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अपने क्षेत्र की पहली महिला
• विकास आयुक्त के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान पंजाब में हुआ था रिकॉर्ड तोड़ पैदावार
• न्यूयार्क में आयोजित यूनीसेफ एक्जीक्यूटिव बोर्ड के विशेष सत्र में किया था भारत का प्रतिनिधित्व
• अनेक विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में रहा महत्वपूर्ण योगदान
अभूतपूर्व प्रशासनिक क्षमता रखने वाली मध्यप्रदेश की पहली महिला राज्यपाल सरला ग्रेवाल का जन्म 4 अक्टूबर 1927 को हुआ था । उनका कार्यकाल 1 मार्च 1989 से 5 फरवरी,1990 तक रहा। पंजाब विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान विषय से स्नातकोत्तर उपाधि में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाली वे पहली और सन् 1952 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने वाली वे भारत की दूसरी महिला थीं। सन् 1956 में वे शिमला की डिप्टी कमिश्नर बनाई गईं। देश में यह दायित्व संभालने वाली वे पहली महिला अधिकारी थीं। इसी तरह सन् 1962 में वे पहली आईएएस अधिकारी थीं, जिन्हें शिक्षा संचालक बनाया गया था।
पंजाब प्रदेश में अनेक महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर उन्होंने कार्य किया। राज्य में युवा और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों का कुशलतापूर्वक संचालन किया। इसके लिए वे रूस में माध्यमिक शिक्षा प्रणाली का अध्ययन भी करने गईं थीं। ब्रिटिश कौंसिल की छात्रवृत्ति पर दस महीने तक लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में विकासशील देशों में सामाजिक सेवाओं के स्वरूप का गहन अध्ययन किया। शिक्षा पाठ्यक्रमों में स्वास्थ्य शिक्षा और समाज कल्याण सेवाओं की महत्ता पर उन्होंने ज़ोर दिया गया था।
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सन् 1963 में वे संयुक्त पंजाब के स्वास्थ्य विभाग की सचिव बनीें। उनके कार्यकाल में पंजाब प्रदेश को राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए चार सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। राज्य ने इस दौरान परिवार नियोजन कार्यक्रम केे क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति और सफलताएँ हासिल की। इस काल में राज्य में मातृ और शिशु-स्वास्थ्य कल्याण सेवाओं के लिए एक दृढ़ आधारभूत संरचना निर्मित की गई, जिससे परिवार-नियोजन कार्यक्रम को स्थायी रूप से अपनाने में महत्वपूर्ण सहायता मिली। उन्होंने राज्य में समाज-कल्याण और महिला-कल्याण कार्यक्रम एवं स्थानीय प्रशासन विभाग के दायित्व का भी कुशलतापूर्वक निर्वाह किया। वे सचिव उद्योग, खाद्य और नागरिक आपूर्ति तथा आयुक्त, गृह भी रहीं ।
उन्होंने पंजाब के विकास आयुक्त के रूप में सन् 1971 से 1974 तीन वर्षों तक कार्य किया। इस दौरान पंजाब में खाद्यान्न उत्पादन का कीर्तिमान स्थापित हुआ और प्रदेश ने पहली बार देश में चावल उत्पादन में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की । छोटे किसानों के सहकारी दुग्ध-उत्पादन केंद्रों के लिए उन्होंने विदेशी नस्ल के उत्तम पशु तैयार करने की दिशा में सराहनीय कार्य किए। मार्च 1974 से वे संयुक्त सचिव और आयुक्त परिवार कल्याण बनीं। उन्होंने11 नवम्बर,1976 से भारत सरकार के परिवार-कल्याण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और आयुक्त का दायित्व संभाला। उनके कार्यकाल में समूचे देश में परिवार-कल्याण गतिविधियों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई जिसके अंतर्गत सभी पक्षों, परिवार नियोजन, मातृ कल्याण और शिशु स्वास्थ्य की दिशा में सराहनीय कार्य हुए। उन्होंने परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के साथ प्रभावी ढंग से जोड़ा और स्कूल तथा विश्वविद्यालयीन शिक्षा प्रणाली में जन-शिक्षा योजना के पाठ्यक्रम शामिल करवाए ।
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श्रीमती सरला ग्रेवाल ने अनेक महत्वपूर्ण मंचों के अध्यक्षता की। जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, जन्म दर नियंत्रण की दिशा में हो रहे नए अनुसंधान और शोध कार्य से संबंधित विभिन्न संगोष्ठियां और सभाएं शामिल हैं। उनके द्वारा रॉयल कालेज ऑफ ऑब्सट्रेक्ट्रिशियन और गायनोकालाजिस्ट्स लंदन में सन् 1979 में अतिथि वक्ता के रूप में दिया गया भाषण तथा सन् 1980 में भारत में आयोजित परिवार कल्याण कार्यक्रम के अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में मातृ कल्याण और जन्मपूर्व मृत्यु दर, गर्भ समापन, निरोध आदि तकनीकी विषयों पर दिए गए उनके शोधपरक भाषण काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1977,1979 और जनवरी 1981 में न्यूयार्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या आयोग के क्रमश: 19वें, 20वें और 21वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से अपने दायित्व का कुशल निर्वाह किया।
10 अगस्त,1981 को वे समाज कल्याण मंत्रालय की सचिव बनीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने समाज कल्याण की विभिन्न नीतियों योजनाओं को नई दिशा देते हुए बेहतर समन्वय स्थापित किया। इसमें महिला कल्याण, बाल कल्याण और विकलांगों के कल्याण कार्यक्रम शामिल था। इस दौरान मंत्रालय के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम, गर्भवती माताओं के लिए पोषण आहार कार्यक्रम तथा दूध पिलाने वाली माताओं और बालकों के लिए पोषण आहार कार्यक्रमों की शुरुआत, स्वैच्छिक संगठनों की स्थापना और विकास, विकलांगों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना और सामाजिक कानून की दिशा में सराहनीय हुए।
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श्रीमती ग्रेवाल ने अक्टूबर 1981 में न्यूयार्क में आयोजित यूनीसेफ़ एक्जीक्यूटिव बोर्ड के विशेष सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वे 1982-83 में यूनीसेफ एक्जीक्यूटिव बोर्ड की कार्यक्रम समिति की सर्वानुमति से अध्यक्ष चुनी गईं। उनके निर्देशन में महिलाओं के आर्थिक विकास की दिशा में विशेष कार्यक्रम संचालित किए गए।
श्रीमती ग्रेवाल ने नवंबर 1982 में सचिव, शिक्षा और संस्कृति बनने के बाद प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयीन शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, महिला साक्षरता एवं प्रौढ़ शिक्षा पर भी विशेष ज़ोर दिया । उनके निर्देशन में पुरातत्व, संग्रहालयों, थिएटरों और ललित कलाओं की विभिन्न अकादमियों में विकास संबंधी विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की गईं । 14 फरवरी, 1985 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव एवं 25 सितम्बर, 1985 को प्रधानमंत्री की सचिव नियुक्त हुईं। मध्यप्रदेश का राज्यपाल मनोनीत होने तक वे इसी पद पर रहीं।
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कुशल प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण बतौर राज्यपाल वे प्रदेश में उत्प्रेरक बनकर काम करती रहीं। प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त रखने और जनता की शिकायतों के निस्तारण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा, पर्यावरण, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर वह स्वयं दिलचस्पी लेती थीं। जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में वे हमेशा तत्पर थीं। जिस तरह की सहायता के लिए उनके पास पत्र आते थे, वे स्वयं रुचि लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाती थीं।
74 वर्ष की आयु में तपेदिक से पीड़ित श्रीमती ग्रेवाल का चंडीगढ़ में 29 जनवरी, 2002 को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।
उपलब्धियां
1. यूनेस्को शिक्षा सलाहकार समिति की प्रतिनिधि
2. यूनीसेफ एक्जीक्यूटिव बोर्ड की कार्यक्रम समिति की सर्वानुमति से अध्यक्ष 1982-83
3. जिनेवा में इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ एजूकेशन की ओर से आयोजित सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में शामिल
4. ट्रिब्यून समूह की अध्यक्ष-सन् 2000
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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