छाया : स्व संप्रेषित
• सीमा चौबे
वह रोज़ कोई न कोई चित्र बनाकर अपने कला शिक्षक को दिखाती और उनका एक ही जवाब होता... जाओ अभी इसमें शेडिंग करो, चलो एक और चित्र बनाओ। उन्होंने कभी उस बच्ची के बनाये चित्रों की तारीफ़ नहीं की। वह बच्ची एक बार उन्हें लैंडस्केप दिखाने पहुँची, उस समय शिक्षक महोदय किसी काम में मशगूल थे, उन्होंने सिर उठाये बिना पेंटिंग देखकर कहा - वाह ! इसे कहते हैं काम...लेकिन जब उन्होंने बच्ची को देखा तो खिलखिलाकर हंस पड़े। अपनी कक्षा में गर्मी की छुट्टियाँ बिताने वाले बच्चों को वे मौसमी मेंढक कहा करते, लेकिन दो चोटी और चश्मे वाली वह बच्ची एक बार प्रवेश पाने के बाद वहीं की होकर रह गईं।
वह बच्ची थी सुषमा जैन (sushma-jain), जिसका जन्म उज्जैन (ujjain) के प्रतिष्ठित किराना व्यवसायी श्री सुशील कुमार लिग्गा तथा पुष्पावती लिग्गा के घर 14 अक्टूबर 1957 को हुआ। बचपन से ही चित्रकला के प्रति रुझान देखकर उनके पिताजी ने उन्हें प्रोत्साहित किया और 8 वर्ष की उम्र में वे उज्जैन के डॉ.एस.के. जोशी (Dr. S. K. Joshi) की कक्षा में जाने लगीं। ‘कला निलय’ (‘Kala Nilaya’) नामक यह कक्षा एक टेकरी पर लगती थी, जहाँ पहुँचने के लिये नन्हीं सुषमा को करीब 40 सीढ़ियां चढ़ना पड़तीं। यह सिलसिला दो साल तक चला। दस वर्ष की होते-होते सुषमा जी डॉ. व्ही.एस. वाकणकर (Dr. V.S. Wakankar) के भारती कला भवन जाने लगीं। गर्मियों की छुट्टियों में तो ड्राइंग/पेंटिंग (Drawing/Painting) सीखने कला भवन में बहुत सारे विद्यार्थी प्रवेश लेते थे और स्कूल शुरू होते ही वे गायब हो जाते थे, लेकिन चित्रकार बनने का पक्का इरादा लिये इस बच्ची ने वहाँ नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया।
यह भी पढ़िए .....
मंजूषा गांगुली : इन्द्रधनुषी प्रतिभा वाली कलाकार
कला भवन सुषमा जी के जीवन का अहम पड़ाव साबित हुआ। वहाँ उन्हें डॉ. वाकणकर जैसे असाधारण शिक्षक से कला की बारीकियां सीखने को मिलीं। डॉ. वाकणकर और विष्णु भटनागर सर के अलावा उन्होंने शेखर काले सर, रमेश नानवानी जी से भी कला की शिक्षा हासिल की। वाकणकर सर ब्रश को तेजी से चलाते हुए हर बार एक बेहतरीन कलाकृति तैयार कर लेते थे। उन्हें सीधे ब्रश से मानव आकृतियां बनाते देख, सुषमा जी ने भी उनका अनुसरण किया। वे दिन-रात अभ्यास करती रहतीं।
सुषमा जी सन् 1968 से 1975 तक कला भवन में पद्धति-सीखती रहीं। यहीं से उन्होंने सन् 1971 में एलीमेन्ट्री तथा 1972 में इंटरमीडिएट ग्रेड परीक्षाएं दीं तथा बाद में एमपी टेक्निकल बोर्ड से त्रिवर्षीय डिप्लोमा भी किया। उन्हें दोनों ग्रेड परीक्षाओं में 'बी ग्रेड' प्राप्त हुआ इसके लिए उन्हें कला भवन (kala bhavan ujjain) द्वारा वार्षिक समारोह में प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया। वे कहती हैं “वाकणकर सर के लेटरहेड पर टाईप किया हुआ यह प्रशस्ति पत्र मेरे जीवन की अमूल्य पूंजी है।” वर्ष 1975 में उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से ड्राइंग एवं पेंटिंग में बी.ए., वर्ष 2002 में देवी अहिल्या विवि, इंदौर से स्वर्ण पदक के साथ एम.ए. (ड्राइंग एंड पेंटिंग) और वर्ष 2011 में ड्राइंग में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की।
यह भी पढ़िए .....
सरोज श्याम : प्रकृति प्रेम और पति के प्रोत्साहन ने बनाया चित्रकार
1974 में राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली अखिल भारतीय कालिदास चित्र एवं मूर्तिकला प्रदर्शनी (All India Kalidasa Paintings and Sculpture Exhibition) का आयोजन न करने के निर्णय के बाद वाकणकर जी ने अपने स्तर पर इस प्रदर्शनी का आयोजन किया (वर्तमान में राज्य शासन द्वारा स्थापित संस्था कालिदास अकादमी द्वारा यह प्रदर्शनी अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है)। यह प्रदर्शनी उस समय माधव कॉलेज के सभागार में लगाई जाती थी।
एक प्रसंग याद करते हुए सुषमा जी बताती है “उस वर्ष मुझे भी प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। पुरस्कार वितरण से पहले सर ने कहा कि किसी के सामने पुरस्कार का लिफाफा मत खोलना। बाहर से आए कलाकारों को लिफाफे में धनराशि देना आवश्यक है। तू तो अपनी ही है। तुझे बाद में दे देंगे। उनके यह शब्द मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं थे।" यह पुरस्कार उनके उत्साहवर्धन में मील का पत्थर साबित हुआ।
बी.ए. करते ही 19 वर्ष की उम्र में पारिवारिक व्यवसाय संभाल रहे शिवपुरी निवासी श्री सुरेश कुमार जैन से 1976 में उनका विवाह हो गया। विवाह के बाद उनका कलाकर्म पूरी तरह छूट गया। ससुराल में किसी का दूर दूर तक कला से कोई वास्ता नहीं था, विवाह के बाद वे संयुक्त परिवार में गृहस्थी की जिम्मेदारियों में बंधकर रह गईं। तीन वर्ष के अंतराल में दो बच्चों की मां भी बन गईं। 86 में एक और बेटी का जन्म हुआ। बड़ी बेटी को शिक्षा के लिए उन्होंने भाई के पास उज्जैन भेज दिया। छठवी करने के बाद बेटे को भी इंदौर के बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करवा दिया।
वे चाहती थीं कि उनके तीनों बच्चे उनके साथ एक साथ ही रहें। जब छोटी बेटी को बेहतर तालीम दिलाने की बात आई तो वे पति की रजामंदी से अकेले ही उसे लेकर वर्ष 96 में इंदौर आ गईं। उन्होंने उसका दाखिला भी बेटे के स्कूल में ही करवा दिया साथ ही उज्जैन रह रही बड़ी बेटी को भी अपने पास बुला लिया। उस समय उनकी बड़ी बेटी कॉलेज में, बेटा दसवीं में और छोटी बेटी कक्षा छह में पढ़ रही थी। इस बीच 2 साल का समय उन्होंने केवल बच्चों की देखरेख में लगाया।
विवाह के 22 साल बीत जाने के बाद दिसम्बर 1998 में देवलालीकर कला वीथिका इंदौर (Devlalikar Art Gallery Indore) में एकल प्रदर्शनी लगाई। सुषमा जी बताती हैं “प्रदर्शनी के लिए गैलरी को बुक तो कर लिया, लेकिन इस मकसद के लिए एक भी पेंटिंग तैयार नहीं थी।” उन्होंने दिन-रात एक कर 2 महीने के भीतर 30 चित्र तैयार कर लिये। इस प्रदर्शनी में शेखर काले सर (shekhar kale sir) और कला भवन से जुड़े अन्य कलाकारों का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ। प्रदर्शनी को उम्मीद से ज़्यादा प्रतिसाद मिला। इस तरह चित्रकला का उनका सफ़र दोबारा शुरू हुआ।
यह भी पढ़िए .....
वीणा जैन : चित्रकला पढ़ी और पढ़ाई भी, बन गईं मशहूर कलाकार
प्रदर्शनी के बाद लोगों से मेल-मुलाकातें बढ़ीं और रास्ते खुलते चले गए। इंदौर के शिंदे सर ने उन्हें आगे पढ़ने का मशविरा दिया और उम्र के 42वें पड़ाव पर पहुँचने के बाद उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्वाध्यायी छात्रा के रूप में प्रवेश लिया और अहिल्या विवि -इंदौर से ड्राइंग-पेंटिंग विषय में स्वर्ण पदक के साथ एम.ए. (प्राइवेट) तथा ‘मराठा राज्य की भित्ति चित्र परम्परा’ विषय पर पीएचडी की। सुषमा जी बताती हैं "कॉलेज की डॉ. कुमकुम श्रीवास्तव मैडम ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। बाद में उनके मार्गदर्शन एवं निर्देशन में पीएचडी की तथा उनकी सोसायटी के महाविद्यालय 'शुभांकन फाइन आर्ट्स कॉलेज, इंदौर' (Shubhkan Fine Arts College, Indore) में लगभग दो दशक तक प्राचार्य की भूमिका निभाई। यहाँ से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।
कोरोना काल के बाद सुषमा जी ने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू किया और वर्षों बाद उज्जैन में एकल प्रदर्शनी के अलावा जगह-जगह एग्जीबिशन (Exhibition) लगाने का दौर शुरू हुआ। इसी बीच उनके पति भी इंदौर आ गए और अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया।
भारतीय पारंपरिक चित्रकला शैली के लिए वरिष्ठ कलाकारों द्वारा किये गए रचनाकर्म से प्रभावित सुषमा जी ने इस प्राचीन शैली पर नवाचार करते हुए अपनी ख़ास शैली विकसित की और डेकोरेटिव फिगर्स उकेरना शुरू किए। कवि कालिदास के महाकाव्य ग्रंथों पर मेघदूतम्, ऋतुसंहारम, अभिज्ञान शाकुंतलम और विक्रमोर्वशीयम (Meghadootam, Ritusamharam, Abhijnana Shakuntalam, Vikramorvasiyam) उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
उपलब्धियां
• प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के कवर पेज पर पेंटिंग्स प्रकाशित हो चुकी हैं।
• अनेक पत्र-पत्रिकाओं और जर्नल्स में उनके शोध पत्र (गोम्मटेश्वर बाहुबली, चांदवड राजप्रासाद की भित्तिचित्र कला, जैन मूर्ति शिल्प कला का स्वर्ण युग, मराठा राज्य की भित्ति चित्र परम्परा में नारी सौन्दर्य, जैन धर्म और कलाः समन्वयात्मक अभिव्यंजना, पूर्व ऐतिहासिक शैलचित्र: डिकेन (जिला नीमच), आदिवासी अंग आरेखन कला-गोदना, Development of Painting in Maratha Arena, परंपरागत भारतीय चित्रकला में वर्ण विधान, चिब्बड नाला क्षेत्र की प्रागैतिहासिक चित्रकला, चित्र परंपरा और माण्डू आदि) प्रकाशित हुए हैं ।
• शुभांकन ललित कला महाविद्यालय परिसर में छह दिवसीय राष्ट्रीय कला शिविर कार्यशाला एवं प्रदर्शनी कलाकुंभ - 2015 एवं 2016 का सफलतापूर्वक आयोजन वर्ष 2006 से देवी अहिल्या वि वि, इंदौर द्वारा आयोजित युवा महोत्सव में विभिन्न राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में निर्णायक
• 2011 में इंदौर और भोपाल क्लस्टर के जेएनवी के लिए टीजीटी ड्राइंग शिक्षक पद पर उम्मीदवार का साक्षात्कार लेने विषय विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त
सम्मान/पुरस्कार
• विद्यार्थी जीवन उन्होंने बहुत सी प्रतियोगिताओं में पुरस्कार एवं सम्मान अर्जित किए। उनके काम को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित किया गया। प्रसिद्ध कला दीर्घाओं में अनेक प्रदर्शनियों में शो में भाग लिया।
• 1974 में उन्हें अखिल भारतीय कालिदास चित्रकला व मूर्तिकला प्रदर्शनी में विद्यार्थी श्रेणी में और वर्ष 1975 में कलाकार श्रेणी में पुरस्कृत
• शासकीय एम।एल।बी। गर्ल्स पी।जी। कॉलेज, इंदौर द्वारा आयोजित कम्पोजीशन ऑफ़ कलर्स एग्जीबिशन 2014 में सम्मानित
• ‘पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर स्मृति राज्य कला प्रदर्शनी’ उज्जैन में पुरस्कृत (1999, 2000 2022 एवं 2023)
• विक्रमोर्वशीयम पेंटिंग को 97वीं अखिल भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी दिल्ली में आइफैक्स पुरस्कार (2024)
• जेसीज क्लब और लायंस क्लब द्वारा आयोजित विभिन्न स्कूल स्तरीय कला प्रतियोगिता में सम्मानित
एकल प्रदर्शनी
• देवलालीकर कला वीथिका-इंदौर (1998)
• फ़नकार क्लब आर्ट गैलरी- उज्जैन (2024)
समूह प्रदर्शनी
• कर्णावती आर्ट गैलरी, अहमदाबाद (2010)
• सुदर्शन आर्ट गैलरी, जवाहर कला केंद्र, जयपुर (2010)
• 3- 4 वर्ग मीटर @ 1 फीट कला प्रदर्शनी -प्रीतमलाल दुआ आर्ट गैलरी, इंदौर (2012)
• ललित कला अकादमी, रीज़नल सेंटर, लखनऊ (2022)
• इंदौर गौरव उत्सव प्रीतमलाल दुआ आर्ट गैलरी, इंदौर (2022)
• आज़ादी के 75 वर्ष पर 75 कलाकारों की सामूहिक प्रदर्शनी- कैनरीज आर्ट गैलरी, इंदौर (2022)
• टैवर्न हॉल, गेयटी मल्टी आर्ट सेंटर, शिमला (2023)
• ललित कला अकादमी, रीज़नल सेंटर, शिमला (2023)
कला प्रदर्शनियों में भागीदारी
• ऑल इंडिया कालिदास पेंटिंग्स एंड स्कल्पचर एग्जीबिशन (2004-07)
• मध्यप्रदेश कला परिषद एग्जीबिशन (2005)
• उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी राज्य प्रदर्शनी ग्वालियर (2007)
• इंडिया रॉयल अकेडमी ऑफ आर्ट एंड कल्चर गुलबर्गा ऑल इंडिया एग्जीबिशन (2008)
• ललित कला अकादमी-जयपुर (2009)
• कम्पोजीशन ऑफ़ कलर्स एग्जीबिशन-इंदौर (2014)
• रंग अमीर- स्टेट एग्जीबिशन, इंदौर (2017)
• जयपुर कला महोत्सव- ऑल इंडिया आर्ट फेयर (2017)
• इंटरनेशनल आर्ट मार्ट-खजुराहो (2021, 2022, 2023, 2024 )
• पद्मश्री डॉ. वी.एस. वाकणकर स्टेट आर्ट एग्जीबिशन (1999, 2000/03/04, 2011, 2015, 2017, 2022)
• रंग अमीर-नेशनल एग्जीबिशन, इंदौर (2022, 2023)
• संस्कार भारती, नेशनल एग्जीबिशन, बैंगलोर (2024)
• श्री अफज़ल मेमोरी स्टेट एग्जीबिशन (2004)
• फ़नकार आर्ट गैलरी- इंदौर (2003)
सुषमा जी की तीन संतानों में बड़ी बेटी अदिति ने एमबीए (फायनेंस) किया है और अपने चार्टर्ड अकाउन्टेंट पति की फर्म में सहयोगी है। बेटा अमित हार्बिंजर कम्पनी, पुणे में सीनियर आर्किटेक्ट तथा छोटी बेटी अपूर्वा टीसीएस, बैंगलोर में इंगेजमेंट मैनेजर है। 50 वर्षों से इस क्षेत्र में लगन से काम कर रही सुषमा जी की कलायात्रा आज भी जारी है।
सन्दर्भ स्रोत : डॉ. सुषमा जैन से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *