डॉ. जनक पलटा : जिन्होंने ग्रामीणों को दी सेहत और सौर ऊर्जा की सौगात

blog-img

डॉ. जनक पलटा : जिन्होंने ग्रामीणों को दी सेहत और सौर ऊर्जा की सौगात

छाया: एनर्जी स्वराज

विशिष्ट महिला 

डॉ. जनक पलटा मगिलिगन उनका पूरा नाम है, मगर वे लोगों के बीच जनक दीदी के नाम से मशहूर हैं। 16 फरवरी 1948 को पंजाब के जालंधर में जन्मी जनक पलटा के मन में सेवाभाव इतना मजबूत था कि तीन बार मौत को भी मात दे चुकी हैं। 15 साल की उम्र में दिल की बाइपास सर्जरी, 60 से ज़्यादा उम्र में चार-चार कैंसर सर्जरी, 63 की उम्र में कार दुर्घटना में पति को खोया, लेकिन हौसले बुलंद ! बार-बार इस तरह मिले जीवनदान को जनक दीदी ईश्वर का वरदान मानती हैं। इसलिए उन्होंने तय किया कि वे अपना जीवन को लोगों की सेवा में लगा देंगी। उनके बरसों के इस त्याग और सेवा का ही परिणाम है कि उन्हें  कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों जनक पलटा को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

इन्हें भी पढ़िये –

सुधा मल्होत्रा - जिन्होंने महज दस साल के करियर में गाए कई यादगार गीत

जनक दीदी के पिता विशंभर दास पलटा गुरू नानक जी की बहन बेबे नानकी के परिवार के वंशज थे। जनक जी ने मास्टर डिग्री (एमए) अँग्रेजी साहित्य और राजनीति विज्ञान में की। राजनीतिक विज्ञान में एम.फिल भी किया। इतना ही नहीं जनजातीय और ग्रामीण महिलाओं के प्रशिक्षण के माध्यम से टिकाऊ विकास में डॉक्टरेट की डिग्री (पीएचडी) भी की। हालांकि वे हाईस्कूल के बाद कभी कॉलेज नहीं गई। नौकरी करते हुए प्रायवेट ही इतनी सारी डिग्रियाँ अपने नाम की। प्रोफेसरी के दौरान उन्हें रिसर्च से संबंधित काम मिले और वे पूरे भारत भ्रमण पर निकल पड़ीं। इंदौर पहुँची तो यहीं की होकर रह गईं। उन्होंने वर्ष 1985 में ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास अनुसंधान केन्द्र, चंडीगढ़ में शोध-फैलो पद से त्यागपत्र देकर इंदौर में बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ पलटा ने 26 सालों तक इस संस्थान’ को संस्थापक निदेशक के तौर पर सेवाएं दीं। इंदौर के भमोरी स्थित ये संस्थान को पूरी तरह बनाना,आदिवासी युवतियों को लाना और  उनकी शिक्षा से लेकर उन्हें अपने पैरों पर खड़े करने का श्रेय जनक दीदी को ही है।6 हज़ार से ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को प्रेरित करके उन्हें सबल बनाया है, जिनमें से अधिकांश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य राज्यों के 5 सौ गांवों से सर्वाधिक निरक्षर तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े परिवेश से आती हैं।

इन्हें भी पढ़िये –

ज्योत्स्ना मिलन : जिन्होंने 10-12 साल की उम्र में लिख दी थी अपनी पहली कविता

झाबुआ जैसे सुदूर और पिछड़े इलाके के 3 सौ से भी ज़्यादा गांवों को ‘नारू’ बीमारी से मुक्त कराने में भी श्रीमती पलटा का ही योगदान है। वे कहती हैं कि जब मैं बरली संस्थान के कामों से पिछड़े इलाकों में जाती थी, तो इस खतरनाक बीमारी के बारे में पता चला था। मैंने हर गांव में 24 घंण्टे बिताए और इस बीमारी के इलाज पर काम किया। इसी के परिणामस्वरूप 1992 में रिओ डि जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन के दौरान बरली संस्थान को ‘ग्लोबल 500 रॉल ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया गया। वे बताती हैं- मैंने आदिवासियों  का भरोसा जीता और उनकी बेटियों को बरली में लेकर आई।  उस समय ये इतना आसान नहीं था। लोग मुझे परदेसी समझकर उनकी बेटियों को सौंपने में डरते थे, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। हार न मानने के पीछे बहाई धर्म की शिक्षाओं का असर रहा। यह धर्म विश्व शांति और विश्व एकता के लिए काम करता है। स्त्री-पुरुष की समानता सिखाता है।

इन्हें भी पढ़िये –

अपने सिद्धांतों पर जीवन भर अडिग रहने वाली नेत्री विजयाराजे सिंधिया

जनक दीदी वर्तमान में इंदौर जिले के सनावदिया गाँव में स्थित ‘जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ की संस्थापिका व निदेशिका है, जो कि गैर सरकारी संगठन है। 72 साल की उम्र में भी वे सनावदिया में पूरी ऊर्जा के साथ समाज सेवा के कामों में संलग्न हैं। यहाँ वे युवाओं और महिलाओं को विभिन्न रोज़गार मूलक प्रशिक्षण देती हैं। छोटी-सी पहाड़ी पर अपने पति के हाथों से बनाए घर में रहती हैं। उनकी 2 किलोवाट की पवन चक्की गाँव को रोशन करती है। उनके केंद्र पर सौर व पवन ऊर्जा से ही सारा काम होता है। प्लास्टिक का उपयोग बिलकुल नहीं होता और दो साल से नमक, शक्कर, चाय और तेल के अलावा कोई चीज़ खरीदी नहीं गयी, सब कुछ गाँव के केंद्र का होता है। इस केन्द्र में कोई भी वैतनिक कर्मचारी नहीं, सारा काम सेवाभाव से होता है। घर के आसपास जैविक खेती होती है। फिनाइल से लेकर साबुन, होली के रंग तक वे खुद अपने हाथों से बनाती है। वे जैविक सेतु नामक एक कांस्टेप्ट लेकर आईं, जिसके तहत इस नाम के साप्ताहिक बाज़ार  में जैविक चीजें ही मिलती है।

इन्हें भी पढ़िये –

अख़्तर आपा : नवाब ख़ानदान की बहू जो बन गई मजलूमों की आवाज़

सनावदिया में हर साल 1 से 6 जून तक सोलर सप्ताह मनाया जाता है। वर्ष 2017 में जनक दीदी को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने सोलर कुकर इंटरनेशनल सैक्रामेंटो, यू.एस. द्वारा एक उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम में सौर ऊर्जा पर अपना ज्ञान साझा किया। वे इस आयोजन की एडवोकेसी टीम में वैश्विक सलाहकार के रूप में शामिल हुईं। यह आमंत्रण उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के प्रभावी संसाधन के रूप में सोलर कुकिंग को अपनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के कारण प्राप्त हुआ था। डॉ. पलटा को सोलर कुकर इंटरनेशनल (एससीआई) ने अपनी सलाहकार परिषद में शामिल किया। एससीआई की कार्यकारी निदेशक जूली ग्रीन ने इस संदर्भ में डॉ. पलटा को एक लैटर हेड भी भेजा। गौरतलब है कि डॉ. पलटा इंटरनेशनल सोलर फूड कॉन्फ्रेंस में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुई थीं। यह कॉन्फ्रेंस 22-23 जनवरी 2016 को फेरो पुर्तगाल की अल्गार्व यूनिवर्सिटी में आयोजित की गई थी।

लोगों तक आसानी से पहुँचने के लिए जनक दीदी इस उम्र में भी सोशल साइट पर लगातार हर विषय पर अपडेट करती रहती हैं। जनक दीदी करीब सात किताबों की लेखक भी हैं।

उपलब्धियां

  1. वर्ष 2001 में उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार, राष्ट्रीय अम्बेडकर साहित्य सम्मान और ग्रामीण एवं जनजातीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार,
  2. वर्ष 2005 में महिला समाजसेवी सम्मान
  3. वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार
  4. वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश सरकार ने ‘राजमाता विजयराजे सिंधिया समाजसेवा पुरस्कार’
  5. 2010 में लक्ष्मी मेनन साक्षरता पुरस्कार,
  6. 2011 में नवोन्मुखी सामाजिक शिक्षक पुरस्कार
  7. 2012 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
  8. 2013 में सौहार्द पुरस्कार के साथ साथ वूमन ऑफ सब्सटेंस अवॉर्ड
  9. उन्हें मध्यप्रदेश सरकार की ओर से मध्यप्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया है

संदर्भ स्रोत: विकिपीडिया, वेबदुनिया, डॉक्यूमेंट्री डॉट इन

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



गौरी अरजरिया : लोगों से मिले तानों को
ज़िन्दगीनामा

गौरी अरजरिया : लोगों से मिले तानों को , सफलता में बदलने वाली पर्वतारोही

स्कूल में एवरेस्ट के बारे में पढ़ने के बाद पहाड़ पर चढ़ने की ललक जगी और पर्वतारोही अरुणिमा सिंह के संघर्ष ने उन्हें एक रास...

स्त्री विमर्श की जीती जागती तस्वीर हैं ऋचा साकल्ले
ज़िन्दगीनामा

स्त्री विमर्श की जीती जागती तस्वीर हैं ऋचा साकल्ले

शोध के लिए घरेलू हिंसा विषय पर जब उन्होंने महिलाओं से बातचीत की तो उन्हें कई हैरतअंगेज बातें सुनने को मिलीं जैसे -“पति न...

लहरी बाई : आदिवासी महिला जिसने
ज़िन्दगीनामा

लहरी बाई : आदिवासी महिला जिसने , बनाया दुर्लभ बीजों का बैंक

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुकी बैगा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली लहरी बाई अब अपने नाम से कहीं ज्याद...

गिरिजा वायंगणकर : परिवार के सहयोग ने जिन्हें बनाया बड़ा कलाकार
ज़िन्दगीनामा

गिरिजा वायंगणकर : परिवार के सहयोग ने जिन्हें बनाया बड़ा कलाकार

गिरिजा जी ने  एकल और समूह में  कई प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। कुछ पत्रिकाओं में चित्रांकन किया। कई कार्यशालाओं में प्र...

प्रज्ञा सोनी : हौसलों से भरी कामयाबी की उड़ान
ज़िन्दगीनामा

प्रज्ञा सोनी : हौसलों से भरी कामयाबी की उड़ान

प्रज्ञा मूकबधिर बच्चों को शिक्षा के लिये प्रेरित करती हैं। वे प्रति रविवार आसपास के ऐसे बच्चों को व्यक्तित्व विकास व रोज...

मंजूषा गांगुली : इन्द्रधनुषी प्रतिभा वाली कलाकार
ज़िन्दगीनामा

मंजूषा गांगुली : इन्द्रधनुषी प्रतिभा वाली कलाकार

देश के शीर्ष पांच कोलाजिस्टों- Collagists (कोलाज विशेषज्ञों ) में तीसरे स्थान पर काबिज हैं मंजूषा गांगुली