हिन्दी साहित्य में मध्यप्रदेश की लेखिकाओं का योगदान भाग-4

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हिन्दी साहित्य में मध्यप्रदेश की लेखिकाओं का योगदान भाग-4

छाया : अनीता दुबे

साहित्य विचार 

हिन्दी साहित्य में मध्यप्रदेश की लेखिकाओं का योगदान भाग-4

(अधुनातन युग)

• सारिका ठाकुर 

बीती सदी के नौंवे दशक के बाद प्रदेश में महिला साहित्यकारों की नयी पीढ़ी का पदार्पण हुआ, जो इस भ्रांति को तोड़ती हैं, कि उत्तर आधुनिक युग की नारी के पास समाज के लिए दीगर प्राथमिकताओं के कारण साहित्य सृजन के लिए समय, नहीं के बराबर है। इस दौर में बहुविधा और बहुभाषागत और विपुल सृजन से प्रदेश की  लेखिकाओं ने अपने को स्थापित किया हैं। मसलन-उर्मिला शिरीष, रेखा कस्तवार, स्वाति तिवारी, वंदना राग आदि। इन्होंने कथा साहित्य को अपने-अपने स्तर पर न केवल विस्तार बल्कि विषयों के चयन से लेकर कथानक के उपचार तक अपनी एक विशिष्ट शैली भी विकसित की। इस बीच यह भी देखा गया कि साहित्य जगत में कथा साहित्य का बोलबाला कुछ कदर बढ़ा कि काव्य विधा कहीं पीछे छूट गया। ज्यादातर रचनाकार अपने कथा संसार में तल्लीन रहे। इसके पीछे एक कारण यह भी रहा हो कि शास्त्रगत परिभाषाओं में काव्य को एक जटिल विधा माना गया है। काव्य रचना से पूर्व छंद विधान एवं नवरसों का ज्ञान जैसी बातें अनिवार्य मानी जाती थीं, यह अभिव्यक्ति से कहीं ज्यादा साहित्य में लावण्य उत्पन्न करने का विषय था जिसे सतत अभ्यास के बाद ही साधा जा सकता था। दूसरी तरफ कहानियों का प्रारूप बिलकुल ताजा और निखरा-निखरा हुआ सा था, इसमें स्वयं की तरफ से कुछ और जोड़ने की भी भरपूर स्वतंत्रता मिल रही थी। नतीजा यह हुआ कि काव्य विधा कुछ अंतराल के लिए सुप्त हो गया। इस सुप्तावस्था में ही इस विधा ने धीरे-धीरे अपने स्वरूप को बदलना शुरू कर दिया और वह उस ‘ब्लैंक वर्स’ अथवा नई कविता के स्वरूप में हमारे सामने आया जिस रूप में आज हम उसे पाते हैं, यानि अब कविता के अनुप्रास के लिए घंटो तुक वाले शब्द के पीछे कवि को श्रम करने जाने की आवश्यकता नहीं रह गई अगर उसके ‘कहन’ में भाव पक्ष एवं कला पक्ष का सुन्दर प्रयोग हुआ हो। बाह्य दृष्टि से भले ही यह एक सरल सा माध्यम प्रतीत होता हो, वास्तव में यह विधा तलवार के धार पर चलने के सामान है क्योंकि एक सूत बराबर अंतर से कविता गद्य की नदी में गिरकर अपना अस्तित्व खो सकती है। निःसंदेह यह शैली यूरोप साहित्य से आयातित है तथापि इस शैली ने अभिव्यक्ति के नए द्वार खोल दिए जिसमें प्रदेश के नए दौर की कई   ने प्रवेश किया। इसके अलावा अन्य विधाओं में भी सशक्त लेखन की शुरूआत हुई। इसलिए इस कालावधि में स्त्री लेखन को अलग-अलग विधाओं के अनुसार दर्ज करना आवश्यक हो जाता है।  

कहानी/उपन्यास/एकांकी/लघुकथा/बाल साहित्य/कथेतर गद्य साहित्य 

• इस क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख लेखिकाएं 

उर्मिला शिरीष : 1959 में दतिया में जन्मी उर्मिला शिरीष प्रदेश के साहित्य जगत में ही नहीं राष्ट्रीय पटल पर भी दबदबा रखती हैं। इनकी अब तक 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सामान्यतया स्त्री लेखन से स्त्री विषयक जिस विमर्श की अपेक्षा की जाती है, उर्मिला जी उसे गंभीरतापूर्वक निभाते हुए उनसे इतर सरोकारों को भी अपने कथा-वस्तु में सम्मिलित करती हैं। उनके रचना संसार में घर-गृहस्थी के अतिरिक्त भी बहुत कुछ अनुभव किया जा सकता  है। वे ऐसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करतीं हैं जो मात्र समस्यों से घिरकर रोता-बिलखता ही नहीं है आगे बढ़कर समाधान भी प्रस्तुत करा है।  

रेखा कस्तवार : इसी पीढ़ी की मजबूत हस्ताक्षर हैं रेखा कस्तवार। उनका जीवन और सृजन दोनों ही सदैव उल्टी धारा में प्रवाहमान रहा इसलिए उनकी कहानियों और निबंधों से एक आंच सी महसूस होती है। उनकी कथाओं के पात्र बहस के लिए जमीन तैयार करते हैं। उनकी कहानियों में स्त्री विमर्श के विविध आयाम से देखने को मिलते हैं। लेखन में उनकी शैली, तर्क और विमर्श आदि को देखते हुए कई समकालीन उन्हें आलोचनात्मक लेखन के क्षेत्र का मानने को बाध्य हो जाते हैं। उनकी पुस्तक ‘स्त्री चिंतन की चुनौतियां’ स्त्री विमर्श से सम्बंधित समझ बनाने के लिए एक अनिवार्य ग्रन्थ सिद्ध होता है।

स्वाति तिवारी:  मानवाधिकार एवं सामाजिक सरोकारों की पक्षधर स्वाति के कथा साहित्य में विविध विषयों की एक क्रमिक श्रुंखला नज़र आती है जिसमें बहुआयामी सरोकारों के साथ एक सहज बोधगम्य भाषा प्रवाह उनकी मौलिक पहचान बन जाती है। वे बिना आंचलिक हुए मालवा के देशज  शब्दों का ऐसा कुशल प्रयोग करती हैं जो उनकी कहानियों में लालित्य बनकर उभर आता है। देशज शब्दावली को कथा में स्थान देना अति कुशलता की मांग करता है, अकुशल कथाकारों की रचनाओ में यही प्रयोग चावल में कंकड़ की तरह करड़-करड़ जैसा भाव पैदा करता है। कविता के भीतर  कहानी अथवा कहानी के भीतर कविता तत्व हो तो रचना की भाव भूमि से सोंधी सी महक आने लगती है। स्वाति तिवारी के कथा संसार में कविता मूलक बिम्ब संयोजन के कारण ऐसी ही सोंधी महक आती है। उनकी प्रमुख कृतियों में नौ कहानी संग्रह के  अतिरिक्त कुछ वैचारिक पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।   

वंदना राग: वन्दना राग समकालीन दौर की सर्वाधिक संवेदनशील लेखिका मानी जाती हैं। उनकी कहानियां पढ़ लेने के उपरांत हमेशा के लिए एक टीस छोड़ जाती हैं। उनके कथा संसार में विमर्श की अपेक्षा अनुभूतियां ज्यादा मुखर रही है। जो सच के करीब होते हुए भी कभी कभी कल्पनातीत सी महसूस होती हैं ।  कथा जगत में इनका पदार्पण ‘यूटोपिया’ के द्वारा हुआ, जो काफी चर्चित हुआ। इसके बाद प्रकाशित ख़यालनामा, मैं और मेरी कहानियां, हिजरत से पहले एवं बिसात पर जुगनू ने भी समीक्षकों का न केवल ध्यान खींचा बल्कि उन्हें समकालीन सशक्त कथाकारों में शुमार किया जाने लगा। 

सुशीला टाकभौरे: मध्यप्रदेश के दलित साहित्य में एक दमदार उपस्थिति सुशीला टाकभौरे की नज़र आती है। बाल्यावस्था में वर्गभेद के कड़वे अनुभवों ने उनके साहित्य की आधारभूमि निर्मित की। उनके द्वारा रचित कई काव्य संग्रह, उपन्यास, कहानी संग्रह, लेख संग्रह एवं विवरणात्मक पुस्तकें प्रकाशित हैं जो दो समानांतर धाराओ के कंटीले पथ पर यात्रारत प्रतीत होती हैं जिसमें एक तरफ दलित विमर्श एवं दूसरी तरफ स्त्री विमर्श के विस्तृत आकाश दिखाई देता हैं। यह उनके स्वयं की यात्रा भी है जिसमें सामजिक चेतना की समझ एक प्रस्थान बिंदु होती है, वह प्रस्थान बिंदु आया उनके विवाह के पश्चात् जब  उनका अम्बेडकर के विचारों से साक्षात्कार हुआ। मन में बनी बाल्यावस्था की धारणाएं टूटीती  चली गईं और नए विचारों को जानने, समझने और फिर उनके आधार पर कुछ रचने की प्रक्रिया शुरू हुई। यही वजह है कि उनकी कहानियाँ जिन विचारों को जगह नहीं दे पायी वे विवरणात्मक लेखों में  दर्ज हुए। दर्ज करने के महत्व की समझ यहाँ अपने आप में महत्वपूर्ण हो उठता है क्योंकि यह सर्वविदित है कि दस्तावेजों में वही दर्ज हुए जिनके पास ताकत रही, वंचितों का इतिहास और वर्तमान दर्ज होने का दौर तो बहुत बाद में शुरू हुआ जिनमें एक सशक्त भूमिका सुशीला टाकभौरे की भी रही है।

आकांक्षा पारे: मध्यप्रदेश की मौजूदा कथाकारों में आकांक्षा पारे का नाम बड़े ही विश्वास के साथ लिया जाता है। कई कठिन विषयों पर लिखी हुई उनकी कहानियां फिसलती हुई सी समाप्त होती हैं। उल्लेखनीय या है कि उनकी कितनी ही कहानियों में एक किरदार ‘मैं’ भी होती है परन्तु कहानी में कहीं भी कथाकार स्वयं कथा की निगरानी करती सी प्रतीत नहीं होतीं। ऐसा सशक्त और सधे हुए कलमकार ही कर पाते हैं। इसलिए इसमें कोई हैरत की बात नहीं है अगर इनकी पहली कहानी ही वागर्थ जैसी साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। इनका कहानी संग्रह ‘तीन सहेलिया तीन प्रेमी’ राजकमल प्रकाशन ने, बहत्तर धडकनें तिहत्तर अरमान सामयिक प्रकाशन ने और तीसरा कहानी संग्रह ‘पिघली हुई लड़की’ राजपाल एण्ड संस ने प्रकाशित किया था। इन्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाज़ा गया है। आकांक्षा जी का जन्म जबलपुर में हुआ था और वर्तमान में वे गाज़ियाबाद में निवास कर रही हैं।

डॉ. शरद सिंह : पन्ना की डॉ. शरद सिंह ने स्वयं को किसी एक विधा में आबद्ध न करके कथा साहित्य, कविता, निबंध लेखन एवं संपादन में खुद को आजमाया जिसमें वे पूरी तरह सफल रहीं । विभिन्न विषयों पर उनकी अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं| बुन्देलखण्ड की महिला बीड़ी श्रमिकों पर केन्द्रित ‘पत्तों में कैद औरतें’ तथा स्त्री विमर्श पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरें’ मनोरमा ईयर बुक में शामिल की जा चुकी हैं। बेड़िया स्त्रियों पर केन्द्रित ‘पिछले पन्ने की औरतें’ तथा लिव इन रिलेशन पर ‘कस्बाई सिमोन’ नामक उनके उपन्यासों को राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनका एक और उपन्यास “पचकौड़ी” राजनैतिक और पत्रकारिता जगत की पर्तों का बारीकी से विश्लेषण करने वाला पठनीय एवं लोकप्रिय उपन्यास है। हाल ही में डॉ. शरद सिंह का नया उपन्यास “शिखण्डी… स्त्री देह से परे” प्रकाशित हुआ है जो महाभारत के एक प्रमुख पात्र शिखण्डी के जीवन को नए नज़रिए से व्याख्यायित करता है। उनकी कहानियों का पंजाबी, उर्दू, उड़िया, मराठी एवं मलयालम में अनुवाद हो चुका है। साथ ही शरद सिंह के कथासाहित्य पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध हो चुके हैं।

मीनाक्षी नटराजन: वह युग अब पीछे छूट चुका है जब देश के राजनेता भी गहन साहित्यिक अभिरुचि रखते थे और पठन, पाठन और लेखन में उनकी रूचि हुआ करती थी, युवा राजनीतिज्ञ मीनाक्षी नटराजन उसी युग का प्रतिनिधित्व करती हैं और इसी दृष्टि से मौजूदा पीढ़ी के लिए वे किसी उदाहरण से कम नहीं। वर्ष 2012 में उनकी पहली कृति प्रकाशित हुई 1857: भारतीय परिपेक्ष्य। यह पुस्तक दो भागों में थी, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, इसमें 1857 के ग़दर की व्यापक पड़ताल प्रस्तुत की गई है। पुनः वर्ष 2018 में उनकी दूसरी पुस्तक छप कर आई ‘अपने अपने कुरुक्षेत्र’ जिसे वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुस्तक में उन्होंने महाभारत के सम्पूर्ण कथानक पुनर्स्थापित किया है। ख़ास बात यह है कि इस पुस्तक में महाभारत के नारी पात्रों की ख़ास नज़रिए से देखने का प्रयास किया गया है। यह इनकी पहली साहित्यिक कृति है एवं इसके बाद अन्य कोई पुस्तक पढ़ने को नहीं मिलती तथापि इन दोनों पुस्तक के माध्यम से वे साहित्य जगत में अपना स्थान अवश्य सुरक्षित कर लेती हैं।

निर्मला भुराड़िया:  कविता, कहानी एवं पत्रकारिता को सामान रूप से साधने वाली निर्मला भुराड़िया अपने लेखन में पड़ताल एवं विश्लेषण को संतुलित रूप से स्थान देती हैं। विषय के रूप में समसामयिक मुद्दे उठाते हुए भय, असुरक्षा बोध, आकांक्षा एवं अव्यक्त अनुभूतियों तक उसे विस्तार देती हैं।  एक ही कैनवास पर बार-बार और मत हंसो पद्मावती जैसे कहानी संग्रहों ने कथा जगत में उनकी मजबूत दावेदारी प्रस्तुत की, इसके बाद उपन्यास ऑब्जेक्शन मीलार्ड और फिर कोई प्रश्न करो नचिकेता के माध्यम से उन्होंने ख्याति अर्जित की। समकालीन स्त्री लेखन को निर्मला जी से आँखें फेरकर नहीं समझा जा सकता।

वंदना अवस्थी दुबे : साहित्यिक माहौल में पली बढ़ी वंदना अवस्थी दुबे बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं । इन्होने लगभग 12 वर्षों तक समाचार पत्र देशबंधु में बतौर वरिष्ठ उपसंपादक कार्य किया इसलिए खोजी प्रवृति इनके स्वभाव में है । आकाशवाणी छतरपुर में लगभग आठ वर्षों तक बतौर अस्थायी उद्घोषिका के रूप  में कार्य किया। साहित्य के प्रति रुझान पिता के कारण हुआ जो स्वयं भी साहित्यकार थे। घर में विभिन्न विषयों पर आधारित पुस्तकों की कभी कोई कमी नहीं रही। वे अपने बचपन के घर को अघोषित पुस्तकालय का नाम देती हैं। यही वजह है कि दस वर्ष की उम्र में ही सबसे पहले कहानी लिखने का प्रयास किया जो दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ। इसके बाद से लिखने और छपने का क्रम आज भी जारी है। वन्दना जी की अब तक एक कहानी संग्रह –बातों वाली गली और एक उपन्यास अटकन चटकन प्रकाशित है। ऐतिहासिक पात्र हरदौल के ऊपर गहन शोध पर आधारित उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य है। इनके कहानी संग्रह को मप्र हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा सर्वश्रेष्ठ कथा का पुरस्कार प्रदान किया गया था ।

ममता सिंह: जबलपुर के युनुस खान की पत्नी श्रीमती ममता सिंह को मध्यप्रदेश की बहू हैं जिन्हें कहानी संग्रह ‘राग मारवा’ के लिए मध्यप्रदेश का प्रतिष्ठित वागीश्वरी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। असम में जन्मी ममता जी का बचपन से ही लेखन के प्रति रुझान रहा है। आकाशवाणी से उनकी अनेक काहनियों का प्रसारण हो चुका है। वर्तमान में कहानियों का ऑडियो ब्लॉग ‘काफी हाउस’ का संचालन कर रही हैं।

सुमन ओबेरॉय : भोपाल निवासी सुमन ओबेरॉय कथा साहित्य एवं एकांकी दोनों ही विधा में लेखन करती हैं। लम्बे अरसे से साहित्य एवं लेखन से जुड़ी सुमन जी की कहानियाँ एवं नाटक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनके अनेक नाटकों का कई स्थानों पर मंचन भी हुआ है, इसके अलावा साहित्य के कई छात्रों ने उनके द्वारा लिखे गए नाटकों पर शोधकार्य भी किया है । वास्तव में साहित्य के वर्तमान युग में नाटक लेखन विधा थोड़ी उपेक्षित सी हो गई है। मौलिक अच्छे नाटकों के अभाव में मंचन हेतु पुरानी अच्छी कहानियों का ही नाट्य रूपांतरण कर उसके मंचन का एक चलन से शुरू हो गया है। ऐसे में सुमन ओबेरॉय के नाटक लेखन का महत्व और भी बढ़ जाता है। उनके नाटकों में हास्य एवं व्यंग्य का पुट दर्शकों को खूब पसंद आते हैं।  अब तक इनके दो कहानी संग्रह एवं एक नाटक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

सुमनजी कहानियाँ बहुत ही सहज-सरल और कम शब्दों में गहरे सन्देश देती हैं। इनकी कहानियों का केंद्रीय विषय भी आम जीवन से ही उठकर आते हैं, जिसे बिना भारी भरकम आडम्बरयुक्त साहित्यिक वस्त्र पहनाए ज्यों का त्यों धर देती हैं और पाठक कभी हैरान तो कभी शर्मिंदा सा हो उठता है क्योंकि ऐसे किरदारों से वे कई बार मिल चुके होते हैं चाहे वह कहानी ‘मुनिया की साइकिल’ हो या ‘मीठी नीम के पत्ते’।

सपना सिंह: रीवा की सपना सिंह कथा साहित्य में सम्मानित स्थान रखती हैं। इनके जीवन में साहित्य के लिए स्थान किशोरावस्था में ही सुरक्षित हो गया था। वह धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान और पराग जैसी पत्रिकाओं का युग था। सपना जी ने लेखन की शुरुआत धर्मयुग के किशोर स्तम्भ से की थी। इनकी पहली कहानी हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद यह सिलसिला जीवन का हिस्सा बन गया। लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में इनकी कहानियां निरंतर छपती रही हैं।  इनका एक उपन्यास, दो कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह एवं एक इनके द्वारा सम्पादित पुस्तक प्रकाशित है। इनकी कहानियों में अक्सर मध्यवर्गीय समाज में चारदिवारी के भीतर बेआवाज़ जीवन व्यतीत करती स्त्रियों की झलक मिलती है।  

रजनी सक्सेना: साहित्य के प्रति अनुराग रखने वाली `डॉ. रजनी सक्सेना की पहली कहानी 1979 में प्रकाशित हुई थी। सागर में 1958 में जन्मी रजनीजी हिंदी एवं इतिहास की विद्यार्थी रही हैं। परिवार में भले ही साहित्यिक माहौल नहीं रहा, पर पिताजी समाज की विद्रूपताओं के बारे में बताया करते थे। इनके दो कहानी संग्रह, दो कविता संग्रह एवं एक लेख संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी कहानियाँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। रजनी जी को मध्यप्रदेश लेखक संघ के लेखिका चौबे सम्मान एवं सुमन चतुर्वेदी सहित सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

(सन्दर्भ स्रोत : हिंदी तथा अंग्रेजी-महिला लेखन का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. चन्द्र मुखर्जी, पृं 37 )

वीणा सिन्हा : वीणा जी का जन्म छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में हुआ लेकिन उनका कर्म क्षेत्र मध्यप्रदेश ही रहा। पेशे से चिकित्सिका वीणा जी एक संवेदनशील कवियित्री एवं कहानीकार हैं। अब तक इनके दो कविता संग्रह एवं दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। द्वितीय कविता संग्रह ‘सुबह की धूप’ राष्ट्र भाषा प्रसार समिति द्वारा, प्रथम उपन्यास ‘पथ प्रज्ञा’ की पांडुलिपि को आर्य स्मृति साहित्य सम्मान व अखिल भारतीय दिव्य पुरस्कार एवं द्वितीय उपन्यास ‘सपनो से बहार’ को प्रतिष्ठित वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अपने उपन्यासों में वे जिस प्रकार विद्वतापूर्ण विमर्श प्रस्तुत करती हैं, उसी प्रकार अपनी कविताओं में एक गूढ़ ताना-बना बुनती हैं। 

इंदिरा दांगी: वर्तमान गद्य लेखन में इंदिरा दांगी एक स्थापित हस्ताक्षर हैं। साहित्य जगत में वे धीरे-धीरे स्थापित नहीं हुईं बल्कि पदार्पण के साथ ही चर्चित भी होने लगीं।   साहित्य अकादमी युवा लेखन पुरस्कार , ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार सहित अन्य अनेक श्रेष्ठ पुरस्कारों एवं सम्मानों से नवाजी गईं। यह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड ही है कि उन्होंने दस पुस्तकें लिखीं एवं लगभग तीन दर्जन पुरस्कारों से नवाजी गईं। इनके द्वारा लिखी गईं कहानियां वेदेशों में बसे हिंदी भाषियों के मध्य भी लोकप्रिय हैं। उनके द्वारा लिखी गई नाटक ‘राई’ और ‘रानी कमलापति’ के अनेक शो अमेरिका में हो चुके हैं।

अलका अग्रवाल सिगातिया: मध्यप्रदेश के कटनी में जन्मी अलका जी के लेखन की शुरुआत हुई ‘कहानी’ से। इनकी पहली कहानी सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में प्रकाशित हुई थी।  अलका जी विविध साहित्यिक विधाओं में स्वयं को आजमाते हुए कहानी, कविता, व्यंग्य एवं स्तम्भ लेखन आदि करती हुई पटकथा लेखन के पड़ाव तक पहुंची। इनका एक कहानी संग्रह ‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते’ प्रकाशित है। उन्होंने जीटीवी पर प्रसारित ‘रिश्ते’ एवं दूरदर्शन पर प्रसारित ‘जानम समझा करो’ धारावाहिकों की कुछ कड़ियों का लेखन किया। इसके अलावा वे आकाशवाणी के लिए भी सतत लेखन करती रही हैं। फिल्म ‘अदृश्य’ की पटकथा एवं संवादों को साहित्यिक कृति में तब्दील कर पुस्तक रूप में प्रकाशित करने के कारण इनकी खूब चर्चा हुई थी। उल्लेखनीय है कि इस फिल्म की पटकथा और संवाद भी इन्होंने ही लिखे थे।

मीरा जैन: उज्जैन की मीरा जैन लम्बे अरसे से लेखन में सक्रिय हैं। इनकी रचनाएँ अहा! जिन्दगी, वागर्थ, नवनीत, कथादेश, अक्षरा जैसी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। अब तक इनकी नौ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मीरा जी कविता, कहानी एवं लघुकथा में सहज रूप से अभिव्यक्त होती हैं। इन्हें गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विद्वानों की सूची में सम्मिलित किया गया है। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजी जा चुकी मीरा जैन की रचनाएं पंजाबी, उडिया, मराठी, अंग्रेजी एवं सिन्धी भाषाओं में अनुदित हुई हैं।  इसके अलावा इनकी पुस्तक ‘मीरा जैन की 100 लघु कथाएँ’ पर विक्रम यूनिवर्सिटी, उज्जैन द्वारा शोधकार्य भी करवाए गए हैं।

जया जाद्वानी: कोतमा (शहडोल) में जन्मी सिन्धी एवं हिंदी की प्रखर लेखिका जया जादवानी कथा साहित्य में अपनी मजबूत मौजूदगी रखती हैं। इनकी कहानियाँ विचारोत्तेजक होने के साथ-साथ चिंतन के लिए विस्तृत आकाश उपलब्ध करवाती हैं। कथा विस्तार और पात्रों के चित्रण में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इनके लेखन को औरों से सर्वथा अलग सिद्ध करता है। इनकी प्रकाशित रचनाओं में 4 कविता संग्रह, 10 कथा संग्रह 5 उपन्यास एवं 2 अनुवाद उल्लेखनीय हैं। जया जी आज भी निरंतर सृजनशील हैं।

डॉ. लक्ष्मी शर्मा : इंदौर में जन्मी डॉ. लक्ष्मी शर्मा हिंदी साहित्य की सेवा निवृत्त व्याख्याता हैं। इनके दो उपन्यास (सिन्धुपुर की भगतणे एवं स्वर्ग का अंतिम उतार), दो कथा संग्रह (एक हंसी की उम्र एवं रानियाँ रोती नहीं) एवं आलोचनात्मक पुस्तक- ‘मोहन राकेश के साहित्य में पत्र संरचना’ प्रकाशित हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कहानियाँ, एकांकी एवं आलोचना प्रकाशित होती रही हैं। लक्ष्मी जी उन रचनाकारों में से हैं जो संख्यात्मक रूप से बहुत कम लिखते हैं और जो लिखते हैं वे गुणवत्ता की दृष्टि से अप्रतिम होते हैं। इनकी कहानियाँ हर पन्ने पर अगला पन्ना पढ़ने के लिए उकसाती हैं एवं अंत में कुछ सवाल छोड़ जाती हैं। सेवा निवृत्ति के बाद से लक्ष्मी जी जयपुर में निवास कर रही हैं एवं स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं।

वंदना देव शुक्ला : बहुमुखी प्रतिभा की धनी वंदना देव शुक्ल लेखिका होने के साथ ही दक्ष एवं प्रशिक्षित गायिका भी हैं। लिखने पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा। पहली कहानी वर्ष 2012 में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘वागर्थ’ में प्रकाशित हुई और पहली पुस्तक ‘उड़ानों के सारांश’ वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तक लगभग हर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी कहानियों में स्त्री जीवन के संघर्षों के साथ-साथ कई कहानियों में शुद्ध रहस्य-रोमांच का आनंद भी उठाया जा सकता है। यही वजह है कि अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से इन्हें पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया है। क्रोएशिया विश्वविद्यालय(यूरोप) के इंडोलॉजी विभाग के पाठ्यक्रम में इनकी तीन कविताएं सम्मिलित हैं। 

डॉ. अमिता नीरव: पेशे से पत्रकार इंदौर की डॉ. अमिता नीरव पत्रकारिता के साथ साथ लेखन भी प्रखरता से करती हैं। यही वजह है कि हंस, वागर्थ, पहल, परिकथा, बया, पाखी, समावर्तन आदि साहित्यिक पत्रिका में इनकी रचनाएं निरंतर छपती रही हैं। इनके पहले कहानी संग्रह का नाम है ‘तुम जो बहती नदी हो’ जिसे वर्ष 2019 का वागीश्वरी पुरस्कार प्राप्त हुआ । अगली कृति एक ऐतिहासिक उपन्यास है जो शीघ्र प्रकाश्य है।

कविता वर्मा : इंदौर की कविता वर्मा ने लेखन कार्य वर्ष 2000 में अखबार में आलेख लिखने से शुरू किया था जो धीरे-धीरे कविता, लघु कथा, कहानी, उपन्यास और यात्रा संस्मरण तक स्वतः विस्तार पाता गया। वर्तमान में कविता जी एक ‘कासे कहूं’ नाम से एक लोकप्रिय ब्लॉग का संचालन कर रही हैं। अब तक इनके 1 उपन्यास (छूटी गलियां) 2 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। इसके अलावा इनकी रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। इनके एक कहानी संग्रह को वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी कहानियों में मानवीय रिश्तों की महीन बुनावट भी साफ नज़र आती है। कभी कभी चौंकाने वाले विषय को केंद्र में रखते हुए भी सहजता से कहानी को निभा ले जाना उनकी अतिरिक्त खूबी है।       

संतोष श्रीवास्तव : वर्तमान की परिपक्व पीढ़ी के साहित्यकारों में संतोष श्रीवास्तव बहुमुखी प्रतिभा की धनी कही जा सकती हैं। इनकी पहली रचना धर्मयुग में प्रकाशित हुई। इसके बाद से इन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखा है। कविता, कहानी, उपन्यास, लघुकथा, यात्रा वृतांत, ललित निबंध एवं विवेचना आदि सभी में वे सामान रूप से  अपनी युगचेतना को अभिव्यक्ति देती हैं। सामाजिक रूढ़ियों के साथ-साथ आधुनिक समाज की अधकचरी सोच को भी बखूबी उन्होंने अपने लेखन में स्थान दिया  है। अब तक इनकी 22 पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें  5 कथा संग्रह, 6 उपन्यास, 1 कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा निबंध, यात्रा संस्मरण, साक्षात्कार आदि के संग्रह एवं आत्मकथा प्रकाशित हैं ।

प्रभा मेहता: बहुमुखी प्रतिभा की धनी प्रभा मेहता कहानी, कविता, निबंध एवं अनुवाद   विधाओं में निरंतर लिख रही हैं। इनकी पांच पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें 3 निबंध संग्रह और दो कहानी संग्रह हैं। रवि रश्मियाँ पुस्तक के लिए इन्हें महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्तमान में प्रभाजी लेखन के साथ-साथ हिंदी के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

श्रद्धा श्रीवास्तव : नवोदित लेखिकाओं में श्रद्धा श्रीवास्तव भविष्य के प्रति बहुत बड़ी उम्मीद सा जगाती हैं। हालाँकि अब तक इनका एक भी संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ है तथापि जिस प्रकार वागर्थ, नया ज्ञानोदय सरीखी पत्रिकाओं में श्रद्धा जी की रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं एवं उनकी समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है, उसके आधार पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि वे भीड़ से हटकर हैं। इन्होने उषा प्रियंवदा की कहानियों पर शोध कार्य भी किये हैं। इसके अलावा आकाशवाणी के लिए भी पटकथा लेखन का कार्य करती हैं। श्रद्धा समीक्षा लेखन में भी स्वयं को आजमा रही हैं और प्रशंसित हो रही हैं। 

सीमा शर्मा : नई पीढ़ी की लेखिकाओं में सीमा शर्मा महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इनकी पहली कहानी ‘मैं रेजा और पच्चीस जून’ समाचार पत्र ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुई और यहीं से साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ। इसके बाद से इनकी कहानियाँ इंद्रप्रस्थ भारती, कथाक्रम, कथादेश,परिकथा, आदि प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। कहानी संग्रह –भेड़ियों का पोशम्पा प्रकाशित है। सीमाजी उन रचनाकारों में शुमार होती है जिनकी रचना लम्बे-लम्बे अंतरालों के बाद पढ़ने को मिलती हैं और देर तक अपना असर छोड़ती हैं ।

विनीता रघुवंशी : कहानीकार प्राध्यापिका विनीता रघुवंशी लम्बे समय से कहानियां लिख रही हैं जो समय समय पर नया ज्ञानोदय जैसे वागर्थ जैसे  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के अलावा आकाशवाणी से भी प्रसारित होती हैं। कहानियों के अलावा विनीता जी समीक्षात्मक लेखन में भी रूचि रखती हैं। इस विधा में उनकी एक पुस्तक मुक्तिबोध: विचार और संवेदना प्रकाशित है।

मीनाक्षी दुबे : किसी रचनाकार के जीवन में साहित्य का प्रवेश कब होगा यह सुनिश्चित नहीं होता। मीनाक्षी जी की पहली कहानी सन 2018 में    नई दुनिया के रविवारीय परिशिष्ट में छपी जिसका नाम था ‘मुस्कुराती तस्वीर की जगह’। पुनः लगभग वर्ष भर के अंतराल के बाद मुंबई से प्रकाशित एक पत्रिका ‘कथा बिम्ब’ के अक्टूबर अंक में एक कहानी छपी ‘फेयर ड्राफ्ट’ जिसे वर्ष 2019 का कमलेश्वर कथा सम्मान प्राप्त हुआ। इसके बाद कहानी लिखने का एक सिलसिला सा चल पड़ा। इनकी कहानियों को कथादेश सहित कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। वर्तमान में एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है।

लता अग्रवाल :  रचनाकार सृजन के लिए किस विधा का चुनाव करे यह निर्णय पूरी तरह व्यक्तिपरक होता है। कुछ लोग जीवनपर्यंत सिर्फ कविता रचते हुए या कहानी लिखते हुए ख्यात हुए जबकि कुछ रचनाकारों नें विविध विधाओं में खुद को आजमाया और सफल भी रहे। लता अग्रवाल दूसरी श्रेणी की रचनाकार हैं। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें 11 भाषा विज्ञान  पर आधारित हैं, जो विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित हैं। इसके अलावा 6 कविता संग्रह, 5 कहानी संग्रह, 7 लघुकथा संग्रह, 3 उपन्यास 2 साक्षात्कार संग्रह 4 समीक्षाओं पर आधारित पुस्तक, 8 लघु रूपक प्रकाशित हैं। इसके अलावा 11 पुस्तकें बाल साहित्य पर आधारित हैं। इन सभी पुस्तकों में  केंद्रीय तत्व ‘नैतिकता और आदर्श’ समान रूप से उपस्थित है। इन्होंने किन्नर जैसे विषय भी चुने जिस पर बहुत कम लेखन कार्य हुआ है। इनके श्रम को इसी अनुपात में प्रतिदान भी प्राप्त हुआ जिसके तहत कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से इन्हें नवाज़ा जा चुका है|

कांता राय: भोपाल की कांता राय वर्तमान में ‘लघुकथा’ की विधा विशेषज्ञ के रूप में स्थापित हैं। इनके अब तक तीन ‘लघुकथा संग्रह’ दस इनके द्वारा सम्पादित लघुकथा संग्रह प्रकाशित हैं। इसके अलावा ये अनेक पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों का संपादन कर चुकी हैं।  वर्तमान में वे मासिक अख़बार ‘लघुकथा वृत्त’ का संपादन भी कर रही हैं कांताजी की पृष्ठभूमि साहित्यिक नहीं रही है तथापि 2014 से ये निरंतर सृजनशील हैं अल्पावधि  में ही अपनी पहचान बनाने में सफल रहीं।  कहा जा सकता है कि स्व परिश्रम एवं सोशल मीडिया की मदद से  इन्होंने ‘लघुकथा लेखक-लेखिकाओं की फ़ौज तैयार कर दी जिनमें से निःसंदेह साहित्य का इतिहास ‘श्रेष्ठ’ का चुनाव ही करेगा। उन चुने हुए लघुकथाकारों को अस्तित्व में लाने का श्रेय निर्विवाद रूप से कांता जी की झोली में जाएगा। 

• बाल साहित्य

मालती बसंत :  लम्बे अरसे से साहित्य कर्म में व्यस्त मालती बसंत कहानी, कविता, दोहे, गजल, नाटक, संस्मरण आदि विधाओं में सक्रीय रही हैं यद्यपि उनके अनुसार वे सबसे ज्यादा सहजता का अनुभव  लघु कथा लेखन में करती हैं। इनकी लगभग 26 पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें 14 बाल साहित्य, 3 लघुकथा संग्रह 1 हास्य व्यंग्य २ कहानी संग्रह और 1 समीक्षा पर आधारित हैं । इन्हें वर्ष 2002 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया, पुनः मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2004 में पंडित रवि शंकर शुक्ल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । इनकी कृतियों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के कई छात्रों ने शोध कार्य कर चुके हैं। 

गिरिजा कुलश्रेष्ठ :  बाल साहित्य की दुनिया में गिरिजा कुलश्रेष्ठ का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है, हालाँकि उन्होंने स्वयं को कभी सिमित नहीं रखा। उनकी रचनाओं में एक पुरसुकून भाव पक्ष नज़र आता  है जो मानवजीवन और उनसे जुड़े विषयों को बड़े ही कोमल दृष्टि से देखती हैं। लगभग 50 बाल कथा, सत्तर बाल कविताओं में यह अनुभूति होना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है उन तीन सौ गीतों व कविताओं में उसी कोमलता की अनुभूति होना जो उन्होंने वयस्कों के लिए लिखे। दरअसल हम सभी मानते हैं कि बड़ों की दुनिया दुःख और संघर्ष से खाली कैसे हो सकती है, परन्तु गिरिजाजी के रचना संसार में दुःख पीड़ा भी रहस्यमयी आभा में लिपटी नज़र आती है। अब तक उनकी छः पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।

डॉ. सुधा गुप्ता ‘अमृत’: बाल साहित्य में ‘पीएचडी’ कर चुकीं कटनी की डॉ. सुधा गुप्ता कहानी संग्रह ‘किरदार बोलते हैं’ एवं कविता संग्रह ‘बिना नेल पॉलिश वाली उंगलियाँ’ संवेदनाओं के धरातल पर अंतर्मन के उलझे हुए धागों का प्रयास करती हैं लेकिन बाद में उनकी अधिकांश पुस्तकें बच्चों पर केन्द्रित हो गयीं। यह देखते हुए बाल साहित्य को उनका मनपसंद क्षेत्र कहा जा सकता है। इनकी पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से कई पुरस्कृत भी हुईं। इसके अलावा मध्यप्रदेश आदिवासी लोककला एवं भाषा विकास अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘मध्यप्रदेश की बोलियों में बालगीत’ इनकी उपलब्धियों में से एक है। इनके द्वारा रचित अनेक बालगीतों का मराठी में अनुवाद किया जा चुका है।   

डॉ. प्रीति प्रवीण खरे : गीत, गजल. कविता, आलेख, लघुकथा आदि में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाने वाली प्रीतिजी की पहचान एक बाल साहित्यकार के रूप में है। बाल साहित्य में पीएचडी करने के कारण बालमन के सहज भाव को सरलता से अपनी कहानियों और कविताओं में थाम लेती हैं। बाल साहित्य की श्रेणी में इनकी छः पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, इसके अलावा अन्य धाराओं में भी 4 पुस्तकें प्रकाशित हैं। वर्ष 2013 में इन्हें राष्ट्रपति भवन, दिल्ली से चर्चा हेतु बाल साहित्यकार के रूप में आमंत्रित किया गया था। बाल साहित्य’ की काव्य कृति के लिए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा प्रादेशिक  ’जहूर बख़्श  पुरस्कार-2017’ से भी सम्मानित किया गया।

• कथेतर गद्य साहित्य

डॉ. गीता पुष्प शॉ : जानी-मानी लेखिका पद्मा पटरथ एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार रॉबिन शॉ पुष्प की पत्नी गीता पुष्प शॉ अपनी साहित्यिक अभिवयक्ति के लिए हास्य-व्यंग्य का मार्ग चुना। इस विधा में लिखने वाली गिनीचुनी महिलाओं में से वे एक हैं। प्रारंभ में वे बाल साहित्य की ओर उन्मुख हुई। उनका पहला बाल उपन्यास वीनू और रेशमी टुकड़ा पहले पत्रिका में प्रकाशित हुआ एवं बाद में इक्कीसवीं सदी का भारत के नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने तीन बाल उपन्यास लिखे, बाद में वे हास्य व्यंग्य लेखन में ही रम गईं। उनके द्वारा रचित इस विधा की करीब  छः पुस्तकें प्रकाशित हैं जबकि गृह विज्ञान पर आधारित 6 पुस्तकें प्रकाशित हैं।

डॉ. उर्मिला प्रकाश मिश्र : पठन-पाठन और अध्यापन से जुड़ी उर्मिला जी अकादमिक लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनके द्वारा रचित -प्राचीन भारत में नारी, भारत का इतिहास, स्वातंत्र्य समिधा, भारत के लोक जीवन में कल्याण की परम्परा और मध्यप्रदेश के शैलचित्र जैसे ग्रन्थ सम्बंधित विषय के महत्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ माने जाते हैं। अब तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगभग 30 शोधपत्रों का वाचन एवं प्रकाशन कर चुकी हैं।  हालाँकि कविता लेखन में भी इनकी रूचि रही है । इनके दो कविता संग्रह चाहती हूँ युद्ध एवं पिघलता पाषाण प्रकाशित हैं। इस रूचि के कारण ही हिंदी लेखिका संघ -मप्र की नींव तैयार करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। 

स्मृति शुक्ल: हिन्दी साहित्य में आलोचना के क्षेत्र में आज भी बहुत ही कम महिलाएं सक्रिय हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के दमोह जिले की स्मृति शुक्ल का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि विगत पच्चीस वर्षों से वे साहित्य के आलोचना पक्ष को संवार रही हैं। हिंदी साहित्य: कुछ विचार एवं निकष: बत्तीस और समय का अनजान पथिक इनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं। प्रख्यात कथाकार हरनोट पर आधारित एस. आर, हरनोट : एक शिनाख्त शीर्षक से संपादित पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है। स्मृति जी की दो सौ से अधिक आलोचनात्मक लेख औऱ समीक्षाएं देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्यिक योगदान को देखते हुए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा ‘नंददुलारे वाजपेयी आलोचना सम्मान’ इन्हें प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त इन्हें अखिल भारतीय प्रभाकर श्रोत्रिय आलोचना पुरस्कार, शिक्षा रत्न सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव अलंकरण सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इन्होंने मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिए भी पाठ्यपुस्तकों का लेखन किया है।

सीमा व्यास : पिछले तीस वर्षों से लेखन में सक्रिय सीमा व्यास अब तक नवसाक्षरों के लिए लगभग 45 पुस्तकें लिख चुकी हैं। लगभग 4 सौ आलेख और कहानियां विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा वर्ष 2014 में एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुआ । इन्होने राष्ट्रीय चैनल पर प्रकाशित एक धारावाहिक में सहलेखन कार्य, फिल्म्स डिवीज़न, मुंबई द्वारा निर्मित वृत्त चित्र ‘लोकनृत्य राई’ हेतु पटकथा लेखन भी किया है। उनके लेखन में स्त्री संवेदना प्रमुखता से व्यक्त होती है।

शुभ्रता मिश्र : बाल्यावस्था से ही लेखन में अभिरुचि रखने वाली शुभ्रता जी प्रारंभ में कविताएँ, कहानियां और लेख लिखा करती थीं। विज्ञान की छात्रा होने के कारण इस विषय में ख़ास अभिरुचि थी। सरल अंग्रेजी में सबसे पहले उन्होंने विज्ञान पुस्तक लेखन प्रारंभ किया और लगभग बीस किताबें लिख डालीं । हिंदी से अतिरिक्त प्रेम होने के कारण बाद में उन्होंने हिंदी में विज्ञान लेखन प्रारंभ किया। विज्ञान के कठिन से कठिन तकनिकी शब्दों का सरल हिंदी में अनुवादकर बोधगम्य आलेख तैयार करना शुभ्रता जी की विशेषता है। शुभ्रता जी की अब तक हिंदी में 3 विज्ञान पुस्तकें, अंग्रेजी में 18 विज्ञान पुस्तकें एवं अनेक शोधपत्र प्रकशित हो चुकी हैं।

भारती शुक्ल: सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली भारती जी विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर शोधकार्य करती रही हैं जो आलेख के रूप में प्रायः पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। खास तौर पर डूबते हुए हरसूद पर रिपोतार्ज, बेड़िया समुदाय की स्त्रियों पर आधारित शोध एवं बुंदेलखंड की स्त्रियों पर आधारित शोध ‘मरी जाएं मल्हारें गाएं(यह ई बुक के रूप में प्रकाशित है) इनके महत्वपूर्ण शोध आलेख हैं। इसके अलावा ये स्त्रीकाल ईपत्रिका से भी जुड़ी हुई हैं। संवेदनाओं की समझ एवं परख रखने वाली भारती जी साहित्य में भी गहरी रूचि रखती हैं। कथादेश, पहल, अकार एवं अहा जिन्दगी जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं।  

मीनाक्षी जोशी : कथेतर गद्य में मिनाक्षी जोशी का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है। आलोचनात्मक पुस्तक के साथ लेख संग्रह, गुजराती से हिंदी अनुवाद एवं कई सम्पादित पुस्तकें इनके नाम से दर्ज हैं। इनकी प्रकाशित कृतियों में -धूमकेतु, धूमिल और साठोत्तरी कविता(आलोचना), समय, साहित्य और समाज (लेख संग्रह), मन मंथन(लेख संग्रह) उल्लेखनीय है। सम्पादित काव्य संग्रह ‘ये सूरत बदलनी चाहिए’ काव्य के प्रति इनके सूक्ष्म समझ को व्यक्त करता है। यही कारण है कि साहित्य अकादमी (महाराष्ट्र), हिंदी साहित्य सम्मलेन सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों एवं पुरस्कारों से इन्हें नवाजा गया है।

एकता कानूनगो बख्शी :  प्रतिष्ठित पुनर्नवा पुरस्कार – 2018 से सम्मानित एकता नयी पीढ़ी की ऊर्जावान एवं संवेदनशील लेखिका हैं। इन्होंने अपनी पहली कहानी वर्ष 2011 में ‘इंद्रधनुष का बीजारोपण’ नाम से लिखी जो नई दुनिया में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद लगभग हर विधा  में  इन्होंने खुद को आजमाया। इनकी कविता, कहानियां, लेख एवं व्यंग्य लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। एक ओर ये अपनी कविताओं में  महीन संवेनाओं को पूरी दक्षता से व्यक्त करती हैं तो दूसरी तरफ व्यंग्य लेखों में करारा वार करती हुई भी प्रतीत होती हैं। लेखों में इनका परिष्कृत विचार मंत्रमुग्ध करता है। इन दिनों ‘जनसत्ता’ के स्थायी स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में उनके लेख निरंतर प्रकाशित हो रहे हैं।   

वर्तमान में मध्यप्रदेश में महिला लेखन का आकाश निरंतर विस्तृत हो रहा है, अब वे मात्र अपनी उदासियों को उकेरने की बजाय नई-नई विधाओं में खुद को आजमाते हुए उस गढ़ में भी सेंध लगा रही हैं जिसे महिलाओं के लिए त्याज्य माना जाता था। संघर्ष में मात्रात्मक कमी न होने के बावजूद अच्छी बात यह है कि वे अपनी लड़ाई खुद लड़ने की कला में भी निष्णात हो रही हैं।

© मीडियाटिक

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