अजायबघरों में शिक्षा के दीपक जला रही हैं शिबानी घोष

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अजायबघरों में शिक्षा के दीपक जला रही हैं शिबानी घोष

छाया : शिबानी घोष के एफबी अकाउंट से

शिक्षा के लिए समर्पित महिला

• सीमा चौबे

संग्रहालय (Museum) यानी ऐसी जगह, जहां नई-पुरानी चीजों के साथ किसी देश की कला, संस्कृति और उसके इतिहास को सहेज कर रखा जाता है, लेकिन भोपाल की शिबानी घोष ( Shibani Ghosh) ने अपने नवाचारी विचारों से संग्रहालयों को मलिन बस्तियों (Slums) के बच्चों के लिए शिक्षा का मंदिर बना दिया। जी हां, शिबानी  भोपाल में गरीब बस्तियों  के लिए एक ऐसा अनोखा स्कूल चला रही हैं, जिसकी कक्षाएं स्कूल में नहीं, बल्कि सिर्फ संग्रहालय में लगती हैं।

‘परवरिश द म्यूजियम स्कूल’ (Parvarish the Museum) नाम के इस मोबाइल स्कूल ने पिछले 16 वर्षों में साढ़े 4 हज़ार से अधिक बच्चों को तराशा और शिक्षा से जोड़ा है। परिणाम, शिक्षा से दूर रहने वाले परिवारों के कई बच्चे आज इंजीनियरिंग, विज्ञान, कॉमर्स, आर्ट्स, मास कम्युनिकेशन तथा फैशन डिजाइनिंग में स्नातक हासिल कर न सिर्फ स्वयं बेहतर जिंदगी जी रहे हैं, बल्कि दूसरों की जिंदगी भी संवार रहे हैं।

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1 मई को भिलाई में श्री बरिन कुमार रॉय चौधरी और श्रीमती मोनिका रॉय चौधरी के घर जन्मी शिबानी को नई किताबों की खुशबू क्या होती है, यह पता ही नहीं था। पिता स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में कार्यरत थे और माँ एक सफल गृहिणी। 3 भाई बहनों में दूसरे नंबर की शिबानी जी ने स्कूल तक शिक्षा अपने बड़े भाई की क़िताबें पढ़कर पूरी की और कॉलेज की पढ़ाई सेकंड हेंड किताबों से। वे सिर्फ कॉपियां नई खरीदती और निब बदल कर पेन इस्तेमाल किया करती थीं. वही शिबानी घोष आज ‘परवरिश, द म्यूजियम स्कूल’ के जरिये गरीब और स्लम इलाकों में रहने वाले बच्चों को बेहतर तालीम देने का काम कर रही हैं, वह भी निशुल्क।

अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद वर्ष 1993 में उनका विवाह सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत भोपाल निवासी प्रदीप घोष (pradeep ghosh) के साथ हो गया। विवाह के बाद उन्होंने नेचुरोपैथी (Naturopathy) में पहले डिप्लोमा और बाद में वर्ष 1998 -99 में एम.डी किया। वर्ष 2004-05 में बी.एड की डिग्री हासिल की। बी.एड करने के दौरान शिबानी ने महसूस किया कि जो शिक्षा प्रणाली और कौशल वे सीख रही हैं, इसका इस्तेमाल ज़्यादातर स्कूलों में होता ही नहीं है। बी.एड करने के बाद अगर वह किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेंगी, तो वो ये ज्ञान दूसरे बच्चों तक नहीं पहुंचा पाएंगी और वो उसी ढांचे में बंधकर रह जाएंगी, जिस तरीके से बच्चों को अब तक पढ़ाया जाता है, इसलिए कुछ अलग करने की अपनी मंशा इन्होंने अपने पति को बताई. तब दोनों ने मिलकर तय किया कि कुछ अलग तरीके से ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का काम किया जाए, जो गुणवत्ता युक्त शिक्षा से दूर हैं।

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इस मकसद के लिए प्रदीप जी ने नौकरी छोड़ दी और पति-पत्नी ने मिलकर वर्ष 2005 में राजधानी के स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को शिक्षित कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के मकसद से ‘परवरिश द म्यूजियम स्कूल’ की शुरूआत की। स्कूल शुरू करने से पहले शिबानी जी देश के अलग अलग स्थानों पर गईं। भोपाल की मलिन बस्तियों का सर्वेक्षण किया।  पांडिचेरी के अरविंद आश्रम (Aurobindo Ashram of Pondicherry) और दूसरे स्कूलों के तौर-तरीकों को समझा, तब इन्होंने सोचा कि क्यों न भोपाल में मौजूद संग्रहालयों को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। इस तरह भोपाल में 5 संग्रहालयों (आंचलिक विज्ञान केंद्र, मानव संग्रहालय, क्षेत्रीय प्राकृतिक संग्रहालय, जनजातीय संग्रहालय और राज्य पुरातत्व संग्रहालय) के सहयोग से गरीब बस्तियों के 40 बच्चों के साथ उनकी यात्रा शुरू हुई।

आज भोपाल की मलिन बस्तियों के लगभग सौ बच्चे नियमित रूप से ‘परवरिश’ में पढ़ते हैं। यह एक ऐसा स्कूल है, जहां बच्चों को किताबी ज्ञान बेहतर तरीके से समझाने के लिए उन्हें व्यावहारिक ज्ञान से रुबरु कराया जाता है। यह ज्ञान बच्चे संग्रहालयों में रखी गई वस्तुओं और प्रादर्शों से प्राप्त करते हैं। शिबानी जी और प्रदीप जी अजायबघरों में बच्चों को उस विषय से सम्बंधित हिस्से में ले जाते हैं, जिसे वे पढ़ रहे होते हैं। इस कारण बच्चे किसी भी चीज़ को जल्द और आसानी से समझने लगते हैं। स्कूल सप्ताह में 6 दिन लगता है। पहले से तय संग्रहालय के हिसाब से कक्षाएं संचालित होती हैं। ख़ास बात यह है कि शिक्षा का कामकाज वही लोग संभालते हैं, जिस तबके से ये बच्चे आते हैं। झुग्गी बस्तियों में रहने वाली 10 लड़कियां जो अब पढ़ लिख गई हैं, वो इन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाती हैं, तो म्यूजियम क्लास इनके वालंटियर संभालते हैं ।

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शिबानी जी बताती हैं शुरूआत से ही हमने एक बस किराये पर ली, जो अलग-अलग बस्तियों में जाकर बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें संग्रहालय लाने ले जाने का काम करती थी, लेकिन अब बच्चों की संख्या बढ़ गई है और भोपाल के अलग-अलग इलाके से बच्चे आते हैं, इसीलिए अब 2 बसें इस काम में लगी हैं। संग्रहालयों में उपलब्ध वस्तुओं और प्रादर्शों (Exhibits) के बारे में बच्चों को इतने रोचक तरीके से बताया जाता कि बच्चे में जिज्ञासा पैदा हो। इसी जिज्ञासा के कारण वे किताबों से दोस्ती करने लगते हैं। धीरे-धीरे बच्चे जब ज्यादा रुचि लेने लगते हैं, तो म्यूजियम दिखाने के साथ-साथ इन बच्चों का दाखिला नियमित स्कूलों करवाया जाता है।

शिबानी जी बताती हैं उनका मुख्य उद्देश्य पढ़ाई के साथ बच्चों का समग्र विकास करना भी है, इसलिए बच्चों को विभिन्न तरह की व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है, जिससे उनके कौशल में भी निखार आये। इनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हर क्षेत्र में अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर रहे हैं। परवरिश के बच्चों द्वारा बनाए गए विभिन्न उत्पाद अमेजन पर भी उपलब्ध हैं। कई बच्चे टीवी कार्यक्रमों में अभिनय और नृत्य प्रतियोगिताओं में अपना जौहर दिखा चुके हैं। अनुज गुलाटी द्वारा निर्देशित ‘मैनलिएस्ट मैन’ मूवी (Manliest Man Movie) में स्कूल की दो लड़कियों खुशबू और रश्मि ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है ।

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बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई में भी परवरिश की शाखाएं हैं, जहां सप्ताहांत पर कक्षाएं संचालित की जा रही थीं लेकिन कोविड के कारण अभी कक्षाएं बंद हैं। उनकी योजना इस काम को अब इन शहरों के अलावा देश के दूसरे शहरों में भी फैलाने की है, इसलिए इन्हें ऐसी संस्थाओं की तलाश है, जो अपने-अपने शहरों में बच्चों की पढ़ाई को अजायबघरों और दूसरे ज्ञान केन्द्रों के साथ जोड़ सकें।

शिबानी कहती हैं कार्य के दौरान हमें खट्टे-मीठे अनुभव खूब मिले। हमने वाहवाही बटोरी तो आलोचनाएं भी सुनीं। लोगों को हमारे काम को समझने में समय लगा। लोग हमसे सवाल करते कि जब पूरी दुनिया पैसे के पीछे भागती है, तो हम नि:शुल्क काम क्यों करते हैं? क्या मकसद है हमारा? हमने ये रास्ता क्यों चुना? हमने सबसे एक ही बात कही- ‘हम भीड़ का हिस्सा नहीं, भीड़ का कारण बनना चाहते हैं’। अपनी इस बात की उन्होंने मिसाल भी पेश की है। शिबानी जी महिलाओं से अपेक्षा करती हैं कि समाज के लिए छोटे तौर पर ही सही, वे कुछ न कुछ ज़रूर करें, क्योंकि ‘जहां चाह, वहां राह’। बस, कुछ अलग करने की मंशा होनी चाहिए। चूंकि साथ कुछ लेकर जाना नहीं है, इसलिए कुछ देकर जा सकें, तो अच्छा है।

शिबानी के जुड़वा बच्चे पियूली और पीयूष भी अपनी माँ के इस काम से बहुत खुश हैं और वे भी इसी राह पर चलते हुए देश और समाज को एक नया रूप देने की कोशिश में लगे हैं।

उपलब्धियां/पुरस्कार

1.  यूनेस्को एशिया पेसिफ़िक एजुकेशन इनोवेशन अवार्ड (2016-बीज़िंग यूनेस्को से पुरस्कृत होने वाला देश का पहला स्कूल)

2.  आईबी हब द्वारा ‘सुपर 30 टीचर्स’ अवार्ड (2019- शिबानी जी म.प्र. से एकमात्र महिला)

3.  हंड्रेड फिनलैंड द्वारा ‘शिक्षा में 100 प्रेरक वैश्विक नवाचार’  के तहत सूचीबद्ध स्कूल

4.  ‘जियो दिल से’ अवार्ड (2013)

5.  रानी कमलापति वीरांगना सम्मान (भोपाल नगर निगम द्वारा)

6.  एजुकेशन वर्ल्ड इंडिया पोर्टल की रैंकिंग में वर्ष 20-21 में म्यूजियम स्कूल को 14वां स्थान प्राप्त. स्पेशल नीड कैटेगरी स्कूल में टॉप 20 में मध्यप्रदेश से चयनित होने वाला ‘परवरिश’ इकलौता स्कूल

इसके अलावा परवरिश व शिबानी जी को उत्कृष्ट कार्य करने हेतु अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं

सन्दर्भ स्रोत: शिबानी घोष से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

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