हेमंतकुमारी देवी-देश की पहली महिला संपादक

blog-img

हेमंतकुमारी देवी-देश की पहली महिला संपादक

छाया: मंगला अनुजा की पुस्तक हेमंतकुमारी देवी चौधरी का आवरण पृष्ठ 

अपने क्षेत्र की पहली महिला

हिन्दी पत्रकारिता में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ने वाली हेमंतकुमारी देवी (hemant-kumari-devi)का जन्म एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में हुआ। उनके पिता बाबू नवीनचन्द्र राय लाहौर के ओरिएण्टल कॉलेज (Navinchandra Roy Oriental College, Lahore) के प्राचार्य थे। उन्हीं के घर लाहौर में दूसरे आश्विन संवत 1925 (सितम्बर सन 1868) को उनका जन्म हुआ। नवीनचन्द्र राय ने अपनी पुत्री को प्रारंभिक शिक्षा के लिए आगरा के रोमन कैथेलिक कान्वेंट (Roman Catholic Convent Agra) में पढ़ने के लिए भेज दिया परन्तु थोड़े ही दिनों में अपनी पुत्री पर ईसाई धर्मं (christianity) का प्रभाव पड़ते देख उन्हें वापस लाहौर ले आए और वहाँ के क्रिश्चयन गर्ल्स स्कूल (Christian Girls School) में भर्ती करा दिया और घर पर खुद ही धार्मिक शिक्षा देने लगे। ब्रह्मसमाजी बाबू नवीनचन्द्र राय स्त्री-शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। यही कारण है कि उन्होंने हेमंतकुमारी की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। स्कूल में अंग्रेज़ी की शिक्षा के साथ-साथ उन्हें अलग से हिंदी, बांग्ला और संस्कृत की शिक्षा भी दिलाई गई।

हेमंतकुमारी ने कोलकाता से सन 1883 में एंट्रेंस की परीक्षा पास की और लाहौर लौट आईं और पिता के सार्वजनिक गतिविधियों में हाथ बँटाने लगीं। वे पिता के साथ सभाओं-समितियों में जाया करती थीं। इस दौरान उन्होंने आम महिलाओं की दशा भी देखी और उन्हें समझ में आ गया कि उनके लिए काम करने की बड़ी ज़रुरत है। उन्होंने लाहौर में सन 1885 में हरदेवीजी के साथ मिलकर ‘वनिता बुद्धि विकासिनी सभा’ (vanita buddhi vikasini sabha) का गठन किया। वहाँ की स्त्रियों से अच्छी तरह संवाद हो सके, इसलिए पंजाबी भाषा भी सीख ली। उनके द्वारा बनाई गई स्त्री सभा की गतिविधियाँ इतनी अधिक थी कि लाहौर की कई स्त्रियाँ उनसे जुड़ गईं। उनके द्वारा गठित स्त्री सभा की बैठकें प्रति सप्ताह हुआ करती थी।

इन्हें भी पढ़िये -

चांसलर बनने वाली देश की पहली महिला मृणालिनी देवी

2 नवम्बर 1885 को उनका विवाह सिलहट (Sylhet) के श्री राजचन्द्र चौधुरी के साथ ब्रह्म समाज के रीति-रिवाज़ के अनुसार संपन्न हुआ और वे विवाह के बाद पति के साथ सिलहट चली गईं। वहाँ जाकर भी वे खाली नहीं बैठीं बल्कि स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार में जुट गईं। उन्होंने सिलहट में लड़कियों के लिए दो स्कूल खुलवाए जहाँ उन्होंने लेडी डॉक्टर की भी व्यवस्था कराई। सन1887 में  राजचन्द्र चौधुरी जी  नौकरी के सिलसिले में मध्यप्रदेश की रतलाम रियासत (Ratlam State) में आ गए और उनके साथ हेमंतकुमारी भी आईं। लेकिन वे मात्र घर गृहस्थी में व्यस्त रहने वाली महिलाओं में से नहीं थीं। अपने खाली समय का सदुपयोग करते हुए उन्होंनें रतलाम  की महारानी को पढ़ाना शुरू कर दिया। एक प्रकार से वे महारानी की अवैतनिक शिक्षिका बन गईं थीं।

इस समय तक बांग्ला में महिला पत्रिका ‘भारती’ ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था। बाबू नवीनचन्द्र को हिन्दी में ऐसी पत्रिका की कमी खलने लगी। उन्हीं की उत्प्रेरणा से हेमंतकुमारी देवी रतलाम से फरवरी 1888 में ‘सुगृहणी’ (sugrihini) नामक मासिक पत्रिका (Monthly Magazine) का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया। उल्लेखनीय  है कि उन दिनों बाबू नवीनचन्द्र अपनी पुत्री के साथ ही रहते थे। हेमंतकुमारी की इस पहल ने इतिहास रच दिया। अब तक मध्यप्रदेश तो क्या देश के किसी भी हिस्से में महिला द्वारा सम्पादित न तो हिंदी की कोई महिला पत्रिका प्रकाशित हुई थी न कोई महिला पत्रकार (female journalist) सामने आई थी। सुगृहणी से पूर्व ‘बाला बोधिनी’ (bala-bodhini) प्रकाशित हो रही थी जिसे भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) प्रकाशित कर रहे थे और वही उसमें लिख भी रहे थे। हेमंतकुमारी मध्यभारत की एक छोटी सी रियासत में रह रही थीं जहाँ न तो शिक्षा का प्रसार था और न ही हिन्दी मुद्रण की कोई विशेष सुविधा। इसलिए ‘सुगृहणी’ को अच्छे हिंदी प्रेस में छपवाने के लिए राज्य से बाहर पहले सुख संवाद प्रेस लखनऊ और बाद में लाहौर भेजना पड़ा।

इन्हें भी पढ़िये -

मध्यप्रदेश की पहली एवं इकलौती महिला मुख्यसचिव निर्मला बुच

सन 1889 में हेमंतकुमारी देवी के पति शिलांग चले गए रो वे भी रतलाम से शिलांग जा पहुंची। इस तरह ‘सुगृहणी’ का प्रकाशन स्थल रतलाम से शिलांग हो गया। वे मात्र दो साल रतलाम में रही लेकिन इस बीच ‘सुगृहणी’ को प्रकाशित कर उन्होंने मध्यप्रदेश के सिर प्रथम महिला पत्रिका प्रकाशित करने का सेहरा बाँध दिया। परन्तु हेमंतकुमारी देवी जैसी शख्सियत किसी सीमा में बंधकर कार्य करने के लिए नहीं बनी थी। शिलांग में भी उन्होंने ‘सुगृहणी’ का प्रकाशन जारी रखा लेकिन उसे दूर इलाहाबाद से तब छपवाना पड़ता था। प्रकाशन के चौथे वर्ष के पहले अंक में यह सूचना देते हुए पत्रिका बंद हो गई कि 200 ग्राहकों का चन्दा बकाया है, और अगर सहायता प्राप्त नही होगी तो पत्रिका का प्रकाशन बहुत दिनों तक जारी नहीं रह सकेगा। अन्ततः ‘सुगृहणी’ का प्रकाशन बंद हो गया लेकिन इस बीच स्त्री विरोधी कई मुद्दों पर बेलाग टिप्पणियों के कारण पत्रिका एक विशिष्ट स्थान बना चुकी थी।

इन्हें भी पढ़िये -

पत्रकारिता की पहली महिला प्रोफ़ेसर दविन्दर कौर उप्पल

इस बीच ‘सहवास बिल’ की बात भी उठी थी जिसमें निर्धारित ‘एज ऑफ़ कंसेट’ (शारीरिक सम्बन्ध के लिए आयु सीमा), जो 10 वर्ष थी को बढ़ाने पर विचार के लिए महिलाएं उठ खड़ी हुई थीं। उन दिनों देश में बाल विवाह एक बड़ी समस्या थी। समाज का रूढ़िवादी तबका इस बिल का पुरजोर विरोध कर रहा था जिस पर कड़ी फटकार लगाते हुए हेमंतकुमारी देवी ने ‘सुगृहणी’ में लिखा था कि – “ कन्याओं को विदेशी गवर्नमेंट के पास सहायता की प्रार्थना करनी पड़ी। मूर्खों को इससे भी लज्जा नहीं आती। वे उल्टा चिल्ला रहे हैं। हमारे जो भाई इसके विरोधी हैं और इसके विरुद्ध में सभा कमिटी कर निर्लज्जता का प्रकाश कर रहे हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे वृथा चिल्लाहट छोड़कर पुत्र-पुत्रियों को इन्द्रिय संयमी होने की शिक्षा दें।”

इन्हें भी पढ़िये -

मध्यप्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री जमुना देवी 

पत्रिका बंद होने के बाद हेमंतकुमारी ने खुद को स्त्रियों से जुड़े अन्य कामों में व्यस्त कर लिया। सन 1899 में हेमंत कुमारी के पति अपने गृहनगर सिलहट आ गए और उनके साथ वे भी अपनी पुरानी कर्मभूमि सिलहट जा पहुंची। सिलहट पहुँचकर एक महिला समिति बनाई और ‘अन्तःपुर’ नाम से एक बांग्ला मासिक पत्रिका (‘Antapur’ Bengali monthly magazine) निकालने लगीं। इसके अलावा वे ब्रह्म समाज की गतिविधियों का काम भी संभालने लगी। लगातार परिश्रम के कारण वे अब बीमार रहने लगी थीं लेकिन उनकी प्रतिभा और उनके काम की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी थी। उनकी चर्चा सुनकर ही पटियाला राज्य ने उनको लड़कियों की शिक्षा का भार संभालने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। स्वास्थ्य लाभ के बाद उन्होंने सिलहट छोड़ने का मन बना लिया और 12 दिसंबर, 1906 में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर की पत्नी द्वारा खोले गए विक्टोरिया हाई स्कूल की सुप्रिटेन्डेंट (Superintendent of Victoria High School) का पद भार संभालने पटियाला जा पहुंची। जनवरी 1907 में वे स्कूल की प्रिंसिपल बनी और पूरे 20 वर्षों तक उस स्कूल के शिक्षण कार्यों से जुड़ी रहीं। पटियाला में भी उन्होंने स्त्रियों के लिए कई सभाओं की स्थापना की। इसके अलावा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में वे महिलाओं के हित में लगातार लिख रही थीं।

इन्हें भी पढ़िये -

मध्यप्रदेश की पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा कुमारी चौहान

हेमंतकुमारी एक शानदार वक्ता (Speaker) भी थीं, कई सभाओं में उन्हें भाषण देने के लिए बुलाया जाता था। उनके व्यक्तित्व से सम्बंधित एक रोचक तथ्य यह है कि उन्हें खाना पकाना बिलकुल नहीं आता था। एक बार उन्होंने सीखने की कोशिश भी की। जो महिला उन्हें खाना पकाना सिखाती थी वह कई बार उन्हें डांट भी देती थी जिसे वह हंसकर टाल देतीं। यह उनके जीवन की प्राथमिकता थी भी नहीं। हिन्दी की वह पहली महिला पत्रकार, समाजसेविका, श्रेष्ठ शिक्षिका अब कुशल प्रशासिका बनने की राह पर चल पड़ी थी। सन 1924 में वे देहरादून की म्युनिसिपल कमिश्नर (Municipal Commissioner of Dehradun) बना दी गईं, जहाँ उन्होंने 10 वर्षों तक सफलतापूर्वक काम किया। वहाँ भी उन्होंने एक स्त्री सभा बनाई। सन 1953 में 85 वर्ष की आयु में  वे इस संसार से विदा हो गईं। उन्होंने अपने बच्चों को भी खूब पढ़ाया लिखा। उनकी तीन संतानों में बड़े पुत्र छात्रवृत्ति लेकर यूरोप पढ़ने गए, बड़ी पुत्री शैलजा ने बी.ए. पास किया और छोटी पुत्री डॉक्टर बनीं।

प्रकाशित कृतियाँ : आदर्श माता, माता और कन्या, नारी पुष्पावली, हिंदी बांग्ला प्रथम शिक्षा, सचित्र नवीन शिल्पमाला 

सन्दर्भ स्रोत :  डॉ. मंगला अनुजा की पुस्तक ”पत्रकारिता के युग निर्माता : हेमंतकुमारी देवी चौधरी’ के विभिन्न अंशों पर आधारित ।

 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी
ज़िन्दगीनामा

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी

सुनीता भलावी ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि इरादे पक्के हों तो विकलांगता कभी आड़े नहीं आ सकती।

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल
ज़िन्दगीनामा

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल , दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर

शुरुआती दौर में तो आदिवासी उन पर भरोसा ही नहीं करते थे। संपर्क के लिये जब वे गाँव में पहुँचती तो महिलाएं देखते ही दरवाजा...

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये
ज़िन्दगीनामा

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये , बगैर जिसने हासिल किया मुकाम

सीमा जी की ज़िंदगी की शुरुआत ही एक नाटक कंपनी चलाने वाले पिता की पहचान के साथ हुई और यही पहचान धीरे-धीरे इन्हें समाज से अ...

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती
ज़िन्दगीनामा

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती , हैं इसरो वैज्ञानिक प्रभा तोमर

अक्सर ऐसा होता कि शिक्षक के पढ़ाने से पहले ही गणित के सवाल वे हल कर लिया करती थीं। इसलिए बोर्ड पर सवाल हल करके बताने के ल...

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा
ज़िन्दगीनामा

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा

उनके उपन्यास 'सिधपुर की भगतणें’ पर मुम्बई विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने एम.फिल का लघु शोध लिखा है। इसी उपन्यास पर ओडिशा...