पुरस्कार सम्मान और मप्र की महिला किसान    

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पुरस्कार सम्मान और मप्र की महिला किसान    

महिला कृषि विचार  

आमतौर पर खेती किसानी पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है। आम बोलचाल की भाषा में भी किसान भाइयों को ही संबोधित किया जाता है, किसान बहने कहने में किसी की भी जीभ लड़खड़ा जाए। जबकि वास्तविकता यह है कि खेती से सम्बंधित 70 प्रतिशत काम काज महिलाएं ही करती हैं। चाहे वह नीड़ाई, बोआई हो या फसल काटने जैसा काम हो। ख़ासतौर पर पशुधन की देखभाल तो पूरी तरह महिलाओं के जिम्मे ही होता है। फिर भी, एक आम धारणा के तहत इन्हें किसान माना ही नहीं जाता।

कृषि कर्मण अवार्ड  

—कृषि कर्मण अवार्ड में जब सबसे पहली बार में ही श्रीमती राधा बाई का नाम आया तो सभी ने दांतों तले ऊँगली दबा ली। इसके बाद प्रति वर्ष इस पुरस्कार पर महिलाओं की दावेदारी बरकार रही। उदाहरण के लिए

  • वर्ष -2011-12 में प्रदेश के दो किसानों को कृषि कर्मण अवार्ड मिला जिसमें एक थीं रायसेन जिले की श्रीमती राधा बाई । इन्हें चने के बम्पर पैदावार के लिए पुरस्कृत क्या गया था।
  • वर्ष 2012-13 में पुनः यह पुरस्कार प्रदेश को प्राप्त हुआ एवं पुरस्कृति होने वाले किसानों दो किसानों में से एक छिंदवाडा जिले की शशि खंडेलवाल थीं। इन्हें गेहूं के पैदावार के लिए पुरस्कृत किया गया था।
  • वर्ष 2013-14 में इस पुरस्कार को खंडवा जिले की श्रीमती रेखा सैनी ने हासिल किया। इन्हें गेहूं की खेती के लिए पुरस्कृत किया गया।
  • वर्ष 2014-15 में बाजरे की खेती के लिए मुरैना जिले की श्रीमती रेखा त्यागी को पुरस्कृत किया गया।
  • वर्ष 2015-16 में होशंगाबाद जिले की श्रीमती अरुणा जोशी को कृषि कर्मण अवार्ड मिला।
  • वर्ष 2016-17 में कृषि कर्मण पुरस्कार गेहूं उत्पादकता श्रेणी में होशंगाबाद की किसान कंचन वर्मा को प्राप्त हुआ। कंचन वर्मा की खासियत है कि वह ट्रैक्टर और हल का इस्तेमाल नहीं किया, हाथों से बुआई की और एक हेक्टेयर में 44 क्विंटल की पैदावार का रिकॉर्ड बनाया।
  • वर्ष 2017-18 में दलहन उत्पादकता श्रेणी में होशंगाबाद जिले की श्रीमती स्नेहलता मेहता पुरस्कृत हुईं।

 अन्य पुरस्कार एवं उपलब्धियां

बड़वानी के एक छोटे से गाँव बोरलाय में रहने वाली और सीताफल की खेती के लिए मशहूर ललिता मुकाती लगभग 37 एकड़ में जैविक खेती करती हैं। खेती से सम्बंधित छोटे से बड़ा काम खुद करना जानती हैं। चाहे वह फावड़ा चलाना हो या ट्रैक्टर चलाना। इन्हें 2018 में ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय पुरस्कार’ एवं वर्ष 2019 में ‘इनोवेटिव फार्मर अवार्ड’ से पुरस्कृत किया गया। अब तक 5-6 देशों की यात्रा कर चुकी हैं। इतना ही नहीं ललिता गाँव की अन्य महिलाओं को भी जैविक खेती के तरीके सिखाती हैं।

इसी प्रकार 2019 का ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय पुरस्कार’ शारदा पाटीदार ने हासिल किया। पुनः 2020 में बोरलाय गाँव की ही सारिका पाटीदार को ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान’ से पुरस्कृत किया गया। सारिका सीताफल, पपीते समेत कई फल जैविक पद्धति से उगाती हैं। इन्होंने ललिता मुकाती से जैविक खेती की विधि सीखी।

यह चर्चा अधूरी अगर अग्रणी महिला किसानों में लक्ष्मी की चर्चा न हो। लक्ष्मी ने पारंपरिक खेती से अलग हटकर जैविक खेती को अपनाया। 2016 के उत्तरार्ध में प्रदेश के खापरखेड़ा गाँव की रहने वाली लक्ष्मी परते ने जैविक विधि से टमाटर उगाए जो बाजार भाव से अधिक कीमत पर बिके। लक्ष्मी की सफलता को देखते हुए गाँव वाले जो कुछ महीने पहले उसका मजाक उड़ाया करते थे उसके ही नक़्शे कदम पर चल पड़े और गाँव की 125 एकड़ की भूमि शुद्ध जैविक खेत में बदल गई। लक्ष्मी ने सौ से अधिक किसानों को जैविक खेती की विधि समझाई और अपनी मिसाल पेश की। वर्ष 2020 में लक्ष्मी के प्रयासों और नायाब तकनीकों का सम्मान करते हुए उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र पुरस्कार से नवाजा गया। इसी कड़ी में अगला नाम मंजू देशलहरा, सविता राहंगडाले और सुभद्राबाई पटले का भी आता है। ये सभी प्रगतिशील कृषि के लिए जानी जाती हैं।

पुरस्कारों और सम्मानों से अलग हटकर बात की जाए तो श्योपुर की महिला किसानों की उपलब्धियां भी कम नहीं हैं। इस जिले में भी ऐसी कई महिलाएं जो कृषि के क्षेत्र में अपनी समझ बूझ का धाक रखती हैं। सीएमएसए कार्यक्रम के तहत यहाँ की चुनी हुई महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत हरियाणा के पिछले क्षेत्रों में पहुंचकर वहाँ की महिलाओं को जैविक विधि से सब्जियों के उत्पादन के तरीके बताई हैं। इसके लिए प्रदेश की 20 ऐसी महिलाओं को चुना जाता है जो पिछले तीन सालों में सफलतापूर्वक जैविक खेती कर चुकी हों।

यहाँ उल्लेखनीय है कि महिलाएं या तो हाशिये पर रखकर पति की अनुगामिनी बनाकर खेती में साथ देती हैं या फिर खेती में नवाचार अपनाकर अपना एक अलग मुकाम बनाती हैं। कृषि के क्षेत्र में सफलता अर्जित कर चुकीं ज्यादातर महिलाओं ने जैविक खेती को ही अपनाया। प्राचीनकाल से कृषि में महिलाओं की भूमिका को देखते हुए इन उदाहरणों पर बहुत ज्यादा उत्साह प्रदर्शन नहीं किया जा सकता क्योंकि वास्तविक जद्दो जहद अभी भी जस का तस है। ये सभी महिलाएं अपने आप में महतवपूर्ण हैं क्योंकि ये लहरों के विपरीत किनारों तक पहुँचने वाली तैराक हैं।

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