छाया : सलमा सुलतान के फेसबुक अकाउंट से
सलमा जी के पिता मोहम्मद असगर अंसारी भोपाल रियासत में कृषि सचिव थे और मां एक आदर्श गृहिणी। सलमा के व्यक्तित्व को आकार उनके पिता ने दिया। अपने माता-पिता की दूसरी संतान सलमा को अपनी बहन मैमूना सुल्तान से भी भरपूर प्यार और मार्गदर्शन भी मिला। मैमूना मप्र की पहली विधानसभा में सदस्य चुनी गई थीं और उसके बाद तीन बार वे सांसद भी रहीं। दोनों बहनें शाह शुज़ा की पड़पोती हैं। शाह शुज़ा दुर्रानी अफ़गानिस्तान के अमीर थे जो दोस्त मोहम्मद खान से पराजित होने के बाद कश्मीर में रह रहे थे। पहले आंग्ल-अफगान युद्ध के बाद अंग्रेज़ों की मदद से वे दोबारा अफ़गानिस्तान के शासक बन गए लेकिन दो साल के भीतर ही काबुल में उनकी हत्या कर दी गई। एक आक्रमण के दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें कश्मीर से छुड़ाया था, जिसके बदले उन्होंने रणजीत सिंह जी को प्रसिद्ध कोहिनूर का हीरा दिया था।
भोपाल के सुल्तानिया गर्ल्स हाई स्कूल से हायर सेकेंडरी करने के बाद सलमा जी ने महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज से स्नातक किया। फिर उच्च शिक्षा के लिए वे दिल्ली आ गईं और इंद्रप्रस्थ कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य से स्नातकोत्तर करने के बाद एक उद्घोषक और प्रस्तुतकर्ता के रूप में दूरदर्शन से जुड़ गईं। दूरदर्शन की स्थापना 15 सितम्बर 1959 को हुई थी। 1965 से समाचार बुलेटिन की शुरुआत हुई। उन दिनों प्रतिमा पुरी और गोपाल कौल, रोज़ टीवी पर ख़बरें पढ़ते नज़र आते थे। 1967 में सलमा सुल्तान भी दूरदर्शन पर समाचार वाचक के रूप में दिखाई देने लगीं। शुरुआती दिनों में उनकी तनख्वाह महज दो हज़ार रुपए महीना थी, लेकिन तब सलमा जी या किसी भी समाचार वाचक के लिए पैसे की उतनी अहमियत नहीं थी, जितनी लोगों से जुड़ने की ख़ुशी। उनके लिए यह ज़्यादा अहम था कि पूरा देश उन्हें देख रहा है और समाचार वाचक के रूप में वे आम लोगों के बीच जाने-पहचाने जाते हैं।
सलमा जी का समाचार वाचक बनना अनायास ही हुआ। दरअसल दूरदर्शन में तब प्रतिमा पुरी या गौतम कौल के अलावा और कोई इस काम के लिए नहीं था। एक दिन श्री कौल ने समाचार पढ़ने में अनिच्छा ज़ाहिर की और साथियों की मनुहार के बावजूद वे सर मुंडवाकर दूरदर्शन पहुँच गए। कोई चारा न देख सभी ने सलमा जी से पूछा कि क्या वे यह काम कर पाएंगी। उन्होंने हाँ कहा और स्टूडियो की तरफ बढ़ गईं। उस वक़्त दैनिक बुलेटिन की अवधि 10 मिनट की हो चुकी थी। सलमा जी जब बुलेटिन पढ़कर वापस लौटीं तो साथियों ने उन्हें बताया कि 10 मिनट का बुलेटिन उन्होंने 5 मिनट में ही पढ़ डाला है। बचे हुए 5 मिनट बिताने के लिए 'फ़िलर' का इस्तेमाल करना पड़ा। लेकिन समाचार पढ़ने की शैली और स्पष्ट उच्चारण सभी कायल हो गए। इस तरह शुरू हुई उनकी समाचार वाचन यात्रा 1997 तक जारी रही। बालों में गुलाब उनका प्रिय श्रृंगार था। सलमा कहती हैं, कि पहली बार जब दर्शकों ने उन्हें गुलाबी साड़ी और बालों में गुलाब के साथ देखा, तो उनके पास ढेरों प्रशंसकों के फोन आए। तब से वे बिला नागा बालों में गुलाब लगाकर समाचार पढ़ने लगीं। उनके अनुसार वह टेलीविजन का श्वेत-श्याम युग था, जिसमें कई प्रयोग किये गए - समाचार वाचन शैली से लेकर परिधान और श्रृंगार तक, जिसमें पहली शर्त थी शालीनता। लगभग तीस सालों तक उन्होंने दूरदर्शन पर ख़बरें पढ़ीं उसके बाद भी जुड़ी रहीं।
31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तीन अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी थी। वह समय सलमा जी के करियर का सबसे कठिन समय था क्योंकि वह मनहूस ख़बर पढ़ने का जिम्मा सलमा जी पर ही आया। इस खबर ने देश को ही नहीं, पूरी दुनिया को हिला दिया था। सलमा जी बताती हैं, "मुझे नहीं समझ आ रहा था कि वो खबर मैं कैसे पढूंगी। मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे और उसी हालत में मुझे कैमरे का सामना करना पड़ा।" स्टूडियो में जाने से पहले मेकअप मैन अपना काम कर रहा था लेकिन सलमा जी के लिए आंसुओं को रोक पाना बहुत ज़्यादा मुश्किल था।
दूरदर्शन से अवकाश के बाद उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस ‘लेन्स व्यू प्राइवेट लिमिटेड’ बनाया और इसी बैनर तले स्वयं के निर्देशन में बच्चों के लिए और सामाजिक विषयों पर कई धारावाहिकों का निर्माण किया, जिनका प्रसारण, ज़ाहिर कि दूरदर्शन पर ही होता था। उनके प्रोडक्शन हाउस की पहली प्रस्तुति थी ‘पंचतंत्र जो हर आयु वर्ग के दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुआ। कम बजट के चलते उन्होंने मुंबई में बीआर चोपड़ा द्वारा निर्मित 'महाभारत' के सेट पर अनुमति लेकर पंचतंत्र की शूटिंग की। कला के प्रति ऐसी लगन को देखते हुए बीआर चोपड़ा ने भी उन्हें दाद दी। वर्ष 1989 में यह धारावाहिक ‘महाभारत’ के ठीक बाद दूरदर्शन पर प्रसारित होती थी। इसके अलावा सुनो कहानी, स्वर मेरे तुम्हारे, जलते सवाल आदि प्रमुख है।
जलते सवाल महिला मुद्दों पर आधारित धारावाहिक था जो 2004 में डीडी न्यूज़ पर सुबह 11 बजे प्रसारित होता था। खाने की बेहद शौकीन सलमा जी को टीवी धारावाहिकों में महिलाओं को साज़िशें करते हुए दिखाने से सख्त ऐतराज़ है। इसलिए उन्होंने कभी भी इस तरह के धारावाहिक का निर्माण नहीं किया। संगीत में रुचि रखने वाली सलमा सिंथेसाइज़र, हारमोनियम और कम्प्यूटर तकनीक पर भी हाथ आजमाती हैं। वे एक कुशल इंटीरियर डिजाइनर भी हैं, लेकिन इसे उन्होंने कभी व्यवसाय नहीं बनाया। शौकिया तौर पर अपने घर की साज-सज्जा पर उन्होंने खूब काम किया। दरअसल वे स्वभाव से ही रचनात्मक रही हैं इसलिए लगातार नई-नई संभावनाओं में खुद को तलाशती और तराशती रहती हैं।
सलमा जी का विवाह वर्ष 9 नवम्बर 1969 को जनाब आमिर किदवई से हुआ। वे इंजीनियर थे। उनके दो बच्चे हैं - पुत्र साद किदवई आयकर विभाग के आयुक्त हैं और पुत्री सना दक्ष कोरियोग्राफर और डिज़ाइनर हैं। सना नौरा डिजाइन हाउस, अमेरिका की डायरेक्टर हैं और वहीं रहती हैं। उनका व्यावसायिक नाम आयशा है। वर्तमान में सलमा जी दिल्ली में रहती हैं और भारत में अपनी बेटी का कारोबार देख रही हैं। उनका कहना है कि डिजाइनिंग में कदम रखने के बाद के कुछ साल उन्हें अपनी उस छवि से लड़ना पड़ा, जो उन्हें दूरदर्शन से हासिल हुई थी। लोग यह सोच ही नहीं पाते थे कि ख़बरें पढ़ने के अलावा वे कोई और काम भी कर सकती हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान
• सन् 1969 : दिल्ली में यूनाइटेड नेशन द्वारा बेस्ट पर्सनालिटी का ख़िताब
• वर्ष 2022 : नीति आयोग के उद्यमिता मंच द्वारा वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड
के पांचवे संस्करण में ‘सशक्त और समर्थ भारत में योगदान हेतु पुरस्कृत
संदर्भ स्रोत : सलमा सुल्तान से सारिका ठाकुर की बातचीत, मप्र महिला संदर्भ, विकिपीडिया
और नवप्रवाह डॉट कॉम पर प्रकाशित डॉ. विमलेन्दु कुमार सिंह के आलेख ‘बोलती तस्वीरें’
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