छाया : स्व संप्रेषित
• सीमा चौबे
जब सपना ऊंची उड़ान का हो तो मंजिल कितनी भी दूर हो, एक न एक दिन जरूर मिल जाती है। यह बात पर्वतारोही गौरी अरजरिया पर सटीक बैठती है। पन्ना जिले के सिमरिया में श्री राम कुमार और कुसुम अरजरिया के यहाँ 14 अप्रैल 1994 में जन्मी गौरी के सपने हमेशा से बड़े थे, लेकिन जिस क्षेत्र में लड़कियों का घर से बाहर निकलना भी बड़ी बात थी, वहां गाँव से निकलकर पहाड़ फतह करना कतई आसान काम नहीं था, लेकिन दकियानूसी सोच के बीच घर वालों के खिलाफ जाकर गौरी ने तमाम संघर्षों और बाधाओं के बावजूद अपने सपने को पूरा किया। पन्ना जिले की एकमात्र पर्वतारोही गौरी अरजरिया को मिली सफलता के पीछे उसके संघर्ष की एक लंबी कहानी छिपी है।
उनकी माँ गृहिणी और पिता एक छोटे काश्तकार हैं जो खेती किसानी करते हैं। गौरी ने बारहवी तक की पढ़ाई सिमरिया से करने के बाद ग्रेजुएशन प्रायवेट किया। मध्यवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी गौरी को बचपन से ही कुछ अलग करने का शौक था। स्कूल में एवरेस्ट के बारे में पढ़ने के बाद पहाड़ पर चढ़ने की ललक जगी और पर्वतारोही अरुणिमा सिंह के संघर्ष ने उन्हें एक रास्ता दिखा दिया। इसके बाद गौरी ने गूगल के माध्यम से पर्वतारोहण से सम्बन्धित सारी जानकारी (जैसे प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए रजिस्ट्रेशन फीस कितनी है, प्रशिक्षण के लिए संस्थान कहाँ कहाँ है, कितने दिन का प्रशिक्षण है कौन कौन से कोर्स है) जुटाई और घरवालों को जानकारी दिए बिना अपने लक्ष्य की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी।
शुरुआत हुई शारीरिक रूप से खुद को तैयार करने से। सुबह चार बजे 10 किलोमीटर दौड़ लगाकर घर वालों के जागने से पहले घर वापिस आ जाती। सबसे बड़ी समस्या थी प्रशिक्षण के लिए फीस जुटाने की। घर के हालात ऐसे नहीं थे कि उन्हें मदद मिल पाती, तो घर वालों से रुपए मांग नहीं सकती थी। इसलिए स्नातक करने के दौरान ही अमानगंज के स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। वहां से भी लगा कि समय पर रुपए नहीं जुटा पाएंगी तो ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर घर-घर जाकर पार्लर वाली सेवाएं देने लगीं।
गाँव में कुछ लोगों ने जब सुबह अँधेरे अकेले घर से निकलते देखा तो यह खबर उनके पिताजी तक पहुँच गई। अभी तक छिप छिपकर पर्वतारोही बनने की तैयारी में लगी गौरी ने जब घरवालों को इस बारे में बताया तो पहले किसी को कुछ समझ ही नहीं आया कि ये होता क्या है? जब पता चला तो परिवार के लोग उनके इस निर्णय के खिलाफ हो गए। पिताजी ने साफ़-साफ़ शब्दों में उन्हें कह दिया कि यह सब यहाँ नहीं चलेगा। लेकिन अपने निर्णय पर अडिग गौरी तैयारी करती रहीं। पैसा जुटाने के बाद जब प्रशिक्षण संस्थान के एकाउंट में जमा करने के लिए भाई को रुपये दिए तो परिवार वालों ने भाई को इंदौर भेज दिया। जब गौरी पता चला कि रुपए जमा नहीं हुए हैं तो जिन लोगों को पार्लर की सेवाएं दे रही थी उनसे एडवांस में पैसे लिए और पहाड़ों पर चढ़ने के लिए जूते खरीदने के जो पैसे रखे थे, उन्हें मिलाकर रजिस्ट्रेशन फीस जमा की। गौरी बताती हैं इस वजह से प्रशिक्षण के लिए वे जूते नहीं खरीद पाई थी और पहली चढ़ाई रुटीन प्रैक्टिस वाले जूतों से ही की, जिस कारण उनके पैरों में बड़े-बड़े छाले पड़ गए थे।
खैर जैसे-तैसे 11 सितम्बर 2019 को जब वे दार्जिलिंग जाने के लिए तैयार हुईं तो घर वालों ने कहा तुम हमारी मर्जी के बिना जा रही हो, आज से तुम्हारा हमारा रिश्ता ख़त्म, अब तुम वापिस लौटकर यहाँ नहीं आना। गौरी आँखों में आंसू और सपने लिए घर से निकल पड़ी। कैम्प शुरू होने से एक दिन पहले ही वे दार्जिलिंग पहुँच गई. सेंटर पहुंचने पर पता चला कि यहाँ उन्हें प्रवेश कल ही मिल पायेगा। दिन तो किसी तरह निकल गया, अब रात में रुकने की चिंता, कहाँ ठहरे। वे वापस कैंप पहुंची अपनी परेशानी बताई तो उन्हें वहां रुकने की इजाजत मिल गई।
दूसरे दिन जब गौरी ने देश के अलग-अलग प्रदेश से आये लोगों को देखा, उनसे मिली तो थोड़ी देर सोच में पड़ गई कि कहीं उसका निर्णय गलत न हो जाए क्योंकि वहां सभी पहले से प्रशिक्षित और फिजिकली फिट थे। जब वहां लोगों को पता चला कि गौरी पहली बार इस तरह के प्रशिक्षण में शामिल हो रहीं हैं तो कुछ लोगों ने उन्हें हतोत्साहित भी किया, लेकिन अपने पहले ट्रेक में ही जहाँ उन्हें 18 किलो वजन लेकर 14 किमी दौड़ने का लक्ष्य दिया गया था, उसमें वे समय से पहले पहुँच कर दूसरे स्थान पर रहीं वहीँ 22 किलो वजन के साथ 20 किमी दौड़ में लड़कियों में पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बाद गौरी में आत्मविश्वास और हौसला और अधिक बढ़ गया। उनके इस प्रदर्शन से प्रभावित प्रशिक्षकों ने उन पर विशेष ध्यान देना शुरू किया।डाइट में वहां सभी को मांसाहार लेना जरूरी था, लेकिन शाकाहारी होने कारण गौरी सामान्य भोजन ही लेती रहीं। यहाँ रॉक क्लाइम्बिंग में मेडल जीतने के साथ ही टेस्ट में उन्हें ‘ए’ ग्रेड प्राप्त हुआ। खास बात यह रही कि प्रशिक्षण में शामिल अन्य सात लड़कियों में वे अकेली थीं, जिन्हें यह उपलब्धि हासिल हुई।
इस एक माह के दौरान उन्होंने कई बार घर वालों से बात करने की कोशिश की, लेकिन नाराज घरवालों ने उनका फोन नहीं उठाया। उनके समूह में शामिल प्रतिभागियों को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने दूसरे नंबर से घर फोन किया, जैसे ही पिताजी ने फोन उठाया गौरी बोली पापा फोन मत रखियेगा। उन्होंने यहाँ मिली उपलब्धियों के बारे में पिताजी को बताया लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने के बजाय कहा “गाँव वाले, रिश्तेदार हमें नाम रख रहे, इनकी मोड़ी तो घर से भाग गई।”
गौरी कहती हैं परिवार लोगों को नाराज करके आने के बाद मै पूरे समय मानसिक रूप से परेशान रहीं, लगा अब पिताजी खुश हो जायेंगे, लेकिन घर के सभी लोग अभी भी नाराज थे, लेकिन मुझे पता था मै कुछ गलत नहीं कर रहीं। मै अब समाज को बोलकर नहीं कुछ करके दिखा कर जवाब देना चाहती थी।
सिमरिया लौटकर आने के बाद पैरों में छाले और चोट के बावजूद गौरी को खजुराहो में मौसी कि लड़की की शादी में केवल इसलिए ले जाया गया ताकि सभी को पता चल जाए कि लड़की भागी नहीं है, यहीं हैं।
लोगों के तानों की परवाह किये बिना गौरी अपने लक्ष्य के लिए प्रयास करती रहीं और वर्ष 2021 में दार्जिलिंग में एडवांस ट्रेनिंग में भी कमाल करते हुए ‘ए’ ग्रेड हासिल किया। उस वक्त पत्रकार विवेक पांडे ने उनकी उपलब्धियों को प्रमुखता से समाचार पत्र में प्रकाशित किया। उसके बाद तो बधाइयों का तांता लग गया। पन्ना कलेक्टर ने पिताजी को फोन कर उन्हें शुभकामनाएं दी। लौटने पर कटनी एसडीएम ने उनका जोरदार स्वागत किया। सांसद ने भी बधाई देते हुए ट्विटर पर पोस्ट किया पोस्ट किया सिमरिया पहुँचने पर पापा बैंड बाजे के साथ स्वागत के लिए खड़े थे। उस समय गौरी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे, वे कहती हैं मेरे लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद गौरी को पहचान मिलनी शुरू हुई।
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शादी को लेकर अभी भी मिलते हैं उलाहने
गाँव वाले आज भी गौरी की उपलब्धियों की अहमियत नहीं समझते। कई लोग शादी को लेकर आज भी ताने-उलाहने देते हुए कहते हैं “क्या हासिल क्या तुमने यह सब करके? 30 साल की हो रही हो, शादी तक तो हुई नहीं तुम्हारी।” गौरी कहती हैं इनके जवाब अभी मेरे पास नहीं है लेकिन आने वाले समय में उन्हें इस बात का जवाब जरूर मिलेगा। लोगों ने मेरी सफलता देखी है, लेकिन मेरा संघर्ष नहीं देखा। एक आत्मसंतुष्टि है कि मैंने जीवन में कई बार असफलता के बावजूद पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपना सपना पूरा किया। मैं क्षेत्र की लड़कियों को आगे बढ़ने और अपने सपने पूरा करने का रास्ता बता रही हूँ, ये मेरे लिए बड़ी बात है।
एवरेस्ट फतह करना चाहती है गौरी
एवरेस्ट फतह करना हर पर्वतारोही का सपना होता है, गौरी का भी है, लेकिन इस राह में आर्थिक तंगहाली सबसे बड़ी बाधा है। बावजूद इसके वे अपने मिशन में जुटी हैं। उन्हें स्पॉन्सरशिप की दरकार है। वे कहती हैं उन्हें मदद मिले या नहीं, वे जीते जी अपना ये लक्ष्य भी जरूर हासिल करेंगी।
वर्तमान में गौरी अध्यापन के अलावा स्वच्छ भारत मिशन और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ को लेकर लोगों को जागरूक कर रहीं हैं। वे आज भी घर-घर पार्लर की सेवायें देने जाती हैं।
उपलब्धियां
• ब्रांड एम्बेसडर बेटी बचाओ-बेटी पढाओ (2021)
• जिला स्वीप आइकॉन (2023)
• इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग उत्तरकाशी से बेसिक और एडवांस माउंटेनियरिंग प्रशिक्षण
गौरी अब तक देश की नामचीन सबसे ऊंची चोटियों की चढ़ाई कर चुकी हैं
• बेसिक माउंटेनिंग कोर्स के दौरान -सिक्किम स्थित माउंट रेनॉक (16500 फीट-2019)
• उत्तराखंड स्थित केदार कांठा (12 हजार फीट-जनवरी 2021)
• एडवांस माउंटेनिंग कोर्स के दौरान-सिक्किम स्थित विधान चंद्र राय पर्वत चोटी (18000 फीट- अक्टूबर-नवम्बर 2021)
• चंद्रशिला तुंगनाथ उत्तराखंड (13 हजार 500 फीट-जनवरी 2022)
• हिमाचल स्थित यूनम पीक एडवेंचर वैली (21500 फीट-15 अगस्त 2022)
• दक्षिण अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो (अगस्त 2023). किलिमंजारो पर -20 में साड़ी पहनकर 6 दिन में दो बार चढ़ाई करने का रिकार्ड भी गौरी के नाम है। इस उपलब्धि पर किलिमंजारो नेशनल पार्क कमिश्नर द्वारा प्रमाण-पत्र प्राप्त।
सन्दर्भ स्रोत : गौरी अरजरिया से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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