छाया: शिल्पी दास गुप्ता के फेसबुक अकाउंट से
टेलीविजन, सिनेमा और रंगमंच
• सारिका ठाकुर
सुस्थापित फिल्मकार शिल्पी दासगुप्ता सर्वथा भिन्न विषयों पर फिल्म बनाने के लिए जानी जाती हैं। उनकी माँ पापिया दासगुप्ता रंगमंच की जानी-मानी हस्ती रही हैं, इसके अलावा अकादमिक क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि शिल्पी को रंगकर्म विरासत में मिला जो उन्हें फ़िल्म निर्माण तक ले गया। शिल्पी के पिता श्री रवि दासगुप्ता इंजीनियर थे। 28 नवम्बर 1977 को भोपाल में जन्मी शिल्पी ने 10वीं तक की पढ़ाई सेंट जोसफ़ कॉन्वेंट, ईदगाह हिल्स, भोपाल से और 12वीं केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 1 से पूरी की। घर में माहौल कुछ ऐसा था कि अभिनय, रंगमंच, पटकथा और संवाद - इन सभी बातों से बचपन में ही परिचय हो गया था। उनके माता-पिता ने अपनी व्यस्तता के बावजूद बच्चों का बचपन खूबसूरत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, जिसका सकारात्मक प्रभाव शिल्पी और उनके भाई दोनों के जीवन पर पड़ा।
शिल्पी ने वर्ष 1998 में सिम्बॉयसिस कॉलेज, पुणे से अंग्रेज़ी में ऑनर्स किया और वर्ष 2000 में जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) विषय में पुणे विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। शिल्पी कहती हैं फिल्म क्षेत्र में आना संयोग नहीं था, बल्कि यह उनका करियर प्लान था जिस पर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से काम किया। यह पहले से ही तय था कि वे फ़िल्म इंस्टिट्यूट में दाखिला लेंगी। इसके लिए उन्होंने न केवल प्रवेश परीक्षा पास की बल्कि स्कॉलरशिप भी हासिल की। फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ़ इण्डिया से उन्होंने निर्देशन में डिप्लोमा किया। तीन साल का यह पाठ्यक्रम वर्ष 2005 में पूरा हुआ। इस दौरान उन्होंने 10 मिनट की एक लघु फ़िल्म ‘मंगली’ बनाई, जिसका लेखन और निर्देशन उन्होंने ही किया। छत्तीसगढ़ की बैगा प्रथा से जुड़ी सच्ची घटना पर आधारित इस फ़िल्म को वर्ष 2003 का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। बाद में यह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मोत्सवों में प्रदर्शित और प्रशंसित हुई। एफ़टीआईआई में अध्ययन के दौरान भी उन्होंने जिन-जिन फ़िल्मों पर काम किया वे सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों द्वारा सराही गईं। उदाहरण के लिए वर्ष 2000 में लघु फिल्म ‘भोर’ और ‘चैत्र’ के लिए उन्होंने कॉस्ट्यूम डिज़ाईन किया था। चैत्र -जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ, की पटकथा विकसित करने में भी शिल्पी का योगदान रहा।
वर्ष 2001 में संस्थान के लिए उनके द्वारा निर्मित फिल्म ‘हो सकता है’ का प्रदर्शन दुबई मीडिया सिटी फेस्टिवल-2002 में किया गया। जबकि वर्ष 2002 में उनके द्वारा निर्मित वृत्त चित्र ‘फोर फ्रेंड्स एंड अ रिनोल्ट’ बार्सिलोना फिल्म फेस्टिवल 2004 में प्रदर्शित हुई। इसी तरह उनके द्वारा संस्थान के लिए वर्ष 2004 में निर्मित 25 मिनट की लघु फ़िल्म ‘संशोधन’ भारतीय पैनोरमा-2005 के लिए चयनित हुई इस फ़िल्म को अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव - 2005, गोवा में प्रदर्शित किया गया। इसी बीच एक फिल्म फेस्टिवल में वे लन्दन गईं जहाँ उनकी मुलाकात वहां पढ़ाई कर रहे प्रोमित मौलिक से हुई। वहीं उन्हें एक-दूसरे से प्यार हुआ और वर्ष 2004 में उन्होंने शादी कर ली। वर्तमान में प्रोमित विज्ञापन जगत में कार्यरत हैं। एफ़टीआईआई से डिप्लोमा करने के बाद शिल्पी मुंबई आ गईं और धारावाहिक ‘सीआईडी’ से जुड़ गईं। वे इस लोकप्रिय धारावाहिक के पटकथा और संवाद पर काम करती थीं। इसके बाद वे सोनी टेलीविजन से जुड़ीं और बतौर लाइन प्रोड्यूसर ‘फेम गुरुकुल’ रियलिटी शो के लिए काम किया। एक दिन सुभाष घई की कंपनी ‘मुक्ता आर्ट्स’ से उन्हें बुलावा आया और वे व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल फ़िल्म स्कूल में बतौर इनहाउस क्रिएटिव डायरेक्टर काम करने लगीं। यहाँ काम करते हुए कुछ ही समय हुआ था जब उन्हें सुभाष घई की मल्टी स्टारर फिल्म ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ और युवराज में बतौर एसोसिएट डायरेक्टर काम करने का मौका मिला।
इसके बाद शिल्पी ने एक लीक से हटकर कहानी पर काम करना शुरू कर दिया जो ‘ख़ानदानी शफ़ाख़ाना’ के नाम से सामने आई। अगस्त 2019 में प्रदर्शित यह फ़िल्म - सोनाक्षी सिन्हा जिसकी नायिका थीं, उन्होंने महावीर जैन, मृगदीप सिंह लांबा और टी सीरीज़ के भूषण कुमार साथ मिलकर बनाई।इसमें बादशाह, वरुण शर्मा, अन्नू कपूर और प्रियांश जोरा भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थे। इस फ़िल्म में हंसी-मज़ाक के साथ एक गंभीर विषय को पेश करने की कोशिश की गई है। इस फ़िल्म में दर्शाया गया है कि सोनाक्षी को उनके मामा के निधन पर एक सेक्स क्लीनिक विरासत में मिलता है और मर्दाना कमजोरियों का इलाज अगर कोई स्त्री करे तो कैसी परिस्थितियां निर्मित होती हैं। भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को बिना किसी काटछांट के यूए सर्टिफिकेट दिया। हालांकि किसी पुरुष का अपनी समस्याओं पर किसी स्त्री से बात करते और उनका इलाज करवाते दिखाना आसान नहीं था। दूसरी तरफ दिल्ली के एक सेक्सोलॉजिस्ट विजय एबट ने आरोप लगाया कि यह फिल्म उन्हें और उनके पेशे को बदनाम करती है। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन के पहले डॉ एबट के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग रखनी पड़ी।
एक साक्षात्कार में शिल्पी कहती हैं कि मेरी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में हुई है जिसमें सेक्स जैसे शब्द को जुबान पर लाना या सुनना भी प्रतिबंधित था। लड़कियों के दिमाग में ‘लड़कों’ की छवि किसी राक्षस या दैत्य की बनाई जाती थी। इसलिए उन्हें लगा कि इस विषय पर भी सहज स्वाभाविक रूप से बात होनी चाहिए। अपनी पहली व्यावसायिक फ़िल्म में ही ऐसे विषय को सामने लेकर आना यक़ीनन एक हिम्मत की बात थी। स्क्रीन पर बेबी बेदी के किरदार के रूप में सोनाक्षी सिन्हा को ‘सेक्स क्लीनिक- बात तो करो’ के पर्चे बांटते हुए देखना भारतीय दर्शकों के लिए एक अनोखी बात थी। शिल्पी पूछती हैं कि हमारे समाज में जब समलैंगिकता जैसे विषय को स्वीकृति मिलने लगी है तो यौन समस्याओं पर खुलकर बात क्यों नहीं की जा सकती। दिलचस्प बात यह है कि इस फ़िल्म की निर्माण अवधि में शिल्पी अपनी दुधमुंही बच्ची को हमेशा अपने ही साथ रखती थीं। निःसंदेह पहले माता-पिता और विवाह के बाद पति से उन्हें पर्याप्त सहयोग मिला जिसकी वजह से करियर में आने वाली मुश्किलें भी आसान लगने लगीं। वर्तमान में शिल्पी दो वेब सीरिज और एक फ़ीचर फ़िल्म पर काम कर रही हैं। शिल्पी के बड़े भाई एक सफल बैंकर हैं और उनकी भाभी एक लेखिका हैं।
उपलब्धियां
• चैनल वी पर सिनेमा और संगीत आधारित संडे स्पेशल सेलिब्रिटी शो में बतौर प्रोडक्शन असिस्टेंट (10/1998-11/1999)
• साइलेंस प्लीज-द ड्रेसिंग रूम (2004 )
• फेम गुरुकुल : लाइन प्रोड्यूसर (6/2000-12/2005: )
• टी.वी. धारावाहिक सी.आई.डी (संवाद लेखन-दो एपिसोड-2006)
• युवराज: असिस्टेंट डायरेक्टर (2008)
• ब्लैक एंड वाइट : एसोसिएट डायरेक्टर (2008)
• एक दिन अचानक (पटकथा लेखन-2011)
• टेलीफिल्म -फैन क्लब (पटकथा लेखन2011)
• ख़ानदानी शफ़ाख़ाना (निर्देशन-2019)
• कुछ लोकप्रिय गायकों के म्यूजिक एल्बम का निर्देशन, जैसे जसबीर जस्सी, बादशाह एवं ध्वनि भानुशाली आदि (2019)
• इसके अलावा कोक, टाटा एलेक्सी एंड इस्पात के लिए चार कॉर्पोरेट फिल्मों का निर्माण
पुरस्कार-सम्मान :
• राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार/ विशेष जूरी पुरस्कार/स्पेशल मेंशन (नॉन - फीचर फ़िल्म)
संदर्भ स्रोत: शिल्पी दासगुप्ता से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
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