दादी हमें उस दाना की पहचान करवा, जो हमें ज़िंदा रखेगा। बार-बार जिद के चलते दादी उसे गाँव –गाँव और जंगल ले जाती, जहाँ से बीजों की पहचान कर लहरी कहीं से एक-एक, तो कहीं से 2-2 मुट्ठी अनाज (सालार, सिकिया, सांवा, सल्हार आदि) इकट्ठा कर ले आती। फिर दादी के सहयोग से ही अनाज को खेत में बो दिया। पहली बार चार किलो उत्पादन हुआ। उस समय लहरी की उम्र 12 बरस थी। उसने लोगों को मोटे अनाज का महत्व बताते हुए अपने उत्पादन में से थोड़े बीज बचाकर शुरुआत में अपने ही गाँव के किसानों को डेढ़ गुना बीज लौटाने की शर्त पर बीज देना शुरू किया। अब उस बच्ची का लक्ष्य दादी के सपने को साकार करते हुए मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने और बैगा जनजाति को विलुप्त होने से बचाना था। दादी का ये सपना पूरा करने उसने इसे अब अपना मिशन बना लिया, परिणामस्वरूप आज 15 सौ क्विंटल के करीब अनाज पैदा होने लगा है।
लोग मजाक उड़ाते
लहरी बाई जब गांव-गांव बीज की तलाश में घूमती तो लोग उन्हें पागल कहते, उनका काफी मज़ाक उड़ाते, लेकिन उपहासों की परवाह किए बिना वे अपना काम करती रहीं। शुरुआत में अपने घर में बीज छिपाकर रखने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे गाँव में बीज बांटना शुरू किया फिर आसपास के पच्चीस गांवों के लोगों को जोड़ा। जब मेहनत रंग लाई तो वे लोग भी लहरी बाई की मेहनत और अथक प्रयासों की सराहना करने लगे, जो कभी उन्हें पागल कहकर उनका उपहास करते थे। अब लोगों को मोटे अनाज का महत्व समझ आ रहा है।
150 से ज़्यादा किस्म के बीज संरक्षित
करीब 13 साल बाद 2007 में लहरी बाई ने छोटे से कच्चे घर के एक कमरे में मिट्टी की कोठियां बनाई, ताकि अनाजों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके। वर्ष 2008 में उनकी दादी से मिलने आये उनके दूर के रिश्तेदार हीरालाल सरोते उनका काम देखकर इतना प्रभावित हुए कि वे भी लहरी बाई के साथ जुड़कर बीज बांटने और उत्पादन में उनका सहयोग करने लगे। वर्ष 2022 -23 में मंडला जिले के किसानों को करीब 50 किलो बीज बांटे। अब यहाँ बीज बैंक की 10 कोठी बनकर तैयार हो गई हैं। वहीं डिंडोरी में भी एक कोठी बनी है। लहरी बाई के बैंक में बिदरी रवास, झुंझुरु, हिरवा, बैगा राहड़, कुटकी के बीज की कुछ किस्में (जैसे बड़े डोंगर कुटकी, छोटाही कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, सिताही कुटकी, बिरनी कुटकी, चार कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, सफ़ेद डोंगर कुटकी), कोदो, रागी, ज्वार, बाजरा सल्हार, लालमडिया सहित 150 किस्म के मोटे अनाज संरक्षित हैं। लहरी इन अनाजों को केवल सहेज ही नहीं रहीं, बल्कि इन के आयुर्वेदिक गुण और बैगा आदिवासियों के सालों पुराने ज्ञान को समुदाय तक भी पहुंचा रही हैं।
वे बीज बैंक के जरिये अब तक तीन विकासखंडों समनापुर, बजाग और करंजिया के ग्रामों के 350 से ज्यादा किसानों को बीज वितरित कर चुकी हैं। बदले में पैसे नहीं, बल्कि फसल लेती हैं और अगर नए बीज मिल जाएं तो उन्हें भी जमा करती हैं। वे यह काम पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि अधिक बीज इकट्ठा करने के लिए कर रही हैं।
मिलेट्स एंबेसडर घोषित, गणतंत्र दिवस समारोह में बनाया मुख्य अतिथि
जब यूनेस्को ने साल 2023 को मिलेट्स वर्ष घोषित किया तो मिलेट्स (Millets मोटे अनाज) के लिए काम करने वाले लोगों की खोज-बीन होने लगी। उस समय डिंडोरी कलेक्टर विकास मिश्रा लहरी बाई को ढूंढते हुए गाँव आये और उन्हें ‘श्रीअन्न’ (shriann) के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने पर जिले का ‘मिलेट्स ब्रांड एंबेसडर’ (Millets Brand Ambassador) घोषित किया। इतना ही नहीं, उन्हें गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि भी बनाया गया। जिले में यह पहला अवसर था, जब किसी बैगा महिला को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाकर मंच पर बैठाया गया। कलेक्टर द्वारा उन्हें ‘स्टार ऑफ द मंथ’ सम्मान भी दिया गया। यहाँ से लहरी बाई को पहचान मिलनी शुरू हुई। इसके बाद इंदौर में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में भी इन्होंने बहुत नाम कमाया।
मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
12 सितंबर, 2023 को नई दिल्ली में आयोजित वैश्विक संगोष्ठी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने श्रीअन्न प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन के लिये लहरी बाई को वर्ष 2021-22 का ‘पादप जीनोम संरक्षक किसान सम्मान’ (Plant Genome Protector Farmer Award) प्रदान किया। संगोष्ठी में राष्ट्रपति ने उनके प्रयासों की जमकर सराहना की।
गाँव-गाँव में लहरी बाई तैयार करना है सपना
लहरी बाई बताती हैं घूम-घूम कर मंडला, अनूपपुर, छिंदवाड़ा और डिंडौरी के गांवों में बीज बांटती हूं, लेकिन अकेले कहां-कहां तक जा पाऊंगी, ज़्यादा तो नहीं जा सकती, इसलिए दूसरी लहरी बाई भी तैयार हों, जो ये ताकतवर दाना तैयार करें और देश-विदेश में पहुंचाएं। उनका सपना गाँव-गाँव में बीज बैंक तैयार करना है, जिससे मोटा अनाज गाँव के हर किसान, हर थाली तक पहुंचे और लोग स्वस्थ रहें।
जारी है संघर्ष
बातचीत खत्म होते-होते लहरी बाई उदास होने लगीं। वे बताती हैं जिस खेत पर उनका परिवार पीढ़ियों से खेती कर रहा है, उस भूमि का अभी तक उन्हें मालिकाना अधिकार देने वाला पट्टा नहीं मिला है। वन विभाग के कर्मचारी उन्हें इस जमीन पर खेती करने से रोकते हैं, उनके मुताबिक़ यह जमीन विभाग की है। लहरी कहती हैं सरकार के पास जमीन की कोई कमी नहीं है। वन विभाग अपनी जमीन रख ले, हमें दूसरी ज़मीन दे दे। अगर हमारे पास जमीन होगी, तो हम और ज़्यादा मोटा अनाज पैदा कर सकते हैं। बूढ़े माता-पिता के साथ दो कमरों वाले मिट्टी के घर में एक साधारण जीवन जी रही लहरी बाई गरीबी के साथ-साथ दूसरी लड़ाइयाँ भी लड़ रहीं हैं। वे महज सौ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी करती हैं, उन्हीं पैसों से घर का गुजारा होता है।
सन्दर्भ स्रोत : लहरी बाई से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
अनुवादक : हीरालाल सरोते
© मीडियाटिक
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