लोकप्रियता के शिखर पर विराजी एक कहानीकार मालती जोशी

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लोकप्रियता के शिखर पर विराजी एक कहानीकार मालती जोशी

छाया: मालती जोशी के एफ़बी अकाउंट से 

विशिष्ट महिला

सुविख्यात लेखिका पद्मश्री मालती जोशी (malti joshi) का जन्म वर्ष 1934 में औरंगाबाद – जो उस समय हैदराबाद रियासत में व वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य का शहर है, में हुआ था। विवाह से पहले उनका नाम मालती कृष्णराव दिघे था। उनकी चार बहनें और तीन भाई हैं। उनके पिता तत्कालीन मध्य प्रान्त (सी.पी. एंड बरार) में न्यायाधीश थे। छोटे-छोटे कस्बों में उनका तबादला होता रहता था। परिणामस्वरूप बचपन की पढ़ाई में एकरूपता नहीं रही। चौथी तक की पढ़ाई घर में ही हुई। पांचवी में एक स्कूल में नाम दर्ज हुआ जिसमें लड़के भी पढ़ते थे क्योंकि कन्याशाला मात्र चौथी तक थी। पुनः आठवीं में पिता का स्थानान्तरण हुआ और बालिका मालती को प्रायवेट परीक्षा देनी पड़ी। उन दिनों मिडिल परीक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता था। नवमी, दसवीं उन्होंने मालव कन्या विद्यालय, इंदौर से पास करने के बाद इंटर स्वतंत्र छात्रा के रूप में ही किया। हिंदी से  स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि होल्कर कॉलेज, इंदौर से वर्ष 1956 में प्राप्त की।

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वर्ष 1959 में उनका विवाह सोमनाथ जोशी के साथ हुआ। वे मध्यप्रदेश के सिंचाई विभाग में ‘अधीक्षण यंत्री’ के पद पर सेवारत थे। इसलिए मालती जी को मध्यप्रदेश के कई शहरों में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। सन 1981 से उनका निवास भोपाल ही रहा। वर्ष 2001 में उनके पति का देहांत हो गया। मालती जी के दो पुत्र हैं – ऋषिकेश मुंबई में एवं सच्चिदानंद दिल्ली में निवास करते हैं। उनका पारिवारिक जीवन सहज और सुखद रहा है। आदर्श पत्नी, आदर्श माँ और आदर्श गृहिणी की भूमिका निभाते हुए उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन को भी निर्बाध रखा। वर्तमान में मालती जी अपना अधिकाँश समय अपने बच्चों के साथ व्यतीत करना पसंद करती हैं। महत्वपूर्ण यह है कि उनकी लेखनी आज भी सक्रिय हैं।

अपने लेखन के सम्बन्ध में  मालती जोशी कहती हैं  -"पिता में सामाजिक समस्याओं एवं मुद्दों को लेकर जो विचार थे, भले ही वे कहानी एवं उपन्यास की शक्ल नहीं ले पाए, लेकिन उनका असर मुझ पर पड़ा और मैं लेखन में आ गयीं।” लेखन की शुरुआत गीतों से हुई। उन्हें प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया जाने लगा और उनकी पहचान गीतकार के रूप में बन गयी। लोग उन्हें मालवा की मीरा कहने लगे थे। मालती जी के अनुसार -”कालान्तर में गीतों का यह स्रोत सूख गया।” वर्ष 1969 में बच्चों के लिए लिखने लगीं जिसे खूब सराहा गया। इसके बाद सरिता, निहारिका, कादम्बिनी में कहानियां छपने लगीं। इसके अलावा दैनिक अखबारों के रविवारीय परिशिष्ट में भी कुछ कहानियाँ छपीं। वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका धर्मयुग में उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई। फिर कहानियों में ऐसा मन रमा कि उनका नाम आगे चलकर देश के चुनिंदा कहानीकारों में शुमार होने लगा। इसके साथ ही वह भारतीय परिवार की चहेती लेखिका बन गयीं। धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, मनोरमा, कादम्बिनी, सारिका आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में नियमित रूप से उनकी कहानियां प्रकाशित होने लगीं। यह उनके पाठकों के लिए भी गर्व का विषय है कि आज भी उनकी रचनाएं नवनीत, कथाबिम्ब, मधुरिमा और समावर्तन जैसी पत्रिकाओं में छप रहीं हैं। उनकी लोकप्रियता आज भी उसी प्रकार बरकरार है।

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गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में मालती जी की भाषा सरल और सहज ही होती है। इसके पीछे कारण यह है कि उनकी कविताओं और कहानियों में बाल एवं स्त्री मनोविज्ञान की गहरी पड़ताल झलकती है। इस पड़ताल में पुरुषों को गुनाहगार ठहराने की बजाय व्यवस्थागत दोष उजागर होते हैं। शब्दातीत एवं पटाक्षेप जैसी कहानियों में पुरुषों की एक भली-सी छवि चित्रित होती है, महिला लेखन में जिसका प्रायः अभाव सा नज़र आता है। उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय परिवारों की गहन मानवीय संवेदना के साथ नारी मन के सूक्ष्म स्पंदन में ध्वनित होते हैं। सरल-सहज भाषा में आंचलिक शब्दों के साथ अलंकारिक शब्दों का नियोजन भी झलकता है। एक साक्षात्कार में उन्होंने लेखन प्रक्रिया के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि- “मैंने कभी किसी और के कथा बीज को आधार नहीं बनाया। कभी कोई चेहरा मन को बाँध लेता है, कोई घटना चेतना पर छा जाती है, फिर सब मन में गड्ड – मड्ड होते रहते हैं, कुछ समय बाद कहानी बनकर काग़ज़ पर उतर जाते हैं, मैं उन्हें एक सूत्र में पिरो देती हूँ, मेरा श्रेय सिर्फ इतना ही है।”

साहित्य के साथ पाक कला, बुनाई और संगीत में उनकी विशेष अभिरुचि रही। मैट्रिक तक संगीत एक विषय के रूप में उनके साथ रहा। उसके बाद रेडियो उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया था. संगीत के प्रति यह अनुराग उनकी विभिन्न कहानियों  जैसे -मन न भये दस-बीस, कुहांसे, एक जंगल आदमियों का आदि में देखा जा सकता है।

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मालती जी की 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कई कहानियों का मराठी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, मलयालम, कन्नड़ भाषा के साथ अँग्रेजी, रूसी तथा जापानी भाषाओं में अनुवाद हो चुका । गुलजार ने उनकी कहानियों पर ‘किरदार’ नाम से तथा जया बच्चन ने ‘सात फेरे’ नाम से धारावाहिक बनाए हैं। उन्होंने अपनी कई कहानियों का वाचन आकाशवाणी से किया है । इसके अलावा   दो दर्जन से अधिक कहानियों का नाट्य रूपांतरण हो चुका है। 

लगभग 90 वर्ष की आयु में 15 मई 2024 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।

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प्रमुख कृतियाँ-हिंदी साहित्य

कहानी संग्रह– पाषाण युग, एक घर सपनों का, दर्द का रिश्ता, बाबुल का घर, महकते रिश्ते, पूजा के फूल, एक और देवदास, विश्वास गाथा, मन न भये दस बीस, आनंदी, न ज़मीं अपनी, न फलक अपना, मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियां, एक सार्थक दिन, विरासत, जीने की राह, दादी की घड़ी(बाल कथाएँ) रिश्वत एक प्यारी सी (बाल कथाएँ), अंतिम संक्षेप, शापित शैशव, मोरी रंग दी चुनरिया, हादसे और हौसले, औरत एक रात है, परख, मेरे साक्षात्कार, ऑनर किलिंग तथा अन्य कहानियां, 10 प्रतिनिधि कहानियां, वो तेरा घर ये मेरा घर, पिया पीर न जानी, रहिमन धागा प्रेम का, स्नेहबंध तथा अन्य कहानियाँ, मिलियन डॉलर नोट तथा अन्य कहानियाँ, बोल री कठपुतली, छोटा सा मन बड़ा सा दुःख, समर्पण का सुख, मालती जोशी की लोकप्रिय कहानियां, चाँद अमावस का, मेरा छोटा सा अपनापन(गीत संग्रह), कौन ठगवा नगरिया लूटल हो, ये तो होना ही था, मालती जोशी(संचयिका), सच्चा सिंगार(बाल कथा संग्रह), स्नेह के स्वर(बाल कथा संग्रह) परीक्षा और पुरस्कार(बाल साहित्य), बेचैन (बाल साहित्य) सफ़ेद जहर(बाल साहित्य) सी.आई.डी000 (बाल साहित्य), व्यंग्य– हार्ले स्ट्रीट गीत संग्रह- मेरा छोटा सा अपनापन।

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प्रमुख कृतियाँ -मराठी साहित्य

पाषाण, परत फ़ेड, ऋणानुबंध, हद्द पार, कथा मालती, कन्यादान, शुभमंगल, शोभायात्रा, कळत नकळत, पारख, रानात हरवला सूर, आपुले मरण पाहिले म्यां डोळा  

उपलब्धियां  

मालती जोशी का रुख पुरस्कारों के प्रति सदैव तटस्थ ही रहा है।  वह स्पष्ट रूप से कहती हैं कि पुरस्कारों के लिए लिखित आवेदन करना भीख मांगने जैसा लगता है, इसलिए बेहतर यही होगा सरकार के प्रतिनिधि रचनाकार समकालीन साहित्य को गौर से पढ़ें।

  1. वर्ष 1983 में रचना संस्था ने 5 हज़ार रूपये का पुरस्कार देकर यथोचित सम्मान दिया. उस समय उक्त संस्था द्वारा पुरस्कृत होने वाली वह पहली महिला साहित्यकार थीं
  2. वर्ष 1984 में मराठी कहानी संग्रह ‘पाषाण’ को महाराष्ट्र सरकार ने पुरस्कृत किया गया जो उनके द्वारा हिंदी में रचित हिंदी लघु उपन्यास ‘पाषाणयुग’ का अनुवाद है
  3. वर्ष 1999 में उन्हें मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया गया
  4. वर्ष 2006 में मध्यप्रदेश शासन का साहित्य शिखर सम्मान
  5. वर्ष 2009 में प्रभाकर माचवे सम्मान
  6. वर्ष 2011में दुष्यंत कुमार साहित्य साधना सम्मान
  7. वर्ष 2011 में ओजस्विनी सम्मान
  8. वर्ष 2013 में मप्र राजभाषा प्रचार समिति द्वारा सम्मान
  9. वर्ष 2016 में कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार
  10. वर्ष 2017 में वनमाली कथा सम्मान
  11. वर्ष 2018 में साहित्य में योगदान हेतु भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया

सन्दर्भ स्रोत – स्वयं मालती जी द्वारा संप्रेषित सामग्रियों के साथ ‘आज तक’ समाचार वेबसाईट पर प्रकाशित साक्षात्कार एवं शोध गंगा में प्रकाशित शोध पत्र

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