खुशबू खान

blog-img

खुशबू खान

छाया : पत्रिका

खिलाड़ी-हॉकी

साल 2018 में जब हॉकी इंडिया ने 6 देशों के बीच होने वाले अंडर-23 टूर्नामेंट के लिए 18 सदस्यीय भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम की घोषणा की तो उसके गोलकीपर का चयन चर्चा में आ गया। यह गोलकीपर थीं भोपाल की  खुशबू खान। उस समय बेल्जियम दौरे के लिए चुनी गईं खुशबू भोपाल में झुग्गी में रहने वाले एक ऑटो चालक शब्बीर खान की बेटी हैं, उनकी मां का नाम मुमताज है। पांच भाई बहनों में तीसरे नंबर की खुशबू शुरू से ही अति महत्वाकांक्षी थीं। लेकिन भारतीय टीम में सबसे छोटी (16 साल) इस खिलाड़ी को इस मुक़ाम पर पहुंचने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। जहांगीराबाद इलाके में जानवरों के अस्पताल के पास खुशबू की झुग्गी को अस्पताल प्रबंधन तोड़ना चाह रहा था। भोपाल टीम से खेलकर कई बार गोल बचाने वाली इस खिलाड़ी को अपना आशियाना  बचाने के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ी थी और नेताओं तक के ताने सहने पड़े थे। परिवार की माली हालत ठीक न होने की वजह से खुशबू के पास साइकिल तक नहीं थी। उसे अपने घर से 12 किलोमीटर दूर  मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम तक पैदल ही जाना पड़ता था।

इन्हें भी पढ़िये -

पूनम तत्ववादी

वर्ष 2015 में तेरह साल की उम्र में खुशबू  ने लाल परेड मैदान पर ग्रीष्मकालीन शिविर में लड़कियों की हॉकी टीम को अभ्यास करते देखा और उसके भीतर भी खिलाड़ी बनने की ललक पैदा हुई। मध्यप्रदेश पुलिस में पदस्थ अंजुम ने खुशबू को हॉकी खेल के लिए प्रोत्साहित किया और उसकी मदद भी की। यहां से वह प्रतिदिन पुलिस मैदान पर जाकर हॉकी खेलने लगी। एक दिन वह उस शिविर में जा पहुंची। कोच ने हॉकी दे दी, तो पांच दिन में ही उस पर अच्छा नियंत्रण दर्शा दिया और ऐसी ड्रिबलिंग करने लगीं, जिसे सीखने में लड़कियों को महीने साल लग जाते हैं। इसके बाद वे वहीं मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रही लड़कों की हॉकी एकेडमी में जा पहुंचीं। वहां के कोच पूर्व ओलंपियन अशोक ध्यानचंद ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें लडक़ों की एकेडमी में अभ्यास की इजाजत दे दी। उन्होंने फॉरवर्ड के तौर पर खेलने वाली इस लड़की में गोल को बचाने की क्षमता को पहचाना। खुशबू भी अपनी सफलता का श्रेय अशोक ध्यानचंद और पूर्व ओलंपियन जलालुद्दीन को देती हैं।

इन्हें भी पढ़िये -

करिश्मा यादव

जूनियर स्तर पर ही चार राष्ट्रों की प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक तथा छह राष्ट्रों के टूर्नामेंट और अर्जेंटीना में हुए तीसरे यूथ ओलंपिक में रजत पदक, बेलारूस के खिलाफ जूनियर टेस्ट श्रंखला और फ्रांस ए के खिलाफ मुकाबला उन्हें पल-पल रोमांचित व प्रेरित करते रहते हैं और आगे भारत की सीनियर महिला टीम में स्थान बनानेे के उनके सपने के लिए आधार प्रदान करते हैं। ये उन्हें गर्व का अहसास भी कराते हैं कि एक लोडिंग ऑटो रिक्शा चलानेे वाले व्यक्ति की बेटी होकर वह भारत की जूनियर टीम का हिस्सा बनी है और ऐसा करने वाली मध्यप्रदेश की पहली लड़की बनने का श्रेय भी हासिल किया है। 06 अगस्त 2002 को जन्मी खुशबू अब 5 दिसंबर से दक्षिण अफ्रीका के पॉचेफस्ट्रूम में शुरू हो रहे जूनियर महिला हॉकी विश्व कप में भी खेलेंगी।

इन्हें भी पढ़िये -

मेघा परमार 

उपलब्धियां : 

• बेल्जियम में अंडर-23 सिक्स नेशन टूर्नामेंट में रजत पदक
• अर्जेंटीना में तीसरे यूथ ओलंपिक गेम्स में रजत पदक
• इंडिया ए और फ्रांस ए मुकाबले में भागीदारी
• अंडर-21 फोर नेशन टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक
• जूनियर इंडिया और बेलारूस टेस्ट सीरीज में भागीदारी

सन्दर्भ स्रोत : पत्रिका, न्यूज़ वर्ल्ड, ज़ी न्यूज़ 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर
ज़िन्दगीनामा

बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर

अब भावना सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं रहीं, वे एक सोच, एक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं।

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा
ज़िन्दगीनामा

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा

उस समय जब लड़कियाँ पारंपरिक रास्तों पर चलने की सोच के साथ आगे बढ़ रही थीं, निधि ने समाज की सीमाओं को चुनौती देते हुए कला...

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर
ज़िन्दगीनामा

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर , तहलका मचाने वाली 'भेरी क्यूट आंटी'    

इस क्षेत्र में शुरुआत आसान नहीं थी। उनके आस-पास जो थे, वे किसी न किसी लोग फ़िल्म स्कूल से प्रशिक्षित थे और हर मायने में उ...

डॉ. रश्मि झा - जो दवा और दुष्प्रभाव
ज़िन्दगीनामा

डॉ. रश्मि झा - जो दवा और दुष्प्रभाव , के बिना करती हैं लोगों का इलाज 

बस्तर के राजगुरु परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद डॉ. रश्मि ने अपनी पहचान वंश से नहीं, बल्कि अपने कर्म और सेवा से बनाई।

पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने
ज़िन्दगीनामा

पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने , वाली पहली दिव्यांग भारतीय खिलाड़ी

पूजा ओझा ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी गरीबी और विकलांगता को अपने सपनों की राह में रुकावट नहीं बनने दिया।

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा
ज़िन्दगीनामा

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा

कृष्णा जी ने आज जो ख्याति अर्जित की है, उसके पीछे उनकी कठिन साधना और संघर्ष की लम्बी कहानी है। उनके जीवन का लंबा हिस्सा...