शिक्षा-विमर्श
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद महाविद्यालय की चौखट तक पहुंचना कुछ वर्ष पहले तक प्रदेश की छात्रों के लिए सहज सुलभ नहीं था। शासन स्तर पर किये गए विभिन्न प्रयास और सामाजिक सोच में बदलाव के कारण न केवल वे उच्च शिक्षा का अपना लक्ष्य हासिल कर रही हैं बल्कि कई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर रही हैं।
उच्च शिक्षा क्षेत्र
बात 1954 की है, जब जबलपुर के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री परमानंद भाई पटेल के दिमाग में महिलाओं को उच्च शिक्षा देने के लिए एक शिक्षण संस्थान खोलने का विचार आया। उन्होंने अपनी योजना के बारे में मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल को भी बताया। पंडित रविशंकर शुक्ल इससे प्रभावित हुए। 15 जुलाई 1954 को एम.एच. कॉलेज ऑफ होम साइंस एंड साइंस फॉर वूमेन सिर्फ गृह विज्ञान विषय के साथ अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना के लिए श्री परमानंद भाई पटेल के फर्म मोहनलाल हरगोविंददास की ओर से एक लाख रुपए दान दिया गया। 27 अप्रैल 1956 को 11 एकड़ सरकारी जमीन पर मुख्यमंत्री द्वारा इसकी आधारशिला रखी गई। इसके बाद भवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ और होस्टल, स्पोटर््स कॉम्पलेक्स, कैंटिन सहित कई सुविधाओं से इस महाविद्यालय को सुसज्जित किया गया। इस महाविद्यालय का गल्र्स होस्टल प्रदेश का सबसे बड़ा गर्ल्स हॉस्टल हैं, जहां 650 छात्राएं रह सकती हैं।
1955 में मानकुंवर बाई कॉलेज ऑफ आर्ट्स को इसमें मिला दिया गया था, पर उसे पुन: 1986 में अलग कर मानकुंवर बाई कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स कर दिया गया। इस तरह से 1986 के बाद प्रदेश का यह इकलौता कॉलेज है, जहां गृह विज्ञान एवं उससे संबंधित कई विषयों की पढ़ाई होती है। इस महाविद्यालय में गृह विज्ञान के 4 विभाग है, जो कि किसी भी अन्य महाविद्यालय में नहीं है। 1987 से यह महाविद्यालय स्वायत्त है और 2004 में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के तहत ‘कॉलेज विद पोटेंशियल फॉर एक्सीलेंस के लिए चुना गया। उस समय यह मध्यप्रदेश का इकलौता महाविद्यालय था, जिसे देश के 73 महाविद्यालयों के साथ चुना गया था।
प्रदेश में उच्च शिक्षा के प्रति महिलाओं का आकर्षण पहले की तुलना में बढ़ा है। उच्च शिक्षा में महिलाओं से संबंधित आंकड़े निम्न हैं –
- शासकीय महाविद्यालयों की संख्या – 516
- शासकीय महिला महाविद्यालयों की संख्या-53
- अनुदान प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों की संख्या – 74
- अशासकीय महाविद्यालयों की संख्या – 617
- अशासकीय कन्या महाविद्यालयों की संख्या 29
- उत्कृष्ठ महाविद्यालयों की संख्या – 8
- उत्कृष्ट महिला महाविग्यल्यों की संख्या – 2
- स्वशासी महाविद्यालयों की संख्या – 21
- स्वशासी महिला महाविद्यालयों की संख्या – 8
उपर्युक्त आंकड़ों के माध्यम से प्रदेश में महिला उच्च शिक्षा की स्थिति को समझना कठिन नहीं है। तथापि उन्हें उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए सरकारी स्तर पर कई कदम उठाए गए हैं, जैसे –
- सभी महिला महाविद्यालयों में व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं महिला परामर्श प्रकोष्ठ स्थापित
- गैर तकनीकी शिक्षा के लिए स्नातक तक कोई शिक्षण शुल्क नहीं
- महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए आयु में पूरी छूट
- जीवाजी विश्वविद्यालय के अंतर्गत महिला अध्ययन पर पाठ्यक्रम का संचालन
- बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के अंतर्गत सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय में महिला अध्ययन केंद्र
सभी शासकीय महाविद्यालयों में 30 प्रतिशत स्थान छात्राओं के लिए आरक्षित हैं और सत्र 2009-10 में कुल छात्रों की संख्या 3,46,052 है, जिसमें से छात्राओं की संख्या 1,85,969 है जो लगभग 53.74 प्रतिशत है। इस आंकड़े के आधार पर यह कहा जा सकता है कि महाविद्यालयीन शिक्षा के प्रति छात्राओं की रुचि बढ़ी है। उनकी संख्या छात्रों से कहीं ज्यादा है। वर्ष 2010 से लेकर वर्तमान तक यह तस्वीर और भी बदल चुकी है।
तकनीकी शिक्षा में प्रदेश की महिलाओं की स्थिति
स्कूली शिक्षा समाप्त होने के बाद कई लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है। उनकी शादी कर दी जाती है या फिर वह घर की जिम्मेदारियां संभालने लगतीं हैं। ऐसे में उनके आत्मनिर्भर होने की संभाव्यता बहुत ही कम हो जाती है । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए उन्हें तकनीकी शिक्षा से जोड़ने की योजना बनाई गई ताकि वे शिक्षा पूरी करने के बाद अपने पैरों पर खड़ीं हो सकें। मध्यप्रदेश की महिलाओं में तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य शासन ने निम्न प्रयास किए हैं –
प्रदेश में कुल 59 पॉलीटेक्निक महाविद्यालय हैं, जिसमें से 8 में महिलाओं को वरीयता दी जाती है, 4 पूरी तरह से महिलाओं के लिए हैं और 1 स्वशासी पॉलीटेक्निक महाविद्यालय महिलाओं के लिए है। डॉ. बाबा साहब अंबेडकर पॉलीटेक्निक महाविद्यालय योजना के तहत सीहोर में संचालित महिला पॉलीटेक्निक महाविद्यालय पूरी तरह से अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित है।
एकलव्य योजना के तहत बैतूल में संचालित महिला पॉलीटेक्निक महाविद्यालय पूरी तरह से अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित है। इसमें सभी प्रशिक्षणार्थी को नि:शुल्क आवास, भोजन के साथ-साथ प्रतिमाह 1000 रुपए छात्रवृत्ति दी जाती है। प्रदेश में 232 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाएं (आई.टी.आई.) संचालित हैं, जिनमें 62 व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें से 14 संस्थाएं केवल महिलाओं के लिए हैं। इसमें सभी प्रशिक्षणार्थी को नि:शुल्क आवास, भोजन के साथ-साथ प्रतिमाह 1000 रुपए छात्रवृत्ति दी जाती है।
प्रदेश की 38 पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों में केंद्र सरकार के सहयोग से महिला छात्रावासों का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए प्रति संस्था एक करोड़ रुपए स्वीकृति दी गई है। इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में 682 छात्राओं के लिए एवं पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों में 1862 छात्राओं के लिए छात्रावास की व्यवस्था है।
महिला पॉलीटेक्निक में अध्ययनरत लाभान्वित छात्राओं की संख्या 2009-10 में 79 (विक्रमादित्य नि:शुल्क शिक्षा योजना) एवं 2010-11 में 48 (विक्रमादित्य नि:शुल्क शिक्षा योजना) रही है। इसी तरह से सामान्य निर्धन वर्ग छात्रवृत्ति/शिष्यावृत्ति योजना से लाभान्वितों की संख्या 2009-10 में 5 एवं 2010-11 में 11 रही है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति की छात्राओं के लिए नि:शुल्क कंप्यूटर प्रशिक्षण की योजना संचालित की जा रही है। उच्च, तकनीकी एवं मेडिकल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार सामान्य निर्धन वर्ग छात्रवृत्ति योजना एवं विक्रमादित्य नि:शुल्क शिक्षा योजना संचालित करती है।
गांव की बेटी योजना – गांव की शाला से 12 वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण सभी बालिकाओं को इंजीनियरिंग एवं मेडिकल में अध्ययन करने के लिए प्रति वर्ष 7,500 रुपए छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके लिए संबंधित इंजीनियरिंग एवं पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों के प्राचार्य संबंधित छात्रा का आवेदन लेकर उच्च शिक्षा विभाग को प्रेषित करते हैं।
प्रतिभा किरण योजना– नगरीय क्षेत्र के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की छात्राओं को उच्च शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण सभी छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष 5,000 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके लिए संबंधित महाविद्यालयों के प्राचार्य संबंधित छात्रा का आवेदन लेकर उच्च शिक्षा विभाग को प्रेषित करते हैं।
यातायात व्यवस्था योजना– इस योजना के तहत छात्राओं को महाविद्यालय तक आने-जाने के लिए यातायात की सुविधा प्रदान की जाती है। इसमें महाविद्यालय से 5 किलोमीटर से ज्यादा दूर रहने वाली छात्राओं को साल में 200 शैक्षणिक दिवस के लिए प्रतिदिन 5 रुपए की दर से राशि का भुगतान किया जाता है।
उपर्युक्त योजनाओं का सकारात्मक परिणाम अब राज्य भर में नज़र आने लगा है।
संदर्भ स्रोत- मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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