छाया : स्व संप्रेषित
• सारिका ठाकुर
सामाजिक कार्यकर्ता
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अनुराधा (dr-mejor-anuradha) का जन्म 18 जनवरी 1960 को इंदौर में हुआ। उनके पिता डॉ. विजय कुमार सांखला शिक्षा से चिकित्सक किंतु व्यवसाय से इंजीनियर एवं उद्योगपति थे और माँ मणिकांता गृहिणी। चार भाई बहनों में सबसे बड़ी अनुराधा जी के बचपन ने उनके भीतर सामाजिक चेतना का आधार बनाया। उनकी दादी अक्सर अपनी बहू यानि अनुराधा जी की माँ द्वारा लगातार तीन बेटियाँ पैदा करने को लेकर दुखी होतीं जबकि अनुराधा जी के माता-पिता स्वयं किसी लैंगिक भेद-भाव को नहीं मानते थे। आठवीं कक्षा तक इसी वजह से उनके कान भी नहीं छिदवाए गए थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय, इंदौर से हुई। स्कूली जीवन से मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई के बीच की अवधि में उन्होंने पढ़ाई-लिखाई के अलावा टेबल-टेनिस, वाद-विवाद प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता , रेडियो उद्घोषक एवं अभिनय आदि में भी खुद को आजमाया। टेबल टेनिस कॉलेज में भी साथ रहा, उन्होंने टूर्नामेंट में अपने विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1978 से 85 आकाशवाणी इंदौर और 1985 से 87 आकाशवाणी मुंबई में युववाणी कार्यक्रम की नियमित उदघोषिका रहीं।
जानकीदेवी बजाज जिन्होंने छुआछूत के विरुद्ध लड़ाई की शुरुआत अपनी रसोई से की
वे बचपन से ही फ़ौज में जाने को इच्छुक थीं और उस समय लड़कियों के लिए फ़ौज में जाने का एकमात्र रास्ता चिकित्सा क्षेत्र ही हुआ करता था। एक जागरूक युवा के तौर पर अनुराधा जी के आदर्श स्पष्ट थे लेकिन उन्हें मूर्तरूप दे सकना सरल नहीं था। मेडिकल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद वर्ष 1985 में वे जसलोक हॉस्पिटल, मुंबई में बतौर रेसिडेंट चिकित्सक के रूप में नियुक्त हुईं। वहां एक साल काम करने के बाद वे जगजीवन राम हॉस्पिटल (पश्चिम रेलवे चिकित्सा मुख्यालय) में रेसीडेंट डॉक्टर बनीं। वर्ष 87-89 मेडिकल कालेज जामनगर से एनेस्थिसियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन कर विशेषज्ञ बनीं। इसके बाद वर्ष 1991 में भारतीय सशस्त्र सेना की चिकित्सा कोर (Medical Corps of the Indian Armed Forces) में शामिल हो गईं। इस दौरान पंजाब-पाकिस्तान सीमा, राजस्थान पाकिस्तान सीमा, खड़क वासला (पूना), रुड़की(उप्र) जैसी महत्वपूर्ण सैनिक छावनियों के अस्पतालों में तैनात हुईं। मेडिकल ऑफिसर्स बेसिक ट्रेनिंग कोर्स में अनुराधा जी की बैच में 39 अधिकारी थे जिनमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ अधिकारी होने का प्रमाणपत्र मिला। वे फ़ौज की स्थायी मेडिकल अधिकारी नहीं थी, बल्कि शार्ट सर्विस कमीशन के तहत नियुक्त हुई थीं।
उस समय भारतीय सेना के पास टी 55, टी 72 रुसी टैंक एवं भारत द्वारा निर्मित युद्धक टैंक –अर्जुन’ उपलब्ध था, अनुराधा जी उसे चलाने वाली और उनसे गोले दागने वाली देश की प्रथम महिला हैं, हालाँकि यह अभ्यास तक ही सीमित रहा। वर्ष 1998 में उन्होंने फ़ौज की नौकरी छोड़ दी क्योंकि अब वे अपने दूसरे लक्ष्य के तहत गाँव के लोगों के बीच जाकर काम करना चाहती थी। उनके मन में प्रेमचंद की कहानियों में वर्णित गाँव की तस्वीर बसी हुई थी। हालाँकि तब भी कार्यक्षेत्र बनाने के लिए कोई एक गांव उन्होंने चुना नहीं था। एक बार वे छुट्टियों में घर पहुंची और उनके पिताजी के कनिष्ठ सहयोगी डॉ. ललित मोहन पंत उन्हें खरगोन जिले के सुदूर क्षेत्र में बसे हुए गाँव दिखाने लेकर गए। उन्होंने आस्था ग्राम ट्रस्ट (Astha Gram Trust) के बारे में भी बताया जिनका एक भवन बना हुआ था। इस ट्रस्ट का पंजीयन 1995 में किया गया था।
इन्हें भी पढ़िए .....
जयश्री बनर्जी : बहुआयामी व्यक्तित्व की स्वामी राजनीतिज्ञ और समाजसेवी
जब उन्होंने अपने कार्य की शुरुआत की उस समय वहां 12 एकड़ की पथरीली ज़मीन भर थी जिस पर एक मात्र तीन वर्ष पुराना पीपल का पेड़ था। ट्रस्ट के कार्यक्रम के नाम पर एक कुष्ठ आश्रम ज़रूर था, जहां कुष्ठ के भय से कोई नहीं आता था। अति विकलांग कुष्ठ रोगी भीख मांगकर गुजारा करते थे। संस्था की तत्समय यही जमा पूंजी थी, एक भी कर्मचारी नहीं था। 10 बिस्तर वाले अस्पताल के भवन में बिजली पानी की सुविधा तक नहीं थी। कमरों के भीतर मकड़ी के जाले और फर्श पर धूल अटे पड़े थे। मदद के लिए उस समय कोई भी मौजूद नहीं था इसलिए झाड़ू उठाकर खुद सफ़ाई में जुट गईं। इसके बाद अनुराधा जी पूरी तरह इस ट्रस्ट की गतिविधियों को रूप देने में जुट गईं । उनके सतत प्रयासों से वर्तमान में यह न्यास शून्य से लगभग 1 करोड़ वार्षिक टर्न ओवर के स्तर तक पहुँच चुका है। लगभग 38 सवेतन नियमित कार्यकर्ता एवं सैकड़ों स्वयं सेवक हैं। पीपल के एक वृक्ष के साथ साथ साढ़े चार हज़ारों वृक्षों से युक्त जंगल है एवं न्यास के अंतर्गत संचालित एक कार्यक्रम के स्थान पर आज 36 कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं।
वर्ष 2010 में इस न्यास को जिला स्तरीय सर्वश्रेष्ठ नशा निवारण कार्यक्रम हेतु मुख्यमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुआ। भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, (Indian Red Cross Society) खरगोन शाखा द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट कार्य हेतु 2012 -13 का पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसी प्रकार संस्था परिसर में जल संरक्षण कार्यक्रम एवं विविध वृक्षारोपण कार्यक्रमों की सफलता को देखते हुए वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा जैव विविधता का राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा सशक्तिकरण कार्यक्रमों के लिए वर्ष 2016 में महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज ऑफ़ प्रोफेशनल साइंसेस, इंदौर द्वारा महाराजा एक्सीलेंस अवार्ड -2016 प्राप्त हुआ। इसके अगले ही वर्ष (2017) स्थानीय ‘नवग्रह मेले’ में एक दिन में एक लाख पचास हजार पांच सौ पचास कागज़ की थैलियाँ वितरित करने का कीर्तिमान बनाने पर गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में भी नाम दर्ज हुआ।
इन्हें भी पढ़िए .....
अजायबघरों में शिक्षा के दीपक जला रही हैं शिबानी घोष
अनुराधा जी न्यास के माध्यम से पुनर्वास हेतु भी कई कार्यक्रमों का संचालन कर रही हैं। इस न्यास की मुरम की खदान वाली ज़मीन पर कई कुष्ठ रोगी रहते थे लेकिन उनके उपचार एवं पुनर्वास की व्यवस्था नहीं थी। वास्तव में कुष्ठ एक रोग मात्र नहीं है, इससे सम्बंधित धारणाएं इस रोग से भी ज्यादा ख़तरनाक हैं। 1995 से संचालित ‘अवसर’ कार्यक्रम के अंतर्गत ही इस दिशा में कई प्रयास किये गए, परिणामस्वरूप तीन कुष्ठ उपचारित एवं संक्रमण मुक्त लोगों को उनके परिजन अपने साथ ले गए, छः रोगियों को गाँव वालों ने अपना लिया एवं 39 नए रोगियों के इलाज की व्यवस्था घर में ही करते हुए उनके विस्थापन को रोका गया।
पुनर्वास हेतु ‘आसरा’ कार्यक्रम के तहत, पुलिस द्वारा सौंपी गई, सड़क पर लावारिस घूमती विक्षिप्त, यौन शोषित, विकलांग एवं वृद्धाओं हेतु आश्रय केंद्र निर्मित है। इसके अलावा यहाँ विकलांग बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए डे केयर सेंटर, विद्यालय, छात्रावास एवं उनमें कौशल उन्नयन के लिए कई व्यवस्थाएं की गई हैं। प्रयोग के तहत ये बच्चे सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ते हैं ताकि उनमें एक दूसरे के प्रति सामाजिक समझ पैदा हो। उदाहरण के लिए ब्रेल लिपि दृष्टिबाधित ही नहीं सभी बच्चों को सिखाई जाती है, सांकेतिक भाषा सभी बच्चे सीखते हैं ताकि उनमें संवाद हो सके। यहाँ के छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चे दूरस्थ आदिवासी अंचलों से आते हैं। उनमें से कुछ तो नल और पंखे देखकर डर जाते हैं, परन्तु कुछ सालों बाद वे ही बच्चे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपनी बात रखने में भी नहीं हिचकते। आज इन बच्चों पर अनेक टीवी चैनल और पत्रकारिता के छात्र फ़िल्में बनाते हैं। अनुराधा जी इसे अपनी यात्रा की शुरुआत मानती हैं।
उल्लेखनीय है अनुराधा जी न्यास के लिए न तो शासकीय सहायता लेती हैं न शासकीय योजनाओं पर काम करती हैं। वे ऐसे समाज की कल्पना करती हैं जिसमें हर कोई अपने कर्तव्य और अधिकार के प्रति जागरूक तो हो ही साथ ही कोई किसी का शोषण न करे ताकि किसी एनजीओ की कभी जरुरत ही न पड़े। इसलिए न्यास के प्रतीक चिन्ह पर उन्होंने लिखवाया है –आत्मघाती दस्ता। (उपरोक्त विवरण उनके जीवनकाल में उनसे हुई बातचीत पर आधारित है )
63 साल की उम्र में 26 मार्च 2023 खरगोन में हृदयाघात से उनका निधन हो गया। उनकी इच्छानुसार उनका नेत्रदान भी किया गया।
सन्दर्भ स्रोत-स्व संप्रेषित एवं अनुराधाजी से बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *