छाया : डॉ. शिप्रा सुल्लेरे
जबलपुर के श्रीजानकी बैंड ऑफ वुमेन की शोहरत और क़ामयाबी आज किसी से छिपी नहीं है। यह एक ऐसा समूह जिसमें गाने से लेकर वाद्य यंत्र बजाने तक का काम केवल लड़कियां हीं कर रहीं हैं, बैंड में एक भी पुरुष सदस्य नहीं हैं। खास बात यह है कि मौलिक गीत संगीत के साथ हिंदी साहित्य के महान गीतकारों के गीतों को संगीतबद्ध किया है।
इस तरह अस्तित्व में आया जानकी बैंड
कोरोना वायरस के संक्रमण काल के दौरान नाट्य लोक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था जबलपुर दवविंदर सिंह ग्रोवर की परिकल्पना व डॉ. शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन में यह बैंड तैयार हुआ। डॉ. शिप्रा बताती हैं नाट्य लोक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था में नियमित अभ्यास किया करते थे, लेकिन कोरोना के उस कठिन दौर में सब निराशा से घिर गए। ऐसे में हमने महापुरुषों के ख़ास दिवस और जयंती पर उन्हें श्रृद्धांजलि देने ऑनलाइन छोटे-छोटे वीडियो बनाकर शेयर करना शुरू किया। इसमें ज्यादातर भागीदारी लड़कियों की ही रहती। कोरोना का पहला फेस ख़त्म होने के बाद हमने कबीर पर एक कार्यक्रम किया, उसमें भी केवल लड़कियां ही थीं। जब ग्रोवर जी ने देखा कि यहाँ वाद्य बजाने से लेकर गायन करने वाली केवल लड़कियां ही है, तब उन्होंने कुछ अलग करने ठानी।
इस तरह दविन्दर जी की परिकल्पना से और डॉ. शिप्रा के निर्देशन में लगभग एक माह तक सभी ने हर दिन शाम 4 से 6-7 बजे तक कड़ी मेहनत के साथ रिहर्सल की और बैंड तैयार हो गया। पहली प्रस्तुति के लिए इस समूह को आमंत्रण मिला श्री जानकी रमण महाविद्यालय जबलपुर का। प्रस्तुति संपन्न हो जाने के बाद महाविद्यालय के प्राचार्य अभिजात कृष्ण त्रिपाठी ने ही इसका नामकरण किया- श्री जानकी बैंड ऑफ वुमेन। इस बैंड को फेसबुक पर शेयर किया गया, जिसे बहुत सराहना मिली।
कई शहरों में प्रोग्राम कर चुका है जानकी बैंड
डॉ. शिप्रा बताती है इस बैंड की शुरुआत 15 लड़कियों से हुई थी। इस समय इसमें 30 लड़कियां शामिल हैं। अल्प समय में ही यह बैंड अपनी 150 प्रस्तुतियों देने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ चुका है। बकौल डॉ. सुल्लेरे यह बैंड संगीत, संस्कृति एवं महिला सशक्तिकरण का अदभुत संगम है। देसी लोकगीतों को इतने सुरीले अंदाज में पेश किया जाता है कि सुनने वाले मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। लड़कियों की ये छोटी सी कोशिश अब संगीत की एक स्थापित संस्था बन गई है।
फिल्मी नहीं साहित्यिक गीत गाती हैं लड़कियां
डॉ, सुल्लेरे बताती हैं जानकी बैंड श्रोताओं को देसी गीत और संगीत परोसने की कोशिश कर रहा है। हिंदी साहित्यकारों ने बहुत सुंदर गीत लिखे हैं, लेकिन इन्हें संगीत में पिरोया नहीं गया। ग्रुप में फिल्मी गाने नहीं, बल्कि भारतीय लोकगीत, देश के मशहूर कवियों, कबीर के गीत और रविंद्र संगीत गाते हैं। गीतों की ज्यादातर धुनें मौलिक ही होती हैं। जानकी बैंड के इस अभिनव प्रयोग की लोग जमकर सराहना भी कर रहे हैं।
कई कॉलेज अपना रहे हैं ये 'मॉडल'
श्री जानकी बैंड में कलाकार आते और जाते रहते हैं। इन्हीं में से एक उन्नति तिवारी भी हैं, जो जानकी बैंड का हिस्सा रही हैं और फिलहाल दिल्ली के दयाल कॉलेज में पढ़ाई करती हैं। उन्नति तिवारी का कहना है कि उन्होंने फिल्मी संगीत से हटकर बैंड के भीतर जो सीखा था, उसे दिल्ली कॉलेज ने भी अपनाया है और जानकी बैंड की वजह से अब दिल्ली के दयाल कॉलेज में भी हिंदी साहित्य के गीतों पर काम हो रहा है। वहीं इस बैंड की सक्रिय सदस्य मुस्कान सोनी बताती हैं कि उनका ग्रुप शुरुआत में केवल कॉलेज में ही अपनी प्रस्तुति देता था, लेकिन उन्होंने जो भी गाया, उसको लोगों ने खूब सराहा। इसके बाद जबलपुर के छोटे-छोटे कार्यक्रमों में प्रस्तुतियां दी, लेकिन अब वे दिल्ली-मुंबई, भोपाल सहित कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में परफॉर्मेंस दे चुकी हैं।
बता दें कि डॉ. शिप्रा संगीत की शोधार्थी रही हैं। भक्ति काल की कविता पर उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है। वे ही इन प्रतिभाओं की गुरू भी है। उन्हें संगीत के क्षेत्र में दिए गए योगदान को लेकर कई मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।
संदर्भ स्रोत : डॉ. शिप्रा सुल्लेरे से बातचीत एवं ईटीवी भारत
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