शासकीय योजना
हमारे भारतीय समाज में ‘मासिक धर्म’ एक ऐसा शब्द है, जिसका उच्चारण हमेशा फुसफुसाकर ही किया जाता है भले ही क्षेत्र अथवा प्रान्त में इसके लिए अलग-अलग नाम इस्तेमाल किये जाते रहे हों। हर समाज में इससे जुड़े अंधविश्वास भी लगभग एक जैसे ही हैं। यही वजह है कि जरूरी होते हुए भी इस विषय पर परिवार या समाज के स्तर पर कभी बातचीत नहीं होती। यही वजह है कि महिलाएं किशोरावस्था में ही कई बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। वे संकोचवश किसी को इस बारे में बता नहीं पातीं है और धीरे-धीरे वही बीमारी एक दिन जानलेवा बन जाती है।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश शासन के महिला बाल विकास परियोजनाओं के तहत 1 नवम्बर 2016 में प्रोजेक्ट उदिता कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। इस योजना की परिकल्पना के अनुसार आँगनवाड़ी के कर्मचारी और सहायिकाएं किशोरियों को मासिक धर्म के दौरान जरुरी साफ़-सफाई रखने और लापरवाही की स्थिति में होने वाले यौन रोगों के बारे में जानकारी देंगी और उन्हें सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध करवाएंगी। यदि किशोरवय में ही लड़कियां स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो जाएं तो भविष्य में भी वे सभी स्वस्थ रह सकती हैं।
इस योजना की मार्गदर्शिका के अनुसार स्कूलों, कॉलेजों, कन्या छात्रावास, निजी और शासकीय अस्पतालों, महिलाओं का कार्यस्थल, दुकानों, सार्वजानिक स्थलों और स्वयं सहायता समूहों में सैनेटरी नेपकिन उपलब्ध करवाए जाएंगे।
प्रोजेक्ट उदिता कार्यक्रम एक नज़र में
इस योजना का लाभ राज्य में निवास करने वाली सभी किशोरियां उठा सकती हैं।
• परियोजना का उद्देश्य
- माहवारी स्वच्छता तथा समुचित माहवारी प्रबंधन के बारे में जागरूकता तथा संवेदनशीलता पैदा करना।
- मासिक-धर्म के बारे में किशोरियों में जागरूकता बढ़ाना।
- विषय से जुड़े हुए प्रश्नों एवं भ्रांतियों का समाधान करना।
- ग्रामीण स्तर सेनेटरी नेपकिन की उपलब्धता एवं बालिकाओं तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करना ।
- किशोरियों में एनीमिया संबंधी जागरूकता बढ़ाना।
- किशोरियों में पोषण संबंधी जागरूकता बढ़ाना।
• परियोजना का लाभ कैसे उठाएं
आँगनवाड़ी केन्द्र में जाकर कम मूल्य सेनेटरी नेपकिन खरीदे जा सकते हैं। इस योजना का लाभ लेने हेतु कोई आवेदन प्रक्रिया नहीं है।
पहली ही नज़र में यह योजना संवेदनशील शासकीय अंतर्दृष्टि की ओर इशारा करती है। हालाँकि जमीनी स्तर पर इस योजना से लाभ उठाने वाली हितग्राहियों की संख्या अभी भी बहुत कम है क्योंकि संकोच का बाँध एक झटके से नहीं तोड़ा जा सकता। लेकिन जिस विषय पर चर्चा से भी परहेज किया जाता रहा हो उसे ध्यान में रखते हुए एक व्यापक योजना की परिकल्पना भी स्वागत योग्य है। बदलाव की गति हमेशा से धीमी रही है।
संदर्भ स्रोत -विभिन्न पत्र-पत्रिकयो और शासकीय वेबसाइट
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