छाया : curofy.com
कुछ नया और अलग करने का जज्बा हो तो उम्र मायने नहीं रखती, इस बात को सार्थक किया है पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. कामिनी सोनी ने। पं. खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद महाविद्यालय एवं संस्थान में चिकित्सक और सहायक प्राध्यापक डॉ. कामिनी सोनी न सिर्फ कुशल चिकित्सक हैं, बल्कि अच्छी धावक भी हैं। उन्होंने 50 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया और स्थानीय मैराथन के अलावा वे देशभर में होने वाली मैराथन में हिस्सा लेती हैं।
डॉ. कामिनी स्वयं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही अन्य लोगों को प्रेरित करने और महिला सशक्तिकरण का संदेश देने के लिए मैराथन में प्रतिभागिता करती हैं। उन्होंने हाल ही में 25 किमी की कोलकाता टाटा स्टील रन सफलता पूर्वक पूरी की है। कामिनी लंबे समय से मैराथन में हिस्सा ले रही हैं। इसके पूर्व उन्होंने वेदांता दिल्ली हाफ मैराथन में 21 किमी की दौड़ पूरी की थी। वे आगामी दिनों में वे 42 किमी की टाटा मुंबई मैराथन और दस किमी की बेंगलुरु रन में हिस्सा लेने वाली हैं। इसके लिए प्रतिदिन अभ्यास करती हैं। ये दोनों रन पूरी करने के बाद डॉ. कामिनी अंतरराष्ट्रीय प्रोकम स्लैम अवार्ड के लिए दावेदारी करेंगी।
डॉ. कामिनी कहती है कि दौड़ को आममौर पर युवाओं से जोड़कर देखा जाता है पर ऐसा है नहीं। उम्र बढ़ने के साथ सीखने का तरीका और उद्देश्य बदल सकता है, किंतु सीखने की क्षमता कभी खत्म नहीं होती। उम्र चाहे जो भी हो, हमेशा कुछ नया करते रहने और सीखने से जिंदादिली, ताजगी और ऊर्जा बनी रहती है। सीखने में उम्र को बाधा न मानते हुए हमें हर दिन कुछ नया सीखने का प्रयास करते रहना चाहिए। वे बताती हैं कि दौड़ने की प्रेरणा उन्हें एक मरीज से मिली थी।
स्थानीय मैराथन में भी भागीदारी
डॉ. कामिनी शहर में होने वाली स्थानीय मैराथन में भी प्रतिभागिता करती हैं। वे पिक मैराथन, पंख मैराथन, पचमढ़ी मैराथन, शहीद भगत सिंह और अहिंसा मैराथन दस किमी की दौड़ में विजेता रही हैं। हाल ही में हुई रन भोपाल में भी तथा दिल्ली मैराथन करवा चौथ उन्होंने हिस्सा लिया था।
सन्दर्भ स्रोत : नवदुनिया
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *