रेडियो सीलोन में प्रदेश की पहली उद्घोषक शीला तिवारी

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रेडियो सीलोन में प्रदेश की पहली उद्घोषक शीला तिवारी

छाया : शीला तिवारी के फेसबुक अकाउंट से

अपने क्षेत्र की पहली महिला 

• श्रद्धा सुनील

•  बोरे में भरकर आती थीं श्रोताओं की चिट्ठियाँ

•  उनकी बातों से प्रभावित होकर एक श्रोता ने छोड़ दिया था दहेज़ लेने का विचार

रेडियो सीलोन में मध्यप्रदेश की पहली उद्घोषिका शीला तिवारी का जन्म ग्वालियर में 10 नवंबर को मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। पांच भाई -बहनों मेंशीला जी का स्थान दूसरा है। उनके पिता श्री जगदीश प्रसाद तिवारी डाक विभाग में अधिकारी थे जबकि माँ विद्यावती तिवारी शासकीय उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापक थीं। उनके पिता का तबादला अक्सर अलग-अलग स्थानों पर हुआ करता था, इसलिए बच्चों की पढ़ाई लिखाई को ध्यान में रखते हुए विद्यावती जी ग्वालियर में बच्चों के साथ रहीं। छुट्टियों में जगदीश जी घर आते। शीला जी का परिवार बौद्धिक रूप से संपन्न था। आधुनिक एवं प्रगतिशील सोच रखने वाले शीला जी के माता पिता ने अपने सभी बच्चों को स्वाभाविक रूप से उन्नति करने का अवसर दिया। कभी भी किसी कार्य के लिए रोक टोक नहीं लगाई जाती थी। तरह-तरह की पत्रिकाएं घर में आतीं। यही वजह है कि शीलाजी सहित सभी भाई बहनों ने अपने जीवन में ऊँचे मुकाम हासिल किए।

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बचपन में उन्हें नृत्य-संगीत का शौक था। इसके अलावा बिनाका गीतमाला सुनते हुए सुप्रसिद्ध उद्घोषक अमीन सयानी की वे प्रशंसक बन गईं थीं। कमला राजा महाविद्यालय, ग्वालियर से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर के बाद वर्ष 1970 की घटना है- टाइम्स ऑफ इंडिया के जरिए आकाशवाणी में उद्घोषक के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए थे। शीला जी ने कोशिश की और कामयाब रहीं। उनकी पहली नियुक्ति आकाशवाणी केंद्र, भोपाल में हुई। उस समय उनके पिता भी भोपाल में ही पदस्थ थे। लगभग एक वर्ष पूरा होने को था, तभी टाइम्स ऑफ इंडिया में रेडियो सीलोन के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए। लगभग 4 हज़ार आवेदकों को पीछे छोड़ते हुए शीलाजी चयनित हुईं। रेडियो सीलोन को उन्होंने 6 साल तक अपनी सेवाएं दीं। श्रीलंका में कार्यकाल के अपने सुखद अनुभवों को साझा करते हुए वह बताती हैं कि “उन्हें हवाई अड्डे से ही वहाँ के निवासियों के साथ सुखद अनुभव मिले, सभी का उनके साथ अत्यंत सहयोगात्मक व्यवहार था। हिंदुस्तानी रुपए का स्थानीय मुद्रा में परिवर्तन और छात्रावास की व्यवस्था – सभी काम सहजता से हो गए।  

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आज इतने वर्षों बाद भी उन दिनों की मधुर स्मृतियां धुंधली नहीं हुईं हैं। सबसे ज़्यादा  यादगार लम्हा वह था जब वे वहां अमीन सयानी से मिलीं जिनकी वे बचपन से प्रशंसक थीं। बाद के दिनों में शीला जी को उनके साथ काम करने का मौक़ा भी मिला। शीला कहती हैं – उस ज़माने में किसी भी उद्घोषक के लिए रेडियो सीलोन में खास तौर पर वहाँ अमीन सयानी जी के साथ काम करना एक स्वप्न हुआ करता था और मेरा स्वप्न सत्य हो गया। मैं बहुत डरी हुई थी लेकिन अमीन सयानी जी का व्यक्तित्व एवं व्यवहार सहज और स्वीकार भाव से परिपूर्ण था। इसलिए आत्मविश्वास बढ़ गया, उन्होंने काम की बारीकियां सिखाईं जिसकी वजह से मैं पहले से बेहतरीन काम कर सकीं। रेडियो सीलोन में सफलतापूर्वक कार्य निष्पादन के बाद शीला जी आकाशवाणी मुंबई में पदस्थ हुईं। वहाँ भी उनके द्वारा प्रस्तुत विविध भारती के कार्यक्रमों को खूब पसंद किया गया। वे लेखन में भी रूचि रखती थीं। इलाहाबाद से प्रकाशित सुप्रसिद्ध पत्रिका मनोरमा में अक्सर उनके लेख प्रकाशित होते थे ।

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वर्ष 1982 में शीलाजी का विवाह रेलवे में स्टेशन मास्टर पद पर कार्यरत श्री हृदय राम तिवारी जी के साथ संपन्न हुआ। विवाह के बाद जिम्मेदारियां बढ़ गयीं लेकिन वे सूझ-बूझ के साथ घर और नौकरी दोनों संभालती रहीं। बीते दिनों को याद करते हुए वे कहती हैं कि उनके बहुत सारे श्रोताओं के साथ उनके लगातार संपर्क आज तक बने हुए हैं। वे आज भी उनसे गहरा जुड़ाव महसूस करती हैं। एक वक़्त था जब ऑल इंडिया रेडियो में बोरे भर कर श्रोताओं की चिट्ठियाँ आती थीं। उस समय आकाशवाणी के उद्घोषकों की लोकप्रियता चरम पर थी।” एक दिलचस्प घटना साझा करते हुए उन्होंने बताया कि विचारों के आदान-प्रदान में उनसे प्रेरित हो कर एक श्रोता ने अपने बेटे के विवाह में दहेज लेने का विचार छोड़ कर सादगी से अपने बेटे की शादी की।

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सेवानिवृत्ति के बाद ये स्मृतियां आज भी उन्हें ऊर्जा से भर देती हैं। वर्तमान में वे ग्वालियर में निवास कर रही हैं। समय का सदुपयोग करते हुए वृद्धों के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़ी हैं। शीला जी की दो संतान हैं – एक पुत्र व पुत्री दोनों ही विदेश में रहते हैं। 20 मार्च 2023 को हृदयाघात से उनका निधन हो गया।     

सन्दर्भ स्रोत: शीला तिवारी से श्रद्धा सुनील की पूर्व में बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

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