छाया : स्व संप्रेषित
खिलाड़ी- कुश्ती
अंतर्राष्ट्रीय अखाड़ों में अपना दबदबा कायम कर चुकीं पूजा जाट का जन्म 1 मार्च 2001 को देवास ज़िले के ग्राम बछखाल में हुआ। उनकी माँ लक्ष्मी बाई घर संभालती थीं जबकि उनके प्रेम नारायण जाट किसान हैं। पूजा जब 10-12 साल की थीं, तभी उनकी माँ गुज़र गईं। वे गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं। उन्हीं दिनों भारत सरकार ने गाँव की खेल प्रतिभाओं के विकास के लिए राजीव गांधी पंचायत युवा क्रीड़ा एवं खेल अभियान चला रही थी जो ‘पायका’ के नाम से जाना जाता था। इस योजना के तहत हर ग्राम पंचायत में ग्राम सभा की भूमि पर आधा-आधा एकड़ क्षेत्र में खेल का मैदान बना दिया गया। पूजा के स्कूल तक भी यह बात पहुंची और खेल के शिक्षक ने उन्हें खूब प्रोत्साहित किया। वे दौड़ में हिस्सा लेने लगीं। जल्द ही पैरों की गति पर उन्होंने नियंत्रण स्थापित कर लिया। चार साल के भीतर वह राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित 100 मीटर के दौड़ों में हिस्सा लेने लगीं। एक बार उनकी एड़ी चोटिल हो गई जिसके कारण वे अंतिम चक्र से बाहर होने लगीं। कई कोशिशों के बाद भी अंतिम क्षण में निर्णायक गति को वे नहीं हासिल कर पा रही थीं।
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दसवीं के बाद की पढ़ाई के लिए पूजा खातेगाँव आ गईं। वहां स्कूल के खेल शिक्षक योगेश जाणी ने उन्हें समझाया कि चोट और कद छोटा होने के कारण एथलीट के तौर पर स्थापित होना उनके लिए कठिन होगा, इसलिए उन्हें खुद को कुश्ती में आजमाना चाहिए। तब तक पूजा कुश्ती के तकनीकों के बार में कुछ भी नहीं जानती थीं। संयोग की बात है उसी समय उज्जैन के गुरु अखाड़े में कुश्ती का आयोजन हुआ जिसमें उनके खेल शिक्षक ने उन्हें भेज दिया। पूजा के पास कुश्ती को लेकर बस इतनी सी समझ थी कि -जाना है, उठाना है और फेंक देना है, जमीन पर पीठ नहीं टिकानी है। उस प्रतियोगिता में देश की जानी मानी अनुभवी महिला पहलवान पहुंची थी। इसके बावजूद वे दूसरे स्थान पर रहीं। इसके बाद उन्होंने एथलीट बनने का विचार त्याग कर कुश्ती पर ही ध्यान देना शुरू कर दिया।
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उन्हें अखाड़ों से प्रतियोगिता के लिए बुलावे भी आने लगे, लेकिन कुश्ती के दाव-पेंच और तकनीक से तब भी उनका दूर-दूर तक नाता नहीं था। पुनः स्कूल के खेल शिक्षक के सहयोग से उनका चयन टी.टी. नगर स्टेडियम में हो गया और वे 2017-18 सत्र के लिए भोपाल आ गईं और स्टेडियम के छात्रावास में रहने लगीं। यहाँ आकर उन्हें वास्तविक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। स्टेडियम में खिलाड़ियों के भोजन में पोषण का ध्यान रखा जाता है लेकिन पहलवानों को ऊर्जा के लिए जिस अतिरिक्त आहार की जरुरत होती है उसकी व्यवस्था अपने स्तर पर ही करनी पड़ती है। ऐसा कर पाना पूजा के लिए संभव नहीं था। पहली बार जब उन्हें पदक के साथ 5-6 हज़ार रूपये मिले तो उससे उन्होंने अपने विशेष खान-पान की व्यवस्था की।
पूजा ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2020 में हरियाणा के पहलवान बिरेन्द्र कुमार गुलिया से विवाह के बाद उनके प्रशंसकों को ऐसा लगा कि अब वे अखाड़े पर कभी नहीं लौटेंगी जबकि वास्तविकता यह है कि उनके ससुराल में पहलवानी की परम्परा रही है। वह सोनीपत के अखाड़े में अपने जेठ के साथ अभ्यास के लिए जाती हैं। अखाड़े में कुश्ती लड़ती बहू पर ससुरालवालों को भी नाज़ है।
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उपलब्धियां
- अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एम.डी.यू(रोहतक) 2017 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल : तृतीय स्थान
- सब जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप : पुणे(महाराष्ट्र) 2018 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल: तृतीय स्थान
- जूनियर एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप, थाईलैंड: 2019: 53 किग्रा फ्री स्टाइल : कांस्य पदक
- जूनियर विश्व चैम्पियनशिप : टैल्लिन(इस्टोनिया): 2019: 53 किग्रा फ्री स्टाइल : भागीदारी
- जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप : मंडी (हरियाणा) 2020 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल: तृतीय स्थान
- अंडर 21 खेलो इण्डिया चैम्पियनशिप: गोआहाटी: (आसाम): 2020 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल: स्वर्ण पदक
- खेलो इण्डिया यूनिवर्सिटी गेम्स: भुवनेश्वर (ओड़िसा): 2020 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल: स्वर्ण पदक
- अखिल भारतीय विश्वविद्यालय खेल प्रतियोगिता: भिवानी(हरियाणा) 2019 53 किग्रा फ्री स्टाइल: तृतीय स्थान
- सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप: जालंधर(पंजाब ) 2019: 53 किग्रा फ्री स्टाइल: भागीदारी
- जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप : सूरत(गुजरात) 2019 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल: द्वितीय स्थान
- अंडर 23 नेशनल चैम्पियनशिप: शिर्डी (अहमदनगर) 2019: 53 किग्रा फ्री स्टाइल: तृतीय स्थान
- अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एम.डी.यू(रोहतक) 2017 : 53 किग्रा फ्री स्टाइल : तृतीय स्थान
संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं पूजा जी से बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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