छाया : डॉ.नीना श्रीवास्तव के फेसबुक अकाउंट से
• सीमा चौबे
भोपाल के जाने-माने सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय - जिसे नूतन कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है, में संगीत की प्राध्यापक डॉ.नीना श्रीवास्तव की ख्याति केवल कॉलेज की चारदीवारी के भीतर सीमित नहीं है। बचपन में आकाशवाणी, लखनऊ की बालसभा से शुरू हुई उनकी गायन यात्रा अनेक प्रतिष्ठित मंचों तक पहुँच चुकी है। दरअसल, संगीत और पढ़ने-लिखने का सलीका उन्हें विरासत में मिला। चूंकि माँ पुष्पलता सुरीले गले की मालिक थीं और उनका यह गुण उनकी चारों बेटियों और एक बेटे में कुदरती तौर पर आया। नतीजतन, मंजू, वीणा, रीमा और नीना ने संगीत में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की, जबकि बेटे संदीप गायक होने के साथ ही शौकिया बांसुरी वादक भी हैं। इन प्रतिभाशाली बच्चों के पिता श्री रामकिशोर सक्सेना उप्र उद्योग विभाग में उच्च अधिकारी थे, जबकि दादाजी श्री मधुसूदनलाल सक्सेना उर्फ रौशन शमशाबादी कानपुर जिले के नामी शायर थे। वे फ़र्रुखाबाद जिले में शमशाबाद के मुमताज घराने में पैदा हुए थे।
पांच भाई-बहनों में तीसरे नम्बर की नीना की प्रारंभिक शिक्षा शिशु शिक्षा केंद्र कानपुर, हाई स्कूल एमजी इंटर कॉलेज और उच्च शिक्षा डी.जी.डिग्री कॉलेज कानपुर से हुई। जुहारी देवी गर्ल्स डिग्री कॉलेज कानपुर से उन्होंने संगीत में स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की और फिर ‘महाकवि निराला के गीतों का सांगीतिक अनुशीलन’ विषय पर डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से पीएचडी की। संगीत की उनकी प्रारंभिक शिक्षा आचार्य बृहस्पति जी की संगीत परम्परा के गुरु श्री नत्थूलाल के शिष्यत्व में हुई, इसके बाद उन्होंने पं.काशीनाथ बोडस से शास्त्रीय संगीत और पं. रामबाबू भट्ट से उपशास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की।
शुरू से ही मेधावी छात्रा रहीं नीना जी हर कक्षा में अव्वल आती थीं। उनका ध्यान इतना गहरा होता था कि उनके दादाजी कहते थे कि जब नीना पढ़ाई कर रही हो तो गली से बारात भी निकल जाये, तो इसको पता नहीं चलेगा। उनकी यही प्रवृत्ति उन्हें तब समझ आई जब वे अपने बाबा की लिखी गज़लों की डायरी के पन्ने स्कैन कर रही थी। दरअसल, कोविड के दौरान उन्होंने बाबा की लिखी ग़ज़लों को एक किताब की शक्ल देने का इरादा किया। उर्दू से हिन्दी अनुवाद करने के लिए उन्होंने भोपाल के मशहूर शायर श्री बद्र वास्ती से बात की और लगातार चार घंटे एक ही स्थिति में बैठ, डायरी के लगभग ढाई सौ पन्ने स्कैन करके भेज दिये। उस समय घर में बिजली नहीं थी, तो बगीचे में इस काम को उन्होंने अंजाम दिया। इस दौरान पेड़ की एक डाल उनके कंधे पर गिर गई पर नीना का ध्यान जरा भी डगमगाया नहीं।
नीना केवल पढ़ाई में ही नहीं, संगीत प्रतियोगिताओं में भी अव्वल आती रहीं हैं। महज तीन वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 'कटी पतंग' फ़िल्म के लोकप्रिय गीत ‘न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, के साथ अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति देकर वाहवाही बटोर ली थी। एक मज़ेदार घटना याद करते हुए वे कहती हैं “कानपुर में एक गायन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मुझे, द्वितीय पुरस्कार मेरी बड़ी बहन और तृतीय पुरस्कार मेरी छोटी बहन को मिला। जब सबके सामने परिणाम घोषित हुआ तो मंच पर मौजूद फिल्म अभिनेता और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री शत्रुघ्न सिन्हा ने घोषणा की कि इतनी होनहार बच्चियों के पिताजी को भी एक पुरस्कार दिया जाये, जिन्होंने उन्हें इतने अच्छे संस्कार दिये हैं। तब मेरे पिता को भी एक पुरस्कार मिला।”
नीना, आकाशवाणी लखनऊ से बाल सभा में नियमित रूप से गायन करती थी। साथ ही स्कूल और कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लेती रहीं। ख़ास बात यह कि कानपुर में स्थानीय सभी प्रतियोगिताओं में हमेशा अव्वल आती थीं। यहाँ तक कि ध्वनि व्यवस्था करने वाले तक कहने लगे थे कि प्रतियोगी चाहे जितने आ जायें, पहला पुरस्कार तो यही लड़की लेकर जायेगी।
इस तरह स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान सांगीतिक प्रतियोगिताओं और मंचीय प्रस्तुतियों का सिलसिला चलता रहा। सुर सिंगार संसद, मुंबई और रवींद्रालय, लखनऊ में सफल कार्यक्रम देने के बाद वर्ष 1987 में संगम कला ग्रुप, दिल्ली द्वारा आयोजित गज़ल प्रतियोगिता में वैजयंती माला के मुख्य आतिथ्य में नीना को जगजीत सिंह के हाथों सर्वश्रेष्ठ गज़ल गायक का पुरस्कार प्राप्त हुआ। इस प्रतियोगिता में गायक सोनू निगम भी कनिष्ठ श्रेणी में प्रतिभागी थे। कार्यक्रम के बाद सभी विजयी प्रतिभागी जगजीत और चित्रा सिंह के साथ रात्रिभोज में शामिल हुए। नीना कहती हैं - “इतनी बड़ी शख्सियतों के साथ समय बिताना मेरे लिए बेशकीमती उपहार था।” सुर सिंगार संसद में तो प्रमुख निर्णायक ख़य्याम साहब थे।
14 नवंबर 1987 को उनका विवाह उरई निवासी राकेश श्रीवास्तव, जो उस समय भारतीय जीवन बीमा निगम में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर थे, से हो गया। राकेश जी भी प्रसिद्ध रंगकर्मी, शौकिया चित्रकार और गायक हैं। उनकी पेंटिंग्स भारत भवन, भोपाल के अलावा अनेक अन्य स्थानों पर प्रदर्शित हुई हैं। उनकी इन खूबियों के कारण नीना जी को शादी के बाद भी अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने का भरपूर मौका मिला। ससुराल में पति के अलावा उन्हें सास-ससुर का भी भरपूर सहयोग मिलता रहा।
इसी दौरान प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान के साथ मप्र लोकसेवा आयोग द्वारा सहायक प्राध्यापक के पद पर नीना जी का चयन हुआ। ख़ास बात यह कि एमपी पीएससी द्वारा संगीत के सहायक प्राध्यापक पद पर चयनित होने वाली नीना जी, उप्र से एकमात्र महिला थीं। वर्ष 1993 में उनकी पहली नियुक्ति सागर गर्ल्स डिग्री कॉलेज में हुई, जहाँ उन्होंने 10 वर्षो तक सेवायें दीं। इसी दौरान वर्ष 1998 में उन्होंने वहां विश्वविद्यालय से ‘निराला के गीतों का सांगीतिक अनुशीलन’ विषय पर पीएचडी कर ली। विवि के तत्कालीन कुलपति एवं पूर्व सांसद डॉ. शिवकुमार श्रीवास्तव को उनका शोध प्रबंध इतना पसंद आया कि इसके प्रकाशन के लिए उन्होंने नीना जी को 9000/- राशि का यूजीसी अनुदान दिया, जिससे ‘निराला के गीत : संगीत का परिप्रेक्ष्य’ नामक ग्रन्थ प्रकाशित हो सका।
सागर में रहते हुए नीना जी ने आकाशवाणी सागर में अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। वर्ष 2004 में नीना जी का तबादला भोपाल के नूतन कॉलेज में हो गया।यहां उनके करियर को नयी उड़ान और उन्हें पहचान मिली। भोपाल आने के बाद उन्हें भारत भवन, रविंद्र भवन, मानस भवन, जनजातीय संग्रहालय आदि जगहों पर झूला कजरी महोत्सव, उत्तराधिकार, गमक, बसंत उत्सव आदि कार्यक्रमों में प्रस्तुति का अवसर मिला। भोपाल के अलावा उज्जैन में ललित पर्व, देवास में ठुमरी महोत्सव, ग्वालियर में गुरु पूर्णिमा महोत्सव, छिंदवाड़ा में शारदा महोत्सव, धार में भातखंडे जयंती महोत्सव आदि कई जगह पर अपने कार्यक्रम दे चुकीं नीना जी जब उपशास्त्रीय संगीत में उत्तर प्रदेश की उपशास्त्रीय शैलियां झूला कजरी, बारहमासा, चैती इत्यादि गाती हैं तो श्रोता भाव विभोर हो जाते हैं। ठुमरी-दादरा में बोल बनाव उनकी गायकी का सशक्त पक्ष है। पारम्परिक गायन की किसी भी शैली को नवाचार के साथ प्रस्तुत कर वे वाहवाही बटोर लेती हैं।
आकाशवाणी दिल्ली से उपशास्त्रीय गायन में तथा आकाशवाणी भोपाल से गज़ल एवं भजन में ग्रेडेड आर्टिस्ट (श्रेणीबद्ध कलाकार) नीना जी के विभिन्न विषयों पर 25 शोध प्रकाशित हो चुके हैं। वे बरकतउल्ला विश्वविद्यालय और मानसिंह तोमर ग्वालियर की शोध निर्देशक भी हैं। इनके निर्देशन में 7 विद्यार्थी शोध उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और चार शोधार्थी शोध कार्य कर रहे हैं, जिसमें एक दिव्यांग छात्रा गीतिका लोहट भी शामिल है। इस छात्रा को सीनियर रिसर्च फैलोशिप भी प्राप्त हुई है। इसके साथ ही एक छात्रा ने मानसिक रूप से निशक्त बच्चों पर संगीत चिकित्सा का प्रभाव विषय पर शोध किया है। नीना जी का ‘neena shrivastava’ नाम से एक यूट्यूब चैनल भी है जिसमें वे छात्राओं के लिए उपयोगी सिद्ध होने वाली बंदिशें, उपशास्त्रीय संगीत की शैलियाँ और भक्ति पद गाती हैं। इनके यू-ट्यूब चैनल पर भक्ति गीतों को अभी तक पौने दो करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं।
18 सितंबर 1966 को कानपुर में जन्मीं नीना जी के दो बच्चों में पुत्री डॉक्टर तन्वी श्रीवास्तव गोरखपुर में ईएनटी सर्जन एवं दामाद डॉक्टर विश्रुत भारती यूरोलॉजिस्ट हैं। पुत्र तन्मय श्रीवास्तव अमेरिका में डाटा एनालिटिक्स और पुत्रवधू प्रज्ञा घोष न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में क्वांट इंजीनियर है। जीवन साथी राकेश जी, जीवन बीमा निगम की भेल शाखा से वरिष्ठ शाखा प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
उपलब्धियां
- नियमित कलाकार के रूप में वर्ष 1987 से 1993 तक आकाशवाणी लखनऊ से सुगम एवं शास्त्रीय संगीत में प्रस्तुतियां
- दूरदर्शन लखनऊ द्वारा प्रायोजित संगीत कार्यक्रम ‘हस्ताक्षर’ के अन्तर्गत विभिन्न कवियों की रचनाओं का संगीत संयोजन एवं प्रस्तुतियां
- डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय-सागर द्वारा अनेक कार्यक्रमों में विशिष्ट अतिथि कलाकार के रूप में गायन
- बुंदेलखंड उत्सव, नई दिल्ली, विशिष्ट कलाकार के रूप में आमंत्रित
- टी. सीरीज द्वारा ‘जय भीम जय भारत’ नामक कैसेट जारी (1984)
प्रकाशन
- निराला के गीत: संगीत का परिप्रेक्ष्य (2002)
सह लेखक
1. भारतीय लोक संगीत- ‘लोक संगीत के संरक्षण एवं संवर्धन के समग्र प्रयास-कितने सार्थक, कितने व्यावहारिक’ म.प्र. के संदर्भ में (2012)
2. अनहद- गज़ल गायकी एवं रागदारी (2016)
सम्मान
- संगम कला ग्रुप, नई दिल्ली द्वारा बेस्ट गज़ल सिंगर पुरस्कार (1987)
- अभिनव कला परिषद,भोपाल द्वारा अभिनव संगीत रत्न पुरस्कार (2017)
- खुशबू एजुकेशनल एंड कल्चरल सोसायटी, भोपाल द्वारा फ़ख्र-ए-खुशबू सम्मान (2018)
- शोध एवं शोध परक शिक्षा के माध्यम से समाज में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता, जागरूकता लाने हेतु सोशल रिसर्च फाउंडेशन,रायपुर द्वारा सम्मानित (2019)
- एच.बी.टी.आई.कानपुर द्वारा ‘ओडिसी 86’ में मिस ओडिसी का पुरस्कार
- इटावा प्रदर्शनी में गायन कार्यक्रम एवं सर्वोत्कृष्ट गायिका घोषित
प्रस्तुतियां
- सुर सिंगार संसद, मुंबई (1987)
- सरस्वती महोत्सव, छिंदवाड़ा (1994)
- महात्मा गांधी 50वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम, सागर (1998)
-‘विश्व सम्मेलन’ अखिल भारतीय श्री सत्य साईं संगठन, पुट्टपर्थी, आंध्र प्रदेश (2001)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर जयंती पर आयोजित ‘विश्व पथिक रवीन्द्र’ कार्यक्रम (सितम्बर 2000/2004)
- ‘एक शाम जगजीत सिंह के नाम’ - सरोजिनी नायडू शास. कन्या महाविद्यालय, भोपाल 2011
- ‘मल्हार के रंग,छात्राओं के संग’ - बरकतउल्ला विश्वविद्यालय,भोपाल (2012)
- उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी, भोपाल ( 2013)
- ‘चित्रकूट महोत्सव’, चित्रकूट (2014)
- ‘नमस्कार एम.पी.’ बेगम अख्तर की गज़लों की प्रस्तुति, दूरदर्शन भोपाल (2015)
- ‘साईं जन्मोत्सव’, श्री सत्यसाईं समिति, भोपाल (2015-2016)
- ‘होली के रंग आपके संग’, मधुबन संस्था,भोपाल (2017)
- ‘बसन्तोत्सव संगीत समारोह’, अभिनव कला परिषद,भोपाल (2017)
- ‘राजधानी रंगोत्सव मैराबर’, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी-भोपाल
- झांसी महोत्सव- ‘लोक संगीत कार्यक्रम’, झांसी
- बुंदेली महोत्सव, लोकोत्सव तथा जालौन महोत्सव में निरंतर सहभागिता के अलावा देश के प्रतिष्ठत मंचों पर गायन
सन्दर्भ स्रोत : डॉ. नीना श्रीवास्तव द्वारा प्रेषित सामग्री एवं उनसे सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
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