कृष्णा राजकपूर : जिनके प्यार ने राज कपूर को राज कपूर बनाया

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कृष्णा राजकपूर : जिनके प्यार ने राज कपूर को राज कपूर बनाया

छाया: दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया

विशिष्ट महिला 

राज कपूर (raj-kapoor) को हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा शो मैन माना जाता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उनके इस रूप को गढ़ने में उनकी पत्नी कृष्णा की महती भूमिका थी। दरअसल पेशावर (अब पाकिस्तान में) के रहने वाले पृथ्वी राज कपूर (Prithvi Raj Kapoor) को 1930 के दौरान अपने एक्टिंग के करियर के चलते शहर-दर-शहर जाना पड़ रहा था। ‘पृथ्वी थिएटर’ (Prithvi Theatre) के संस्थापक जब देश के कई शहरों में अपनी नाटक कंपनी लेकर जाने लगे,तो एक दफ़ा वे मध्यप्रदेश के छोटे से शहर रीवा भी पहुंचे, जहां उनके दोनों बेटे राज और शम्मी कपूर  (Shammi Kapoor) भी साथ थे। शम्मी तब 15 साल के थे और राज कपूर 22 साल के। राय करतार नाथ मल्होत्रा उस समय रीवा के आई जी थे, जिनके सरकारी बंगले पर कपूर परिवार की खासी खातिरदारी हुई। बताते हैं कि करतार नाथ रिश्ते में पृथ्वी राज  के ममेर भाई लगते थे। दिन-ब-दिन दोनों परिवारों के रिश्ते गहरे होते चले गए।

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इसके बाद कपूर परिवार ने मुंबई (Mumbai) को अपना ठिकाना बनाया। मायानगरी मुंबई में कपूर खानदान फिल्मों का निर्माण करने लगा तो करतार नाथ के बेटे नरेंद्र नाथ, प्रेम नाथ और राजेंद्र नाथ (Narendra Nath, Prem Nath and Rajendra Nath) फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने चले आए, जिन्होंने अपने करियर में कई हिंदी और दूसरी भाषाओं की फिल्मों में काम किया. यही वजह रही कि राज कपूर और शम्मी कपूर का भी मल्होत्रा परिवार के घर रीवा आना-जाना होने लगा। मेहमाननवाज़ी का यह सिलसिला उस वक्त रिश्ते में बदल गया, जब करतार नाथ की बेटी कृष्णा का विवाह राज कपूर के साथ तय हो गया। हालाँकि राज कपूर और कृष्णा की पहली मुलाकात शादी से एक साल पहले ही हुई थी। 12 मई 1946 को कपूर ख़ानदान धूमधाम के साथ बारात लेकर रीवा पहुंचा, सरकारी बंगले में राज-कृष्णा के सात फेरे हुए। बारातियों को रॉयल मेंशन में ठहराया गया था। इस शादी में मशहूर अभिनेता अशोक कुमार (Famous actor Ashok Kumar) भी पहुंचे थे। कृष्णा उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थी,लेकिन यह बात राज कपूर को पसंद नहीं आई। उन्होंने तय किया कि वे फिल्म इंडस्ट्री में एक बेहतरीन अभिनेता बनेंगे।

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शादी के बाद दोनों के तीन बेटे रणधीर, राजीव, ऋषि कपूर (Randhir, Rajiv, Rishi Kapoor) और दो बेटियां ऋतु और रीमा हुए। रणधीर की दोनों बेटियां करिश्मा और करीना कपूर (karisma kareena kapoor) जानी-मानी अभिनेत्रियां हैं। वहीं, ऋषि कपूर के दो बच्चे रणबीर कपूर और रिद्धिमा कपूर (Ranbir Kapoor and Riddhima Kapoor) हैं। उल्लेखनीय है कि रणबीर मौजूदा दौर के मशहूर स्टार हैं, वे अपनी दादी के बेहद क़रीबी रहे हैं। कृष्णा जी न केवल उनकी फिल्में देखती थीं, बल्कि रिलीज़ होने से पहले मंदिर जाकर उसके लिए दुआ भी मांगती थीं। रणबीर उन्हें भी अपना सबसे बड़ा समीक्षक मानते थे। ऋतु का ब्याह मशहूर उद्योगपति और एस्कॉर्ट्स समूह के मालिक राजन नंदा के साथ हुआ। इन दोनों के बेटे निखिल की शादी अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता के साथ हुई है। कृष्णा जी और राज साहब की दूसरी बेटी रीमा ने इन्वेस्टमेंट बैंकर मनोज जैन को अपना जीवन साथी चुना और अब उनका बेटा अरमान भी फ़िल्मी दुनिया में कदम रख चुका है।

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कपूर खानदान को जोड़े रखने में कृष्णा जी का बहुत बड़ा हाथ था, लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब कृष्णा कपूर, राज कपूर से नाराज़ होकर बात करना भी बंद कर दिया। हुआ कुछ यूं कि साल 1948 में राज कपूर ने निर्देशन की शुरुआत की और फिल्म ‘आग’ बनाई। फिल्म के बारे में चर्चा करने के लिए राज कपूर, नरगिस की मां जद्दनबाई से मिलने पहुंचे थे लेकिन उस वक़्त वे घर पर नहीं थीं। राज कपूर की मुलाकात नरगिस से हुई और उन्होंने तय किया कि फिल्म में नायिका नरगिस ही होंगी। इस दौरान दोनों के बीच नज़दीकियां भी बढ़ने लगीं। राज कपूर के शादीशुदा होने के बावजूद नरगिस के साथ उनका रिश्ता आगे बढ़ता गया।

अब नरगिस चाहती थीं कि राज कपूर उनसे शादी करके घर बसा लें। लेकिन बहुत जल्द नरगिस को एहसास हो गया कि राज कपूर पत्नी कृष्णा को कभी नहीं छोड़ेंगे, इसलिए 1957 में दोनों अलग हो गए। इसके बाद 60 के दशक में वैजयंती माला का नाम राज कपूर के साथ जुड़ा। दोनों का नाम साथ आने पर राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर घर छोड़कर चली गई थीं और साढ़े चार महीने मुंबई के नटराज  होटल में रहीं। राज कपूर के काफी मनाने के बाद एक शर्त पर वापस आई कि वो फिर कभी वैजयंती माला के साथ काम नहीं करेंगे। नतीजतन, ‘संगम’ के बाद वैजयंती माला और राज कपूर ने कभी किसी फिल्म में काम नहीं किया।

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राज कपूर और नर्गिस के रिश्तों से जुड़ी कहानियों का ज़िक्र ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा ‘खुल्लम खुल्ला- ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ में भी किया है। ऋषि ने उस लमहे का ज़िक्र किया है, जब उनकी मां कृष्णा और नर्गिस का आमना-सामना हुआ था। वे लिखते हैं कि नर्गिस जी ने 1956 में ‘जागते रहो’ पूरी होने के बाद आरके स्टूडियो में क़दम नहीं रखा था, लेकिन उनकी शादी के संगीत समारोह में शामिल होने के लिए वो सुनील दत्त के साथ आईं। 24 साल बाद कपूर ख़ानदान के किसी जलसे में शामिल होने को लेकर वे काफ़ी घबराई हुईं थीं। मेरी मां ने उनकी हिचकिचाहट को समझते हुए एक तरफ़ ले जाकर कहा, मेरे पति सजीले व्यक्ति हैं, वो रोमांटिक भी हैं। मैं आकर्षण को समझ सकती हूं। मैं जानती हूं आप क्या सोच रही हैं, लेकिन अतीत को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। आप मेरे घर ख़ुशी के मौक़े पर आयी हैं और आज हम दोस्तों की तरह यहां मौजूद हैं।

राज कपूर, कृष्णा जी से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। वे अपनी फिल्मों में अभिनेत्रियों को बोल्ड किरदार में पेश किया करता थे। उनकी नायिकाओं को सफेद साड़ी पहनना अनिवार्य सा था। इसे लकी चार्म  या उनकी निजी पसंद कहा जा सकता है। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने कृष्णा जी को सफेद साड़ी तोहफ़े में दी,जिसे पहनने के बाद वे राज साहब को और भी खूबसूरत लगीं। इसके बाद से उन्होंने अपनी हर फिल्म में नायिका को सफेद साड़ी में पर्दे पर दिखाया।

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कृष्णा जी जब रीवा में थीं तब इस इलाके को रीमा राज्य कहा जाता था। रीवा के नाम का चलन आज़ादी के बाद शुरू हुआ। स्मृतियों को सहेजे रखने की ही गरज से कृष्णा और राज साहब ने बेटी का नाम रीमा रखा- ऐसा उनके पारिवारिक मित्र जयप्रकाश चौकसे भी मानते हैं। 1953 में “आह” फिल्म की केंद्रीय थीम में रीवा था। “आग” में भी रीवा को दोहराया गया। संयुक्त परिवार के संस्कार कृष्णा जी को रीवा से ही मिले थे। इसी कारण वर्षों तक कपूर परिवार साझे चूल्हे की अनूठी मिसाल बना रहा। वैसी ही किस्सागोई वैसी ही चौपाल और वैसे तीज-त्योहार। सही मायने में कृष्णा जी ने बॉलीवुड में “रिमही” संस्कृति को जिया। यहां के माटी की सुगंध जीवन पर्यंत उनके अवचेतन में बसी रही। 14 दिसम्बर 2015 को कृष्णा-राज कपूर सभा गृह के भूमिपूजन के लिए जब रणधीर कपूर रीवा आए तो वापसी में उस आंगन की मिट्टी को अपनी रुमाल में बाँधकर ले गए। बताया मम्मा (कृष्णा जी) ने मंगाया है।  वे उस पीपल के पेड़ को भी बड़े भावुक होकर देखते रहे जिसके किस्से सुनाकर उनकी मां ने उन्हें रीवा भेजा था।

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उस घर में जहां कृष्णा जी का जन्म हुआ और राज कपूर के साथ परिणय के बाद उनकी डोली उठी, आज वहीं पर उन्हीं के नाम से भव्य सभा गृह है। बॉलीवुड या अन्य कहीं शायद ही राज कपूर जी की स्मृति को सहेजने का ऐसा काम हुआ हो जो मध्यप्रदेश की सरकार की सदाशयता और तत्कालीन मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के संकल्प के चलते रीवा में हुआ है।   कृष्णा-राज कपूर आडिटोरियम (Krishna-Raj Kapoor Auditorium) का लोकार्पण उनके विवाह की तिथि 12 मई को होना तय हुआ था। लेकिन कुछ कारणों से वह तारीख़ 2 जून हो गई।  यह संयोग ही था कि 2 जून राज कपूर के महाप्रयाण का दिन भी है। लोकार्पण के अवसर पर ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर तो आए ही करतार नाथ के पौत्र, प्रेम नाथ के पुत्र प्रेम किशन भी पहुंचे। यह बात भी कम लोगों को ही पता है कि प्रेम चोपड़ा की पत्नी उमा का भी जन्म यहीं इसी घर में हुआ, वे कृष्णा जी की बहन हैं।  प्रेम-उमा चोपड़ा दोनों ही आए।  इस मौके पर सभी की यह आकांक्षा थी कि कृष्णा जी उपस्थित रहें, पर वे अस्वस्थ थीं। चौथेपन में उन्हें भी वही सांस का रोग था जिसने राज साहब की जान ली। इसी के चलते 1 अक्टूबर 2018 को कृष्णा जी का निधन हो गया।

संदर्भ स्रोत: ज़ी न्यूज़ पर जयराम शुक्ल के ब्लॉग, दैनिक भास्कर ,पत्रिका, दैनिक जागरण और नवोदय टाइम्स से  

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